The Lallantop

वो औरत, जिसकी वजह से बदल गई जयललिता की तकदीर

तमिलनाडुु की CM रहीं जयललिता का आज बर्थ डे है. उनके बचपन के वो चार किस्से.

post-main-image
फोटो - thelallantop

पढ़िए भारतीय राजनीति के इतिहास की एक बड़ी नेता जया के बचपन के चार किस्से...

1 जयललिता की सबसे बुरी रात

वो रात जब उसके पिता जयराम की मौत हुई. उस वक्त अम्मू (जयललिता का बचपन का नाम) सिर्फ दो साल की थी. धुंधली सी याद है उस रात की. जब बाप का शव घर लाया गया. वो पल उसे रह-रहकर याद आता रहा, क्योंकि इसके बाद उसकी जिंदगी बदल गई. मां वेदा अपने दोनों बच्चों, बेटे पप्पू और बेटी अम्मू को लेकर बाप के घर बेंगलुरु चली गईं. अम्मू के नाना रंगास्वामी आयंगर तमिलनाडु के श्रीरंगनम इलाके के पंडित थे, कट्टर. एचएएल में नौकरी मिली तो बेंगलुरु बस गए थे. यहीं पर अम्मू का बचपन बीता. मां ने भी शुरू में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में नौकरी की. मगर बाद में एक फिल्म प्रॉड्यूसर के संपर्क में आईं और हीरोइन बन गईं. हालांकि, इसके लिए अम्मू की मम्मी वेदा को बाप से बगावत करनी पड़ी.

2 मौसी ने बदली तकदीर

जयललिता की मौसी थीं अंबुजा. वो एयर होस्टेस बनीं, इस बात पर पिता बिगड़ गए और उन्हें अलग कर दिया. इसके बाद वो चेन्नई जा बसीं. यहीं फिल्मी करियर शुरू किया. जब बहन वेदा (अम्मू की मां) के बुरे दिन आए, तो अंबुजा ने उसे अपने पास बुला लिया. वेदा अपनी दीदी की सहूलियतें देख मुग्ध थीं. घर आने वाले प्रॉड्यूसर ने वेदा को देखा और छोटी बहन को भी हीरोइन का रोल ऑफर कर दिया और यहीं पर जयललिता की किस्मत की बुनियाद में पहला पत्थर पड़ा.

3 अम्मू क्यों सोई और रोई

जयललिता पढ़ाई में बहुत अच्छी थीं. अव्वल नंबर टाइप. मगर वो अपनी खुशी किसके साथ बांटें. ले देकर पप्पू था, जिसे बतातीं. मगर वो छोटा था. और मां जिनका फिल्मी दुनिया में आने के बाद नाम संध्या हो गया था, भयानक बिजी रहती थीं. एक दिन स्कूल में अम्मू ने निबंध लिखा. मां के ऊपर. अम्मू को ईनाम मिला. पूरी क्लास को पढ़कर सुनाया. अम्मू घर लौटी. बस इस इंतजार में थी कि मां लौटें तो ये बताए. मगर मां नहीं आईं. एक दिन नहीं आईं. दो दिन नई आईं. वो कहीं शूटिंग में बिजी थीं.

जब लौटीं तो देखा बिटिया के गाल के आंसू सूख चुके हैं. आंखें सूज कर सुस्ताने के लिए सो चुकी हैं. संध्या ने बेटी को जगाया. उसकी पेशानी चूमी और कहा. बहुत अच्छा लिखा. अब मैं कभी देर से नहीं आऊंगा. मगर ये सिर्फ शब्द थे. सिनेमा में कहे गए संवादों के जैसे. मां के अपने पेशे की वजह से साथ न होने के चलते जयललिता भीतर से जटिल होना शुरू हो गईं. याद रखिए, बाद में भी ये उनके व्यक्तित्व का सबसे निर्णायक पक्ष साबित हुआ. किसी एक से टूटकर प्यार. उसकी स्वीकृति की चाह. फिर चाहे वह एमजीआर हों या उनसे ब्रेकअप के बाद एक और हीरो.

4 दोस्त का बॉयफ्रेंड, जया की बदनामी

एक लड़की थी. पड़ोस में रहती थी. जया की उससे दोस्ती हो गई. वो जयललिता के घर आती. बतियाती. मगर असल कहानी कुछ और थी. उस लड़की का बॉयफ्रेंड जया के बगल वाले फ्लैट में रहता था. वो बालकनी में आ जाता. इशारों में बात होती. एक रोज फ्रेंड नहीं आई. जया बालकनी में बताने चली गई. मोहल्ले ने देख लिया. हल्ला मच गया. ये कि जया बदचलन है. सहेली चुप रही. जया ने चुपचाप सबक लिया. दोस्तों पर भरोसा न करो. सबक तोड़ा. बहुत साल बाद. अपने बंगले के पास वीडियो कैसेट का पार्लर चलाने वाली औरत से दोस्ती की. शशिकला. जब जयललिता अस्पताल में जूझ रही थीं, तब भी बस शशिकला ही उनके साथ थी. बीच में अलग हुईं. फिर लौटीं. कई बार ये रिश्ता रेखा और उनकी सेक्रेट्री फरजाना का सा लगता है. दो महिलाएं. एक दूसरे के लिए भावनात्मक संबल की तरह. जबकि बाहर की दुनिया इनको लेकर कई भद्दी बातें करती रहती है.