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जाड़े में भी मां साइकिल पर बिठा बेटी को 8KM दूर प्रैक्टिस के लिए ले जाती थी

गोल्ड जीतने पर इनके आंसू इनके संघर्ष की कहानी को बयां कर जाते हैं.

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गोल्ड जीतने के बाद स्वप्ना बर्मन.
पहले आप एक बेटी के जीतने की ख़ुशी में एक मां का सेलिब्रेशन देखिए. वो इतनी खुश है कि पूरा मैच भी नहीं देख पाती. बीच में ही मंदिर की ओर दौड़ पड़ती है और भगवान का शुक्रिया अदा करती है.
ये आंसू सिर्फ ख़ुशी के आंसू नहीं हैं बल्कि इनके साथ बरसों का वो दुख भी धुल रहा है जो मुफलिसी के दौर में मेहनत करते वक़्त कभी ज़ाहिर नहीं किया गया. ये ख़ुशी सिर्फ एक तरफा नहीं है बल्कि बेटी ने भी जीतने के बाद कुछ ऐसे ही जश्न मनाया और उसकी आंखों से भी आंसू निकल आए. क्या ये रोना अनायास है या इनके पीछे कुछ कहानी है. ये कहानी है जकार्ता में गोल्ड मेडल जीतने वाली स्वप्ना और उनके संघर्ष की. इस रोने वाली घटना का बैकग्राउंड जानने के लिए हमने स्वप्ना के भाई पबित्र बर्मन से बात की और स्वर्ण जीतने वाली इस एथलीट के जीवन के बारे में जानने की कोशिश की.
जीतने ले बाद स्वप्ना ख़ुशी से रो पड़ी.
जीतने ले बाद स्वप्ना ख़ुशी से रो पड़ी.

मां भोर में 8 km साइकिल चलाकर प्रैक्टिस के लिए ले जाती थी 

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स्वप्ना भारत के बहुत से खिलाड़ियों की तरह मुश्किलों का सामना करके सफल हुई हैं. वो बेहद गरीब परिवार से संबंध रखती हैं. पापा रिक्शा चलाते हैं और मां सीजन में चायबगान में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करती हैं .स्वप्ना के भाई पबित्र ने बताया कि उनकी मां दीदी को सर्दियों में आठ किलोमीटर साइकिल चलाकर जलपाईगुड़ी के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स छोड़कर आती थी. जान निकाल देने वाले खेल और दैनिक भागदौड़ के बावजूद स्वप्ना कभी हताश नहीं हुई. परिवार की स्थिति सुधारने और एक चैंपियन बनने की जिद हमेशा से उनके अंदर रही. पबित्र के मुताबिक स्वप्ना बेहद जिद्दी हैं. जबतक अपनी रोज़ की प्रैक्टिस पूरी नहीं कर लेती थी तब तक घर की ओर नहीं आती थी.

अपनी प्रतिभा को स्वप्ना ने बचपन में ही पहचान लिया था. उन्होंने सात साल की उम्र से खेलना शुरू कर दिया था. शुरू से उनका रुझान दौड़ने और एथलेटिक्स की तरफ था. फिर जब उन्हें हेप्टाथलॉन के बारे में पता चला तो इसे समर्पित हो पूरी लगन के साथ तैयारी शुरू कर दी. उनके भाई ने हमें बताया कि लोगों ने उनको पीछे खींचने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्होंने कभी किसी की बातों की तरफ गौर नहीं किया. उनका पूरा जोर अपने खेल पर था. किसी घटना विशेष के बारे में पूछने पर उन्होंने हंसकर बस इतना कहा कि स्वप्ना ने सोना जीता तब उसका नाम हुआ है, उल्टा-सीधा बोलने वालों का नाम ऐसे ही नहीं ले सकते, नाम करने के लिए सोना जीतना पड़ेगा.
जब जूते खरीदने के लिए पैसे उधार लेने पड़े थे
स्वप्ना को अपने पैर के आकर के जूते ढूंढने में भी काफी दिक्कतें आई. दरअसल उनके दोनों पैरों में 6 उंगलियां हैं, जिसके चलते कोई भी जूता फिट नहीं बैठता. और इसके लिए उन्हें अपने लिए स्पेशल जूते बनवाने पड़ते हैं जो काफी महंगे पड़ते हैं. स्वप्ना अपने से ये जूते अफोर्ड नहीं कर सकती थी. इसके लिए भी उन्हें पैसे उधार लेकर जूते बनवाने जाना पड़ता था.
गोल्डन गर्ल स्वप्ना.
गोल्डन गर्ल स्वप्ना.

