The Lallantop

'छोरी दौड़ेगी तो छोरों जैसी टांगें हो जाएंगी, ब्याह कौन करेगा?'

सुनीता दिल्ली पुलिसवाली, अपने एक झापड़ से आपके 'वूमेन आर फिजिकली वीक' के ख्याल की ऐसी-तैसी कर सकती है. जानिए पूरी कहानी..

Advertisement
post-main-image
symbolic image. फोटो क्रेडिट: reuters
अबकी बारी रक्षाबंधन के मायने बदले गए. अब तलक जहां लड़कियों की रक्षा की बात होती थी. उन्हीं लड़कियों ने देश के मान की रक्षा कर ली. लोगों ने जी भर तारीफें की. लड़कियों नें ओलंपिक में न सिर्फ मेडल जीते. बल्कि आने वाली और पीढ़ियों की लड़कियों के लिए नए रास्ते भी खोल दिए. अब छोरियों को न रक्षा की जरूरत है. न कहीं भी रुकने की. आगे बढ़ना है. और आगे बढ़ भी रही हैं. आज छोरियां बीएसअफ में हैं. हाथ में बंदूक लिए बॉर्डर पर तैनात हैं. फिल्मों में हैं. पिछले दो साल से यूपीएससी टॉपर भी छोरियां ही हैं. पायलट बन के आसमान में उड़ रही हैं. कहीं घर में बच्चों के लिए टिफ़िन बना रही हैं. कहीं बैंक में किसी का खाता खोल रही हैं. कहीं अखाड़ों में हैं. कोई चार बजे उठकर दिल्ली पुलिस की तैयारी कर रही है. वाह!वाह! कहते हैं हर सक्सेसफुल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है. पर इन सक्सेसफुल औरतों की जीत के पीछे किसका हाथ है? इनके कोच का तो है ही, सबसे बड़ा जो हाथ है वो हाथ है इनकी मेहनत का. जब ये दौड़ लगा रही होती हैं. तब इनको बोला जा रहा होता है, 'छोरी है? दौड़ेगी तो छोरों जैसी टांगें हो जाएंगी, ब्याह कौन करेगा?' इसके बावजूद ये अपने मुकाम तक पहुंचती हैं. इनकी सक्सेस के पीछे होती है इनकी पहाड़ जितनी विशाल, कठोर कहानियां. जब तक ये मेडल नहीं लातीं, आप इनके स्ट्रगल के बारे में जानने की कोशिश भी नहीं करते. आपको ये दिल्ली पुलिस वाली खाकी वर्दी वाली यूं ही लगती होंगी. आपने इनको पेट्रोलिंग पर, अपराधियों को पकड़ते हुए शायद देखा भी होगा, पर आप नहीं जानते कि इस खाकी वर्दी के लिए इन्होंने क्या-क्या पापड़ बेले हैं. इसलिए अगली बार किसी खाकी वर्दी वाली के साथ बदतमीजी से पेश आएं. या उनकी स्ट्रगल को कमतर समझते हुए कोई कमेंट करते हुए निकल जाएं. तो इस सुनीता पुलिस वाली का किस्सा याद करना. जो अपने एक झापड़ से आपके 'वूमेन आर फिजिकली वीक' के ख्याल की ऐसी-तैसी कर सकती है.
सुनीता रसूलपुर गांव की लड़की है. दिल्ली पुलिस में है. एकदम नॉर्मल फैमिली से बिलॉन्ग करती है. सुनीता के पिताजी दारू पीते हैं. एक दो किला जमीन है, पर उससे कम नहीं चलता तो औरों के खेतों में भी काम कर लेते हैं. चार-चार भैसें हैं घर पर.
