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क्या 'सारा आकाश' बासु चैटर्जी की आधी-अधूरी फिल्म थी?

और फिल्म को पूरा करने के लिए बासु दा ने 'रजनीगन्धा' बनाई!

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फोटो - thelallantop
4 जून को 2020 को डायरेक्टर और स्क्रीनराइटर बासु चटर्जी का निधन हो गया. वो 90 बरस के थे. बासु चैटर्जी ने राजेन्द्र यादव की कहानी 'सारा आकाश' और मन्नु भंडारी की कहानी 'यही सच है' पर रजनीगंधा फ़िल्म बनाई थी. सारा आकाश उनकी पहली फ़िल्म थी. उसकी पटकथा, राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है. इस किताब की भूमिका में बासु दा ने इन दोनों कहानियों पर फ़िल्म बनाने के अपने अनुभव साझा किए है. आप भी पढ़िए.

कहानी के बारे में

आज़ाद भारत की युवा-पीढ़ी के वर्तमान की त्रासदी और भविष्य का नक़्शा. आश्वासन तो यह है कि सम्पूर्ण दुनिया और सारा आकाश तुम्हारे सामने खुला है - सिर्फ तुम्हारे भीतर इसे जीतने और नापने का संकल्प हो - हाथ, पैरों में शक्ति हो... मगर असलियत यह है कि हर पांव में बेड़ियां हैं और हर दरवाजे बंद है. युवा बेचैनी को दिखाई नहीं देता कि किधर जाए और क्या करे. इसी में टूटता है उसका तन, मन और भविष्य का सपना. फिर वह क्या करे - पलायन, आत्महत्या या आत्मसमर्पण ? आजादी के पचास बरसों ने भी इस नक्शे को बदला नहीं - इस अर्थ में सारा आकाश ऐतिहासिक उपन्यास भी है और समकालीन भी. बेहद पठनीय और हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासों में से एक सारा आकाश चालीस संस्करणों में आठ लाख प्रतियों से ऊपर छप चुका है, लगभग सारी भारतीय और प्रमुख विदेशी भाषाओं में अनूदित है. बासु चटर्जी द्वारा बनी फ़िल्म सारा आकाश (हिन्दी) सार्थक कलाफिल्मों की प्रारम्भकर्ता फ़िल्म है.


1969 के आरम्भिक दिनों में मैंने दो मुख्य फ़िल्में (फीचर फ़िल्म) बनाने में मदद की थी और अपने को एक मुख्य फ़िल्म निर्देशन के योग्य मान रहा था. मैं इधर-उधर एक कहानी तलाश रहा था. मेरे मित्र और सहयोगी अरुण कौल ने राजेन्द्र यादव की कहानी ‘सारा आकाश’ का सुझाव दिया. उसकी एक प्रति उनके पास थी, उन्होंने मुझे दे दी. एक शाम मैं उसे एक ही सांस में पढ़ गया और मैं अभिभूत ही था. मैंने इस कहानी पर अपनी पहली फ़िल्म बनाने की योजना बनाई. अन्य कलाओं के विपरीत फ़िल्म बनाना एक महंगी प्रक्रिया है. इस योजना पर पैसा कौन लगाएगा? उसी समय फ़िल्म फाइनेंस कारपोरेशन ने अच्छी फ़िल्मों में सहयोग के लिए ऋण देने की नीति में संशोधन करके अच्छी फ़िल्मों के प्रोत्साहन के लिए सीधे कर्ज देना तय किया. मुझे ‘सारा आकाश’ बनाने के लिए कर्ज़ दे दिया गया. मैंने लेखक राजेन्द्र यादव से उसके अधिकार मांगे. एक फ़िल्म के रूप में ‘सारा आकाश’ के पूरे हो जाने के काफी बाद मैं जान पाया कि मैंने कहानी का पहला भाग ही पढ़ा था, दूसरा भाग पढ़ा ही नहीं था. इसे फ़िल्म पूरी हो जाने के बहुत बाद पढ़ा.
इसकी पटकथा लिखवाने के लिए मैं एक स्थापित लेखक के पास गया. विषय को लेकर उनका दृष्टिकोण और लिखने का तरीक़ा मुझे पसन्द नहीं आया. सहायक निर्देशक का काम करते हुए मैंने फ़िल्म ‘सरस्वती चन्द्रा’ के लिए कुछ दृश्य लिखे थे. उन्हें स्वीकार किया गया और पसन्द भी किया गया. इसके पहले ‘तीसरी क़सम’ के निर्माण के दौरान जब मैं पहली बार एक सहायक निर्देशक के रूप में काम कर रहा था, मैं उसके साथ लिखने, चलचित्रण करने और सम्पादन में गहराई से जुड़ा था. अतः मैंने चुनौती को स्वीकार किया और पटकथा स्वयं लिखने का निर्णय ले लिया.
‘सारा आकाश’ एक जटिल कथा के रूप में लिखा गया था. लेखक ने सपाट रास्ता नहीं चुना था, इसीलिए इसने मुझे ज़्यादा आकर्षित किया था. दृश्यों को मैंने यथासम्भव वर्णन के निकट रखा है. चूंकि लेखक ने कहानी फ़िल्म के लिए नहीं लिखी थी, अतः उसमें बहुत-सी बातों का विवरण दिया गया है जिनको दृश्यों में रूपान्तरित करना एक चुनौती थी. उदाहरण के लिए नायक का एक मित्र फुटबॉल के एक खेल का वर्णन करता है जिसमें वह उत्कृष्ट खिलाड़ी था, उस समय नायक अपनी विमुख पत्नी की याद में खोया हुआ था. इन दोनों को सम्मिलित कैसे किया जाए, वह भी दृश्यों के माध्यम से इसका रास्ता मुझे खोजना था. ऐसे ही कई स्थान हैं जहां नायक अतीत और भविष्य के बारे में बहुत कुछ सोच रहा है. छठे दशक के मध्य में मैंने अनेक यूरोपीय और रूसी फ़िल्में देखी थीं. वे अपने विवरण में अद्भुत थीं. मुझे ऐसे दृश्य लिखने में इनसे सहायता मिली.
पटकथा लिखने के बाद मुझे इसे विक्रम सिंह को दिखाने का अवसर मिला. वे अपने समय में टाइम्स ऑफ इंडिया के सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म आलोचक थे. उन्होंने मेरे प्रयास की सराहना की और मुझे फ़िल्म बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. और ‘सारा आकाश’ बन गई. 1970 में फ़िल्मफेयर के समारोह में इसे वर्ष की सर्वश्रेष्ठ पटकथा घोषित किया गया. निर्देशन के लिए इसकी सिफारिश राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भी की गई. इसके कैमरामैन को सर्वश्रेष्ठ छायाचित्रण के लिए पुरस्कार भी मिला.
Yahi Sach Hai
मनु भंडारी के उपन्यास ‘यह सच है’ पर आधारित यह फिल्म दो प्रेमियों के बीच चुनाव को लेकर दुविधा में जीती एक लड़की की कहानी थी.

