फिर रणसा और दिलीप, दोनों की रैगिंग होती है. दोनों के मुंह कमोड में डाल दिए जाते हैं. सिर्फ एक बंदूक की वजह से जड़वाल खुद की और गैंग की रक्षा कर लेता है. यह किस्सा है 'गुलाल' फिल्म का, जो बंदूक की ताकत को बताता है.'रणसा आया है.'
'तो', जड़वाल कहता है.
'हॉकी स्टिक है उसके पास.'
'और क्या है उसके पास?' जड़वाल पूछता है.
'मोटरसाइकिल.'
'मोटरसाइकिल है?' जड़वाल आगे पूछता है.
'हां.'
'गाड़ी है, बंगला है, मोटरकार है, पैसा है, और क्या है उसके पास...? (बंदूक दिखाते हुए) मेरे पास मां है.' जड़वाल कहता है और सब हंस पड़ते हैं.

हाथ में बंदूक होने पर आदमी ऐसे ही बतीसी दिखाता है.
हथियार, पुलिस के पास होता है. सेना के पास होता है. और नागरिक भी रख सकता है. लाइसेंस लेकर. लेकिन गुंडे-बदमाश नहीं रख सकते. मगर विकास दुबे के पास था. इसकी जांच हो रही है. लेकिन हम बात करेंगे हथियार का लाइसेंस मिलता कैसे है? इसकी क्या शर्तें होती हैं, कौन ले सकता है? और किन वजहों से हथियार का लाइसेंस कैंसल होता है?

जगरूप सिंह यादव.
कौन ले सकता है लाइसेंसी हथियार
आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत भारत का कोई भी नागरिक आत्मरक्षा के लिए प्रशासन से लाइसेंस लेकर हथियार ले सकता है. हथियार का लाइसेंस देने के लिए राज्य के गृह मंत्रालय और जिलाधिकारियों को शक्ति दी गई है. इस बारे में पूर्व आईएएस अधिकारी और जयपुर सहित कई जगहों के जिला कलेक्टर रहे जगरूप सिंह यादव ने बताया-
जनता की सुरक्षा के लिए पुलिस है. लेकिन अगर किसी को व्यक्तिगत सुरक्षा चाहिए, तो वह हथियार के लिए आवेदन कर सकता है. यह हथियार आत्मरक्षा के लिए दिया जाता है. इसके जरिए किसी पर हमला या किसी को धमकाया नहीं जा सकता. साथ ही सार्वजनिक रूप से इसकी नुमाइश नहीं की जा सकती.उन्होंने कहा कि लाइसेंसी हथियार के लिए तय प्रक्रिया के तहत एप्लीकेशन देनी होती है. अगर जांच में एप्लीकेशन सही होती है, तो हथियार दे दिया जाता है.
यादव ने कहा कि जिन जगहों पर कमिश्नेरट लागू हो गए हैं, वहां पर हथियारों के लाइसेंस पुलिस कमिश्नर जारी करते हैं. आत्मरक्षा के साथ ही निशानेबाजी जैसे खेलों में शामिल खिलाड़ियों और हथियारों से लैस सुरक्षाबल के रिटायर लोगों को भी लाइसेंस रखना होता है.

