पहली FIR में CBI ने आरोप लगाया था कि सिंचाई विभाग की ओर से गोमती रिवर चैनलाइजेशन प्रोजेक्ट और गोमती रिवरफ्रंट डेवेलपमेंट में अनियमितताएं बरती गई थीं. आजतक की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन कथित अनियमितताओं में धन का डायवर्जन, गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के चार प्रमुख कार्यों में टेंडर्स की पूलिंग, डायफ्राम वॉल का निर्माण, इंटरसेप्टिंग ट्रंक ड्रेन का निर्माण, रबर डैम का निर्माण और विजन डॉक्यूमेंट तैयार करना शामिल हैं. कहां-कहां पड़े CBI के छापे? CBI ने लखनऊ के अलावा नोएडा, गाजियाबाद, बुलंदशहर, रायबरेली, सीतापुर, इटावा और आगरा में छापेमारी की है. यूपी में 40 जगहों पर छापे मारे गए हैं वहीं पश्चिम बंगाल और राजस्थान में 1-1 जगह पर ये छापेमारी की कार्रवाई की गई है. गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट से जुड़े तीन चीफ इंजीनियर और 6 सुप्रिटेंडेंट इंजीनियरों के ठिकानों पर भी छापेमारी की गई है. मामला क्या है? साल 2012 से साल 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे. उन्हीं के कार्यकाल में गोमती नदी रिवरफ्रंट योजना को मूर्त रूप दिया गया. इसके पहले मायावती मूर्तियां, पार्क और स्मारक बनवाकर तमाम सवालों के घेरे में आ चुकी थीं और अखिलेश वह गलती नहीं करना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने रिवरफ्रंट और जनेश्वर मिश्र पार्क जैसे प्रोजेक्ट पर फोकस किया. रिवरफ्रंट परियोजना के तहत नदी के दोनों ओर पार्क बनाए जाने थे. इससे युवाओं का समर्थन मिलने की संभावना अखिलेश को दिखी थी. काम हुआ. लखनऊ से गुज़र रही गोमती नदी के तट का सुंदरीकरण किया गया. लाइट लगायी गयी. वॉक के लिए ट्रैक बनाया गया. पत्थर पेड़ तमाम इंतज़ाम. फिर इस प्रोजेक्ट पर घोटाले के आरोप लगे. साल 2017 में यूपी में सत्ता बदल गई. बीजेपी की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. बीजेपी सरकार ने शुरुआती जांच के बाद रिवरफ्रंट केस CBI को सौंप दिया था. इस घोटाले का जो आकार ख़बरों में आया, वो लगभग 15 सौ करोड़ का था. जांच CBI के हाथ में.

पीछे की कहानी लेकिन अखिलेश यादव को ये अंदाज़ नहीं था कि सौदर्यीकरण के काम उनकी सरकार पर घोटाले का दाग लगा देंगे. इस मामले को और अधिक जानने के लिए हमने बात की अमर उजाला के पूर्व संपादक कुमार भवेश चंद्रा से. उन्होंने बताया,
"सपा सरकार के दौरान ये प्रोजेक्ट शुरू हुआ था. इस प्रोजेक्ट के तहत गोमती नदी को साफ किया जाना था और अहमदाबाद में जिस तरह साबरमती नदी पर रिवरफ्रंट बना है वैसे ही लखनऊ में गोमती नदी पर बनाया जाना था. नाले और नालियों का पानी गोमती में नहीं गिरे इसकी व्यवस्था की जानी थी और लखनऊ में सबसे प्राइम लोकेशन पर नदी के दोनों ओर पार्क विकसित किए जाने थे. इसमें पैसा खर्च होने के बाद भी काम पूरा नहीं हुआ. बाद में योगी सरकार आई तो जांच शुरू हुई जिसमें कथित तौर पर गड़बड़ियां पाई गईं."

इसके बाद किस तरह घोटाला हुआ और कैसे इस घोटाले की जांच हुई ये जानने के लिए हमने आजतक के संवाददाता संतोष शर्मा से बात की जिन्होंने इस केस से जुड़ी कई बातें 'दी लल्लनटॉप' के साथ शेयर कीं. उन्होंने कहा-
"प्रोजेक्ट से पहले तत्कालीन सरकार ने कोई सर्वे नहीं कराया था और ना ही किसी कंसलटेंसी का चयन किया गया था. 1513 करोड़ रुपये इस प्रोजेक्ट के लिए स्वीकृत किए गए थे लेकिन 95 फीसदी बजट खर्च होने के बाद भी काम केवल 60 प्रतिशत ही पूरा हो सका था. इस मामले में तमाम अधिकारियों के नाम आए. साल 2016 की 18 जुलाई को इस प्रोजेक्ट का अनुमोदन मंत्री परिषद से हुआ था, 25 जुलाई को शासन ने बजट का पत्र भेजा था लेकिन हैरानी की बात ये है कि 18 सितंबर 2015 में ही इसके टेंडर हो चुके थे."संतोष आगे बताते हैं,
"नियम ये है कि पहले अनुमोदन होगा, फिर बजट होगा फिर टेंडर होगा लेकिन इस मामले में टेंडर पहले ही दे दिए गए थे. यानी मनमानी की गई थी. इस प्रकरण में उस वक्त चीफ इंजीनियर रूप सिंह यादव का नाम आया था. योगी सरकार में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग बना, हाईकोर्ट के रिटार्यड जस्टिस ने अपनी रिपोर्ट दी जिसके आधार पर गोमती नगर में पहली FIR दर्ज की गई. ये FIR सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता की ओर से दर्ज कराई गई थी. जांच शुरू हुई, फिर बाद में सीबीआई ने अपनी जांच शुरू की. रूप सिंह यादव समेत 7 लोगों को जेल भेजा जा चुका है."संतोष बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट के लिए सैकडों टेंडर निकाले गए थे. इस दौरान ई-टेंडर की प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया था. गैमन इंडिया नाम की एक कंपनी को कथित तौर पर लाभ पहुंचाया गया. केके स्पन पाइप प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को 2015 में टेंडर दे दिया गया था. इस पूरे प्रोजेक्ट को लेकर अखिलेश यादव की सरकार पर सवाल बीजेपी ने उठाए थे. लखनऊ में चर्चा होती है कि गोमती रिवरफ़्रंट के मामले में घोटाले हुए हैं. सफ़ाई से लेकर निर्माण तक के काम में. लपेटे में सबके आने की ख़बर भी आ रही है. अमर उजाला के मुताबिक इस मामले में संत कबीरनगर से भाजपा विधायक राकेश सिंह बघेल के यहां भी छापे पड़े हैं, जहां छापेमारी के बाद CBI ने 5 घंटे तक छानबीन की. सपा और भाजपा ने इस मुद्दे पर खुलकर अपने बयान नहीं दिए हैं. बात होगी तो पता ही चलेगी और हम आपको ज़रूर बताएंगे.