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क्यों फेसबुक और ट्विटर से भी ज़्यादा ख़तरनाक है वॉट्सऐप?

फेसबुक की प्रोफाइल फेक हो सकती है लेकिन वॉट्सऐप के हर नंबर के पीछे एक व्यक्ति होता है.

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व्हॉट्सएप की आदत अब सरदर्द बन रही है.

भूमिका जोशी
भूमिका जोशी

भूमिका जोशी. लखनऊ की रहने वाली हैं. इस लड़की का एंथ्रोप्लाजी में दिमाग लगता है और हिंदी साहित्य में दिल. न्यू हेवन में रहती है. येल में पीएचडी कर रही हैं.


 
सोशल मीडिया, जिसका कोई हिंदी अनुवाद जरूरी नही है, हमारा बेस्ट फ्रेंड बन चुका है. जिससे आप दिन में एक बार नहीं, कई बार बात करना चाहते हैं, टहलना चाहते हैं, दिल में जो आये कहना चाहते हैं, हर अवसर पर बुलाना चाहते हैं. हम जान और मान भी बैठे हैं कि ये उस तरह का दोस्त हो चुका है जो आप घर में न भी हों, तो आपके ही घर में बहुत देर तक बैठकर आपका इंतजार कर सकता है. पर इस बेस्ट फ्रेंड से जब लड़ाई भी होती है तो कुछ ऐसी कि न बोले बनता है, और न बिन बोले. दिन भर मायूसी सी रहती है और सोच-सोच कर थक जाते हैं कि पहले कदम कौन उठाए. इस बेस्ट फ्रेंड के कई अवतार हैं. और जैसे कि अक्सर होता है चाहे विष्णु के दशावतार हो या मुहम्मद के वारिसों की नामबाजी, या फिर बौद्धो के विभिन्न अनुयायी. एक अवतार चुन कर हम अपनी पहचान उससे जोड़ लेते हैं. सोशल मीडिया के इस धर्म में भी ज्यादार भारतीयों ने अपना फेवरिट अवतार डिक्लेयर कर दिया है, वॉट्सऐप.

भारत में करोड़ों लोग व्हॉट्सऐप इस्तेमाल करते हैं.
भारत में करोड़ों लोग व्हॉट्सऐप इस्तेमाल करते हैं.

पर कमाल की बात तो यह है कि यह वॉट्सऐप सोशल मीडिया की दुनिया में अर्धनारीश्वर समान है. यह पूरी तरह सोशल नही है. क्योकि यह अत्यंत प्राईवेट भी हो सकता है. पर्सनल भी. अपने चचेरे-ममेरे भाई-बहनों, फेसबुक और ट्विटर के समान यह किसी चीज को वायरल या ट्रेडिंग जरूर कर सकता है. पर इसका पता लगा पाना बहुत मुश्किल है क्योकि इसका स्वरूप आपके फोन पर सिर्फ आपके लिए है. यहां न तो कोई सार्वजनिक वॉल है, जहां आप बातें चिपका सकें और न चिपकाना चाहें तो सिर्फ ताक सकें. यहां न तो कोई शब्दों की सीमा है. और न ही यह आवश्यकता है कि कोई अपकी बात से अपनी सहमति सिर्फ एक हार्ट से या फिर रिट्वीट करके की जा सके. यह वो वाला कजिन है जो सबसे अलग है. पर बातें सबकी जानता है और फैलाता भी है. पर बिना डिक्लेयर किए. अगर ट्विटर पब्लिक रैली जैसा है तो फेसबुक पंचायत जैसा और वॉट्सऐप करीबी फैमिली मेंबर जैसा. हम सब जानते हैं कि फैमिली हम भारतीयों की फेवरेट चीज है जिसके सीक्रेट्स हम खुद तक दबाकर रख भी सकते हैं. पर अगर मन बदल जाए तो इसे स्पीड से फैला सकते हैं कि तमाम तरीके की प्रेस भी शर्मशार हो जाये. शायद इसलिए वॉट्सऐप हमारा फेवरेट है. तकनीकी रूप से केवल वॉट्सऐप ही वही माध्यम है जो हर तरह के मीडिया को बहुत ही आसानी से शेयर करने की सुविधा देता है.