फैजल के पास अवैध बंदूक थी तो कागज नहीं लगे थे. लेकिन लाइसेंसी हथियार लेना है तो कागज देना पड़ेगा.
हथियार लाइसेंस के लिए जरूरी डॉक्यूमेंट क्या-क्या हैं
# मेडिकल सर्टिफिकेट # एड्रेस प्रूफ # आयु प्रमाण पत्र # चरित्र प्रमाण पत्र # इनकम की जानकारी # संपत्ति की जानकारी # लोन या उधार ले रखा है तो उस बारे में जानकारी # नौकरी या बिजनेस की जानकारी
इनके साथ ही यह भी बताना होता है कि उसे किस तरह का हथियार चाहिए. पिस्तौल, रिवॉल्वर जैसे छोटे हथियार या फिर राइफल जैसे बड़े हथियार.
कैसे मिलता है हथियार का लाइसेंस
1.सबसे पहले जिसे लाइसेंस चाहिए होता है, उसे डीएम के दफ्तर में एप्लीकेशन देनी होगी. अगर पुलिस कमिश्नरेट का इलाका है, तो कमिश्नर को अर्जी जाएगी. इसमें बंदूक रखने की वजह बतानी होती है. जैसे- जान का खतरा है या बड़ा बिजनेस है, या फिर सार्वजनिक हस्ती हैं. साथ ही किस तरह का हथियार चाहिए, यह भी बताना होता है.इनके अलावा जो लोग निशानेबाजी जैसे खेलों में शामिल हैं, उन्हें भी लाइसेंस के लिए अर्जी देनी होती है. उन्हें एप्लीकेशन में अपने खेल, उसकी जरूरतों के बारे में बताना होता है.
2.डीएम एप्लीकेशन को जांच के लिए एसपी के ऑफिस में भेज देता है. एसपी ऑफिस से एप्लीकेशन आवेदक के थाने में जाती है.
3.थाने में एप्लीकेशन आने के बाद आवेदक का वेरिफिकेशन होता है. इसमें उसके स्थायी पते, बैकग्राउंड, कामकाज और आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में पता किया जाता है.
4.वेरिफिकेशन के बाद एप्लीकेशन को जिला क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में भेजा जाता है. यहां पता लगाया जाता है कि आवेदक का कोई आपराधिक रिकॉर्ड तो नहीं. साथ ही थाने ने जो बैकग्राउंड जांच की थी, उसे भी फिर से चेक किया जाता है. जांच के बाद एप्लीकेशन के साथ रिपोर्ट को एसपी ऑफिस भेज दिया जाता है.
5.एसपी ऑफिस कागजी कार्रवाई के साथ फाइल को डीएम को लौटा देता है.
6.लाइसेंस मांगने वाले व्यक्ति के बारे में इंटेलिजेंस विभाग भी जांच करता है. पता लगाया जाता है कि वह व्यक्ति किसी गलत काम में तो शामिल नहीं है.
7. डीएम रिपोर्ट के आधार पर हथियार लाइसेंस देने या न देने का फैसला करता है. साथ यह उसके विवेक पर भी निर्भर करता है कि हथियार का लाइसेंस देना है या नहीं. हो सकता है कि सब कुछ सही होने पर भी लाइसेंस न मिले. अगर कोई केस, अपराध हुआ तो लाइसेंस नहीं मिलता है.
वहीं, सुरक्षाबलों से रिटायर हुए लोगों को अपने संस्थान से 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' (एनओसी) लेना होता है. इसके जरिए वे भी डीएम को अर्जी देकर लाइसेंसी हथियार ले सकते हैं.

उम्मेद सिंह.
लाइसेंस मिल गया, फिर आगे क्या
इस बारे में राजस्थान पुलिस के पूर्व अधिकारी उम्मेद सिंह कहते हैं कि लाइसेंस में जिस हथियार की परमिशन होती है, उसके बारे में लिखा होता है. उन्होंने कहा-
सरकार की ओर से जो आधिकारिक हथियार की दुकानें होती हैं, उन्हीं से हथियार खरीद सकते हैं. वहां पर लाइसेंस में बंदूक के बारे में पूरी जानकारी दर्ज की जाती है. हथियार खरीदे जाने के बाद इसे प्रशासन के पास ले जाना होता है. वहां पर लाइसेंस और खरीदे गए हथियार की सारी डिटेल मिलाई जाती है और रिकॉर्ड में दर्ज की जाती है. साथ ही थाने में भी इसे रजिस्टर कराना होता है. इसके बाद ही कोई व्यक्ति बंदूक को लाइसेंस के साथ घर ले जा सकता है.अरे गोलियां तो भूल ही गए!
सही कह रहे हैं. बिना गोली के बंदूक का क्या होगा? बंदूक के लाइसेंस की अर्जी के साथ ही गोलियों की भी अर्जी लगती है. फिर हथियार का लाइसेंस मिला तो गोलियों का भी मिलेगा. लेकिन गोली मिलने का एक फिक्स कोटा होता है. लाइसेंसी हथियार की दुकान के मालिक सतीश ने बताया,
केंद्र सरकार ने एक साल में 200 गोलियों का कोटा कर रखा है. बाकी राज्य सरकारें अपने हिसाब से कम-ज्यादा करती रहती हैं. एक बार में एक आदमी 100 गोली ले सकता है.गोलियां खत्म हो गई तो...
अगर आपने पहले खरीदी हुई गोलियां खर्च कर दीं तो फिर से गोली खरीद सकते हैं. इस बारे में सतीश ने बताया कि नई गोलियां लेने के लिए पुरानी गोलियों के बारे में बताना होता है. जैसे- आपने खेत में जानवर भगाने के लिए चलाई, या फिर बंदूक को चेक करने के लिए चलाई. यह सब रिकॉर्ड में लिखा जाता है. इसके बाद आपको नई गोलियां मिल जाती है. बस ध्यान रहे कि शादी-ब्याह में या दिखावे में गोली चलाना भारी पड़ सकता है.

