"सीरिया में स्वतंत्र चुनाव होने चाहिए, जिससे यहां के लोग अपने नए राष्ट्रपति को चुन सकें." ये शब्द हैं सीरिया के प्रधानमंत्री मोहम्मद अल-जलाली के. बीते कुछ दिनों से सीरिया में विद्रोहियों और राष्ट्रपति बशर-अल-असद की सेना के बीच खूनी संघर्ष चल रहा था. 8 दिसंबर को इस संघर्ष पर पूर्ण विराम लग गया. खबर आई कि राष्ट्रपति बशर-अल-असद देश छोड़ कर भाग गए हैं. फिर शाम तक रूस के विदेश मंत्रालय की ओर से एक बयान आया जिसमें कहा गया कि बशर-अल-असद ने सीरिया छोड़ने से पहले इस्तीफा दे दिया था. हालांकि बशर-अल-असद के इस्तीफे की कोई पुष्टि और किसी ने नहीं की है. बशर-अल-असद, उनकी पत्नी आसमां और उनके 2 बच्चे कहां है, ये अभी तक पता नहीं चल सका है. हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि असद परिवार ने मॉस्को में शरण ली है.
HTS: वो संगठन जिसने सीरिया में 54 साल से चल रहे असद परिवार के शासन को उखाड़ फेंका
Bashar-Al-Assad के Syria छोड़ने के साथ ही पूरे 53 साल, 8 महीने और 28 दिनों बाद सीरिया की सत्ता Assad Family के हाथ से चली गई है. असद परिवार को लेकर खबरे हैं कि उन्होंने Russia में शरण ली है.

बशर-अल-असद के देश छोड़ने के साथ ही पूरे 53 साल, 8 महीने और 28 दिनों से सीरिया की सत्ता पर काबिज असद परिवार को सीरिया से भागना पड़ा है. देश का भविष्य क्या होगा, ये तो आने वाले दिनों में पता चलेगा, पर इस वक्त पूरी दुनिया की नजर सीरिया पर है. 2011 से गृहयुद्ध झेल रहे इस देश में क्या अब शांति होगी? यही सबसे बड़ा सवाल है.

इस बीच पूछा जा रहा है एक सवाल कि आखिर कौन हैं ये लड़ाके जिन्होंने 5 दशक से सीरिया की सत्ता पर काबिज असद परिवार को सत्ता से उखाड़ फेंका है. इस विद्रोह में सबसे प्रमुखता से जिस संगठन का नाम लिया जा रहा है, वो है हयात-तहरीर-अल-शाम (Hayat-Tahrir-Al-Sham) या HTS. तो समझते हैं कि कब और कैसे शुरुआत हुई सीरिया में हिंसा और गृह युद्ध की? और कौन हैं हयात-तहरीर-अल-शाम?
27 नवंबर से शुरू हुए विद्रोह में सीरियन मिलीशिया के लड़ाके एक-एक करके शहरों पर कब्जा करते गए. इस विद्रोह में गुट कोई भी हो, चाहे इसे कोई भी देश सपोर्ट करता हो, पर इसकी नींव 2011 में ही पड़ गई थी. ये सब शुरू हुआ था दीवार पर लिखे कुछ शब्दों की वजह से. दीवार पर लिखे इस एक वाक्य से सीरिया में एक ऐसा युद्ध शुरू हुआ, जिसने लाखों जिंदगियों को उजाड़ कर रख दिया.

दरअसल असद परिवार 1971 से ही सीरिया की सत्ता पर काबिज था. साल 2000 में राष्ट्रपति हाफ़िज़-अल-असद की मौत हुई. हाफ़िज़ का शासनकाल निरंकुशता की मिसाल था. उनके बड़े बेटे की एक दुर्घटना में मौत हो चुकी थी. लिहाजा सत्ता आई उसके छोटे बेटे बशर-अल-असद के पास. लोगों को लगा कि बशर-अल-असद शायद अपने पिता से बेहतर शासक होंगे. लोगों की आवाज सुनेंगे. और इसकी वजह थी बशर-अल-असद का डॉक्टर होना.

