;साल 1937 की बात है. कैरेबियन आइलैंड्स के एक द्वीप डोमिनिकन रिपब्लिक की घटना है. इस छोटे से देश में एक तानाशाह का राज़ था- राफ़ाएल ट्रूहिलो. डोमिनिकन रिपब्लिक में हेती पहचान वाले लोगों की कुछ जनसंख्या थी. वो काम करने के लिए बॉर्डर के इलाके में रहते थे. और वहीं अपना गुजर बसर करते थे. आगे की स्क्रिप्ट जानी पहचानी है. लोगों को अपने पीछे करने का सबसे कारगर तरीका है, उन्हें उनके सामने एक दुश्मन दिखा दो.
जब ‘बाल्टी’ बनी तमिल नरसंहार का पासवर्ड
साल 1983 में श्री लंका में तमिलों का नरसंहार हुआ था और इस नरसंहार में इस्तेमाल किया गया था एक पासवर्ड.
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जब एक जड़ी बूटी हेती के लोगों के लिए ज़हर बन गई
राफ़ाएल ट्रूहिलो ने हेती के लोगों को अपने देश के नागरिकों का दुश्मन घोषित कर दिया. उसने कहा कि ये लोग आते हैं, हमारे संसाधनों को खर्च करते हैं, और इसी के चलते हमारा देश बर्बाद हो रहा है. हेती के लोग निशाना बनाए जाने लगे. फिर अफवाहें उड़ने लगी कि वो मवेशी चुरा रहे हैं. जब नफरत का अच्छा खासा इंतज़ाम हो गया. ट्रूहिलो ने अपना फाइनल सॉल्यूशन सामने रखा. उसने सेना को आदेश दिया, एक-एक हेशियन को पकड़ कर ख़त्म कर दो. सेना ने अपना ऑपरेशन शुरू किया. लेकिन एक दिक्कत थी. हेती के लोगों और डोमिनिकन रिपब्लिक के लोगों में कोई खास अंतर नहीं था. ये जर्मनी नहीं था. जहां लोगों का नाम पता रजिस्टर हो. इसलिए यहूदियों की तरह उनकी लिस्ट नहीं बनाई जा सकती थी. फिर काम में लाया गया एक खास तरीका.

क्या था ये खास तरीका? पार्सले नाम की एक हर्ब होती है. हिंदी में इसका नाम अजमोद होता है. अजवाइन की खुसबू वाली ये जड़ी बूटी हेती के लोगों के लिए ज़हर बन गई. कैसे? स्पेनिश भाषा में पार्सले को पेरेजिल कहा जाता है. लेकिन डोमिनिकन और हेती के लोगों का इसे उच्चारण करने का तरीका थोड़ा अलग था. इसलिए ये शब्द हेती के लोगों के लिए लिटमस टेस्ट बन गया. हर किसी को रोककर पेरेजिल का उच्चारण करने को कहा जाता. डोमिनिकन लोग तो बच जाते लेकिन हेती वाले इसका अलग तरह से उच्चारण करते. ऐसा करते ही उन्हें मार डाला जाता. इस तरह हेती के लगभग 20 हजार लोगों की हत्या कर दी गई. औरतों बच्चों किसी को नहीं छोड़ा गया. इस नरसंहार को पार्सले नरसंहार के नाम से जाना जाता है. हम आज इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं? क्यूंकि साल 1983 में एक ऐसा ही नरसंहार तमिलों के साथ हुआ था. जिसमें मारे गए थे तमिल मूल के लोग. और यहां भी इस्तेमाल हुआ था एक ऐसे ही पासवर्ड का. क्या थी पूरी कहानी, चलिए जानते हैं.
