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अभिनंदन से पहले पाकिस्तान ने जिस भारतीय पायलट को पकड़ा था, उसका क्या हुआ?

इससे समझ में आ जाएगा कि अभिनंदन के साथ क्या सलूक कर सकता है पाकिस्तान

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पाकिस्तान की कैद से छूटने के बाद वाघा के रास्ते देश लौटते नचिकेता.

कहते हैं कि जंग के दौरान ऊंची पोजिशन पर खड़ा एक सैनिक नीचे से आ रहे 10 सैनिकों को आराम से संभाल सकता है. कारगिल के युद्ध के दौरान भी ऐसा ही हुआ. 1999 की सर्दियों में कारगिल की पहाड़ियों में भारतीय सेना की खाली की गई 140 चौकियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया. भारत को अपनी चौकियां खाली करवानी थीं. भारतीय सैनिक नीचे थे और यह लड़ने के हिसाब से कमजोर पोजीशन थी. लिहाजा ऊंचाई पर बनी चौकियों को खाली करवाने की जिम्मेदारी भारतीय वायुसेना को सौंपी गई.

भारतीय वायुसेना ने ऊंचाई पर बनी भारतीय चौकियों से घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए अपना ऑपरेशन शुरू किया. इस ऑपरेशन को नाम दिया गया 'ऑपरेशन सफ़ेद सागर'. भारतीय वायुसेना के स्क्वॉड्रन नंबर- 9 को जिम्मेदारी सौंपी गई कि वो बाल्टिक सेक्टर में 17,000 फीट की ऊंचाई पर जाए और दुश्मन की चौकी पर हमला करे. इस मिशन की जिम्मेदारी दी गई स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा को.

27 मई 1999. स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा ने मिग-21 विमान संख्या C-1539 से उड़ान भरी. उनके बगल में थे 26 साल के फ्लाइट लेफ्टिनेंट कमबमपति नचिकेता. जोकि मिग-27 विमान के साथ इस मिशन में शामिल थे. तीन विमान के इस स्क्वॉड्रन ने हायना फॉर्मेशन उड़ान भरना शुरू किया. सुबह के करीब 10.45 का समय था और यह स्क्वॉड्रन दुश्मन पर मौत बरसा रहा था. 80mm की तोप से लैश तीनों विमान दुश्मन पर भीषण बमबारी कर रहे थे.


 स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा जिन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने गोली मार दी.
स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा जिन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने गोली मार दी.

ठीक 11 बजे इस स्क्वॉड्रन ने दुश्मन पर फिर से हमला बोल दिया. 80mm के गोले खत्म होने के बाद 30mm के बम बरसाए जा रहे थे. बाल्टिक सीमा से एकदम सटा हुआ इलाका था. इन लोगों को साफ़ निर्देश था कि किसी भी हालत में सीमा रेखा को पार नहीं करना है. सबकुछ योजना के अनुसार चल रहा था कि तकनीक ने धोखा दे दिया. फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता के विमान के इंजन में गड़बड़ी आनी शुरू हो गई. स्पीड तेजी से गिर रही थी. कुछ ही सेकंड के भीतर नचिकेता के विमान की गति 450 किलोमीटर प्रति घंटे पर आ गई. यह खतरे की घंटी थी. पहाड़ियों से घिरे इस इलाके में नचिकेता के पास करने के लिए कुछ खास नहीं था. आखिरकार उन्होंने अपना पूरा साहस बटोरा. अपने स्क्वॉड्रन लीडर को जानकारी दी और विमान से इजेक्ट हो गए.

एक को बचाने के चक्कर में दूसरा भी गया

स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा के पास दो रास्ते थे. पहला सुरक्षित एयरबेस की तरफ लौटने का और दूसरा नचिकेता के पीछे जाने का. आहूजा ने दूसरा रास्ता चुना. वो नचिकेता के पीछे गए ताकि उनकी ठीक-ठीक लोकेशन हासिल कर सकें. यह जानकारी रेस्क्यू ऑपरेशन में बहुत मददगार साबित होती. नचिकेता की लोकेशन लेने के चक्कर में वो सतह के काफी करीब उड़ रहे थे. यह सीमा का इलाका था और अजय आहूजा दुश्मन के निशाने पर आ गए. पाकिस्तान की जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल अंज़ा मार्क-1 उनके विमान के पिछले हिस्से से टकराई. भारतीय एयरबेस में उनके मुंह से सुने गए आखिरी शब्द थे-

"हर्कुलस, मेरे प्लेन से कुछ चीज टकराई है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यह एक मिसाइल हो. मैं प्लेन से इजेक्ट हो रहा हूं."

