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जमानत के पैसे का क्या होता है? आरोपी अगर हाजिर नहीं हुआ तो...

Bail Bond एक वचन पत्र के जैसा होता है. इसमें जमानत लेने वाला व्यक्ति इस बात की गारंटी देता है कि आरोपी जमानत की शर्तों का पालन करेगा.

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बेल बॉन्ड एक वचन पत्र जैसा होता है. (सांकेतिक तस्वीर: AI)

जमानत की चर्चा चल रही है. किसी को जमानत मिल रही है तो कोई जमानत की मांग कर रहा है. आम आदमी पार्टी के कई नेता जेल में हैं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने संजय सिंह को जमानत दे दी है. निचली अदालत ने जमानत की शर्तें तय कर दीं. इसके बाद उनकी पत्नी ने बेल बॉन्ड (Bail Bond) भरा. इस बेल बॉन्ड का मतलब क्या है? क्या इसके साथ कुछ पैसा भी जमा करना होता है? और अगर आरोपी तय समय पर हाजिर नहीं हुआ तो ये पैसा या बॉन्ड जाता कहां है?

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जमानत से जुड़े तमाम सवालों के जवाब के लिए हमने बात की है- सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सत्येंद्र कुमार चौहान से.

जमानत का मतलब क्या है?

जमानत से पहले कोई आरोपी कोर्ट की कस्टडी में होता है. कोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी कुछ प्रक्रिया होती है जिसे पूरा करना होता है. अदालत की ओर से जमानत की कुछ शर्तें तय की जाती हैं. एक बेल बॉन्ड भरना होता है. आरोपी अगर अदालत की शर्तों का पालन नहीं करता तब क्या होता है? इसको सुनिश्चित करने के लिए बॉन्ड में कुछ पैसों की भी बात की जा सकती है. लेकिन अधिकतर केस में नकदी जमा करने की जरूरत नहीं पड़ती. पहले ये समझते हैं कि आखिर जमानत का मतलब क्या है?

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ये भी पढ़ें: संजय सिंह को बेल तो मिल गई मगर शर्तों की लिस्ट बड़ी लंबी है

दो लोग होते हैं. एक आरोपी जिसकी जमानत होती है. एक दूसरा व्यक्ति जो आरोपी की जमानत लेता है. उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिए A कोई आरोपी है और B ने उसकी जमानत ली है. इसका मतलब है कि अब आरोपी की कस्टडी अदालत से जमानत लेने वाले व्यक्ति B के पास है. व्यक्ति B ने बेल बॉन्ड के जरिए कोर्ट को एक वचन दिया है. वचन ये कि B इस बात की गारंटी लेता है कि आरोपी A जमानत की सभी शर्तों का पालन करेगा. B इस बात को सुनिश्चित करेगा कि आरोपी तय तारीखों पर अदालत में मौजूद रहेगा.

अदालत पैसा नहीं प्रॉपर्टी मांगती है

बेल बॉन्ड के लिए अदालत जो राशि तय करती है, सामान्य रूप से उसे नकद के रूप में जमा नहीं कराना पड़ता. जमानत लेने वाले व्यक्ति (ऊपर के उदाहरण में B) को अपनी प्रॉपर्टी, गाड़ी या FD के कागजात को कोर्ट में जमा कराना पड़ता है. मान लीजिए आरोपी A को 50 हजार रुपए के बॉन्ड पर जमानत दी गई है. तो B को इतने की प्रॉपर्टी, गाड़ी या FD के कागजात कोर्ट में जमा कराने होंगे.

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तब क्या होता है जब आरोपी अपनी जमानत के दौरान अदालत की शर्तों का उल्लंघन करता है? या तय तारीखों पर कोर्ट में हाजिर नहीं होता. या केस की जांच में एजेंसियों की या पुलिस की मदद नहीं करता. ऐसे हालात में बेल बॉन्ड के साथ जमा किए गए कागजात का इस्तेमाल किया जाता है. कोर्ट प्रॉपर्टी, गाड़ी या FD से उन पैसों की वसूली कर सकता है.

अब अगर मान लीजिए कि जमानत की शर्त 50 हजार रुपए की थी लेकिन प्रॉपर्टी या गाड़ी की कीमत उससे अधिक है. तब कोर्ट सिर्फ उतने ही पैसों की वसूली करता है. बाकी वापस कर दिए जाते हैं. FD के मामले में भी कोर्ट उसे कैश कराकर तय राशि वसूल कर सकता है. राशि अधिक होगी तो वापस कर दी जाएगी.

एक सवाल ये भी है कि अगर आरोपी ने अदालत की सारी शर्तों का पालन किया, तब क्या होता है? ऐसे में केस की कार्रवाई पूरी होने के बाद जमा लिए गए कागजात जमानत लेने वाले को लौटा दिए जाते हैं.

नकदी कब देनी होती है?

अब एक स्थिति ये भी हो सकती है कि जमानत लेने वाले के पास कोई कागजात नहीं हो. उसके पास कोई प्रॉपर्टी, गाड़ी या FD ना हो. तब वो अदालत से मांग कर सकता है कि बेल बॉन्ड के साथ उससे नकदी जमा करा लिया जाए. अब ये पूरी तरह से अदालत पर निर्भर है कि इसकी इजाजत दी जाती है या नहीं. अगर इजाजत दी जाती है तभी बेल बॉन्ड के साथ पैसे जमा कराए जा सकते हैं. ये पैसे कोर्ट में जमा होते हैं. बाकि चीजें वैसी ही रहती हैं. अगर आरोपी जमानत की शर्तों को मान लेता है तो बाद में वो वापस कर दिए जाते हैं. और अगर ऐसा नहीं होता है तो पैसे कोर्ट के हो जाते हैं.

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