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लौंडेबाज-ए-हिंद: जब 'बॉम्बे' दुनिया की 'गे कैपिटल' हुआ करता था

पढ़िए इंडिया के सबसे पुराने गे मूवमेंट के बारे में. और सबसे पुराने गे एक्टिविस्ट के बारे में जो एक ट्रक ड्राइवर था.

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Source: Reuters
आज से 40 साल पहले गोलपिठा, मुंबई के रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट से की सीली गलियों से शुरू हुआ था देश का पहला गे मूवमेंट. जब शहर के लगभग 30 लोगों ने एक ग्रुप बनाया था. नाम था 'इंडियन गे लिबरेशन फ्रंट'. ग्रुप बना था समलैंगिकों, ट्रांसजेंडरों और हिजड़ों को लेकर. जो पुलिस और गुंडों की हिंसा से तंग आ चुके थे. वेश्याओं की गलियों से निकले ये 30 लोग खुद को लौंडेबाज-ए-हिंद
बुलाया करते थे.
ये जो शहर-शहर में आप प्राइड मार्च देखते हैं, जो फेसबुक पर हजारों एक्टिविस्टों को आप खुल कर सेक्शुएलिटी पर बात करते देखते हैं. ये हिम्मत जो हजारों 'क्वियर' लोगों को सड़कों पर ले आई है कोर्ट के खिलाफ. उसे जुटाने में जितना समय लगा है, उसका गवाह है लौंडेबाज-ए-हिंद.
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पुलिस को अगर पता चल जाता था कि कोई आदमी गे है, तो उसे उठा ले जाते थे. खूब पीटते थे. उसके बाद उनका रेप कर देते थे. सड़कों और पार्कों में कभी भी गुंडे इन्हें पीट सकते थे. और बाकी लोग खड़े हो कर तमाशा देखते थे.
1977 में अंग्रेजी मैगजीन इंडिया टुडे ने ग्रुप के कुछ मेंबरों से बात की थी. एक ने मैगजीन को बताया कि वो शहर के बाहर के एक छोटे से रेलवे टॉयलेट में गया. जहां उसको एक रेलवे ऑफिसर ने पकड़ लिया. उसके बाद उसका रेप किया. और लूट लिया. फिर उसे स्टेशन मास्टर के पास ले जाया गया. जहां फिर से उसका रेप हुआ. वहां से बाहर आते वक्त उसका सब कुछ छिन चुका था, पर्स, घड़ी. और उससे बड़ी बात, उसके साथ हिंसा हुई थी.
Participants attend a Queer Azaadi (freedom), an event promoting gay, lesbian, bisexual and transgender rights in New Delhi July 2, 2011. The event was organised to celebrate the second anniversary of the verdict which decriminalised homosexuality in India, a media release said. REUTERS/Adnan Abidi (INDIA - Tags: SOCIETY) - RTR2ODPC
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1977 में ही ऑनलुकर मैगजीन, जो अब बंद हो चुकी है, ने लौंडेबाज-ए-हिंद के प्रेसिडेंट का इंटरव्यू किया. न कोई तस्वीर, न कोई नाम. उसकी पहचान बस SK के नाम से जानी गई. SK ने मैगजीन को जिस बेबाकी से जवाब दिए, उससे पता चलता है कि इन्हीं छोटे-छोटे विरोधों से बड़े बड़े आंदोलन बनते हैं. SK 28 साल का ट्रक ड्राइवर है. मर्दाना दिखता है. भारी आवाज है. कद लगभग 6 फुट. मुसलमान है. ऑनलुकर के मुताबिक बिलकुल भी वैसा नहीं दिखता जैसे 'गे' लोग दिखते हैं. पढ़िए SK के इंटरव्यू के कुछ अंश.

"इंडिया में एक करोड़ से भी ज्यादा समलैंगिक हैं. ये तो कोई छोटी संख्या नहीं है न? हमारे समुदाय में कवि, कलाकार, फिल्म स्टार और लेखक हैं. फिर भी हमें गुंडे और पुलिस पकड़कर पीटते हैं. देश में इस समय इसाईयों से ज्यादा समलैंगिक हैं. फिर भी हमें लोग सुकून से नहीं रहने देते. ये कैसा इंसाफ है भाई?"

"सबसे बड़े गुनाहगार शिव सेना वाले हैं. लालबाग में रहने वाले मेरे कुछ दोस्तों ने बताया है कि शिव सेना के लड़के उन्हें प्यार का लालच देते हैं. फिर उनके साथ सेक्स कर के उन्हें पीटते हैं. उनके सारे पैसे लूट लेते हैं. इसका रुकना बहुत जरूरी है. ऐसा कर वो क्या दिखाना चाहते हैं? क्या ये उनका मर्दानगी दिखाने का एक तरीका है?"