बाद की रिपोर्ट में भारतीय वायुसेना ने दावा किया कि स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा ने भारतीय क्षेत्र में जिंदा लैंड किया. इसके बाद उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ लिया. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने यातना देकर मार डाला. श्रीनगर बेस हॉस्पिटल में हुए पोस्टमार्टम में साफ़ हुआ कि उन्हें पॉइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी गई.



कैसर तुफैल, जिन्होंने नचिकेता को टॉर्चर से बचाया.

नचिकेता को मिला देवदूत

इधर नचिकेता थे जो दुश्मन के इलाके में उतरे थे. नीचे की जमीन पर दूर तक नर्म बर्फ की चादर थी. नचिकेता को समझ में आ रहा था कि आखिर इस ऑपरेशन का नाम 'सफ़ेद सागर' क्यों रखा गया था. पाकिस्तानी सेना को नचिकेता के पाकिस्तान में उतरने की खबर लग गई थी. पाकिस्तानी नॉर्दन लाइट इन्फेंट्री के जवान उनकी तलाश में भेजे जा चुके थे. नचिकेता ने दूर से एक बिंदु को आग के गोले में बदलते हुए देखा. यह स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान था. इसके बाद उन्होंने फायरिंग की आवाज सुनी. अब वो पाकिस्तानी सैनिकों से घिरे हुए थे. उनके पास हथियार के नाम पर महज एक पिस्टल थी जो 25 गज के दायरे से आगे बेअसर साबित होती थी.

उन्होंने अपनी तरफ आ रहे 5-6 सैनिकों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. पाकिस्तानी सैनिकों के पास एके-56 असॉल्ट रायफल्स थीं. वो भी नचिकेता की तरफ गोली चला रहे थे, लेकिन उनका इरादा नचिकेता को जिंदा पकड़ने का था. अपनी पिस्टल की एक मैग्जीन खाली करने के बाद वो उसे फिर से लोड कर रहे थे कि उन्हें पकड़ लिया गया. पाकिस्तानी सैनिक उन्हें अपने ठिकाने पर ले आए और मारना शुरू किया. पाक सैनिक नचिकेता से पूछताछ के नाम पर उन्हें टॉर्चर कर रहे थे. इस बीच पाकिस्तानी एयर फोर्स का एक अफसर नचिकेता के लिए देवदूत बनकर पहुंचा. नाम कैसर तुफैल. तुफैल उस समय पाकिस्तानी एयरफोर्स के डायरेक्टर ऑफ ऑपरेशंस थे.

तुफैल ने नचिकेता को पाकिस्तानी जवानों के पंजे से निकाला. वो नचिकेता को अलग कमरे में लेकर गए. उनसे काफी देर तक बातचीत की. उनके लिए शाकाहारी नाश्ते का इंतजाम किया. बाद में इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में नचिकेता ने कहा-


" तुफैल ने मुझे बताया कि उनके पापा की हार्ट की दिक्कत है और वो बहन की शादी की तैयारियों में लगे हुए हैं. तुफैल ने मुझसे बहुत दोस्ताना तरीके से बात की. हम दोनों ने चाय पी. मेरे लिए कुछ शाकाहारी स्नैक्स मंगवाए. हम दोनों ने फ्लाइंग को लेकर बात की."

तुफैल को भी यह वाकया अच्छे से याद है. बाद में मीडिया को दिए इंटरव्यू में तुफैल ने बताया-


"हम दोनों में बहुत कुछ कॉमन था. ये जानकर मुझे बहुत गजब लगा. मैंने नचिकेता से पूछा कि वो मिशन से पहले क्या करते हैं. नचिकेता ने मुझे बताया कि वो अपनी बहन की शादी के चलते छुट्टी पर थे. और इधर पाकिस्तान में मेरी बहन की भी शादी थी. हम दोनों की मुलाकात बहुत यादगार रही."

इधर भारत के प्लेन क्रैश की खबरें इंटरनैशनल मीडिया में आ चुकी थीं. पाकिस्तान पर नचिकेता को लौटाने का दबाव बढ़ रहा था. आखिरकार सात दिन दुश्मन की कैद में रहने के बाद नचिकेता आजाद हुए. तारीख थी 4 जून 1999. पाकिस्तान ने उन्हें इंटरनैशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस को सौंपा. और बाजरिए रेड क्रॉस वो वाघा बोर्डर से भारत आए. फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को युद्ध में बहादुरी दिखाने के लिए वायुसेना मैडल से नवाज़ा गया.