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इस IAS अधिकारी ने यूपी में सूखे का जो इलाज किया, वो करोड़ों के पैकेज न कर सके

डॉक्टर से IAS बने डॉ. मन्नान अख्तर की कहानी जिन्हें हाल में केंद्र सरकार ने अवॉर्ड दिया है.

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जालौन के डीएम डॉ. मन्नान अख्तर ने बुंदेलखंड में सूखे की समस्या से निपटने के लिए बड़ा काम किया.
उत्तर प्रदेश. इसे अगर चार हिस्सों में बांटा जाए तो ये चार इलाके हैं-
पूर्वी यूपी, पश्चिमी यूपी, अवध और बुंदेलखंड.
अब आप अगर बाय चांस यूपी से हैं या थोड़ी भी जनरल नॉलेज यूपी के बारे में रखते हैं, तो आपसे एक सवाल. इन चार इलाकों में से सबसे पिछड़ा इलाका कौन सा है?
मन में तपाक से जवाब आया होगा - बुंदेलखंड. जवाब सही है. मगर हम कोई अवॉर्ड नहीं देंगे.
अब जैसा कि सन 1947 से प्रथा चली आ रही है, पिछड़े और पिछड़ों का वक्त तभी आता है. जब चुनाव सिर पर होते हैं. हर चुनाव से पहले होते हैं उनके लिए वादे. बुंदेलखंड को ये बना देंगे. वो बना देंगे. ये पैकेज, वो पैकेज. मगर फिर किसी रोज अखबार के छठे पन्ने पर एक सिंगल कॉलम खबर छपती है- कर्ज नहीं चुका पाने के कारण बुंदेलखंड के दो किसानों ने की आत्महत्या.
खेल खत्म. समझ आ जाता है कितना पैकेज आया, कितना गया.
खैर भावुक नहीं होते हैं. बुंदेलखंड के इस पिछड़ेपन के पीछे सबसे बड़ा कारण है यहां पड़ने वाला सूखा. पिछले 5 साल से यहां ढंग से बारिश नहीं हुई है. अब बारिश नहीं होगी तो सबसे ज्यादा नुकसान किसका होगा. उनका नहीं जो बारिश आने का इंतजार करते हैं कि पकौड़े तलके खाएंगे. बल्कि उन किसानों का, जिनकी हर फसल इस बारिश पर निर्भर करती है. कम बारिश. कम फसल और ज्यादा नुकसान. और ये नुकसान अकसर किसान की जान ले लेता है.
बुंदेलखंड में पिछले कई सालों से सही बारिश नहीं हुई है.
बुंदेलखंड में पिछले कई सालों से सही बारिश नहीं हुई है.

मतलब बात सिर्फ इत्ती सी है कि अगर इस सूखे का कुछ इंतजाम हो जाए. किसान की चिंता हो जाए तो बुंदेलखंड का उद्धार हो सकता है. इसके लिए किसी पैकेज से ज्यादा काम करने वाले की जरूरत है. ये साबित भी हो गया है. इसी बुंदेलखंड के जालौन जिले में. साबित किया है एक जिलाधिकारी ने. नाम डॉ. मन्नान अख्तर. सितंबर 2017 में उन्हें जिला जालौन का चार्ज मिला.
कुछ दौरों और किसानों से बात करके उन्हें इस जिले की बीमारी का अंदाजा हो गया. डॉक्टर साहब को अब इलाज ढूंढना था. ठीक वैसे ही जैसे वो अपने मरीजों का ढूंढते थे. जी हां, इसे याद रखिएगा. ये कहानी डॉक्टर साहब के डीएम बनने से पहले की है. इस पर बात आखिर में.  फिलहाल डीएम साहब पर रहते हैं.
डीएम मन्नान अख्तर को पता चला कि यहां किसानों को पानी का दो ही तरीके से सहारा है. एक बोरिंग करके. दूसरा नहर से. मगर कम बारिश के चलते अंडरग्राउंड वॉटर लेवल काफी नीचे है तो बोरिंग अकसर फेल हो जाती है. नहर भी सूखी रहती हैं, जिसके चलते गांवों में बने चेक डैम भी खराब हो जाते हैं. डॉ. मन्नान को बताया गया कि अगर ये चेक डैम रिपेयर हो जाएं तो उनकी बड़ी मदद हो सकती है. तो डीएम साहब ने अपनी पोस्टिंग के दूसरे महीने में ही इस पर काम शुरू किया. सर्वे करवाया जिसमें पता चला कि जालौन में 400 के करीब चेक डैम 2017-18 तक बने हैं. पर इसमें से सिर्फ 150 चालू हालत में हैं. 256 की हालत खस्ता हो चुकी है. और अगर ये रिपेयर हो जाएं तो काम बन जाए. पर इसके लिए चाहिए था पैसा. एक चेक डैम को बनाने में 6 से 7 लाख का खर्चा आता है. और शासन से साल भर में 6-7 चेक डैम बनाने का ही बजट आता है.
डॉ. मन्नान ने जालौन के डीएम बनते ही पानी पर काम शुरू किया.
डॉ. मन्नान ने जालौन के डीएम बनते ही पानी पर काम शुरू किया.