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सिंहल-तमिल विद्रोह
हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में तमिलों और सिंहल लोगों के बीच मतभेद का एक लम्बा इतिहास रहा है. संक्षेप में जान लेते हैं. जब श्रीलंका में पर अंग्रेज़ों का राज था, यहां खूब ईसाई मिशनरी स्कूल खुले. इसमें पढ़ने वाले अधिकतर तमिल थे. जो श्रीलंका में जनसंख्या का 25 % हिस्सा थे. इन्हें अंग्रेज़ी की शिक्षा से बहुत फायदा हुआ. और ये तमाम सरकारी नौकरियों में लग गए. अंग्रेज़ गए तो श्रीलंका के बहुसंख्यक सिंहल लोगों ने मांग की कि उनकी भाषा को प्रमुखता दी जाए. नतीजा हुआ कि 1956 में एक ऑफिसियल लैंग्वेज एक्ट पास हुआ. जिसमें सिंहल भाषा को श्रीलंका की आधिकारिक भाषा बना दिया गया. इससे तमिलों में रोष जागा. उन्होंने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किए. और अगले दो दशक में भाषा की इस लड़ाई ने श्रीलंका में कई बार दंगो को अंजाम दिया. इसी दौरान तमिलों के एक संगठन LTTE का भी जन्म हुआ.

अब चलते हैं सीधे साल 1983 में. इस साल कैलंडर में जुलाई का रंग काला था. शनिवार 23 जुलाई 1983 की बात है. जाफना के नजदीक सेना का काफिला जा रहा था. अचानक लिट्टे के लड़ाकों ने इस काफिले पर हमला किया और इस लड़ाई में 15 जवान मारे गए. लिट्टे ने ये हमला अपने एक संस्थापक नेता, चार्ल्स अन्थोनी की मौत का बदला लेने के लिए किया था. जैसे ही ये खबर देश भर में फ़ैली, लोगों में गुस्सा भर गया. ये बहुसंख्यक सिंहल थे. आनन फानन में राष्ट्रपति JR जयवर्धने घोषणा की कि सैनिकों को राजकीय सम्मान के साथ राजधानी कोलम्बो लाया जाएगा. ये परंपरा के खिलाफ था. आमतौर पर मारे गए सैनिकों का शव उनके परिवार को दिया जाता है. अंतिम संस्कार के लिए शव को गृह प्रदेश ले जाया जाता है. लेकिन राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सिफारिश के खिलाफ निर्णय लेते हुए कोलम्बो में अंतिम संस्कार का फैसला लिया. इसी शाम जब प्लेन से शव कोलंबो पहुंचे, वहां भीड़ इकठ्ठा होने लगी. कोलंबो के श्मशान में करीब 3 हजार लोग इकठ्ठा थे. और मांग कर रहे थे कि शव परिवार को दिया जाए. जल्द ही पुलिस और भीड़ के बीच हाथापाई शुरू हो गई और राष्ट्रपति ने अंतिम संस्कार रद्द कर दिया.
भीड़ शांत हो गई लेकिन ये शांति सिर्फ ऊपर ऊपर से थी. श्मशान से लौटते हुए भीड़ में से कुछ लोगों ने तमिल इलाकों का रुख करना शुरू कर दिया. और तमिलों की बहुत सी दुकानों को जला डाला. तमिलों के क्रिकेट क्लब पर भी हमला हुआ. रात होते-होते अलग अलग इलाकों से तमिल घरों पर आगजनी और पत्थरबाजी की ख़बरें आने लगी. अगली दोपहर तक राष्ट्रपति आवास के ठीक सामने वाली तमिल दुकानों को भी आग के हवाले कर दिया गया. अगले 22 दिनों तक कोलंबो और श्रीलंका के अलग अलग इलाकों में तमिलों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया. इसमें सरकार के नेता और मंत्री भी शामिल थे. इस दौरान मतदाता लिस्ट में शामिल जानकारी का सहारा भी लिया गया. एक घटना ऐसी भी है जिसमें एक जेल के 25 तमिल कैदियों की हत्या कर दी गई. ये काम सिंहल कैदियों ने किया था, जिसमें उनकी मदद जेल के गार्ड्स ने की थी.
इंदिरा गांधी ने की जयवर्धने से बात
श्रीलंका और भारत के तमिलों के बीच पुराना रिश्ता है, इसलिए भारत में भी इस घटना का असर पड़ा. तमिल नाडु के नेताओं ने प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी से इस मसले में दख़ल देने की गुज़ारिश की. इंदिरा ने राष्ट्रपति जयवर्धने को फ़ोन किया और विदेश मंत्री पीवी नरसिम्हा राव को जयवर्धनेसे मुलाक़ात के लिए भेजा.