अब नेता बधाई देने आ रहे हैं:
सोना जीतने के बाद स्वप्ना के घर बधाई देने वालों की लाइन लगी हुई है. पबित्र के बताया कि परिवार में ख़ुशी का माहौल है, साथ ही आस-पड़ोस के लोग और नेता भी शुभकामनाएं देने पहुंच रहे है. स्वप्ना के जीतते ही सोशल मीडिया पर उन्हें बधाईयां मिलनी शुरू हो गई थी. उनकी जीत पर ख़ुशी ज़ाहिर करने वालों में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल थी. उन्होंने बधाई के साथ ये भी कहा कि आपने हमें गौरवान्वित किया है. मुख्यमंत्री ही नहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वप्ना की इस जीत पर उन्हें बधाई दी.

कोच बने सबसे बड़ा सहारा:

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स्वप्ना के टैलेंट को पहचानने वालों में सबसे पहला नाम उनके कोच सुकांत सिन्हा का है. वो बचपन से ही उनके कोच रहे हैं और करीब सात साल उन्हें तराशते रहे. इसके बाद शुभा सरकार ने उन्हें अपनी छत्रछाया में लिया और दिल्ली की राह पकड़ाई. दिल्ली आकर भी स्वप्ना की समस्याएं कम नहीं हुई लेकिन कोच से लगातार मिलता सहारा और मोटिवेशन उन्हें थकने नहीं देता था. 2014 के एशियन गेम्स में स्वप्ना चौथे स्थान पर रही थी. वो चाहती तो हार मान सकती थी लेकिन टूटे जबड़े के साथ एशियन गेम्स में चौथे नंबर से सोने तक का सफ़र तय करने के लिए जिस पोटास की जरूरत होती है वो इस खिलाड़ी में कूट-कूट कर भरा है. स्वप्ना ने अपने सपने को साकार कर भारत में मिसाल कायम कर दी है, और मिसालें भुलाई नहीं जाती दी जाती हैं.

क्या होता है हेप्टाथलॉन?

ये मुमकिन है कि आपने कभी इस खेल का नाम ना सुना हो. अगर नहीं सुना तो कोई बात नहीं, हम आपको बताएंगे क्या बला है ये हेप्टाथलॉन. दरअसल, ये खेल कोई अकेला खेल नहीं है बल्कि सात अलग-अलग खेलों का एक समूह है. हेप्टा एक ग्रीक शब्द है जिसका मतलब ही होता है, सात. हेप्टाथलॉन में भाग लेने वाले खिलाड़ी को सातों इवेंट्स में हिस्सा हिस्सा लेना होता है जिसके बाद सभी खेलों में जुटाए गए पॉइंट्स को जोड़कर फाइनल लिस्ट तैयार होती है और विजेता तय किया जाता है. जो सात खेल हेप्टाथलॉन के अंतर्गत शामिल हैं वो इस प्रकार हैं, 100 मीटर हर्डल दौड़, हाई जंप, शॉट-पुट, 200 मीटर रेस, लंबी कूद, जेवलिन थ्रो और 800 मीटर दौड़.

पुरुष और महिला खिलाड़ियों के लिए इस ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में खेल अलग-अलग होते हैं. पुरुष इवेंट में 60 मीटर रेस, लंबी कूद, शॉट पुट, हाई जंप, 60 मीटर हर्डल, पोल वॉल्ट और 1 किलोमीटर रेस शामिल है. ये इवेंट दो अलग-अलग दिन होते हैं और सारे खेल हो चुकने के बाद ही विनर का फैसला होता है.

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