बशर-अल-असद लंदन में मेडिकल स्टूडेंट थे. पढ़ाई के बाद वहीं पर अपनी डॉक्टरी की प्रैक्टिस भी कर रहे थे. कहा जाता है कि राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी. पर बड़े भाई की मौत के बाद वो सीरिया लौट आए और देश की कमान संभाली. लोगों को लगा था कि एक नौजवान डॉक्टर के हाथ में देश की सत्ता आई है तो स्थिति शायद कुछ बेहतर हो. पर डॉक्टर का कार्यकाल इसके ठीक उलट निकला. उसने अपने पिता की तरह ही निरंकुश और क्रूर शासन जारी रखा. फिर समय बीतता है और आता है साल 2011.
यहीं कहानी में एंट्री होती है सीरिया के डेरा शहर में रहने वाले एक बच्चे की. उस बच्चे का नाम था ‘मुआविया स्यासनेह’. 2011 वही साल था जब अरब के कई देशों में एक तरह से आग लगी हुई थी. ट्यूनीशिया में एक फल बेचने वाले दुकानदार के आत्मदाह से उपजी क्रांति ने ऐसी आग पकड़ी. जिसने अरब में कई सालों से राज कर रहे सत्ताधीशों की कुर्सी तोड़ दी. ट्यूनीशिया के बाद मिस्र में होस्नी मुबारक, लीबिया में कर्नल गद्दाफ़ी जैसे कई तानाशाहों को जनता ने कुर्सी से उखाड़ फेंका. क्रांति की इस लहर को नाम दिया गया अरब स्प्रिंग.

रेडियो पर मुआविया भी ये सब खबरें सुन रहा था. उसे लगा कि जब और देशों में ऐसा हो सकता है तो हमारे सीरिया में भी हो सकता है. पर वो सिर्फ एक बच्चा था, हथियारबंद क्रांति या लड़ाई उसके बस में थी नहीं तो उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक प्लान बनाया. मुआविया और उसके दोस्तों ने कुछ पैसे जोड़कर स्प्रे वाला पेन खरीदा, और अपने स्कूल की दीवार पर एक वाक्य लिखा “Its Your Turn Doctor.” यानी अब तुम्हारी बारी है डॉक्टर. डॉक्टर, बशर-अल-असद का निकनेम भी था.
शहर के सिक्योरिटी चीफ आतिफ नजीब को जब ये बात पता चली तो भड़क उठा. नजीब 2008 से डेरा का सिक्योरिटी चीफ था. वो राष्ट्रपति का रिश्तेदार भी था. डेरा को वो अपने साम्राज्य की तरह चलाता था. लिहाजा उसने दीवार पर लिखे उस वाक्य को बहुत गंभीरता से लिया. उसने पूछताछ शुरू की पर कुछ पता नहीं चला. इसके बाद नजीब के आदेश पर पुलिस ने हर उस बच्चे को उठाना शुरू किया जिसका नाम कभी भी उस दीवार पर लिखा गया था.
मुआविया को भी पुलिस ने तड़के 4 बजे घर से उठा लिया. पुलिस ने इन सारे बच्चों को खूब टॉर्चर किया. कपड़े उतार कर पीटा, नाखून उखाड़ लिए गए. करीब 6 हफ्तों तक ये टॉर्चर चला. जब भी इन बच्चों के घरवाले पुलिस स्टेशन जाते तो उन्हें भगा दिया जाता था. जब घरवाले बच्चों से मिलने की जिद करते तो पुलिस वाले बेशर्मी से भरा एक जवाब देते,
“अगर बच्चे चाहिए तो और पैदा कर लो, और न कर पाओ तो अपनी औरतों को हमारे पास भेज दो.”
पुलिसवालों की इन हरकतों की वजह से लोगों के सब्र का बांध टूट गया. वो लोग जो अबतक गुहार लगा रहे थे, वो अब सड़कों पर उतर आए. उन्होंने खुलकर असद सरकार का विरोध शुरू कर दिया. पुलिस ने इन प्रदर्शनों को दबाने के लिए बल प्रयोग किया. पर स्थिति और बेकाबू होती गई. ये प्रदर्शन फैलते-फैलते अलेप्पो, रक्का और राजधानी दमिश्क तक पहुंच गया. ये सब देख बशर-अल-असद ने अपने कुछ लोगों को डेरा भेजा. उन लोगों ने शहर के बुजुर्गों से बात की और एलान किया कि सारे बच्चों को छोड़ दिया जाएगा.