वॉट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक
वॉट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक

ऑडियो, वीडियो, इमेजेस, टेक्स्ट, इमोजी और उन्हें शेयर करते हुए पहले वाले को पता नहीं चल सकता कि दूसरे ने आगे बात बढ़ाई है या फिर नहीं. फेसबुक और ट्विटर तो बने ही इस बिसात पर हैं कि चीजें सार्वजनिक रूप से लाइक और शेयर हों. पर वॉट्सऐप ही केवल एक ऐसी इंस्टंट मेसेजिंग सुविधा है जो सोशल मीडिया भी लगभग बन ही चुकी है. और यहाँ हमारी निजता कुछ इस तरह बनी रहती है, कि बिना किसी सार्वजनिक अप्रूवल के या सैंक्शन हम अपनी मंशा कई रूप में प्रकट सकते है. हमारी फेसबुक और ट्विटर प्रोफाईल सार्वजनिक हो सकती है, पर हमारा फोन नम्बर नही. अपने प्राईवेट नम्बर की अनजानी प्रोफाईल के हरे डिब्बे के भीतर ही हम अपनी निजता भी खोजते हैं और अपने विचार भी. इसलिये सोशल मीडिया पे हो रही किसी भी मुद्दे की बयानबाजी वॉट्सऐप की कार्यवाही से ज्यादातर अलग और कभी-कभी अछूती ही रह जाती है. कुछ वैसे ही जैसे कि पडोस भर चर्चा हो रही हो, कि भटनागर जी के यहा रात में शायद चोरी की कोशिश हुई थी तभी दरवाजे को तोडने जैसी आवाज आ रही थी पर केवल श्रीमती भटनागर को पता था कि श्रीमान भटनागर कल पी कर आये थे और उन्होने दरवाजा खोलने से इंकार कर दिया था. अब यह श्रीमती भटनागर की मर्जी कि वह किसी को क्या बताये. वॉट्सऐप कनेक्ट भी कुछ ऐसा ही है. यहा बाते कही और फैलाये जा सकती है केवल उनके लिये और उन तक जहाँ तक हम चाहते है. बात डालते ही पब्लिक नही हो जाती पर किसी भी गति से फैल जरूर सकती है. पहले से ही वॉट्सऐप न हो पाने की रचना ऐसी है कि आपकी मंशा धीरे-धीरे जाहिर होनी है, अचानक से नही. और हड़बड़ी के इस समय में इंस्टेंट मेसेजिंग पे स्पीड भले ही नही यह आश्वासन जरूर है कि आपकी बात जिसको जानी है उस को जायेगी जरूर. फोन नम्बर और नीली डण्डी का मिला जुला कमाल है.

वॉट्सऐप पर ऑडियो, वीडियो सब भेज सकते हैं.
वॉट्सऐप पर ऑडियो, वीडियो सब भेज सकते हैं.

इसलिये हमें वॉट्सऐप बेहद प्यारा है. फेसबुक या ट्विटर अकाउंट हो ना हो और हो तो कई दिनों तक अनदेखा भी हो. पर वॉट्सऐप हम दिन में उतनी बार देख डालते है, जितनी बार पानी पीने के लिये गिलास मुंह तक उठाते है. आखिरकार वो उसी भाभी या बुआ की याद दिलाता है जो गंभीरता से तय करती थी कि कौन सी बात किसको पता चले या नही. फेसबुक या ट्विटर जैसे ताऊजी की तरह नही कि खाने की मेज पर पूरे परिवार के सामने ही बेईजत्ती कर डाले. इसलिये सोशल मीडिया की लडाईयां अब केवल सोशल मीडिया पर ही तय नही होगी. भले ही यह सबसे बडी त्रासदी है कि वॉट्सऐप पर फैली अफवाहों की वजह से आज हम मौत जैसा हश्र भी देख रहे हैं. ये सोचना जरूरी है कि ये फेसबुक या ट्विटर के माध्यम से कम वॉट्सऐप से ज्यादा क्यों हो रहा है? कुछ वैसे ही जैसे मौसी और मामा से भरे पूरी बिरादरी के ग्रुप अपने आप को वॉट्सऐप पर सहज पाते हैं, गूगल या फेसबुक ग्रुप पर नही. और ये भी कि ऐसी ही संख्याओं वाले ग्रुप्स के नामकरण जातीय अस्मिता, लॉकर रूम ह्यूमर से भरपूर गालियों के मिश्रण या फिर धार्मिक घृणा की पैरवी करते हैं. एक एक नम्बर एक एक इंसान का है. उन ट्रोल्स से अलग जो एक कंप्यूटर से सैकडों प्रोफाइल का संचालन कर सकता है. इसलिये हम अंदाजा ही नही लगा पा रहे हैं, कि जहां कुछ बातें खुलकर सार्वजनिक मंचों पर भिड़कर हो रही हैं, वही कुछ मुद्दे उन फैमिली सीक्रेट्स की तरह जड़ से जडतर होते जा रहे है.

