सबसे पहले जानिए कि ये '16 साइकी' बला क्या है
आपको लगा रहा होगा कि ये '16 साइकी' क्या नाम हुआ. असल में इसे पहली बार 17 मार्च, 1853 को इलैटियन खगोलशास्त्री एनाबेला डि गैसपारिस ने देखा था. उन्होंने इस एस्टेरॉइड का नाम ग्रीस की आत्मा की देवी 'साइकी' के नाम पर रख दिया. जैसा कि वैज्ञानिक हमेशा करते हैं, उन्होंने इसके आगे एक नंबर जोड़ दिया. इस तरह से इसका नाम पड़ा 16 साइकी. अब हम आपको बताते हैं कि एस्टेरॉइड असल में होता क्या है. एस्टेरॉइड मतलब छोटे बेढंगे ग्रह. एस्टेरॉइड को हिंदी में कहते हैं- क्षुद्रग्रह.

एस्टेरॉइड या क्षुद्रग्रह मार्स और वीनस ग्रहों के बीच बहुत मात्रा में पाए जाते हैं. (फोटो-नासा)
अंतरिक्ष में घूम रही चट्टानें, जो ग्रहों की तुलना में बहुत छोटी हैं. हमारे सौरमंडल में बहुत सारे एस्टेरॉइड हैं. जैसे बाकी ग्रह सूरज के चक्कर काटते हैं, वैसे ही एस्टेरॉइड भी सूरज की ऑर्बिट करते हैं. ज़्यादातर एस्टेरॉइड मंगल ग्रह के उस पार हैं. मंगल (Mars) और बृहस्पति (Jupiter) के बीच एक इलाका है, जहां एस्टेरॉइड भरे पड़े हैं. उस जगह को एस्टेरॉइड बेल्ट कहा जाता है. इस भरी-पूरी एस्टेरॉइड फैमिली में से ही एक एस्टेरॉइड का नाम वैज्ञानिकों ने रखा है '16 साइकी'. इस '16 साइकी' पर वैज्ञानिकों की नजर दुनिया के महा टेलिस्कोप हब्बल से आकाश के निहारते हुए पड़ी. जांच से पता चला कि '16 साइकी' तो बहुत खास है. फिर क्या था, शुरू हो गया इसे लेकर खास मिशन.
आखिर इतना खास क्या है '16 साइकी' में
वैज्ञानिकों ने जांच में पाया कि '16 साइकी' नाम का एस्टेरॉइड पूरा का पूरा ही धातु या मेटल का बना हुआ है. वह भी उस मेटल से, जो धरती की कोर में है. कोर मतलब धरती के सेंटर में मौजूद लावा. असल में धरती को अगर हम लगातार खोदते जाएं, तो हम उसकी कोर तक पहुंच जाएंगे. यह कोर असल में दहकता लावा है. यह लावा निकेल और आयरन से बना है. वैज्ञानिक '16 साइकी' को लेकर इसलिए भी उत्साहित हैं, क्योंकि धरती की कोर की जांच करने के लिए वह धरती को खोदकर लावा तो जांच नहीं सकते. लेकिन '16 साइकी' चूंकि धरती के कोर के जैसा ही जान पड़ता है, ऐसे में धरती के कोर के बारे में बहुत-सी जानकारियां इस एस्टेरॉइड से मिल सकती है.
इसकी शक्ल-सूरत और दूरी के बारे में कुछ पता है
फिलहाल अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा के पास जो जानकारी है, उसके हिसाब से इसका व्यास या यूं समझें, फैलाव 225 वर्ग किलोमीटर है. मतलब नोएडा के आकार के आसपास, क्योंकि नोएडा तकरीबन 203 वर्ग किलोमीटर में फैला है. अपने साइज के लिहाज से यह बड़ी एस्टेरॉइड है. हमारी धरती से इसकी दूरी लगभग 37 करोड़ किलोमीटर है. बाकी एस्टेरॉइड जहां धूल और बर्फ से बने होते हैं, यह धातु का बना है.
वैज्ञानिकों के मानना है कि असल में यह एक ग्रह बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा होगा और वह पूरी नहीं हो पाई. ऐसे में यह सिर्फ एक कोर का टुकड़ा बन कर ही रह गया. अगर यह पूरा बन जाता, तो इसके आसपास भी धरती की तरह मिट्टी-धूल और गैसों का अंबार होता.
इसके बारे में आगे का क्या सीन है
फिलहाल प्लान यह है '16 साइकी' के बारे में कि इसे करीब से जाकर देखा जाए कि जो अनुमान वैज्ञानिक लगा रहे हैं, उनमें कितना दम है. नासा (NASA) यह काम अगले दो साल में करने जा रहा है. इसके लिए स्पेस एक्स फाल्कन हैवी रॉकेट को केप कैनावेरल एयरफोर्स स्टेशन, फ्लोरिडा से छोड़ा जाएगा. यह 21 महीने में '16 साइकी' के करीब पहुंचेगा. मतलब मिशन अगर सही वक्त पर चलता रहा, तो जनवरी 2026 में 16 साइकी की मुंह-दिखाई हो जाएगी. एस्टेरॉइड के पास पहुंचने के बाद उसके करीब से फोटो खींचे जाएंगे और स्पेसक्राफ्ट इसका नक्शा भी तैयार करेगा.

