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पॉर्न देखने से टीनएज गर्ल्स पर क्या असर पड़ता है

पॉर्न हमारे बच्चों को बताता है, रेप कितनी नॉर्मल चीज है.

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फोटो - thelallantop
हम-आप उस उम्र से भी गुजरे हैं, जब चोरी से 'गंदे' वाले वीडियो यूट्यूब पर ढूंढ़ा करते थे. 'उस तरह' के नॉवेल से 'उस टाइप' के पन्ने मोड़कर रख लेते थे. और एक-एक कर सभी दोस्तों तक नॉवेल पहुंचता, तो वो वही मुड़े हुए पन्ने पढ़कर आगे बढ़ा देते. क्या फीलिंग थी न वो, नया-नया सा रोमांच. पेट में गुदगुदी. भला हो पॉर्न का, क्योंकि घरवालों या स्कूल से तो कभी सेक्स एजुकेशन का एक अक्षर सुनने को नहीं मिला.
लेकिन पॉर्न का होना, या देखा जाना इतना आसान नहीं है. पॉर्न पर हमेशा से बहस रही है. कुछ लोगों का मानना है कि पॉर्न देखकर लोग रेप करते हैं. वहीं कुछ को लगता है कि पॉर्न देखना उन्हें सेक्शुअल आजादी का एहसास दिलाता है.
औरतों के केस में पॉर्न का मामला जरा और पेचीदा हो जाता है. कई लोगों को लगता है कि औरतें पॉर्न देखती ही नहीं. कुछ को लगता है, पॉर्न देखने वाली लड़कियां बुरी हैं. जो ज्यादा जरूरी सवाल है, वो ये कि पॉर्न में औरतों को जिस तरह से दिखाया जाता है, क्या वो सही है?
एक किताब आई है नई. पेगी ओरेंस्टीन की लिखी हुई 'सेक्स एंड गर्ल्स'. टाइम मैगजीन में इसके बारे में पढ़ा. और पता चला कि 10 से 17 की उम्र के बीच के 40 फीसदी बच्चे के पास देखने को पॉर्न मौजूद रहता है. दिक्कत ये नहीं कि युवा पॉर्न देखते हैं. दिक्कत ये है कि वो किस तरह का पॉर्न देखते हैं.

चलिए, याद करें हमें कैसा पॉर्न देखने को मिलता है

इसी किताब में एक सर्वे का जिक्र आता है. 304 पॉर्न फिल्मों के रैंडम सीन देखे गए. जिसमें से 90 परसेंट में औरतों के साथ हिंसा हो रही थी. आप तो खैर अनुभवी होंगे. न हों तो बता दें. कोई भी पॉर्न वेबसाइट खोलकर देखिए. आधे से ज्यादा वीडियो ऐसे मिलेंगे, जिसमें मर्द औरतों को दबोच रहे होते हैं. टीनेज पॉर्न, चाइल्ड पॉर्न, ओल्ड एंड यंग पॉर्न. जिसमें सब कुछ जायज है. कई बार लड़की या औरत चीखती, चिल्लाती रहती है, और पुरुष जबरन उससे सेक्स करता है. जिसके बाद औरत को मजा आने लगता है. एनल सेक्स, जो असल में औरत के लिए दर्दनाक हो सकता है, पॉर्न में नॉर्मल दिखता है. रेप पॉर्न, जिसको देखने वालों की संख्या हद से ज्यादा है, में लड़की रोती, चीखती-चिल्लाती रहती है, और पुरुष उसका रेप, या गैंग रेप करते रहते हैं. पॉर्न फिल्मों में औरत को सेक्स के दौरान, नोचे, काटे, पीटे जाने में आनंद आता है. ये सच है कि पर्सनल लाइफ में आप वाइल्ड सेक्स करने वाले व्यक्ति हो सकते हैं. लेकिन जब हम सेक्स से जुड़ी किसी आदत को पॉर्न फिल्म में देखते हैं, वो लोगों के सामने एक स्थापित सत्य की तरह आती हैं. कुल मिलाकर, पॉर्न फिल्म में हुई हिंसा 'सेक्सी' होती है.