जब बच्चों को रिहा किया गया तो लोगों ने देखा कि उनके पूरे शरीर पर चोट के निशान था. वो ठीक से अपने पैरों पर खड़े भी नहीं हो पा रहे थे. ये सब देख लोगों का गुस्सा और भड़क गया. प्रदर्शन बढ़ते गए पर बशर-अल-असद सत्ता के नशे में चूर था. उसने लोगों को रोकने के लिए सेना उतार दी. लोगों पर बल प्रयोग किया. इस ज्यादती को देख कर सेना का एक गुट भी बशर-अल-असद के खिलाफ हो गया. वो सेना छोड़कर विद्रोहियों से जा मिला. और इन्हीं विद्रोहियों ने मिलकर बनाई Free Syrian Army, FSA.
जल्द ही इस गुट को विदेशी समर्थन भी मिलने लगा. अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने FSA को हथियार और ट्रेनिंग दी. वहीं धार्मिक आधार पर तुर्किए, सऊदी अरब और कतर ने भी इनकी मदद की. क्योंकि ये सभी सुन्नी इस्लाम वाले देश थे जबकि बशर-अल-असद का ताल्लुक इस्लाम के शिया अलावी संप्रदाय से था. उधर शिया देश होने की वजह से ईरान ने बशर-अल-असद की मदद की. लेबनान के हिजबुल्लाह ने भी अपने लड़ाके भेजे. रूस जो कि सीरिया का पुराना दोस्त था, उसने भी बशर-अल-असद की मदद की.

और इस तरह सीरिया में शुरुआत हुई गृहयुद्ध की. इस बीच 2014 के दरम्यान इस्लामिक स्टेट ने भी सीरिया में चल रहे संघर्ष का फायदा उठाते हुए अपना विस्तार सीरिया में कर दिया. उसने रक्का को अपनी राजधानी घोषित कर दिया. ये सब लगातार जारी था. फिर कैलेंडर पर साल आया 2024 का. सीरिया के विद्रोहियों ने देखा कि ईरान-इजरायल के बीच तनाव चरम पर है. साथ ही रूस भी यूक्रेन के साथ जंग लड़ रहा है. ऐसे में विद्रोही गुटों ने 27 नवंबर से अपना मिशन शुरू किया. और अंततः बशर-अल-असद को सीरिया छोड़कर भागना पड़ा. इन विद्रोही गुटों में जो सबसे प्रमुख नाम है, वो है हयात-तहरीर-अल-शाम का.
हयात-तहरीर-अल-शामइस ग्रुप के लीडर का नाम अबु मोहम्मद अल-जुलानी है. अबु मोहम्मद अल-जुलानी का जन्म 1982 सऊदी अरब में हुआ था. बाद में वो सीरिया की राजधानी दमिश्क आ गया. उससे पहले जुलानी के दादा गोलान हाईट्स में रहते थे. ये वही इलाका है जहां इजरायल-सीरिया की सीमा मिलती है. 1967 में जब अरब-इजरायल युद्ध हुआ तो जुलानी के दादा वहां से चले गए. जुलानी एक ऐसा इंसान था जो बचपन से ही संघर्ष और जंग देखते हुए बड़ा हुआ था. अरब की सियासत और इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष ने उस पर अपनी गहरी छाप छोड़ी थी.

