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औरंगज़ेब का वो बेटा, जिसे नाखून और बाल तक कटवाना मना था

कहानी सातवें बादशाह की.

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फोटो - thelallantop
कैसा होता होगा औरंगज़ेब का बेटा होना, वो भी तब जब औरंगज़ेब की शादी उस बेटे की मां से उस आदमी ने करवाई थी, जिससे औरंगज़ेब नफरत करता था. शाहजहां ने अपने महत्वाकांक्षी बेटे की शादी कश्मीर के मुस्लिम राजपूत राजा ताजुद्दीन खान की बेटी बेगम नवाब बाई से करा दी थी. औरंगज़ेब पर नवाब बाई का जादू बहुत दिन चल नहीं पाया था.
इनका बेटा हुआ बहादुरशाह प्रथम. 14 अक्टूबर 1643 को पैदा हुआ था. मुगल वंश के छठे बादशाह औरंगज़ेब के कई बेटों में से यही बन पाया था सातवां बादशाह. पर राह इतनी आसान नहीं थी. बाप ने इसके प्यारे दद्दू शाहजहां और मां सबसे नफरत की थी. जब बाप औरंगज़ेब हो, तो नफरत की ताब बढ़ जाती है. वो नोंक-झोंक नहीं रह जाती, हत्या की संभावना मंडराती है सिर पे हमेशा. वैसे बहादुरशाह ने बाप के खिलाफ ठानी भी खूब थी.

बाप के खिलाफ बगावती तेवर

बचपन में नाम था मुअज्जम. दद्दू शाहजहां के राज में लाहौर का नवाब बना था. 20 की उम्र में डेक्कन का गवर्नर बना. उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी शिवाजी की स्मार्टनेस. 1663 में इसने पुणे पर हमला कर दिया, पर शिवाजी ने इसे पकड़ लिया. सात साल तक ये उनकी कैद में रहा. पर शिवाजी का बेटा संभाजी भी उधर औरंगज़ेब की कैद में था. शिवाजी ने इसको बस पकड़ा था. आराम पूरा दिया था. शिवाजी और औरंगज़ेब की लड़ाई भी बड़ी विचित्र रही है. जब शाहजहां मर गया, तब शिवाजी ने इसे छोड़ दिया था. ये अपने दद्दू को ताजमहल में दफनाने गया. नवाबी की आदत लग ही चुकी थी. दद्दू ने मन बढ़ा ही दिया था. 1670 में इसने बाप के खिलाफ बगावत कर दी. मराठा लोगों ने भी इसे खूब चढ़ाया था. पर औरंगज़ेब को इसका पता चल गया और उसने इसकी अम्मा को भेज दिया समझाने के लिए. उसके बाद मुअज्जम को बाप की निगरानी में रहना पड़ा. 1680 में इसने फिर ट्राई मारा था. पर पकड़ लिया गया. अबकी बार निगरानी और कड़ी हो गई.

औरंगज़ेब का फरमान हुआ कि नाखून तक नहीं काटना है, पर बादशाह बनना नसीब में लिखा था

1681 में औरंगज़ेब ने इसको डेक्कन भेजा. इसके सौतेले भाई मुहम्मद अकबर के विद्रोह को रोकने के लिये. क्योंकि इसको डेक्कन का एक्सपीरियेंस भी था और बहुत दिन किले में रहने के बाद मन बदलना भी ज़रूरी था. पर ये जान-बूझकर लड़ाई हार गया. 1687 में इसने बड़ा कांड कर दिया. इसको औरंगज़ेब ने भेजा था गोलकोंडा के राजा अबुल हसन को हराने के लिए. पर इसने उससे यारी कर ली. अब औरंगज़ेब गुस्से में भभूका हो गया. इसको फिर पकड़ लिया. इसकी हरम की औरतों को इससे दूर भेज दिया. इसको आदेश दिया कि छह महीने तक ना तो नाखून काटना है, ना ही बाल. अच्छा खाना भी नहीं देना है. किसी से मिलना भी नहीं है. नौकर वगैरह भी छीन लिए गए.
1694 में औरंगज़ेब को इस पर तरस आ गया. इसको फिर से कार्यक्रम समझा के भेजा गया. अबकी पंजाब के राजा गुरु गोविंद सिंह को रोकना था. मुअज्जम ने रोक तो दिया पर औरंगज़ेब के मन मुताबिक नहीं. बातें कर ली, लड़ाई नहीं की. कहा कि मैं सिख धर्म की जेनुइन रेस्पेक्ट करता हूं. उसके बाद इसको अकबराबाद, लाहौर और फिर काबुल का गवर्नर बनाया गया. जहां वो 1707 में अपने बाप के मरने तक रहा.
उस वक्त इसके भाई कामबख्श और आज़म शाह, डेक्कन और गुजरात के गवर्नर थे. सब आगरा की ओर बढ़ चले. पर मुअज्जम ने सबको हरा दिया. आजम शाह को तो मार भी दिया. 19 जून 1707 को मुअज्जम बहादुरशाह प्रथम के नाम से दिल्ली का सातवां बादशाह बना.

अपने मरने तक मुगलिया बादशाहों से अलग नेचर का ही रहा

बादशाह बनने के बाद बहादुरशाह ने आमेर, जोधपुर और उदयपुर को मामूली लड़ाई में अपने राज्य में मिला लिया. उदयपुर वही था, जिसके लिए अकबर ने महाराणा प्रताप से लड़ाई लड़ी थी. वहां के राजाओं को इसने उचित इज़्ज़त भी दी.
कामबख्श ने बहादुरशाह का काम बड़ा खराब किया था. बात-बात में चढ़ बैठता. भाई के समझाने का कोई असर नहीं था इस पर. एक ज्योतिषी ने इससे कह दिया था कि तुम बादशाह बनोगे. इस बात को मानकर वो अपनी ढाई हज़ार की सेना लेकर हिंदुस्तान के बादशाह से लड़ता रहा. तब तक, जब तक कि मर नहीं गया.
फिर सिखों से लड़ने में भी इसका उतना मन नहीं था. राजपूताना की तरह वो यहां भी बात से काम चलाना चाहता था. पर हो नहीं पाया. लड़ना पड़ा. इसी चक्कर में बादशाह फंस भी गया था. लड़ाई छोड़ जान बचाकर भागना भी पड़ा. किसी तरह इधर-उधर कर मामला निपट पाया था. इसको जो अच्छा लगता कर देता था. खुतबा यानी प्रार्थना का नियम बदल दिया इसने. चौथे सुन्नी और पहले शिया खलीफा अली को इसने वली का खिताब दे दिया. इस बात पर खूब बवाल मचा. इसने भी खूब नाटक किया. खूब दिखाया कि पढ़ रहा हूं. पता करता हूं. ये वो. पर किया वही, जो इसके मन में आया. 1712 में इसकी मौत हो गई. तिल्ली माने लिवर बढ़ने से. आज का ज़माना रहता तो एक टेबलेट खाकर ठीक हो गया होता.

ये स्टोरी ऋषभ ने लिखी है.

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