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कहानी कश्मीर की कोटा रानी की, जो झांसी की रानी और पद्मावती का मिलाजुला रूप थी

जिन पर अब एक फिल्म बन रही है.

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कोटा रानी.
"ऑक्टेवियन, जब मैं मरने के लिए तैयार होऊंगी तब मर जाऊंगी."
क्लियोपेट्रा ने ऑगस्टस से कहा. ऑगस्टस की रोमन सेना जीत चुकी थी. इज़िप्ट हार गया था. विजेता से मिलकर क्लियोपेट्रा अपने चैंबर में लौटी. उसने आत्महत्या कर ली. उसकी नीयति में लिख गया- मिस्त्र की आख़िरी रानी. महान मेसिडोनिया साम्राज्य का अंतिम सिरा. क्लियोपेट्रा क्लीशेड है. उसकी खूबसूरती, उस खूबसूरती के पीछे का उसका चालाक दिमाग, उसकी पावर. ये सब क्लीशेड हैं. क्लीशेड माने ऐसी चीज, जो इतना इस्तेमाल हो चुकी है कि उसका ज़िक्र अब थका देता है. एक ही कहानी कितनी बार सुनाई जाए. और भी तो कहानियां हैं. सो आज हम लाए हैं नई कहानी. कश्मीर की कोटा रानी. ऐसी हसीन, ऐसी हसीन कि आंखों को न हो यकीन. मगर कोटा की कहानी में हुस्न के अलावा भी बहुत कुछ है. समझो, वो एक खजाना है. जिसपर एक फिल्म बनने वाली है. फैंटम और रिलायंस, दोनों मिलकर फिल्म ला रहे हैं. लॉन्ग लॉन्ग टाइम अगो... ये 13वीं और 14वीं सदी के कश्मीर की कहानी है. एक से एक कमज़ोर राजा. जिसका फायदा उठाकर विदेशी कश्मीर में घुसने लगे. इनमें से एक था शाह मीर. दूसरा रिनचन. आज जहां बारामुला है, उसी के पास एक गांव को ठिकाना बनाया शाह मीर ने. और रिनचन बस गया लार घाटी में. रिनचन लद्दाख से आया था. बौद्ध था. उसके पिता वहां सरदार थे. सत्ता की लड़ाई में मार डाले गए थे. इस वक़्त कश्मीर का राजा था सुहादेव का. उसने शाह मीर और रिनचन, दोनों को जागीरें दी. इन दोनों का नाम कश्मीर के इतिहास से जुड़ने वाला था. हज़ारों के हत्यारे का न्याय किया कुदरत ने साल 1320. मंगोल हमलावर दुलाचा. तुर्कमेनिस्तान का रहने वाला. दुलाचा ने कश्मीर पर हमला किया. सुहादेव नकारा शासक था. दर्रों पर कोई पहरेदारी नहीं. दुलाचा को रोकने वाला कोई नहीं था. वो जोज़िला के रास्ते घाटी में घुसा. कायर सुहादेव अपनी प्रजा को छोड़कर किस्तवार भाग गया. दुलाचा और उसकी मंगोल फौज ने गांव के गांव जलाए. नरसंहार किया. जो हाथ लगा, मारा गया. औरतें-बच्चे ग़ुलाम बनाकर बेच डाले गए. करीब आठ महीनों तक दुलाचा और उसकी फौज कश्मीर को रौंदती रही. फिर सर्दियां आ गईं. दुलाचा लौट गया. कहते हैं, रास्ते में दर्रा पार करते हुए उसके हिस्से आई भयंकर बारिश. और बर्फीला तूफान. दुलाचा और उसकी पूरी फौज मारी गई. जिनको ग़ुलाम बनाकर ले जा रहा था, वो कैदी भी मारे गए. एक थी रानी... दुलाचा चला गया था. मगर अपने पीछे एक बर्बाद कश्मीर छोड़ गया था. रिनचन ने इस बर्बादी का फायदा उठाया. उसने गद्दी हथियाने की कोशिश की. रिनचन के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा थे रामचंद्र. सुहदेव के मंत्री. रिनचन ने रामचंद्र को मरवा दिया और राजसिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया. राजपाट तो मिल गया उसे, मगर जनता में नाराज़गी थी. उन्हें शांत करने के इरादे से रिनचन ने रामचंद्र की बेटी से शादी कर ली. यहीं से इस कहानी में एंट्री करती है कोटा रानी. अपूर्व सुंदरी. अद्भुत आकर्षण. बौद्ध राजा, हिंदू होना चाहा, मुसलमान हो गया. रिनचन बौद्ध था. उसने सोचा, हिंदू हो जाए तो प्रजा ज्यादा कनेक्टेड महसूस करेगी. रिनचन ने हिंदू धर्म अपनाने की कोशिश की. मगर कश्मीरी पंडित राज़ी नहीं हुए. इसके बाद रिनचन को मिले बुलबुल शाह. इस्लाम के प्रचारक. उनके असर में रिनचन मुसलमान हो गया. टाइटल रखा, सुल्तान सदर-उद-दीन. और इस तरह कश्मीर को अपना पहला मुस्लिम शासक मिला. राजा मर गया. रानी रह गई. रिनचन ने राजकाज चलाने में कोटा की भी मदद ली. ज़्यादातर जगहों पर यही मिलता है कि रिनचन ने शासन और प्रशासन, दोनों के स्तर पर अच्छा काम किया. साल 1323. रिनचन की मौत हो गई. किसी दुश्मन के वार से सिर