The Lallantop

क्या है निर्मोही अखाड़ा जो 1885 से राम मंदिर के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहा है?

निर्मोही अखाड़ा के संत 7 सदी से राम लला की पूजा करते आए हैं.

post-main-image
निर्मोही अखाड़ा विवादित जगह के प्रबंधन का अधिकार चाहता है. यही उसकी सबसे बड़ी मांग है.
बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई 16 अक्टूबर, 2019 को पूरी हो गई. 16 अक्टूबर सुनवाई का 40वां और आखिरी दिन था. पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. उससे पहले फैसला आ जाएगा. इस पूरे मामले में तीन बड़े पक्ष हैं- राम जन्मभूमि न्यास, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा.
यहां हम बात करेंगे निर्मोही अखाड़ा की. वह कैसे इस केस से जुड़ा? क्यों जुड़ा? उसकी मुख्य दलीलें क्या रहीं? लेकिन ये सब जानने से पहले हम 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर एक नजर डाल लेते हैं.
क्या था हाईकोर्ट का फैसला?
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया. कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया. फैसले में कहा गया था-
# जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए.
# सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए.
# बचे हुए हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए.
तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था. यह फैसला दो-एक के मत से आया था. लेकिन फैसला किसी को मंजूर नहीं हुआ. और तीनों पक्ष सुप्रीम कोर्ट चले गए. रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की. मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाईं. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई, 2011 को हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी. इसके साथ ही यह भी कहा कि मामला लंबित रहने तक संबंधित पक्षकार विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखेंगे.
अयोध्या में रामलला की मूर्ति.
अयोध्या में रामलला की मूर्ति.

8 मार्च, 2019 को अदालत ने मध्यस्थता पैनल का गठन किया था. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपसी सहमति से मामला सुलझे. अगर आपसी सहमति से कोई हल नहीं निकलता है तो रोजाना सुनवाई पर विचार किया जाएगा. इस पैनल ने 155 दिनों तक भूमि विवाद का हल निकालने की कोशिश की लेकिन वह सभी पक्षों के बीच सहमति बनाने में असफल रही. सुन्नी वक्फ बोर्ड बातचीत के लिए तैयार था. चाहता था कि बातचीत की रिकॉर्डिंग हो और उसे गोपनीय रखा जाए. लेकिन बात बनी नहीं. इसके बाद इसी साल 6 अगस्त, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की रोजना सुनवाई शुरू की. 40 दिन बहस चली. अब सबको फैसले का इंतजार है.
सुनवाई के आख़िरी दिन, 16 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट के बाहर खड़े निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के नुमाइंदे.
सुनवाई के आख़िरी दिन, 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के बाहर खड़े निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के नुमाइंदे.

लेकिन विवाद यहां तक पहुंचा कैसे?
इसके लिए हमें इतिहास में जाना होगा. बाबर के एक सिपहसालार थे मीर बाकी. उन्होंने 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया. उसके बाद ही कहा जाने लगा कि ये मंदिर को तोड़ कर बना है. मुगल शासन के दौरान ये बात ऐसे ही रही. उस दौरान की घटनाओं का कोई प्रमाण नहीं मिलता है. तुलसीदास बाबर के बाद ही हुए थे. उन्होंने भी कहीं इसका जिक्र खुले तौर पर नहीं किया. ये मामला चलता रहा.
1853 में पहली बार यहां पर कम्युनल लड़ाई का रिकॉर्ड मिला था. 1859 में ब्रिटिश अफसरों ने वहां पर बाउंड्री दे दी और हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए पूजा की जगह बना दी. फिर ये मामला यूं ही चलता रहा. फिर आया 1885. निर्मोही अखाड़े के महंत ने कोर्ट में पेटिशन दिया कि हिंदुओं को मस्जिद के अंदर जाकर राम की पूजा करने की अनुमति दी जाए. क्योंकि मुसलमान अंदर नमाज पढ़ते थे और हिंदू बाहर पूजा करते थे. लेकिन इजाज़त नहीं मिली. देश की आजादी से एक साल पहले सन 1946 में विवाद उठा कि बाबरी मस्जिद शियाओं की है या सुन्नियों की. फैसला हुआ कि बाबर सुन्नी था इसलिए सुन्नियों की मस्जिद है.
राम लला का मौजूदा मंदिर. इसी टेंटनुमा मंदिर में पूजा होती है.
राम लला का मौजूदा मंदिर. इसी टेंटनुमा मंदिर में पूजा होती है.

