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"वह दर्द देता है और कुछ और अकेला कर जाता है"

कुंवर नारायण जी इस पन्द्रह नवंबर को हमें छोड़कर चल बसे.

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उदय प्रकाश - साहित्यकार
उदय प्रकाश - साहित्यकार


'पीली छतरी वाली लड़की' के लेखक उदय प्रकाश का नाम हम सभी जानते हैं. साहित्य और समाज को लेकर की गई उनकी एक छोटी सी टीप भी सोशल साइट्स से लेकर प्रिंट मीडिया और TV तक में एक 'आवश्यक' की तरह ली जाती है. वर्तमान में अपने यूरोप प्रवास के दौरान उन्होंने कुंवर नारायण जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक फेसबुक पोस्ट लिखी है. बता दें इस बुधवार यानी पन्द्रह नवंबर को कुंवर नारायण जी का देहांत हो गया था, उसके बाद ही से पूरे हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर छाई है. अपने श्रद्धांजलि संदेश में क्या कहते हैं उदय प्रकाश जी, आइए पढ़ें :-



'आत्मजयी' वह कविता संग्रह था, जिसके द्वारा मैं कुंवर नारायण जी की कविताओं के संपर्क में आया. तब मैं गांव में था और स्कूल में पढ़ता था. 'आत्मजयी' की कविताओं ने उस बचपन में मृत्यु और अमरता से जुड़ी अबोध और अब तक बहुत उलझी हुई जिज्ञासाओं को जानने के लिए 'कठोपनिषद' पढ़ने की प्रेरणा दी. वे कविताएं एक ही भाषिक सतह पर दैनिक और दार्शनिक, वास्तविक और परि-कल्पित दोनों ही स्तरों पर सक्रिय रहती थीं.
इसके बाद तो उनके अन्य संग्रह पढ़ता गया.
और उनकी कहानियां ? वे अपनी तरह के अलग कथाकार थे. रघुवीर सहाय, अज्ञेय, श्रीकांत वर्मा, मुक्तिबोध, प्रसाद, निराला की कहानियों की तरह गहरे काव्यात्मक अवबोधों और अनुभवों से संपन्न कहानियां. ऐसी कहानियां हिंदी के कथा-साहित्य की अब तक उपेक्षित बहुमूल्य सम्पदाएं हैं. उनका गहरा आलोचनात्मक मूल्यांकन और उनकी प्रतिष्ठा होनी चाहिए.
उनके विचार और चिंतन. कहीं कोई जड़ता और अतीतोन्मुख मतान्धता नहीं. आधुनिकता, तर्कशीलता और उदार प्रगतिकामी विचारों को वे निरंतर अपने समय-समय पर लिखे गए निबंधों और साक्षात्कारों में व्यक्त करते रहे.
बचपन में जब गांव में था तब कभी सोचा भी नहीं था कि उनसे कभी मिलना भी होगा. लेकिन वह भी हुआ और वे अपनी कविताओं और विचारों की तरह ही शालीन पारदर्शिता के साथ, एक गहरी स्नेहिल विनम्रता के साथ मिले. सम्भवत: जब 1981-82 में 'पूर्वग्रह' के सह-सम्पादन से जुड़ा था, तब उनका एक साक्षात्कार लिया, डॉ. नामवर सिंह जी और नेमिचंद जैन जी के साथ. मुझे आज भी लगता है कि वह एक महत्वपूर्ण साक्षात्कार है.
उनकी उपस्थिति का बोध हमेशा रहा करता था. कुछ साल पहले जब 'मोहन दास' फिल्म का ओसियान में प्रीमियर हुआ तो जनसत्ता में कुंवर नारायण जी ने ही तुरंत उसकी समीक्षा की. वह समीक्षा इसलिए हमेशा के लिए मेरी स्मृतियों में दर्ज रह गई है कि उसमें कुंवर नारायण जी ने पूछा था कि कहीं उदय प्रकाश के साथ वही तो नहीं किया जा रहा है, जो मोहन दास के साथ हुआ. इसी तरह 'उर्वर प्रदेश' में मैंने अपनी कविताओं के बारे में जो एक छोटा-सा नोट लिखा था, उसके एक अंश को उन्होंने आधार बनाकर अपनी टिप्पणी लिखी.
'कविता अपने लिए प्राचीन अर्थों में नैतिकता की मांग करती है'
- यही वह अंश था, जो स्वयं उनके जीवन और उनकी रचनाओं पर लागू होता है. मुक्तिबोध ने उन्हें 'अंतरात्मा की पीड़ित विवेक-चेतना और जीवन की आलोचना' का कवि कहा था.
इधर कुछ दिनों से उनके अस्वस्थ होने की ख़बरें मिल रही थीं. सोच रखा था कि इस बार जनवरी में यूरोप से लौटकर नए साल 2018 में उनसे मिलूंगा, तब तक वे स्वस्थ हो चुके होंगे. ऐसा नहीं हुआ.
मैं इस समय जर्मनी में हूं कल जेनेवा चला जाऊंगा लेकिन इतनी दूरी से भी उनकी अचानक अनुपस्थिति का आघात अपने भीतर अनुभव होता है. वह दर्द देता है और कुछ और अकेला कर जाता है.
उन्हें प्रणाम. श्रद्धांजलि.



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