क्या होता है पॉर्न का असर

टीनेज में पॉर्न देखने वाले लड़के और लड़कियां ये मानने लगते हैं कि सेक्स में उन्हें भी भूमिकाएं अदा करनी हैं. चूंकि सेक्स एजुकेशन के पहले उन्हें पॉर्न मिलता है, उन्हें लगता है, सेक्स का यही तरीका है. इन भूमिकाओं में पुरुष ताकतवर, जानवर सरीखा जंगली होता है. औरत ऐसा लगना और बनना चाहती है, जिससे पुरुष को भरपूर मजा मिल सके. लेकिन ये सिर्फ कपड़ों और मेकप के चुनाव तक सीमित नहीं रहता. बल्कि इस मानसिकता को बढ़ावा देता है कि सेक्स मात्र पुरुष के मजे के लिए है. और उसके मजे में ही औरत का मजा है. भले ही उसमें औरत को दर्द क्यों न हो.

तो क्या पॉर्न रेप को बढ़ावा देता है?

रेप को मजेदार दिखाने वाला पॉर्न, पॉर्न फिल्मों का हिस्सा भर है. पॉर्न इंडस्ट्री में लेस्बियन और गे पॉर्न भी है. जो प्रोग्रेसिव हैं. जिन्हें देखकर कई लोगों को ये मालूम पड़ता है कि गे, लेस्बियन या बायसेक्शुअल सेक्स नॉर्मल है. जब तक पॉर्न फ़िल्में नहीं आईं, कई लोगों को मालूम ही नहीं था कि औरतों को ओर्गेज्म होते हैं. या बच्चे पैदा करने के अलावा भी सेक्स का कोई मतलब हो सकता है. इसके अलावा खुद के आनंद के लिए, या मास्टरबेट करने के लिए पॉर्न लोगों की जरूरत है. जब हम दिमाग का एंटरटेनमेंट करने के लिए टीवी देख सकते हैं, तो सेक्शुअल मजे के लिए पॉर्न क्यों नहीं.

लेकिन पॉर्न से अच्छी चीजें सीखने वाले लोग कितने होते हैं?

हम कह नहीं सकते. कितने लोग होते हैं, जो पॉर्न देखकर उस पर सवाल करते हैं. कितने लोग हैं, जो हिंसक पॉर्न को देखना एक सोचे-समझे फैसले के तहत नजरअंदाज करते हैं. कितने लोग हैं, जो ये समझते हैं कि जो पॉर्न में है, वो सच नहीं, एक रोल-प्ले है. जैसे हमारी फिल्मों में किरदार होते हैं, वैसे ही पॉर्न वीडियो में भी किरदार होते हैं. कितने लोग ये समझते हैं कि 45 मिनट का इरेक्शन, या लंबा लिंग किसी की 'मर्दानगी' का सबूत नहीं होते. कितने बच्चे ये समझेंगे कि कॉन्डम सेक्स को सेफ बनाएगा. वो कॉन्डम, जो उन्हें पॉर्न में कभी दिखता ही नहीं.

और हमारे बच्चों का क्या?

जब तक बच्चों को घरवालों और स्कूल की तरफ से सेफ सेक्स के बारे में विस्तार से नहीं बताया जाता, मुमकिन है कि बच्चे पॉर्न फिल्मों को ही सच मानते रहेंगे. जिस किताब का हमने जिक्र किया, उसकी राइटर से एक स्कूल की लड़की ने कहा, 'मैं पॉर्न देखती हूं, क्योंकि मैंने अभी तक सेक्स नहीं किया. मैं सेक्स को समझना चाहती हूं.' जरूरी है कि ये सवाल हम अपने आप से पूछें. कि सेक्स की जानकारी के लिए हमारे बच्चों को पॉर्न की तरफ क्यों जाना पड़ता है.


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