देश आजाद हुआ. फिर आया साल 1949. 22-23 दिसंबर को मस्जिद में राम सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गईं.लेकिन 29 दिसंबर को यह संपत्ति कुर्क कर ली और वहां रिसीवर बिठा दिया गया. फिर 1950 से इस जमीन के लिए अदालती लड़ाई का एक नया दौर शुरू हुआ. विवादित जमीन के सारे दावेदार 1950 के बाद के हैं.
इसके बाद इस मुद्दे को लेकर 5 मुकदमे दर्ज हुए.
#पहला मुकदमा 16 जनवरी, 1950 को फाइल हुआ. इसमें ये कहा गया कि विवादित जगह पर मूर्तियों की पूजा का अधिकार दिया जाए. #दूसरा मुकदमा दिसंबर, 1950 में रामजन्मभूमि न्यास के महंत ने फाइल किया. ये भी पूजा को लेकर था. तो दोनों मुकदमों को क्लब कर दिया गया. #तीसरा मुकदमा दिसंबर, 1959 में फाइल किया गया निर्मोही अखाड़ा के द्वारा. इनको मंदिर का चार्ज चाहिए था. #चौथा मुकदमा दिसंबर, 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, यूपी ने फाइल किया. इसमें मांग की गई कि मूर्तियां हटाई जाएं और मस्जिद सौंप दी जाए.
निर्मोही अखाड़ा कोर्ट क्यों गया?
बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि विवाद में निर्मोही अखाड़ा ने 1885 में फ़ैज़ाबाद की जिला अदालत में पहली बार याचिका दायर की थी. विवादित जगह पर मंदिर निर्माण के लिए. लेकिन अनुमति नहीं मिली थी. मौजूदा मामले में निर्मोही अखाड़ा साल 1959 में पार्टी बना. सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी दलील में निर्मोही अखाड़ा चाहता है कि उसे राम जन्मभूमि का प्रबंधन और पूजन का अधिकार मिले.
निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन के कहा कि रामजन्मभूमि का अंदरूनी हिस्सा सैकड़ों सालों से निर्मोही अखाड़े के अधिकार क्षेत्र में था. इसके अलावा बाहरी हिस्से में मौजूद - सीता रसोई, चबूतरा और भंडार गृह भी अखाड़े के नियंत्रण में रहे हैं और ये कभी भी किसी भी केस में विवाद का हिस्सा नहीं रहा है.
निर्मोही अखाड़ा खुद को शिबेट (कारकून ) बताना चाह रहा है. निर्मोही अखाड़ा की ओर से (वकील ने) सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा,
'मैं (निर्मोही अखाड़ा) पूजा करना चाहता हूं, पूजन मेरे द्वारा ही होना चाहिए. सिर्फ कारकून ही जगह का प्रबंधन करता है. पैसे या सिर्फ पूजन में मेरी रुचि नहीं है, जन्मभूमि का प्रबंधन करना मेरा अधिकार है.'
निर्मोही अखाड़ा के संत.
निर्मोही अखाड़ा के संत.
निर्मोही अखाड़ा क्यों अधिकार जताता है?
अयोध्या की 2.77 एकड़ ज़मीन विवादित है. निर्मोही अखाड़ा इस ज़मीन के प्रबंधन पर अपना पहला हक़ जताता है. निर्मोही अखाड़ा 14वीं शताब्दी में संत रामानंद ने शुरू किया था. निर्मोही माने बिना मोह के. निर्मोही अखाड़ा दावा करता है कि वो 7 सदियों से राम की पूजा करते हैं. इसलिए बतौर सेवादार उनका हक़ सबसे पहला है.


अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर के नीचे खुदाई में एएसआई को क्या मिला था?