नासा इस हिसाब से तैयारी कर रहा है कि 2026 तक इस एस्टेरॉइड के करीब पहुंचा जाए. (फोटो- नासा)
और क्या खास है
इसके अलावा एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की टीम यह पता करेगी कि जैसा वैज्ञानिक सोच रहे हैं कि यह किसी ग्रह की कोर की तरह है, इस बात में कितना दम है. ऐसा तो नहीं कि यह मर चुके पुराने ग्रह की पिघली हुई कोर भर है. करीब से मिले हुए डेटा के जरिए वैज्ञानिक इस भारी-भरकम धातु के एस्टेरॉइट की उम्र और पैदाइश के बारे में भी पता लगाएंगे.
पहले इस मिशन को 2023 में शुरू किया जाना था. लेकिन अब नई जानकारी से उत्साहित होकर इसे 2022 में ही शुरू कर दिया जाएगा.
सबसे बड़ा सवाल- 10,000 क्वॉड्रिलियन डॉलर का क्या चक्कर है
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यह एस्टेरॉइड ज्यादातर आयरन और निकेल से बना है. लेकिन इसमें कई दूसरी बहुमूल्य धातुएं, जैसे- सोना, प्लैटिनम, कोबाल्ट, इरीडियम और रेनियम भी मौजूद हो सकती हैं. अगर 16 साइकी पर मौजूद पूरी धातु को धरती पर लाया जा सके, तो इसकी कीमत 10 हजार क्वॉड्रिलियन डॉलर के बराबर होगी. क्वॉड्रिलियन मतलब 10 की घात 15. बोले तो 10 के आगे 15 जीरो. इस तरह 10 हजार क्वॉड्रिलियन माने 10 हजार के आगे 15 जीरो
ऐसे में 10 हजार क्वॉड्रिलियन हो गए 10 के आगे 18 जीरो या 10000000000000000000.

10 हजार क्ववॉड्रिलियन डॉलर इतना पैसा है कि अगर धरती के हर इंसान में बांट दिया जाए, तो सभी अरबपति बन जाएंगे.
आपको बता दें कि दुनियाभर के सारे देशों की जीडीपी मिला देने पर भी यह तकरीबन 8 ट्रिलियन डॉलर के आसपास बैठती है. मतलब 8 के आगे 13 जीरो. इतने पैसों का मोटा-मोटी गणित आप ऐसे समझें कि यह इतना पैसा है कि अगर धरती पर मौजूद हर इंसान में बांटा जाए, तो सभी अरबपति हो जाएंगे.
खैर, आप सपने देखना छोड़िए, क्योंकि पहली बात तो इतनी ज्यादा धातु धरती पर लाई नहीं जा सकती. दूसरे अगर आ भी गई, तो कोई भी धातु बहुमूल्य तब तक ही होती है, जब तक कि वह सीमित मात्रा में मिले. सोने के पूरे पहाड़ मिलने पर सोने की भी कीमत मिट्टी जैसी हो जाएगी.