दिसंबर 1971 का वो समय… जब देश एक बार फिर मुश्किल राहों पर खड़ा था और सीमा पर शोरगुल था. पूर्वोत्तर में बांग्लादेश की आज़ादी के संघर्ष के साथ ही पश्चिमी मोर्चे पर भी एक निर्णायक जंग छिड़ गयी - बैटल ऑफ बसंतर. यह लड़ाई पंजाब‑पठानकोट‑सियालकोट सेक्टर में लड़ी गयी और भारतीय सेना की चाल ने पाकिस्तानी हौसलों को झकझोर दिया. इस संघर्ष में दो ऐसे जवानों ने अपनी वीरता से इतिहास रचा कि उन्हें भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया - एक जीवित, एक शहीद.
‘बैटल ऑफ बसंतर’ की वो लड़ाई जिसने दो परमवीर दिए, ‘इक्कीस’ और ‘बॉर्डर 2’ में जिंदा होगा इतिहास
1971 Indo-Pak War के दौरान लड़ा गया Battle of Basantar भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे वीर गाथाओं में से एक है. इसी युद्ध में Major Hoshiar Singh (PVC) और Second Lieutenant Arun Khetrapal (PVC, posthumous) ने असाधारण शौर्य दिखाया और देश को दो-दो Param Vir Chakra दिलाए. अब यही ऐतिहासिक कहानी जनवरी 2026 में रिलीज हो रही फिल्मों Ikkis और Border 2 के जरिए बड़े पर्दे पर दोबारा जीवित होगी.


1971 की जंग 3 दिसंबर को शुरू हुई थी जब पाकिस्तान ने पहले ही भारत पर हमला बोल दिया था. बसंतर नदी के किनारे‑किनारे 6-16 दिसंबर तक जो भीषण लड़ाई हुई, वह उस युद्ध के सबसे निर्णायक टैंक युद्धों में से एक मानी जाती है. भारतीय सेना ने शकरगढ़ (बसंतर) सेक्टर में दुश्मन को घेरते हुए रणनीतिक रूप से पाकिस्तान के सियालकोट बेस के करीब तक अपनी स्थिति मजबूत कर दी.
यह मोर्चा इतना अहम था कि अगर पाकिस्तान यहां से आगे बढ़ जाता तो जम्मू‑कश्मीर से भारत का संपर्क कट सकता था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय सेना ने रावी की सहायक बसंतर नदी को पार करके भारी मुसीबतों का सामना किया और पीछे नहीं हटी.
इस ऐतिहासिक लड़ाई और वीरता की कहानियों को अब दो प्रमुख फिल्मों में बड़े पर्दे पर उतारा जा रहा है:
इक्कीस - 1 जनवरी 2026
यह फिल्म अरुण खेत्रपाल की सच्ची वीरता की कहानी पर आधारित है. 21 वर्ष की उम्र में, पूना हॉर्स रेजिमेंट के सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने दुश्मन के टैंकों के बीच अकेले लड़ते हुए अदम्य साहस दिखाया. यह अभिनेता धर्मेंद्र की आखिरी फिल्म भी है.

बॉर्डर 2 - 23 जनवरी 2026
जे.पी. दत्ता की फिल्म की अगली कड़ी में वरुण धवन मेजर होशियार सिंह की भूमिका में नजर आएंगे, और फिल्म में सनी देओल भी हैं. यह युद्ध‑महसूस कराती कहानी भारतीय सेना के संघर्ष और उनके आत्म‑बलिदान को बड़े परदे पर पेश करेगी.

बैटल ऑफ बसंतर में मेजर होशियार सिंह दहिया (PVC) ने अपनी कंपनी के साथ पाकिस्तान की कड़ी फायरिंग के बावजूद आगे बढ़कर शत्रु की स्थितियां ध्वस्त की. दुश्मन की भारी गोलाबारी के बीच उन्होंने अपने सैनिकों को प्रेरित किया और पीछे हटने के बजाए मोर्चा संभाला रखा, जिससे भारतीय सेना को निर्णायक बढ़त मिल सकी. इस पराक्रम के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

बसंतर के टैंक युद्ध में पूना हॉर्स की टुकड़ी जब पाकिस्तानी भारी टैंकों का सामना कर रही थी, तो हेडक्वार्टर ने रीइन्फोर्समेंट के लिए सहायता भेजी. इसी मदद के साथ सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल और उनके साथियों ने दुश्मन का सामना किया.
16 दिसंबर की सुबह जब कम संख्या में भारतीय टैंकों को पाकिस्तान की टैंक तुकड़ी ने घेरा, खेत्रपाल ने अदम्य साहस दिखाया और अकेले ही दुश्मन के कई टैंकों को तबाह किया. उनके टैंक “फामागुस्ता” (Centurion) को भारी गोलाबारी के बावजूद उन्होंने नहीं छोड़ा और अंतिम क्षण तक लड़ते रहे, जिससे पाकिस्तान की बढ़त रोकी जा सकी. अंततः वह बहादुरी से शहीद हो गये. उनके अंतिम रेडियो संदेशों से यह स्पष्ट था कि वह लौटने का नाम नहीं ले रहे थे जब तक आखिरी गोली नहीं चली.

उनकी वीरता को देखते हुए उन्हें भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
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लड़ाई के मैदान से देश के लिए संदेशबैटल ऑफ बसंतर सिर्फ एक युद्ध‑मुकाबला नहीं था; यह साहस, बलिदान और अदम्य आत्मा की कहानी भी थी. भारतीय सेना के साहसी जवानों ने कठिन परिस्थितियों में भी न केवल मोर्चा संभाला बल्कि दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर किया. उस लड़ाई के बाद ही 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है - एक याद देश की जीत, बलिदान और आज़ादी की.
आज जब जनवरी 2026 में इक्कीस और बॉर्डर 2 जैसी फिल्में रिलीज़ हो रही हैं, तो यह सिर्फ इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं, बल्कि उन वीरों की याद है जिनकी वजह से आज हम सुरक्षित हैं.
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