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संगीत, सादगी और सन्नाटा; अभिनेत्री और गायिका सुलक्षणा पंडित का वो आखिरी सुर जिसने सबको रुला दिया

Sulakshana Pandit death: सुलक्षणा पंडित ने 6 नवंबर 2025 को उसी तारीख को दुनिया छोड़ी, जिस दिन उनके प्रेम संजीव कुमार गए थे. आवाज़ और सादगी की ये मूरत अब खामोशी में भी गूंजती रहेगी. “तू ही सागर, तू ही किनारा…”

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सुलक्षणा पंडित: सुरों की रानी, अधूरी मोहब्बत की कहानी

"वो जो कभी पर्दे पर मुस्कान बिखेरती थी, अब खामोशी ओढ़कर चली गई..." गुरुवार, 6 नवंबर 2025 की रात संगीत थम गया. 71 साल की उम्र में सुलक्षणा पंडित ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. एक ऐसी आवाज़, जो कभी “तू ही सागर तू ही किनारा” गाकर लाखों दिलों में उतर गई थी. एक चेहरा जो 70 के दशक की सबसे मासूम मुस्कान लेकर पर्दे पर आया था. अब वो मुस्कान हमेशा के लिए रुक गई.

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कभी अपने सुरों से पर्दे पर जादू रचने वाली सुलक्षणा, अपने आखिरी वक्त में गुमनामी की दुनिया में थीं. वही इंडस्ट्री जिसने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया था, आखिर में पूछने वाला भी कोई न रहा.

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यादगार रहेगी सुलक्षणा पंडित की दास्तान (फोटो- एएनआई)
संगीत में जन्म, फिल्मों में सफर

सुलक्षणा पंडित का जन्म 12 जुलाई 1954 को रायगढ़ में हुआ था. घर संगीत से भरा था. पिता प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक प्रभाकर पंडित और चाचा पंडित जसराज. यानी संगीत उनके DNA में था.

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बचपन से ही रियाज़, हारमोनियम और सुरों का संग. नौ साल की उम्र में मंच पर पहली बार गाया, और फिर ज़िंदगी उसी सुर में बहती चली गई. उनकी आवाज़ में मिठास थी, ग़म था और अजीब सी गहराई.

फिल्म ‘संकल्प’ का गाना “तू ही सागर तू ही किनारा” आज भी रेडियो पर बजे तो आंखें नम हो जाती हैं. उसी दौर में उन्होंने ‘परदेसिया ये सच है पिया’ और ‘बेमिसाल’ जैसे गाने दिए, जो आज भी पुराने संगीत के चाहने वालों के दिल में जिंदा हैं.

पहला ब्रेक और एक्टिंग का जादू

गायकी के बाद उन्होंने अभिनय में भी हाथ आजमाया. 1975 में फिल्म ‘उलझन’ आई, जिसमें उनके साथ थे संजीव कुमार. और बस, सुलक्षणा का चेहरा रातों-रात पहचान बन गया.

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फिल्म उलझन में मिला ब्रेक

‘अपनापन’, ‘फरीबी’, ‘वक़्त की दीवार’, ‘कुली’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी पहचान मजबूत की. नाजुक चेहरा, नरम आवाज़ और मासूम आंखें — यही उनकी पहचान बन गई.

प्यार जो अधूरा रह गया: संजीव कुमार वाला किस्सा

सुलक्षणा की जिंदगी का सबसे बड़ा किस्सा, उनका प्यार था. कहा जाता है कि वो संजीव कुमार से बेपनाह मोहब्बत करती थीं. फिल्म ‘उलझन’ के सेट से शुरू हुआ वो रिश्ता, धीरे-धीरे उनकी जिंदगी बन गया.

उन्होंने शादी का प्रस्ताव भी दिया. मगर संजीव कुमार ने इंकार कर दिया. शायद इसलिए कि उनका दिल पहले ही हेमा मालिनी के नाम पर हार चुका था. 

सुलक्षणा ने फिर कभी शादी नहीं की. उन्होंने कहा था,

जिसे चाहा वही नहीं मिला, अब किसी और को क्या चाहना.

वो बस वही अधूरा प्यार लेकर ज़िंदगी गुजारती रहीं. संजीव कुमार की मौत 6 नवंबर 1985 को हुई थी. और अजीब इत्तेफाक ये कि सुलक्षणा का निधन भी ठीक उसी तारीख को, 6 नवंबर, 2025 को हुआ. जैसे किसी अधूरी मोहब्बत ने आखिर 40 साल बाद उन्हें अपने पास बुला लिया हो.

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स्टारडम से गुमनामी तक

एक वक्त था जब सुलक्षणा के सुर हर संगीत कार्यक्रम में गूंजते थे. मगर वक्त के साथ बॉलीवुड बदल गया. नए चेहरे, नए गायक आए. धीरे-धीरे वो फिल्मों से दूर होती गईं. प्यार का खालीपन, करियर का टूटना और परिवार की ज़िम्मेदारियां, इन सबने उन्हें तोड़ दिया. कहा जाता है कि आखिरी कुछ सालों में वे बीमार रहीं, चलने-फिरने में तकलीफ थी, और ज़्यादातर वक्त घर में अकेले बिताती थीं.

लेकिन विरासत अमर है

सुलक्षणना पंडित भले अब इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनका सुर, उनका दर्द और उनका प्यार- सब जिंदा है. जब भी कोई “तू ही सागर तू ही किनारा” गुनगुनाता है, तो सुलक्षणा की वही आंखें याद आती हैं. जिनमें अधूरी मोहब्बत की नमी थी, और सुरों की मिठास भी.

वो गई हैं, लेकिन गूंज अब भी बाकी है. कभी ग़ौर से सुनो तो लगेगा, जैसे कहीं पास में कोई धीमे से कह रहा है- “तू ही सागर, तू ही किनारा…”

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