डॉ. मन्नान बताते हैं कि इस पर उन्होंने लगाया दिमाग. सही पैसा सही जगह लगाने का. कौन सा पैसा. मनरेगा वाला. ग्राम सभा का 14वें फाइनेंस कमीशन का पैसा. इस पैसे को इन चेक डैम को मेंटेन करने पर लगाया गया. टेक्निकल मदद के लिए माइनर इरिगेशन डिपार्टमेंट और सॉयल कंजर्वेशन डिपार्टमेंट को लगाया गया. रफ्तार से काम हुआ. सितंबर में डॉ. मन्नान आए और नवंबर में ही काम शुरू हो गया. कोशिश रही कि बारिश के पहले-पहले ज्यादा से ज्यादा चेक डैम तैयार कर लिए जाएं. ताकि बारिश के वक्त इनका फायदा मिल सके. सबसे तेज काम हुआ अप्रैल, मई, जून के महीने में. हर 15 दिन में काम की प्रोग्रेस चेक की गई. और बारिश से पहले-पहले करीब 150 चेक डैम्स को सुधारा गया.
नतीजा क्या हुआ. देख लीजिए -
# जिले का इरिगेसन एरिया माने सिंचाई क्षेत्र करीब 100 प्रतिशत बढ़ गया. 1930 हेक्टेयर से ये 3900 हेक्टेयर हो गया.
# सर्फेस वॉटर में 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
# ग्राउंड रीचार्ज में करीब 100 फीसदी की बढ़त हुई.
# किसानों का खर्चा कम हुआ, क्योंकि वॉटर लेवल ऊपर आने से उनको सिंचाई कम करनी पड़ी. माने ट्यूबवेल कम चलाना पड़ा. डीजल कम लगा. 10 हजार किसानों को डायरेक्ट और 15 हजार किसानों को इन डायरेक्ट फायदा मिला.
#इलाके में हैंडपंप खराब हो जाते थे, वो भी कम खराब हुए.
# करीब 1,50,000 मानव दिवस डिवेलप हुए, जिससे बेरोजगारों की मदद हुई. गर्मियों के वक्त सबसे ज्यादा पलायन यहां होता है, वो रुका.
कुल मिलाकर डीएम साहब ने अपनी जॉइनिंग के एक महीने के अंदर जालौन का मर्ज जाना. फिर निकाला अपना गवर्नेंस का इंजेक्शन और लगा दिया. रिजल्ट जालौन समेत आसापास के जिलों में पानी की सेहत सुधरी. हजारों लोगों को फायदा मिला. वो भी सस्ती वाली दवा से, माने बिना किसी एक्स्ट्रा सरकारी खर्चे के.
डीएम बनने की कहानी
पर ये डॉ. मन्नान अख्तर की बात करते वक्त ये इंजेक्शन, दवा, मर्ज, इलाज का जिक्र क्यों आ रहा है. वो इसलिए क्योंकि मन्नान के आगे जो डॉक्टर लगा है वो पीएचडी वाला डॉक्टर नहीं है. वो असली के डॉक्टर हैं. एमबीबीएस किया है. हमने शुरुआत में भी इस बात को अधूरा छोड़ दिया था. तो अब कहानी डीएम बनने से पहले वाले मन्नान अख्तर की. मन्नान असम के तेजपुर के रहने वाले हैं. पिता असम कैडर के ही आईएफएस (इंडियन फॉरेस्ट सर्विस) अफसर रहे हैं. स्कूलिंग केंद्रीय विद्यालय से हुई. फिर एमबीबीएस किया गुवाहटी मेडिकल कॉलेज से.
डीएम मन्नान अकसर डॉक्टर मन्नान भी बन जाते हैं.
डीएम मन्नान अकसर डॉक्टर मन्नान भी बन जाते हैं.