‘सारा आकाश’ के बाद मुख्यतः हिन्दी और बंगला में मैंने कई कहानियां पढ़ीं. मैंने मन्नू भंडारी की कहानी ‘यही सच है’ पढ़ी. ‘सारा आकाश’ की तरह इसे भी मैं एक सांस में पढ़ गया और मुझे लगा कि एक मुख्य फ़िल्म बनाने के लिए यह उत्कृष्ट सामग्री है. ‘यही सच है’ एक और जटिल कहानी थी - यह दो भिन्न शहरों की दो स्त्रियों के विचारों को लेकर लिखी गई थी. मैंने कहानी को दृश्यात्मक जामा पहना दिया. मैंने लिखना शुरू किया, इसको पूरा करने में मुझे कई महीने लग गए. एक बार मैं और अरुण कौल जब ट्रेन से मद्रास (अब चेन्नई) जा रहे थे तब मैंने पटकथा अरुण को पढ़ने को दी. वह एक बार में ही सारी पढ़ गया और उससे काफी प्रभावित हुआ. इससे मुझे इस बात का साहस मिला कि जब भी अवसर मिले मैं इसे बना डालूं. और वह अवसर शीघ्र ही आ गया. निर्माता सुरेश जिन्दल अमेरिका से लौट आए थे. वहां उन्होंने ‘सारा आकाश’ देखी थी. वह अपने लिए एक फ़िल्म का निर्माण कराने के लिए मेरे पास आए. उन्होंने मुझे अपनी मनपसन्द कहानी चुनने की आज़ादी दी. ‘यही सच है’ की पटकथा मेरे पास तैयार थी. मेरे पास उस समय एक और विषय भी था, लेकिन मैंने ‘यही सच है’ चुना. उसका शीर्षक अब ‘रजनीगन्धा’ रखा गया.
इसकी पटकथा लिखने के लिए मुझे कई छोटे दृश्यों का सहारा लेना पड़ा था. साधारणतया ऐसे छोटे दृश्य पटकथा में नहीं लिखे जाते हैं. पर मेरे अनुसार वे आवश्यक थे. नायिका के सोचने की एक लम्बी प्रक्रिया है. वह अपने वर्तमान तथा कुछ समय पहले खोए हुए प्रेमी को लेकर मानसिक द्वन्द्व की स्थिति में थी. ऐसे द्वन्द्व का दृश्यांकन करना एक चुनौती की बात थी, पर वे प्रभावशाली ढंग से किए गए. कहानी को पटकथा में बदलते समय मेरे पास अनेक विकल्प थे, पर जैसा कि मैं अब देखता हूं, मैंने सही विकल्पों का चुनाव किया था. लेखिका मन्नू भंडारी को भी आश्चर्य था कि कैसे ऐसे जटिल पात्र को प्रभावशाली ढंग से मुख्य फ़िल्म में बदला जा सकता है. फ़िल्म के मुख्य पात्रों को उभारने के लिए, उनके चरित्र-चित्रण के लिए कई दृश्य विशेषकर लिखे गए थे.
‘रजनीगन्धा’ को तत्काल सफलता मिली. उसे कई पुरस्कार मिले. उसे फ़िल्मफेयर का मुख्य फ़िल्म और पटकथा के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिले. यह एक पहली मुख्य फ़िल्म थी जो बंबई तथा अन्य शहरों में 25 सप्ताह से ज़्यादा चली.


विडियो- 'चमेली की शादी', 'चितचोर' जैसी शानदार फ़िल्में डायरेक्ट करने वाले बासु चटर्जी नहीं रहे