साल 2000 में हुए दूसरे इंतिफादा में भी उसकी भूमिका रही. फिर जब 2003 में अमेरिका ने इराक़ में अपनी सेना उतारी, उस समय जुलानी बग़दाद चल गया और अमेरिका के खिलाफ जंग लड़ने लगा. 2013 में अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट ने उसे ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर दिया.

अब चूंकि देश में गृहयुद्ध जारी था, और इसी गृहयुद्ध के दौरान एक क्रूर आतंकी संगठन को यहां अपने पैर जमाने का मौका मिल गया. ये संगठन था इस्लामिक स्टेट. 2013-14 के दौरान ISIS चीफ अबु बक्र अल बगदादी ने अल-जुलानी को इराक से सीरिया भेजा. इस्लामिक स्टेट की ब्रांच स्थापित करने. इसी को नाम दिया गया जबात अल-नुसरा फ्रन्ट का नाम दिया गया. इस ग्रुप का उद्देश्य था 2011 में भड़के गृहयुद्ध के दौरान बशर-अल-असद की सेना से लड़ाई. अल-जुलानी बगदादी का लेफ्टिनेंट था. अब यहां गौर करने वाली बात ये है कि इस्लामिक स्टेट भी अल-कायदा के ही लड़ाकों का गुट था.
इस बीच जुलानी और इस्लामिक स्टेट के सरगना अबु-बकर-अल-बग़दादी के बीच मतभेद हुए और जुलानी ने अपने संगठन को पड़ोसी मुल्क इराक में अल-कायदा का एक स्वतंत्र फ्रन्ट घोषित कर दिया. 2016 में संगठन का नाम बदला और नया नाम रखा जबहत-फतह-अल-शाम. जबकि इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक साल 2017 में कई अन्य समूहों के साथ विलय के बाद इस ग्रुप का नाम हयात तहरीर अल-शाम (HTS) हो गया.

इस बीच इस्लामिक स्टेट के पांव उखड़ने शुरू हो चुके थे. 2017 आते-आते जबहत-फतह-अल-शाम ने सीरिया के कुछ और हथियारबंद गुटों से हाथ मिला लिया और यहीं से नींव पड़ी इस नए संगठन हयात-तहरीर-अल-शाम (HTS) की. जिसके बैनर तले विद्रोहियों ने बशर-अल-असद सरकार को उखाड़ फेंकने की मुहिम शुरू की. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस गुट को तुर्किए और कतर जैसे देश सपोर्ट करते हैं.
फिलहाल सीरिया में सबसे ताकतवर गुट इसी को माना जा रहा है. चूंकि बशर अल असद शिया अलावी थे और ये संप्रदाय सीरिया में अल्पसंख्यक हैं. फिर भी असद परिवार के हाथ में सत्ता होना इन्हें नागवार गुजरता था. ये गुट भले ही अल-कायदा से अलग हो गया हो, पर इसके फुट सोल्जर्स आज भी वही कट्टरपंथी सुन्नी लड़ाके हैं जो शिया समुदाय से नफरत करते हैं. यानी कुल मिलाकर देखें तो हयात-तहरीर-अल-शाम कोई एक संगठन नहीं बल्कि कई सारे संगठनों का साझा गुट है. अब तक इन सबका लक्ष्य था बशर-अल-असद को सत्ता से हटाना. पर अब इन गुटों के बीच सत्ता और पावर शेयरिंग को लेकर आपसी विवाद की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
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लेटेस्ट अपडेट देखें तो सीरिया में तख्तापलट के बाद देशभर में विद्रोही जश्न मना रहे हैं. वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सीरिया के ताजा घटनाक्रम को ऐतिहासिक करार दिया है. बाइडन के मुताबिक असद शासन का पतन सीरियाई लोगों के लिए ऐतिहासिक अवसर का क्षण है.
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