अब आप सोंचेंगे कि एमबीबीएस करने के बाद आईएएस कैसे. तो इसका जवाब भी जान लीजिए. दरअसल 2009 में जब मन्नान का लास्ट ईयर था. तब वो इंटर्नशिप करने एक गांव गए. ये असम का गोको गांव था. वहां काम करते हुए कई दिक्कतें नजर आईं. डॉ. मन्नान ने बताया कि विदेश में तमाम देशों में कम्युनिकेबल डिसीज का नामोनिशान नहीं है. यहां हम लोग इसी से जूझ रहे हैं. उन्हें समझ आया कि दिक्कत सुविधाओं की नहीं है. गवर्नेंस में है. गवर्नेंस में सुधार की जरूरत है. ये भी समझ आया कि बिना सिस्टम का हिस्सा बने वो इसे नहीं सुधार सकते. तो मन्नान ने शुरू की यूपीएससी की पढ़ाई. अखबार खंगालने शुरू कर दिए.
2009 में एमबीबीएस पूरा करने के तुरंत बाद मन्नान दिल्ली आ गए. यहां कोचिंग की. कोचिंग करने के बाद उन्होंने 2010 में प्री लिखा. फिर मेंस की तैयारी करने वो वापस घर यानि असम चले गए. मेंस देने के बाद मन्नान ने फिर मेडिकल कॉलेज के रेस्पिरेटरी डिपार्टमेंट में डॉक्टरी शुरू कर दी. इस दौरान उनका मेंस निकल गया. इंटरव्यू दिया. वो भी निकला. माने पहले ही चांस में यूपीएससी फोड़ दिया. ऑल इंडिया रैंक रही 55. यूपी काडर मिला. ट्रेनिंग के बाद 2012 में पहली पोस्टिंग मिली मऊ में. फिर एसडीएम मुरादाबाद और बुलंदशहर रहे. फिर सीडीओ अंबेडकरनगर बने. उसके बाद बतौर सीडीओ ही योगी बाबा के शहर गोरखपुर पहुंचे. और सितंबर 2017 से जालौन के डीएम हैं.
जालौन का डीएम बनते ही डॉ. मन्नान ने अपनी डॉक्टरी लगाई और इलाके की पानी की दिक्कत का इलाज किया. उनके इस काम को केंद्र सरकार ने भी माना. 25 फरवरी को जालौन जिले को नैशनल वॉटर अवॉर्ड मिला. बेस्ट डिस्ट्रिक्ट पानी बचाने के मामले में. डॉ. मन्नान की इस योजना का नाम था भूजल कोश संचय. पर डॉ. मन्नान का ये कोई पहला इनीशिएटिव नहीं था. वो पहले भी ऐसे कई तारीफ लायक काम कर चुके हैं.
डीएम डॉ. मन्नान ने 2012 में यूपी काडर जॉइन किया था.
डीएम डॉ. मन्नान ने 2012 में यूपी काडर जॉइन किया था.

1. देश में एक आरबीएस(रोगी बाल कल्याण स्कीम) नाम की स्कीम चलती है. इसमें चार डॉक्टरों की टीम साल में दो-दो बार प्राइमरी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों का दौरा करती हैं. जो बच्चे बीमार मिलते हैं, उनका इलाज होता है. जिन बच्चों को ज्यादा इलाज की जरूरत होती है, उन्हें बड़े अस्पतालों में भेज दिया जाता है. मगर ये काम ठीक से होता नहीं था. कभी चार में दो लोग आ रहे हैं. जो बच्चा रेफर हो जाता था, उसका फॉलोअप नहीं होता था. तो इसको स्ट्रीमलाइन करने के लिए डॉ. मन्नान ने एक सिस्टम बनाया. इसमें चेक होता था कि डॉक्टर आ रहे हैं या नहीं. बच्चों का इलाज कहां हो रहा है. उनका फॉलोअप हो रहा है कि नहीं. इस सिस्टम को अब पूरे उत्तर प्रदेश में लागू किया गया है. माने डॉक्टर साहब ने अपनी डॉक्टरी का बढ़िया इस्तेमाल यहां भी किया.
2. यूपी में एक झांसी-कानपुर हाईवे है. यहां पड़ती है काल्पी रोड. ये रोड फोर लेन है. मगर यमुना क्रॉस करके काल्पी शहर में 1.7 किलोमीटर रोड सिंगल लेन थी. वजह दो मस्जिदें, मकबरें और कुछ मंदिर. इसकी वजह से रोड का काम करीब 14 साल से अटका पड़ा था. झांसी-कानपुर जाने वाला कोई भी आदमी इस रोड पर फंसने के बाद होने वाली पीड़ा बता सकता है. तो डॉ. मन्नान ने 6-7 महीने लंबी बातचीत के बाद इस मसले को भी सुलझा दिया. ये खबर नैशनल लेवल में चर्चा में रही.
बच्चों के साथ डीएम मन्नान.
बच्चों के साथ डीएम मन्नान.

मतलब जिस गवर्नेंस को दुरुस्त करने के लिए डॉ. मन्नान डीएम मन्नान बने थे. वो उस मिशन पर लगे हुए हैं. अब डॉ. मन्नान पहली बार में ही यूपीएससी फोड़े थे तो हमने कहा कुछ टिप्स भी दे दीजिए. जो हमारे लल्लनटॉप के उन व्यूअर्स के काम आ जाएं जो यूपीएससी की तैयारियां कर रहे हैं तो वो बोले -
आप अपना बेस्ट शॉट दीजिए. रिजल्ट की चिंता मत करिए. नहीं होता है तो फिक्र न करें. दुख है तो इस बात का होना चाहिए कि आपने अच्छे से तैयारी नहीं की. अगर आपको लगता है कि आपने अपनी क्षमका का 100 पर्सेंट किया है तो आप दुखी न होइये. ये सब जीवन का हिस्सा है. आपका काम है अच्छे से मेहनत कर उसे एग्जीक्यूट करना. आपने जो भी तैयारी की है, वो आपके कभी न कभी काम जरूर आएगी. कुछ बेकार नहीं जाता. लोगों को खुद पर भरोसा करना चाहिए. और यूपीएससी क्लीयर करना ही एकलौता मकसद नहीं होना चाहिए. आज के भारत में और भी कई रास्ते हैं जिनसे आप अपने, देश और समाज के लिए बेहतर कर सकते हैं.



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