The Lallantop

ये शख्स 'नोबेल प्राइज विजेता' है और चुनाव लड़ना इसका पैशन है

पश्चिम बंगाल से है ये 'महामानब'

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
नोबेल प्राइज बड़ा फेमस है. टैलेंटेड लोगों को मिलता है. इंडिया में पश्चिम बंगाल से रवींद्रनाथ टैगोर और अमर्त्य सेन को मिल चुका है, लेकिन इन धुरंधरों के बीच एक 'टैलेंट' पता नहीं कहां खो गया था. उसने भी नोबेल प्राइज जीत रखा है. ऐसा किसी और का नहीं, उसका खुद का दावा है. इनका मुख्य पेशा पश्चिम बंगाल में सारे बड़े चुनाव लड़ना है और पूरे सम्मान के साथ हार जाना है.
इस शख्स का नाम है पिनाकी रंजन भारती. 24 परगना से आते हैं. खुद को नोबेल प्राइज विजेता बताते हैं. चुनाव लड़ने के अपने शौक को अंजाम देने के लिए बाकायदा एक पॉलिटिकल पार्टी बना रखी है. अंग्रेजी में इस पार्टी का नाम The Religion of Man Revolving Political Party. मतलब कुछ भी निकाल लें, लेकिन नाम में क्रिएटिविटी झलक रही है. इनकी पार्टी बंगाल की उन 31 पार्टियों में है, जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं है. 2006 से राज्य के सारे बड़े चुनाव लड़ रहे हैं. 2016 में पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपना 30 सेकंड का एक कैंपेन वीडियो भी बनवाया, जिसमें इस बात पर फोकस रखा कि उन्होंने नोबेल प्राइज जीता है.
भारती ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ''हां, मैं नोबेल प्राइज विजेता हूं. मुझे बहुत पहले इसके लिए नॉमिनेट किया गया था और 2008 में मैंने नोबेल जीता. मुझे अभी मेडल, सर्टिफिकेट और प्राइज मनी मिलने की उम्मीद है.''

अरे! ये तो त्रासदी हो गई इनके साथ.

2011 के विधानसभा चुनाव में एफिडेविट में पूरे दावे से कहा गया था कि उन्हें नोबेल के लिए नॉमिनेट किया गया है और 2014 के एक दूसरे एफिडेविट में कहा गया कि उन्हें इसके लिए सेलेक्ट भी किया गया है.
लेकिन इनकी पार्टी का कुछ अता-पता अभी मालूम नहीं है. इनकी पार्टी का एड्रेस है 'कबितीर्थ, कबितानगर, PO+PS-बोंगांव-743235. लेकिन, बोंगांव में कबितानगर नाम की कोई जगह है ही नहीं.
जो फ़ोन नंबर एफिडेविट में दिए गए हैं, वो भी अब उनके नहीं हैं. ये महाशय सुभाष नगर में रहते हैं और कबितानगर नाम इन्होंने खुद बनाया है. लेकिन पोस्ट-ऑफिस से लेकर लोकल के तृणमूल कांग्रेस के विधायक बिस्वजीत दास को नहीं पता कि ये कबितानगर है कहां?
उनकी एफिडेविट की जांच पड़ताल करने पर हमें ये मिला-
PINAKI RANJAN

उनकी फोटो इसमें नहीं है. भारती खुद को एक स्कूल का प्रिंसिपल भी बताते हैं. ये एक प्राइमरी स्कूल है. नाम है कबितीर्थ. भारती इसे म्यूजिक और आर्ट का कॉलेज बनाना चाहते हैं, लेकिन बता दिया जाए कि उनके स्कूल को अभी मान्यता नहीं मिली है.
एफिडेविट 2
एफिडेविट 2

स्कूल के बाहर बैनर लगा है, जिसमें स्कूल को पार्टी का ऑफिस बनाया गया है. बैनर में इस मानुष को 'महामानब'
और नोबेल विजेता बताया गया है. मेरा कॉलेज कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ गया था और हाई कोर्ट में मैं केस जीत गया.''
इसके बाद फिर से अपनी उम्मीद कायम रखते हुए बोले, 'एक बार मुझे नोबल का पैसा मिल जाए', तो मैं इसे कबीरतीर्थ पर लागाऊंगा. जैसे रबीन्द्रनाथ टैगोर ने विश्व भारती के लिए इस्तेमाल किया था.'
2006 के विधानसभा चुनाव में भारती ने 24 परगना जिले के बीरभूम जिले में बोलपुर से चुनाव लड़ा था और 1,565 वोट भी हासिल किए थे. 2011 में इस 'महामानाब' को 995 वोट मिले. 2014 के लोकसभा चुनाव में बोंगांव से 1,071 वोट मिले और 2016 के विधानसभा चुनाव में 537 वोट मिले.
सेल्फ कान्फिडेंस की मिसाल कायम करते हुए हर चुनाव में हारने के बावजूद इनका उत्साह ज़रा भी कम नहीं हुआ. उन्हें लगता है उनके पास दुनिया की सारी समस्याओं का हल है. टैगोर को अपना इंस्पिरेशन मानते हैं. कहते हैं इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है. इनका दावा है कुछ सालों में इनकी पार्टी सब जगह छा जाएगी. इनकी पार्टी के पास कोई फंड भी नहीं हैं.

पहली नज़र में इस आदमी की मानसिक हालत का पता तो नहीं लगाया जा सकता, लेकिन इसके दावे हैरान करने वाले हैं.

Advertisement


ये स्टोरी निशांत ने की है.




ये भी पढ़ें-
नोबेल वाले पीछे-पीछे दौड़ रहे हैं, डिलन आगे-आगे भाग रहे हैं

दुनिया खत्म हो, उससे पहले इन भारतीयों को नोबेल प्राइज जरूर मिले

मौत पर जीत की ओर सबसे बड़ा कदम बढ़ाने वाले को मिला नोबेल

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement