बेहतर है मौत, देती तो है कफन, अगर ज़िंदगी का बस चले तो कपड़े उतार ले ------------ इकट्ठा कर लिए हथियार जितना लड़ने वालों ने जमा करते जो इतने फूल तो दुनिया महक उठाती.
'यां का खा को, वहां का गा रहे' कहने वाले खामखां दुनिया से चले गए
हास्य और व्यंग्य का ये शायर दूसरी दुनिया सजाने चला गया.

फोटो - thelallantop
जिसने ये शेर कहे अब वो इस दुनिया में नहीं रहा. खामखां हैदराबादी का बुधवार को 88 साल की उम्र में इंतकाल हो गया. बाकी है तो उनकी शायरी. जो हमेशा जिंदा रहेगी. खामखां हैदराबादी, मजाहिया (फनी) शायरी के लिए जाने जाते थे. असली नाम गौस मोहिउद्दीन अहमद था. गौस मोहिउद्दीन अहमद उर्फ़ खामखां का हैदराबाद के बेहतरीन उर्दू शायर में शुमार होता है. उनकी दक्किनी शायरी अलग ही पहचान रखती है. दक्किनी वो उर्दू और हिंदी का मिश्रण है. जिसे 'दक्किनी' या 'दक्खिनी' कहा जाता है.
दक्किनी शायरी का अपना अलग मिज़ाज़ है, जो सुनने के बाद ही पता चलता है. खामखां को दक्किनी बोली में हास्य और व्यंग्य में महारत हासिल थी. गौस मोहिउद्दीन हैदराबाद में पैदा हुए और उर्दू में तालीम हासिल की. जब वो 18 साल के थे तब से ही उन्होंने शायरी करना शुरू कर दिया था. अपना तखल्लुस 'खामखां' रखा. जिसका मतलब होता है 'बिना वजह'.
खामखां ने तीन क़िताबे भी लिखी हैं. हर्फ़-ए-मुकर्रर (ए स्टोरी रिटॉल्ड), बा-फर्द-ए-मुहाल और 'कागज के तिशय'. खामखां की इस मज़ाहिया शायरी को पढ़ने में वो आनंद नहीं, जो सुनने में है.


देखो कित्ता समझा रहा मैं, नै बोले तो सुनते नई ! अपनी मनमानी तुम करते, नै बोले तो सुनते नई करने के जो कामां हैं वो तो जैसे के वैसे हैं नै करने के कामां कर रहे, नै बोले तो सुनते नई. मेरे घर में रह को बातां अम्मा बाबा (पाकिस्तान) की कर रहे यां का खा को, वहां का गा रहे, नै बोले तो सुनते नई.
अच्छे अच्छे ड्रामे देखो, कित्ता कित्ता समझाया गंदे फिल्मों देखके आ रयें इसके पीछे क्या है जी, उसके नीचे क्या है जी ऐसे वैसे गाने गा रये हैं, नै बोले तो सुनते नई.
सुनिए
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