जयवर्धनेने कड़े कदम उठाने का भरोसा जताया लेकिन श्रीलंका में जुलाई महीने भर मौत का नंगा नाच चलता रहा. कई लोग भागकर भारत में शरण लेने पहुंचे. जो नहीं भाग पाए उन्होंने छिपकर या अपनी पहचान छिपा कर बचने की कोशिश की. अपनी किताब, द ट्रेजेडी ऑफ श्रीलंका में विलियम मैकगावन ने एक घटना का जिक्र किया है. वो लिखते हैं,
“भीड़ हर एक बस को चेक कर रही थी. एक बच्चे को उतार कर उन्होंने उसके हाथ पांव काट डाले, और वो यूं ही तड़प तड़प कर मरा. एक बस ड्राइवर को धमकी दी गई कि वो कम से कम एक तमिल आदमी भीड़ को सौंप दे. ड्राइवर ने डरकर एक औरत की ओर इशारा किया. बस में पीछे बैठी हुई वो औरत अपने माथे से कुमकुम मिटाने की कोशिश कर रही थी. भीड़ ने उसे बस से उतारकर उसका पेट कांच की टूटी बोतल से चीर डाला. उस पर पेट्रोल डाल कर जला दिया गया. इसके बाद वो लोग आग की उन लपटों के इर्द गिर्द नाचने लगे. एक दूसरी घटना में आठ और 11 साल की दो बहनों का रेप किया गया. जिसके बाद उनका सर काटकर उन्हें जला डाला गया. जब ये सब चल रहा था, कुछ बौद्ध साधु वहां आए और अपना हाथ उठाकर कहा, सभी तमिलों को मार डालो “
'बालदिया'
एक महीने चले इस नरसंहार का एक पन्ना पार्सले नरसंहार से भी लिया गया था. दंगाई गाड़ी रोक रोक कर हर एक से पूछ रहे थे, तुम सिंहल हो या तमिल. शुरुआत में कई लोगों के इस तरह मारे जाने के बाद, तमिल लोगों ने खुद को सिंहल बताना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने धार्मिक चिन्ह पहनने बंद कर दिए. इसके बाद दंगाइयों ने एक पासवर्ड ईजाद किया. ये पासवर्ड था- बालदिया. बालदिया सिंहल भाषा में बाल्टी को बोला जाता है. इस शब्द को बोलने में तमिलों की जबान अटकती थी. लोगों को रोककर उनसे ये शब्द बोलने को कहा जाता. जैसे ही कोई अटकता, उसे मौत के घाट उतार दिया जाता.

श्रीलंका में तमिल नरसंहार में करीब 3 हजार लोग मारे गए थे वहीं 25000 से अधिक घायल हुए थे.इसके बावजूद सरकार इसे नरसंहार मानने को तैयार नहीं थी. उनकी तरफ से बहाना दिया गया कि ये लोगों का गुस्सा था. इस घटना की जांच के लिए अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था International Commission of Jurists (ICJ) ने इस पर एक रिपोर्ट जारी की थी. 13 दिसंबर 1983 को जारी इस रिपोर्ट में इस घटना को एक नरसंहार की संज्ञा दी गई. रिपोर्ट के अनुसार इस घटना को सरकारी तंत्र की मदद से सुनियोजित ढंग से अंजाम दिया गया था. और नरसंहार में सरकार के कई मंत्री भी शामिल थे.
इस नरसंहार के दौरान हजारों तमिलों ने भागकर विदेशों में शरण ली. हजारों ने लिट्टे को चुना और यही घटना लिट्टे के ताकतवर बनने की एक बड़ी वजह बनी. इसी घटना ने बाद में तमिल पीस एकॉर्ड और राजीव गांधी की हत्या की जमीन भी तैयार की.
विडिओ देखें-एक अजीबोगरीब केस जब हत्या के सारे सबूत होने के बावजूद हत्यारा रिहा हो गया