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6 इस्लामी शब्द जो बोलने से पहले पता होने चाहिए, नहीं तो बवंडर हो जाएगा

जान लो, नहीं तो ऐसी खिचड़ी पक जाएगी कि हजम करना मुश्किल हो जाएगा.

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फोटो - thelallantop
उर्दू में बात करने की कोशिश करते हो. करो. कोई गुनाह नहीं है. जबान में शीरी आ जाती है. कड़वाहट कम हो जाती है. मगर प्लीज उर्दू बोलने के चक्कर में अरबी लफ़्ज़ों का ऐसा घालमेल न करो कि सामने वाला मातम करने लगे. अरबी के कुछ ऐसे वर्ड हैं जो बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन उन्हें बोलने में आपकी ज़रा भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो बवंडर होना तय है. लफ़्ज़ों की ये चाशनी आपको तो मुश्किल में डाल ही सकती है साथ ही दूसरे का माथा भी ठनक सकता है. और अगर बिना जाने आपने इन उक्तियों या शब्दों का इस्तेमाल किया तो ऐसी खिचड़ी बन जाएगी कि उसको हजम करना मुश्किल हो जाएगा.

1. ला हौल वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह

जो उर्दू या हिन्दुस्तानी ज़बान बोलते हैं और जिन पर उर्दू-फ़ारसी का रंग चढ़ा होता है. उनके मुंह से लाहौल वला कुव्वत इल्ला बिल्लाह के कई रूप सुने होंगे. जैसे लाहोल बिला कूवत, लाहौल बिला कूवत, लाहौल बिला कूबत और लाहौल विला कुव्वत. असल में यह सब अधूरे हैं. अरबी का मामला है और सही रूप है, ला हौल वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह. और इसका मतलब होता इस दुनिया में अल्लाह के सिवा कोई पॉवरफुल नहीं. इसमें हुई तो अल्लाह की तारीफ थी, मगर इसका इस्तेमाल होने लगा, उस वक्त जब कोई काम बिगड़ जाए, अच्छी भली बात बिगड़ जाए, या कोई शैतानी काम हो जाए या फिर बेशर्मी की हदें टूट जाएं. तो लोग कह देते हैं कि लाहौल वला. यहां तक तो ठीक है. मगर तब मामला गंभीर हो जाता है जब कोई किसी की अच्छी कामयाबी पर या किसी के घर कोई बच्चा पैदा होने पर बोल दे. तो अब समझ गए न कब बोलना होता है ये. बहुत सही अब दूसरा पढ़ लो

2. अस्तग फिरुल्लाह

जब मुसलमान अल्लाह से अपनी गलतियों और गुनाहों की माफ़ी चाहता है तो वो कहता है अस्तग फिरुल्लाह. यानी 'या अल्लाह मुझे माफ़ कर दे.' इसमें मजेदार बात ये है कि ये लफ्ज़ है तो खुद की माफ़ी के लिए, मगर लोग इसका इस्तेमाल दूसरे की गलतियों के लिए करते हैं. कहेंगे, 'अस्तग फिरुल्लाहह्ह्ह्ह बहन तुमने हिजाब से पूरी तरह अपने बालों को कवर नहीं किया.' 'रमजान में गाना गुनगुना रहे हो... अस्तग फिरुल्लाह, अस्तग फिरुल्लाह... '

3. सुबहान अल्लाह

खूबसूरत चीज देखते हो जबान से निकल पड़ता है. सुबहान अल्लाह. इसका इस्तेमाल खुदा की कुदरत की तारीफ़ करने के लिए होता है. जैसे सुबहान अल्लाह क्या हसीन चेहरा है. अब कहीं किसी की गंदी हरकत पर सुबहान अल्लाह मत कह देना. क्योंकि मेरा एक दोस्त उस वक्त कह बैठा था, जब मैंने उसे बताया,'अम्मी की तबीयत बहुत ख़राब थी. इसलिए तेरा फोन रिसीव नहीं कर पाया.' तो दोस्त का रिएक्शन था, 'ओह्ह! सुबहान अल्लाह, अब कैसी हैं आंटी?' खुदा का शुक्र था उस वक्त आंटी तो ठीक थीं, लेकिन उसके लफ़्ज़ों से मेरे होश उड़ गए था. अब इस तस्वीर को ही देख लो. subhan allah

4. माशाल्लाह

माशाल्लाह का किस्सा भी बिल्कुल सुबहान अल्लाह जैसा ही है. माशाल्लाह मतलब अल्लाह क्या चाहता है. इसका इस्तेमाल ख़ुशी जाहिर करने. खुदा का शुक्र अदा करने के लिए होता है. जैसे मैंने कुरान पूरा पढ़ लिया. तो इसके जवाब में सुनने वाला कहता है माशाल्लाह. या फिर किसी के बच्चा पैदा हुआ तो कहा जाता है. या फिर उसने एग्जाम पास कर लिया तो कह देते हैं माशाल्लाह मुबारक हो. मगर जब लड़कियां मिलती हैं तो कहती हैं 'माशाल्लाह, तुम्हारी आई ब्रो बहुत प्यारी लग रही हैं' 'माशाल्लाह, तुम्हारा सूट बहुत खूबसूरत है.' बात यहां तक तो फिर भी ठीक है लेकिन तब बड़ी मुसीबत हो जाती है जब कोई किसी की मौत की खबर सुनने पर दुःख जाहिर करने के लिए उर्दू के लफ़्ज़ों का चयन करता है और कह देता है माशाल्लाह, आपकी दादी की मौत हुई जान के बड़ा दुःख हुआ. mashallaha

5. इंशाल्लाह

इसका मतलब होता है, जो अल्लाह चाहे. जब कुछ फ्यूचर में करने की बात होती है तो कहा जाता है कि इंशाल्लाह मैं ये कर लूंगा. यानी आल्लाह ने चाहा तो मैं ये कर लूंगा. लेकिन होता क्या है. जब घर में शादी होती है तो लड़के के मां बाप ये कहते सुने जाते हैं. इंशाल्लाह काफी दहेज मिलेगा. अब कोई इनसे पूछे कि क्या अल्लाह दहेज चाहता है. अब आप समझ गए न इंशाल्लाह का इस्तेमाल कहां करना है. जहां कहीं अच्छे काम की बात हो और उसको करने पर पाप न हो. तो फटाक से आप बोल सकते हैं इंशाल्लाह. और इस फोटो में जो दिखाया है उसके लिए तो कभी मत बोल देना. वरना खुद की तो छोड़िए दुनिया खतरे में आ जाएगी. inshallah

6. अल्लाहु अकबर

इसको आपने कई बार सुना होगा. मस्जिदों के लाउडस्पीकर से भी पहले ये लफ्ज़ निकलते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि जब कोई इन लफ़्ज़ों को बोलता है तो संदिग्ध नजर आ जाता है और हालात एकदम बदल जाते हैं. ऐसा आतंकी कहानियां सुनने की वजह से होता. जबकि इन दो लफ्जों का मतलब इतना है कि 'अल्लाह महान' है. अफसोस ये है कि इस शब्द को आतंक से जोड़ दिया गया है. जबकि ये तो अल्लाह की तारीफ है.
 

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