आज से 150-200 साल पहले की बात है. एक साहब हुआ करते थे. नाम था लुइस पास्चर (Louis Pasteur). नाम शायद आपने ने ना सुना हो. लेकिन इनका काम ‘जुलूल से जुलूल’ देखा होगा. कहां? दूध के पैकेट में, सब बताते हैं. दरअसल, बाबू साहब फ्रेंच केमिस्ट-फार्मासिस्ट थे. जिन्होंने वायरस-बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म जीवों को लेकर कई सिद्धांत दिए. जिनमें से एक था ‘पाश्चुराइजेशन’(pasteurization). दूध के बैक्टीरिया जिस प्रोसेस से खत्म किए जाते हैं. फिर उसे पैकेट में भर कर कई दिनों तक संजो कर रखा जाता है (Food preservation and expiry). उसमें लुइस बाबू का बड़का हाथ था.
पैकेट वाले खाने के बिना दिन नहीं गुजरता, Best Before और Expiry Date का टंटा जरूर समझ लीजिए!
पुराने जमाने में तो लोग देख-सूंघ कर खाने की चीजों की ताजगी का अंदाजा लगाते थे. लेकिन पैकेट के भीतर भरे खाने की खुशबू ली कैसे जाए? इसके लिए खाने के पैकेट पर Best Before, Use by और Expiry date वगैरह लिखी होती है. लेकिन इनमें फर्क क्या है?

इसलिए इस प्रोसेस का नाम भी इनके नाम पर पाश्चुराइजेशन पड़ा. लेकिन पैकेट वाले दूध के साथ एक और दिक्कत है. पता कैसे चले कि यह कब खराब होगा? इसी का तोड़ है, यूज बाई (Use By), बेस्ट बिफोर (Best Before) और एक्सपायरी डेट (Expiry date) वाला मामला. पर कभी सोचा है कि इनमें अंतर क्या होता है? और क्या डेट से एक दिन बाद की पैक्ड चीज खाई जा सकती है?
सिंपल सी बात है. खाना पैक तो उसे सुरक्षित रखने और उसकी सेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए किया जाता है. माने हॉस्टल के लड़के-लड़कियों को हर रोज़ सुबह ताजा दूध लेने तबेले ना जाना पड़े, इसका जुगाड़. ताकि तबेले से टेबल तक के सफर में, दूध वगैरह को खराब होने से बचाया जा सके.
ये सिर्फ दूध के लिए नहीं किया जाता है. इसमें अब तो तमाम तरह के प्रोडक्ट्स शामिल हैं. जालिमों ने पोहा, डोसा तो छोड़ो समोसों तक को नहीं बख्शा. सब को पैकेट में भर डाला. लेकिन ये पैकिंग सिर्फ इनको प्लास्टिक में भरने तक सीमित नहीं है. इसमें कई तरह की तरकीब लगाई जाती हैं.
जैसे दूध को पाश्चुराइज किया जाता है. चिप्स के पैकेट में ऑक्सीजन की जगह नाइट्रोजन जैसी गैस भरी जाती है.
ताकि बैक्टीरिया वगैरह पर लगाम लगाई जा सके. खैर, कुछ प्रोडक्ट्स में ऑक्सीजन ही निकाल दी जाती है. उसकी जगह निर्वात या वैक्यूम बना दिया जाता है. वैक्यूम माने जहां कुछ नहीं, खाली खतम-खल्लास जैसे कॉलेज के दिनों का बटुआ हो.
वापस आइए, अब ये सवाल कि इतना ताम-झाम किया क्यों जाता है? खाने के साथ खुले में ऐसा क्या खेल होता है?
मंगल ग्रह पर ब्रेड कभी खराब नहीं होगी?वैज्ञानिक लोगों की दुनिया में एक ख्याल बड़ा चर्चा में रहता है. अगर किसी की मौत मंगल ग्रह पर हो जाए. तो वहां उसका शरीर खराब नहीं होगा. काहे? क्योंकि वहां ना बैक्टीरिया हैं, ना बैक्टीरिया की जान. ना कोई दूसरा जीव (खबर लिखे जाने की जानकारी तक) वहां मौजूद है. जब वहां कोई है ही नहीं तो शरीर खराब कैसे होगा? तो कुल मिलाकर समझा जा सकता है कि किसी चीज के खराब होने के लिए सही वातावरण की जरूरत होती है.
सही माने, बैक्टीरिया और फंगस वगैरह के लिए सही. जैसे बढ़िया ऑक्सीजन हो, नमी हो, तापमान भी झीमा-झीमा हो. कुल मिलाकर मस्त माहौल जिसमें बैक्टीरिया या फंगस वगैरह बढ़ सकें. क्योंकि जिस खाने से हम एनर्जी लेते हैं. उसी खाने से ये भी पेट भरते हैं. (हालांकि इनका शरीर ही पेट है). समझा जा सकता है, बैक्टीरिया वगैरह के लिए इसी सही माहौल को, खराब बनाने के लिए खाने को पैक किया जाता है. इसलिए ही खाने को फ्रीज भी रखा जाता है. ताकि बैक्टीरिया ना बढ़ें.
लेकिन इस सब ताम-झाम की भी एक सीमा है. खाना कब तक खराब नहीं होगा. ये सब कई बातों से तय होताहै. एग्रो टेक फूड्स लिमिटेड, हैदराबाद के रिसर्च एंड डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव एबिन मैथ्यू बताते हैं कि खाने की चीज किस तापमान पर रखी गई. उसे कैसे पैक किया गया. उसमें बैक्टीरिया वगैरह की ग्रोथ कैसी है. ऐसी कई बातों से अंदाजा लगाया जाता है कि उसकी एक्सपायरी डेट वगैरह कब होगी.
इन्हीं सब वगैरह को मिला-जुला कर कुछ मानक तय किए गए हैं. जैसे एक्सपायरी डेट, बेस्ट बिफोर या दूसरे देशों में लिखे बेस्ट बाई और यूज बाई. इनका क्या चक्कर है? समझते हैं.
कितना बेस्ट है ‘बेस्ट बिफोर’पहिले ‘पुरनके’ जमाने में लोग ताजी सब्जी देख-सूंघ कर पहचानते थे. लेकिन भला प्लास्टिक के भीतर भरे हलुए की खुशबू कैसे ली जाए. या फिर सामान कितना ताजा है कैसे पता किया जाए. क्योंकि सिर्फ खराब होना ही एक मसला नहीं है. खाना अपने बेहतरीन स्वाद की कंडीशन में हो. उसके जरूरी तत्व भी बचे रहें, ये सब भी बताना जरूरी है. जैसे विटामिन सी वगैरह लंबे समय तक स्टोर किए गए खाने में से खत्म हो सकता है.
यहीं से बेस्ट बिफोर का मामला आता है. FSSAI के फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड (लेबलिंग एंड डिस्पले) रेगुलेशन्स, 2020 में इसके बारे में बताया गया है. कहा गया है कि बेस्ट बिफोर का मतलब उस तारीख से है, जब तक बताई गई कंडीशन में स्टोर किए जाने के बाद, प्रोडक्ट में वो सारी स्पेसिफिक क्वालिटी रहें. जिनका दावा लेबल में किया गया हो.