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अगर वॉट्सऐप वह जरूरी माध्यम है, जिससे गृहस्थियों का संचालन हो रहा है, कौन कहां पहुंचा, किसने क्या खरीदा और खाने में क्या बनेगा, तो वह माध्यम भी है, जिसकी फेक न्यूज़ एक जैसे ग्रुप्स में घूमती रह जायेगी और कभी-कभी सार्वजनिक रूप से उजागर भी तब ही होगी जब कोई घटना घट चुकी हो. हां, वॉट्सऐप का Message Encryption (End to End) वह तकनीकी सुरक्षा भी है, जो हमारे मेसेज को सुरक्षित रखता है पर इससे किसी एक की जिम्मेदारी तय कर पाना बहुत मुश्किल भी है. पर इससे पहले सारा दोष वॉट्सऐप के मत्थे सजा दिया जाये ये ध्यान रखिये कि उसका संचालन हमारे हाथ में है. कुछ अजीब और अलग तो है कि वॉट्सऐप की विकृतियां भारत में इतनी भीषण हो गई है कि वह जीवन- मृत्यु का फर्क तय करने लग गई है. राजनैतिक माहौल में पनप रही घृणा को नजर अन्दाज हम कतई नही कर सकते, पर यह बात शायद उसके परे भी है. वॉट्सऐप वह जगह बन गई है जहा हमारे पूर्वाग्रह हमारी अवधारणाएं कठोरता से गहरा रही है. हम उन्ही की सुनते हैं, जिनकी हम सुनना चाहते हैं. और क्योकि यह इतनी निजी जगह है, और किसी प्रकार का हस्तक्षेप बड़ा मुश्किल है. हमारे फोन पर नम्बर कई है, पर वॉट्सऐप पर भी हम उन्ही से चर्चा करते है, जिनसे हम चाहते हैं.

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जैसे कि घर पर, स्कूल में, कॉलेज में कम ही होता है कि हमसे कोई जबरदस्ती बात कर जाये. किसी अनजाने और आप से अलग विचारधारा के इंसान से आप ट्ठिटर या फेसबुक पर गहमागहमी कर लिजिएगा पर उनके वॉट्सऐप तक पहुंचना या फिर उस पर क्या चल रहा है, यह जान पाना कठिन है. पर यह चर्चा इतनी ही प्रभावशाली है, जितनी हम सोशल मीडिया की जान पाते है. पर शायद आंकते उससे कम हैं. राजनैतिक और सामाजिक मुहिमों को यह समझ लेना चाहिये कि हमेशा की तरह निजता और सार्वजनिकता के इस अंतर को वह जितनी जल्दी लांघे उतना ही अच्छा होगा. इसलिये अगर सही मायने में सोशल मिडिया द्वारा किसी भी तरह की राजनैतिक मुहिम चलानी ही है तो फिर इस प्राईवेट और सोशल के अंतर को भेदना होगा. अपने वॉट्सऐप की निजता से हम खुद को सेफ जरूर महसूस कर सकते हैं क्योकि शोर तो सारा सार्वजनकि मीडिया पर सुनाई पड़ रहा है. पर जब बंद से बंद कमरे में, दूर से दूर इलाके में उस हरे डिब्बे पर नीली टिक लगती है तो दो आखों की लगती है जो सिर्फ पेज को उगली से ऊपर नीचे ही नही, पर आये हुये मेसेज का चाहे जितना भी अंश पढ़कर, या तो हंसती है या सोच में पड़ती है, या हामी भरती है. पर कुछ न कुछ तय जरूर कर लेती है.


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