सुनीता के कुनबे से कोई फ़ौज या पुलिस में नहीं गया था. घर में एटीएम कार्ड भी नहीं था. जब आस-पड़ोस की लुगाइयां ये बोलती हैं कि हम तो तेल-साबुन कैंटीन से ही मंगवाते हैं, तो सुनीता को बड़ा बुरा सा लगता. पूरा कुनबा पांच साल से भाई पर गुदडे लादे हुए था. भाई ने कई भर्ती देखी, पर नहीं लग पाया. सुनीता के ब्याह की तैयारियां भी हो रही थी. बापू पी-वी कर लडाई- झगड़ा कर लेता है. उन झगड़ों के बीच सुनीता कुछ बोल पड़ती थी. इसलिए वो सबको लड़ाकू टाइप की लगती थी. उसके पिताजी जब पीकर ड्रामा करते. बाहर जो देखने और मजे लेने वालों की भीड़ होती. उन्हें सुनीता ही लताड़ती. औरतों में फुसफुसाहट भी होती. 'छोरी की जात ने इतना बोलना ठीक नहीं, बाप तो है ही ऐसा. बेटी की भी जुबान चलती है. इतने आदमियों में बोलन कि क्या जरूरत?' अगले दिन सुबह होते ही उसके चेहरे पर न शर्म का भाव होता न ही पश्चाताप का. उतनी ही मेहनत से काम करती. ये चीज़ बड़ी अच्छी लगती मुझे उसकी. उसके जैसी ये हिम्मत गली की बाकी लड़कियों में न थी. जब घर के हालत और ख़राब हो गई. तब सुनीता ने ठाना, अब वो लगेगी पुलिस में. आज जब वो दिल्ली पुलिस में लग गई है तो सब मेहनत की दाद देते हैं. शनिवार-रविवार को घर आती है. हंसते हुए पूछते हैं- "और बेटा , आ गई तू?" लेकिन जब वो मेहनत कर रही थी. तब सिर्फ मजाक उड़ता था उसका. वो खेतों में कीकर के पेड़ अकेले छांग लेती. ताकि और स्टॉन्ग हो. ऊंट गाड़ी जोड़कर खाद खेतों में डाल आती. फसल की कटाई में भाई को पीछे छोड़ देती. सुबह चार बचे उठकर, तीन सौ वाले टूटे जूतों में रेस लगा कर आती. पांच बजे भैसों का काम करवाती. फिर महेंद्रगढ़ लिखित परीक्षा की कोचिंग लेने जाती. शाम को वही हर तीसरे दिन बाप के पीने का ड्रामा देख कर सो जाती. तीन भर्तियों में रिजेक्ट होने के बाद उसने दिल्ली पुलिस का फिजिकल क्लियर किया. रेस में सबसे आगे आई. भर्ती करने वाले ऑफिसर्स ने नाम, गांव पूछा और शाबाशी दी. उसे सलवार सूट से ज्यादा टीशर्ट लोअर पहनना पसंद था.
अब जब घर आती है तो बिना चुन्नी के, टी-शर्ट जीन्स ही में आती है. अब उसकी दादी बोलती हैं कि वो कहती है अभी ब्याह नहीं करेगी. पहले घर का कर्जा उतारेगी. और मेहनत करके अच्छी रैंक लाएगी. तीन-चार साल शादी की तो बात ही नहीं.
कुछ लोग बोलते हैं कि दिल्ली पुलिस में भर्ती लड़कियों की शादी मुश्किल से होती है. लोग पसंद नहीं करते ये वाली नौकरी. दिल्ली पुलिस की नौकरी क्यूं पसंद नहीं करते लोग, इस पर बात करनी भी बनती है. हम करेंगे भी, पर दूजे आर्टिकल में. फिलहाल सिर्फ सुनीता की बात करेंगे. सुनीता को रिजेक्ट करने वाले परिवार सिर्फ सुनीता को रिजेक्ट नहीं करते, वो रिजेक्ट करते हैं सुनीता जैसी लड़कियों की मेहनत और उनके जज्बे को. ऐसे की बेवकूफी वाली 'मासूमियत' को देख हंसा ही जा सकता है.

(ये स्टोरी दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रही ज्योति ने लिखी है.)

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement