गांधी, लेनिन इस क्रांतिकारी के हॉस्टल को देखने भी आए थे
4 अक्टूबर 1857 को जन्म हुआ था. 1857 क्रांति की कहानी सुन ही बड़े हुए होंगे. बम्बई से स्कूल ख़त्म करके ऑक्सफ़ोर्ड चले गए थे. वहां लंदन में घर खोजते हुए उनको रेसिज्म का सामना करना पड़ा. लोग इंडियन कह लौटा देते थे. पर ये लोग हार मानने वाले थोड़ी थे. श्याम जी ने लंदन में ही इंडिया हाउस बना दिया. इंडियन स्टूडेंट्स के लिए हॉस्टल. और ये हॉस्टल बड़ा ही पॉपुलर हुआ. इस हॉस्टल में गांधी, लेनिन, लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले, सावरकर, मदन लाल धींगरा सभी आये थे. भयानक डिस्कशन होता था स्वतंत्रता संग्राम के प्लान को लेकर. इस हॉस्टल ने भारत को कई क्रांतिकारी दिए. इसके पहले 1875 में श्याम जी का कांटेक्ट स्वामी दयानंद सरस्वती से हुआ. दयानंद ने उनको बड़ा प्रभावित किया. उसी दौरान उनको देश भर में घूमने का मौका मिला. काशी के पंडितों के साथ मिलकर इन्होेने 1905 में इंडियन होम रूल सोसाइटी और एक अख़बार The Indian Sociologist शुरू किया.ब्रिटिशों से विश्वास उठा तो छोड़ दी दीवान की नौकरी
बी. ए. की पढ़ाई के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा 1885 में भारत लौट आये. और वकालत करने लगे. एक दिन रतलाम के राजा ने उनको बुलाया. और कहा ‘आप हमारे यहां दीवान का काम करो.’ फिर श्यामजी वहां दीवान का काम करने लगे. पर ख़राब हेल्थ की वजह से उन्होंने दीवान का काम छोड़ना पड़ा. मुंबई में कुछ वक़्त बिताने के बाद वो अजमेर में बस गए. अजमेर के ब्रिटिश कोर्ट में अपनी वकालत जारी रखी. इसके बाद उन्होंने उदयपुर के राजा के यह 1893 से 1895 तक काम किया और फिर जूनागढ़ राज्य में भी दीवान के तौर पर काम किया लेकिन सन 1897 में एक ब्रिटिश अधिकारी से विवाद के बाद ब्रिटिश राज से उनका विश्वास उठ गया और उन्होंने दीवान की नौकरी छोड़ दी.मोदी ने धांसू स्ट्रेटेजी तैयार की और वर्मा को भगवा रंग डाला
श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी की राख जिनेवा में सहेज के रखी थी. नरेंद्र मोदी 2003 में जब चीफ मिनिस्टर थे तो जिनेवा गए और वर्मा की राख को वापस भारत लेकर आए. मोदी ने इस तरह से वर्मा की भारत में दफनाए जाने की आखिरी विश पूरी की. मोदी अपने CM के कार्यकाल में श्यामजी कृष्ण वर्मा की अपने भाषणों में खूब चर्चा करते थे. 2010 में मोदी ने मांडवी जहां श्यामजी कृष्ण वर्मा पैदा हुए थे वहां पर क्रांति तीर्थ मेमोरियल भी बनवाया था. इस मेमोरियल हाउस में इंडिया हाउस की नकल भी बनवाई गई थी. वही इंडिया हाउस जो वर्मा ने एक सेंचुरी पहले बनवाया था.श्यामा प्रसाद मुखर्जी और श्यामजी कृष्ण वर्मा में कंफ्यूज हो जाते हैं मोदी
2003 में भुज की कच्छ यूनिवर्सिटी का नाम भी वर्मा के नाम पर कर दिया गया था. हर साल 4 अक्टूबर को मोदी श्यामजी कृष्ण वर्मा के बर्थडे पर विश किया करते थे. हां बस ये है कि 2014 के चुनावों के दौरान बस मोदी जी ने जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को मिला दिया था. मोदी बोले थे -'जब भारत को 1947 में आजादी मिली. तो नेहरू को जो पहला काम करना चाहिए था कि वो भारत से एक रिप्रजेंटेटिव भेजते जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अस्थियां लेकर आता. मुखर्जी देश के लिए जिंदगी भर लड़े. पर नेहरू ने ऐसा नहीं किया. ये काम 2003 तक नहीं किया गया था. वो 1930 में ही गुजर गए थे. उनके मरने के 73 साल बाद तक भारत ये काम नहीं कर पाया था. जबकि उसको आजाद हुए भी 50 साल गुजर चुके थे. उनकी अस्थियां भारत आने का इंतजार कर रहीं थीं. PM साहब आपकी पार्टी ने कभी ये काम नहीं किया. बस इतिहास को दबाने की कोशिश की गईं.'
पर सच्चाई तो यहां छिपी बैठी है
जब मोदी 12 नवंबर को यूके की यात्रा पर गए थे तो उन्होंने वहां भी वर्मा की तारीफ की. मोदी के इस कदम का वर्मा को जानने वाले विरोधी करते हैं. वो कहते हैं कि मोदी वर्मा के नाम का प्रयोग कच्छ के इलाके में अपना वोट बैंक बनाने के लिए करते हैं. मांडवी के श्यामजी कृष्ण वर्मा सोशल सेंटर के चेयरमैन रहे सुरेंद्र ढोलकिया ने एक प्रेस कांफ्रेस रिलीज के दौरान कहा था,'भले ही मोदी का 2003 उठाया गया कदम वर्मा की लिगेसी को कब्जाने और एक मिलिटेंट हिंदू के रूप में पेश करने की कोशिश हो पर वर्मा बड़े पैमाने पर एक सोशलिस्ट और सेक्यूलर थे. गुजरात के लोगों को ये जान लेना चाहिए कि श्यामजी सेक्यूलर, डेमोक्रेटिक और नॉन-फासिस्ट इंडिया चाहते थे. संघ परिवार ने उनके रूप में बस एक फ्रीडम फाइटर पाया और उसे अपने रंग में रंगने लगे. न ही वर्मा संकुचित देशभक्त थे और न ही हिंदू एक्स्ट्रीमिस्ट. फिर भी संघ परिवार उन्हें भुनाने में लगा है.'
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