में एक चोट लगी. बहुत इलाज करवाया. बहुत देखभाल हुई. मगर वो बच नहीं सका. रिनचन मर गया. पीछे रह गई पत्नी कोटा रानी और बेटा हैदर. गद्दी राजा की. राज रानी का. हैदर छोटा था. इसके आगे की हिस्ट्री की दो कहानियां मिलीं. पहली ये कि मौका देखकर सुहदेव के भाई उदयनदेव ने राजपाट हासिल करने की कोशिश की. कोटा रानी को लगा कि अभी उनकी हालत ऐसी नहीं कि उदयनदेव की सेना को हरा सकें. इसीलिए कोटा ने लड़ाई टालने के लिए उदयनदेव को गद्दी दे दी. और फिर उदयनदेव से शादी कर ली. कहानी का दूसरा वर्ज़न कहता है कि कोटा और रिनचन का बेटा हैदर छोटा था. तो दरबारियों ने उदयनदेव को राजगद्दी संभालने का न्योता भेजा. उदयनदेव राजा बना. फिर उसने कोटा रानी से शादी भी कर ली. कहानी जो भी सच्ची हो, इतना पक्का है कि उदयनदेव कमज़ोर था. राजकाज सही से संभालना उसके बस की बात नहीं थी. ऐसे में जिम्मेदारी उठाई कोटा ने. उदयनदेव नाम का और कोटा रानी काम की. डरपोक राजा. बहादुर रानी. कोटा रानी ने बीक्षण भट्ट को अपना प्रधानमंत्री बनाया. शाह मीर बनाया गया कमांडर-इन-चीफ. ये कोटा रानी की बुद्धिमानी थी. इस समय कश्मीर में मुस्लिमों की भी अच्छी संख्या हो गई थी. कोटा रानी ने कश्मीरी पंडितों और मुस्लिमों, दोनों को खुश रखने की कोशिश की. कश्मीर पर विदेशी हमलावरों की नज़र थी. दुलाचा की कामयाबी औरों के लिए टेम्पटेशन थी. इनमें से एक था अचाला. तुर्क-मंगोल आक्रमणकारी. उदयनदेव जान बचाकर भाग गया. पीछे रह गई कोटा रानी. कोटा ने प्रजा को जुटाया. कहा, ये हमारा देस है. इसको बचाना होगा. कोटा की लीडरशिप का कमाल. हज़ारों लोग जमा हो गए. शाह मीर भी साथ था. हमलावर को हारकर लौटना पड़ा. जीत हुई तो उदयनदेव वापस लौट आया. वो फिर से गद्दी पर बिठा दिया गया. खूब लड़ी मर्दानी... 1338 में उदयनदेव की मौत हो गई. कोटा को डर था. कि अगर शाह मीर को इसकी ख़बर लगी, तो वो शायद उसे और उसके बेटे को मरवा दे. शाह मीर की काफी समय से गद्दी पर नज़र थी. कोटा रानी चार दिनों तक पति के मरने की ख़बर छुपाई. इतने ही वक़्त में किसी तरह बहाना बनाकर जयापुरा चली गई. वहां का किला सुरक्षित कर लिया. और फिर ऐलान किया. कि अब से वो कश्मीर की रानी है. शाह मीर ये सब चुपचाप देखने वाला नहीं था. उसने हमला किया. कोटा रानी ने कोशिश तो बहुत की. बहुत बहादुरी दिखाई. मगर जीत नहीं पाई. शाह ने मदद जुटाकर रानी को हरा दिया. राजा बन गया. नाम रखा, शम्स-उद-दीन. सुहाग की सेज पर रानी. रानी के पेट में कटार. शाह मीर ने कोटा से कहा, मुझसे शादी कर लो. कोटा ने स्वांग रचा. कहा, रिश्ता कबूलती है. आगे की कहानी सुनाते हैं लोग. कोटा ख़ूब सजी. ख़ूब कीमती कपड़े-गहनों से लदी कोटा. सुहाग के बिस्तर पर बैठी कोटा. शाह जीत के नशे में कोटा की तरफ बढ़ा. मगर इससे पहले कि वो कोटा को अपनी बांहों में ले पाता, कोटा ने कपड़ों में छुपाकर रखी कटार ख़ुद में उतार ली. फिर अपनी नंगी अंतड़ियों की तरफ इशारा करते हुए कोटा ने कहा- ये रहा मेरा क़बूलनामा. और शायद इसी अंत ने कोटा को अमर कर दिया. वो बला की हसीन थी. बहादुर थी. लीडर थी. हमलावरों के आगे पीठ नहीं दिखाई उसने. लोगों को एकजुट किया. कोटा ने अपनी प्रजा में धर्म का फर्क नहीं किया. जिसको कश्मीरियत कहते हैं, वो थी कोटा में. वो काबिल शासक थी. चतुर थी. जानती थी, कहां जोर चलाना है और कहां ख़ुद के आकर्षण से काम निकालना है. इतिहास की किताबें एक से एक क्रूर पुरुषों से भरी हैं. जिन्होंने सत्ता के लिए, पावर के लिए कोई हद नहीं छोड़ी. इसी इतिहास में क्लियोपेट्रा और कोटा रानी भी हैं. जो शायद कई बार जज कर ली जाती हैं. उनके करेक्टर पर सवाल उठा दिया जाता है. पुरुषों की चालाकी कूटनीति कहलाती है. क्लियोपेट्रा और कोटा रानी शातिर कहकर छोड़ दी जाती हैं. कश्मीरी कहानियों ने कोटा को ज़िंदा रखा. मगर उन्होंने भी अन्याय ये किया कि कोटा की कहानी में सबसे ज्यादा गौरव उसकी मौत को दिया.
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