'सरदार मैंने आपका नमक खाया ह?' 'अब गोली खा.' याद है!
कितने दिन में आता है लाइसेंस
लाइसेंस मिलने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है. लाइसेंस की प्रक्रिया काफी जटिल होती है और यह अलग-अलग हथियार के लिए अलग-अलग होती है. कई लोगों को एक महीने में लाइसेंस मिल जाता है, तो कई लोगों का पूरा साल चला जाता है.
कब तक के लिए मिलता है बंदूक का लाइसेंस
पहले बंदूक का लाइसेंस तीन साल के लिए मिलता था. लेकिन अब सरकार ने लाइसेंस की अवधि पांच साल कर दी है. पांच साल के बाद इसे फिर से रिन्यू करना होता है. रिन्यू के दौरान भी लाइसेंस धारक की फिर से पूरी जांच-पड़ताल होती है.
एक आदमी कितनी बंदूक रख सकता है
एक व्यक्ति अधिकतम दो बंदूक रख सकता है. इस बारे में सरकार ने साल 2019 में नया कानून बनाया था.
क्या लाइसेंसी बंदूक कहीं भी ले जा सकते हैं
नहीं. लाइसेंस जारी होने के साथ ही उस पर उसकी लिमिटेशन भी लिखी होती है. आमतौर पर जो लाइसेंस जारी होता है, वह जिला स्तर का ही होता है. उसे दूसरे जिले या राज्य में ले जाने के लिए अलग से अर्जी देनी होती. इसके लिए भी डिटेल से पूरी जांच-पड़ताल होती है. फिर यह जिलाधिकारी की सिफारिश के बाद गृह मंत्रालय का विशेषाधिकार है कि वह कहां का लाइसेंस दे.
सिर्फ सांसद, केन्द्रीय मंत्री, रिटायर्ड डिफेंस अफसर, सभी सेवाओं के अधिकारी, खिलाड़ियों को नेशनल ऑर्म्स लाइसेंस जारी किए जाते हैं. इसके अलावा पब्लिक सेक्टर की कंपनी के अधिकारियों को अपनी जरूरत दिखानी होगी, तभी उन्हें नेशनल लाइसेंस मिलेगा. अगर कोई व्यापारी देश के विभिन्न जिलों में कारोबार करने के सबूत देता है, तो उस पर भी विचार किया जाता है.