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वो ये भी लिखते हैं कि इस डेट के बाद भी हो सकता है कि खाने के लिए वो प्रोडक्ट सेफ हो. लेकिन उसकी क्वालिटी उतनी बेहतर नहीं होगी. हालांकि, प्रोडक्ट की अगर कोई भी स्टेज असुरक्षित हो जाए, तो उसे बेचा नहीं जाना चाहिए.
एबिन बताते हैं कि बेस्ट बिफोर डेट निकलने के एक दिन बाद खाने का प्रोडक्ट खाया जा सकता है. बशर्ते वह सही कंडीशन में स्टोर किया गया हो. साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि किस तरह के प्रोडक्ट की बात हो रही है. डेयरी, मीट या सब्जी सब के लिए ये मानक अलग हो सकते हैं.

वहीं यूज बाई या एक्सपायरी डेट के बारे में भी इसमें बताया गया है. कहा गया है कि एक्सपायरी डेट के मायने उस डेट से हैं. जिसके गुजरने के बाद प्रोडक्ट खाने के लिए सुरक्षित न रहे. बशर्ते वो बताए गए स्टोरेज कंडीशन में रखे गए हों. ये डेट निकलने के बाद खाने को बेचा या इंसानों के खाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
एक डिबेट ये भी चलती है कि कंपनियां अपने खाने में काफी पहले की बेस्ट बिफोर डेट लिखती हैं. ताकि वो ज्यादा फ्रेश रहे और ग्राहक को उसका टेस्ट पसंद आए. लेकिन इससे होता ये है कि वो खाना भी फेंक दिया जाता है, जिसे खाया जा सकता था.
उम्मीद है अब आधी रात को जब नूडल्स का पैकेट आप फाड़ेंगे तो नोटिस करेंगे कि उस पर बेस्ट बिफोर लिखा है या एक्सपायरी डेट.
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