श्याम सरन नेगी. हिमाचल के किन्नौर जिले के कल्पा गांव में टीचर थे. 25 अक्टूबर, 1951 की सुबह 7 बजे उन्होंने कल्पा प्राइमरी स्कूल में मतपेटी में अपना मतपत्र डाला. बाहर निकलने के बाद उन्हें पता चला कि वो उस पोलिंग बूथ में वोट डालने वाले पहले इंसान हैं. शाम होते-होते खबर आई कि श्याम सरन नेगी केवल उस पोलिंग बूथ में नहीं, बल्कि आज़ाद भारत में वोट डालने वाले पहले इंसान हैं.
आजाद भारत के पहले आम चुनाव की पूरी कहानी, जो पांच महीने तक चला था
25 अक्टूबर, 1951 को शुरू हुआ था ये चुनाव. श्याम सरन नेगी आजाद भारत के पहले मतदाता बने थे. वो अब 105 साल के हो चुके हैं.

भारत का पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर, 1951 को शुरू हुआ था और लगभग पांच महीने तक चला. भारत का पहला आम चुनाव 12 फरवरी, 1952 को संपन्न हुआ था. भारत में चुनाव इसलिए भी खास था, क्योंकि पश्चिमी देशों में जहां कुछ विशेष (पढ़ें अमीर) लोगों के पास ही वोटिंग का अधिकार था, वहां नया-नया आज़ाद हुआ भारत 21 साल से ऊपर के अपने हर नागरिक को वोट डालने का अधिकार दे रहा था. बाद में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने वोटिंग की उम्र को 21 से घटाकर 18 साल कर दिया था.
भारत के पहले आम चुनाव की कहानीभारत को लोकतंत्र बनाने की कवायद तो आज़ादी से पहले ही शुरू हो गई थी. लेकिन इतने बड़े देश में वोटिंग का सिस्टम कैसा हो, उसके लिए ज़रूरतें क्या होंगी, कितना वक्त लगेगा, ये सब तय करना ज़रूरी था. 1947 में भारत आज़ाद हुआ. दो साल बाद यानी 1949 में चुनाव आयोग बना और मार्च, 1950 में सुकुमार सेन को भारत का पहला चुनाव आयुक्त बनाया गया. सुकुमार की नियुक्ति के एक महीने बाद ही जनप्रतिनिधि कानून पास कर दिया गया था. जनप्रतिनिधि कानून में चुनाव लड़ने वाले नेताओं के लिए नियम, कानून और उनके अधिकार तय किए गए हैं.
तब भारत के प्रधानमंत्री थे पंडित जवाहरलाल नेहरू. वो चाहते थे कि साल 1951 के खत्म होने से पहले-पहले आम चुनाव खत्म हो जाए. लेकिन सुकुमार सेन को मालूम था कि इतने बड़े काम को पंडित नेहरू की डेडलाइन में पूरा कर पाना नामुमकिन है.
क्या चुनौतियां थीं?आज़ादी के बाद जनता लोकतंत्र के लिए उत्साहित तो थी, लेकिन 17 करोड़ 60 लाख लोगों को वोटिंग के कॉन्सेप्ट के बारे में समझाना एक बड़ा टास्क था. एक बड़ी समस्या भौगोलिक थी. चुनाव क्षेत्र का फैलाव 10 लाख वर्गमील का था. टापू से लेकर पहाड़ और नदी तक, सबकुछ इस चुनाव में कवर करना था. ऐसे कर्मचारियों की भर्ती करना भी एक बड़ा काम था, जो निष्पक्ष रहते हुए चुनाव की प्रक्रिया को पूरी करवा सकें.

और दूसरी बड़ी समस्या थी सामाजिक. कई महिलाएं अपना नाम बताने में हिचक रही थीं. वो खुद का परिचय अपने बच्चों की मां के तौर पर या अपने पति के नाम पर दे रही थीं. बाद में सुकुमार सेन ने चुनाव काम में जुटे कर्मचारियों को निर्देश दिया कि लोगों के साथ सख्ती बरतें. इस प्रक्रिया में 28 लाख महिलाओं के नाम सूची से हटा दिए गए. इस पर खासा हंगामा मचा, लेकिन बाद के चुनावों में फिर इस तरह की दिक्कतें नहीं आईं.
वोट देने के योग्य आबादी में 85 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जो पढ़-लिख नहीं सकते थे. इन लोगों का रजिस्ट्रेशन करवाना एक बड़ी चुनौती थी. इस समस्या से निपटने के लिए चुनाव आयोग ने हर पार्टी को एक अलग चुनाव चिह्न दिया. ये चिह्न जनता की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े हुए थे. जैसे- बैलों की जोड़ी, दीपक, मिट्टी का लैम्प इत्यादि. इन चुनाव चिह्नों को समझ पाना जनता के लिए आसान था. हर उम्मीदवार के लिए अलग मतपेटी बनाई गई और उनमें उनके चुनाव चिह्न छापे गए. वोटर अपने पसंद के उम्मीदवार के निशान वाली मतपेटी में अपना मतपत्र डाल सकता था.
कुछ आंकड़ों से चुनाव की रेसिपी यानी उस चुनाव के स्केल को समझने की कोशिश करते हैं.
#कितने सीटों पर चुनाव हुएः 4500 (500 लोकसभा सीटें, 4000 विधानसभा सीटें)
# मतपत्रों के लिए- कागज़ की 3 लाख 80 हज़ार रिम्स का इस्तेमाल हुआ
# उंगली पर लगाईं जाने वाली नीली स्याही के लिएः 3 लाख 89 हज़ार 216 छोटी बोतलों का इंतजाम किया गया
# कितने मतदान केंद्रों में चुनाव हुएः 2 लाख 24 हज़ार
# कितने पीठासीन अधिकारी थेः 56 हज़ार (इनका काम चुनाव के कार्य को लिखित रूप में रिकॉर्ड करना था)
# पीठासीन अधिकारियों की मदद के लिए लगाए गए 2 लाख 80 हज़ार सहायक
# सुरक्षा में लगाए गए 2 लाख 24 हज़ार जवान
इसके अलावा, मतदाता सूची को हर इलाके के हिसाब से टाइप करने, उसे वेरिफाई करने के लिए साढ़े 16 हजार क्लर्कों की भर्ती छह महीने के लिए की गई थी.

पहला वोट पड़ने से एक साल पहले से ही चुनाव आयोग ने जागरूकता के लिए तीन हज़ार सिनेमाघरों में मतदान प्रक्रिया की DOCUMENTARY दिखाने का काम शुरू कर दिया था. इसके जरिए लोगों को चुनाव के लक्ष्य, मतदाता के अधिकार, मतदाता सूची और इससे जुड़ीं दूसरी प्रक्रियाओं के बारे में आसान भाषा में बताने की कोशिश की गई थी.
तो ये तो थी देश के पहले चुनाव की कहानी. आपको बता दें कि देश के पहले मतदाता श्याम सरन नेगी 105 साल के हो चुके हैं और अबतक लगभग हर चुनाव में उन्होंने वोट डाला है.
(ये स्टोरी हमारे साथ जुड़े दीपक ने लिखी है.)
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