"लौंडेबाज जरा डरपोक होते हैं. ढूंढो तो खूब छुपे रुस्तम निकलेंगे. अपनी समलैंगिकता को मानने वाले लोगों में हिंदू कम होते हैं. मुसलमान और इसाई ज्यादा होते हैं."

"सरकार को समलैंगिकता को लीगल कर देना चाहिए. हम यही चाहते हैं. हम गांड मरवाते हैं तो ये सरकार की जायदाद थोड़ी है."

"मराठी और केरल के लड़के सबसे अच्छे प्रेमी होते हैं. नॉर्थ इंडिया वालों को अपनी मर्दानगी की चिंता सताती रहती है. सोचते हैं लौंडेबाज बनने से मर्दानगी खत्म हो जाती है. चूतिये हैं सब."
"औरतें मर्दों के नीचे होती हैं. हमेशा उनका ध्यान खींचने की कोशिश करती रहती हैं. आदमी और औरत का प्यार खुदगर्ज होता है. दो मर्दों का प्यार सच्चा होता है."

मेरे एक बॉयफ्रेंड को एक पुलिस वाले ने पहले अपने प्राइवेट पार्ट दिखा कर अपनी तरफ आकर्षित किया. फिर उसका रेप कर कर दिया. घड़ी, पर्स सब लूट लिया.

इन लौंडेबाजों ने तय किया था कि क्वियर लोगों की आवाज बनेंगे. सबकी शिकायतें जमा करेंगे. और उन्हें बॉम्बे के पुलिस के पुलिस कमिश्नर को भेज देंगे. पूरे शहर में समलैंगिकों का एक बड़ा सा अंडरग्राउंड नेटवर्क हुआ करता था. इंडिया टुडे ने एक मुसलमान गे से बात करते हुए पाया कि हजारों की तादाद में समलैंगिकों और हिजड़ों के साथ हुई हिंसा की शिकायतें आई थीं.
Participants kiss during a Queer Azaadi (freedom), an event promoting gay, lesbian, bisexual and transgender rights in New Delhi July 2, 2011. The event was organised to celebrate the second anniversary of the verdict which decriminalised homosexuality in India, a media release said. REUTERS/Adnan Abidi (INDIA - Tags: SOCIETY) - RTR2ODO7
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एक समय कहा जाता था कि अगर गे सेक्स का आनंद लेना है तो लेबनान के बेरूत शहर में जाना चाहिए. फिर धीरे-धीरे बेरूत का जलवा खत्म हो गया. और 70 के दशक में बॉम्बे दुनिया के सबसे बड़े गे शहरों में गिना जाने लगा. इतना कि गे जगत में इसे दुनिया की गे कैपिटल कहा जाने लगा. शहर के 5-स्टार होटलों में विदेशी मर्द रुकते ही इसीलिए थे कि बढ़िया गे सेक्स का आनंद ले सकें. ये वो समय था जब लंदन का 'गे न्यूज' और अमेरिका का 'ऐडवोकेट' लगातर बॉम्बे के बारे में लिख रहे थे. 'गे गाइड' नाम की मैगजीन ने तब बॉम्बे के एक होटल को दुनिया का बेहतरीन 'क्रुइसिंग' की जगह बताया. लंदन की गे न्यूज में राजस्थान टूरिज्म के विज्ञापन छप रहे थे.
इंडिया टुडे ने लिखा था, "संदेश साफ है. गे पुरूषों के लिए इंडिया बेस्ट जगह है. यहां बहुतायत में मर्द मिलते हैं. और ऐसे दामों में जिसमें आप मोल-भाव कर सकते हों... इससे शहर की नैतिकता का क्या हाल होगा, ये तो पता नहीं. लेकिन सेक्स के प्रति एक रियलिस्टिक सोच कायम करने की तरफ ये एक स्वस्थ कदम है."
ऐसा नहीं कि तब सेक्शन 377 नहीं था. लोग भी वैसे ही थे, जैसे आज हैं. तब भी गे लोगों के साथ हुए क्राइम कहीं दर्ज नहीं होते थे. बल्कि गे हिंसा का कोई केस आना पुलिस के लिए खुशी की बात होती थी. क्योंकि वो उन्हें पीट कर खुश होते थे, उनका रेप कर पावरफुल महसूस करते थे. ऊपर से उनसे पैसे और ले लिया करते थे. ऐसा में पुलिस स्टेशन की शक्ल कौन देखन चाहेगा?
लौंडेबाज-ए-हिंद बीहड़ में मदद की एक चीख सा आया. और गुम हो गया. लेकिन जाने कितने लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की हिम्मत दे गया.
(सभी तस्वीरें मुंबई के 2013 के क्वियर मार्च से)