तमंचे पर डिस्को कराया तो जेल जाना पड़ जाएगा.
हथियार के लाइसेंस की फीस कितनी होती है?
यह हथियार और राज्य के हिसाब से तय होता है. कानून-व्यवस्था राज्यों के हवाले हैं. तो हथियार लाइसेंस की फीस भी राज्य अपने हिसाब से तय कर सकते हैं.
लाइसेंसी हथियार रखने की कोई शर्तें भी होती हैं क्या
जी, हां. जैसा कि एक फिल्म का डायलॉग है- अपार शक्ति के साथ बड़ा उत्तरदायित्व भी आता है. ठीक वैसे ही हथियार कोई लाठी-डंडा तो है नहीं कि कैसे भी रख लिया. इसे रखना है तो नियम और शर्तें साथ आएंगी. जैसे-
# लाइसेंसी हथियार का इस्तेमाल दिखावे या रुतबा साबित करने में नहीं किया जा सकता. # किसी शादी-ब्याह, पार्टी या उत्सव के समय खुशी जताने में इसका उपयोग नहीं हो सकता. # किसी को डराने-धमकाने के लिए लाइसेंसी हथियार काम में नहीं लिया जा सकता. # जिस व्यक्ति के नाम पर हथियार है, केवल वही उसे आत्मरक्षा में चला सकता है. # किसी और को बेच नहीं सकते हैं. # शिकार, मनोरंजन में उपयोग नहीं कर सकते. # हथियार के दम पर गुंडागर्दी नहीं कर सकते. # प्रशासन जब कहे, तब हथियार को थाने, पुलिस लाइन या गन स्टोर में जमा कराना होगा. ऐसा अक्सर चुनावों के समय होता है.
अगर इन नियम-शर्तों का पालन नहीं होता, तो लाइसेंस रद्द कर हथियार वापस लिया जा सकता है. साथ ही लाइसेंस धारक को सजा भी हो सकती है. इसके तहत लाइसेंसी हथियार से किसी दूसरे की जान खतरे में डालने पर दो साल की जेल या एक लाख रुपये जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

बंदूक को लैला समझने की भूल न करें. तस्वीर 'ए जेंटलमैन' फिल्म से है.
क्या AK-47 खरीद सकते हैें?
नहीं. लाइसेंसी हथियारों की भी एक सीमा होती है. सब कुछ नहीं मिलता. हथियार की दो कैटेगरी होती है. एक, नॉन प्रॉहिबिटेड बोर (NPB) और दूसरा, प्रॉहिबिटेड बोर (PB). बोर यानी गोली की मोटाई.
नॉन प्रॉहिबिटेड बोर में 312 बोर की राइफल, .22 बोर रिवॉल्वर, .45 बोर की पिस्तौल जैसी बंदूकें आती है.
वहीं प्रॉहिबिटेड बोर में 9 एमएम पिस्तौल, .303 राइफल, एके-47, मशीनगन जैसे हथियार आते हैं.
मोटा-मोटी यह समझ लीजिए कि नॉन प्रॉहिबिटेड बोर में जो बंदूकें आती हैं, वे ऑटोमैटिक नहीं होती हैं. जबकि प्रॉहिबिटेड बोर में सेमी ऑटोमैटिक से लेकर फुली ऑटोमैटिक बंदूकें आती हैं. ये हथियार सेना और सुरक्षाबलों के पास होते हैं.

फिल्मों पर मत जाइएगा. बंदूक रखना जिम्मेदारी का काम है. दीपिका के पास जो बंदूक दिख रही है, वह नोन प्रोहिबिटेड बोर वाली बंदूक ही है.
अगर लाइसेंसी बंदूक वाला मर जाए तो...
ऐसा होने पर लाइसेंस और बंदूक जमा करानी होती है. कहीं भी करा सकते हैं थाने, बंदूक स्टोर या पुलिस लाइन. अगर आपको लाइसेंसी बंदूक चाहिए तो फिर आप डीएम के पास अर्जी लगा सकते हैं. बाकी का प्रोसेस ऊपर वाला ही है.
भारत में कहां हैं सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, एक आकलन के अनुसार दिसंबर 2019 में भारत में करीब 35 लाख लाइसेंसी हथियार थे. सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार उत्तर प्रदेश में हैं. यहां पर 13 लाख लोगों के पास लाइसेंसी हथियार हैं. इसके बाद जम्मू-कश्मीर और पंजाब का नंबर आता है.
Video: विकास दुबे के सिर पर जो इनाम है, वो कैसे तय हुआ है?