“वहां से गुज़रने वाले एक राहगीर ने उसे सड़क किनारे बैठे देखा. हम वहां शाम 6.30 के करीब पहुंचे. कोहरा छाया हुआ था. वो घिसट-घिसट कर चल रही थी. उसने एक फ्रॉक पहना हुआ था. वहां आसपास कोई बंदर नहीं था. वो निर्वस्त्र नहीं थी और ना ही अपने हाथों पर चल रही थी. मुझे नहीं पता ये कहानियां कैसे फ़ैल रही है?”लड़की की बरामदगी का किस्सा आम होने के बाद मीडिया में उसे लेकर बहुत सी बातें कही गई. उसे ‘दी जंगल बुक’ के मशहूर कैरैक्टर मोगली की तर्ज पर ‘मोगली गर्ल’ पुकारा गया. बताया गया कि वो ‘महीनों तक’ जंगल में बंदरों के झुंड में रही. ये भी कहा गया कि वो निर्वस्त्र थी और उसे बचाने वाले पुलिसवालों को बंदरों से जंग लड़नी पड़ी. रेस्क्यू टीम के एक और मेंबर सब-इंस्पेक्टर धनराज यादव ने बताया कि लड़की बहुत कमज़ोर थी और अपने पैरों पर चलने में असमर्थ थी. इसीलिए वो घिसट-घिसट कर चल रही थी. बहराइच के जिला अस्पताल में लंबे इलाज के बाद अब लड़की को लखनऊ के मनोरोगियों के अस्पताल निर्वाण हॉस्पिटल भेज दिया गया है.

दरअसल ये किसी भी घटना को सनसनीखेज़ बना देने की इंसानी प्रवृत्ति का ही एक उदाहरण है. कतर्निया घाट के आसपास का जंगल इतना घना नहीं है कि कोई वहां महीनों खोया रहे और किसी को ख़बर न हो. अमेज़न के जंगलों की तरह मीलों तक निर्मनुष्य इलाका हो ऐसा नहीं है यहां. बीच-बीच में गांव हैं. वन-विभाग भी इन जंगलों में घूमता रहता है. ऐसा हो ही नहीं सकता कि ये लड़की किसी को कभी दिखी ही न हो. जिस जगह लड़की मिली है, वहां से महज़ 30 मीटर की दूरी पर वन विभाग की एक चौकी है. फ़ॉरेस्ट ऑफिसर्स का भी कहना है कि उन्होंने कभी ऐसी किसी लड़की को नहीं देखा. वो कहते हैं कि कोई जंगल में इतने दिनों तक रहे और नज़र न आए ये मुमकिन ही नहीं.दरअसल लड़की मानसिक रूप से बीमार है. इस बात की पूरी संभावना है कि उसे उसके परिवार वालों ने ही छोड़ दिया होगा. हालांकि ये एक त्रासदी प्रतीत होती है लेकिन ये असंभव बात नहीं.
बहराइच के जंगलों जैसी दूरदराज की जगहों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल क्या रहता होगा इसका अंदाज़ा बाखूबी लगाया जा सकता है. घोर गरीबी और डॉक्टरों तक पहुंच ना होने की वजह से किसी परिवार को ये दुर्भाग्यपूर्ण फैसला लेना पड़ गया होगा. मानसिक बीमार बच्चे से पीछा छुड़ा लेने वाली कुछेक घटनाएं पहले भी हुई हैं. गरीब लोग जब बच्चे के इलाज का खर्च बर्दाश्त करने में खुद को असमर्थ पाते हैं, तो ऐसा कोई एक्स्ट्रीम स्टेप उठा बैठते हैं. और बच्चा अगर गर्ल चाइल्ड हो तो इसकी संभावना और भी बढ़ जाती है. इस लड़की के साथ भी यही हुआ प्रतीत होता है. लड़की को छोड़े ज़्यादा समय भी नहीं हुआ मालूम होता. पुलिस का भी यही मानना है कि बच्ची के मां-बाप ने ही इसे छोड़ दिया है.बहराइच जिला अस्पताल के चीफ मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट बताते हैं कि अस्पताल में लड़की को देखने आने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि उन्हें उसके लिए एक गार्ड रखना पड़ा. लोग उसे वनदेवी बुलाने लगे थे. उसके पैर छूने लगे थे. इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के अनुसार डॉक्टरों का कहना है कि बच्ची में ऐसे कोई लक्षण नहीं दिख रहे, जिससे ये कहा जा सके कि वो बंदरों के साथ पली बढ़ी है. वो सीधी हो के चलती है जो कि नामुमकिन होता अगर वो बंदरों के साथ बड़ी हुई होती. उसके हाथ भी मोटे और फूले हुए होते, साथ ही घुटने मुड़े हुए होते. बजाय इसके कि उसे एक रोमांचकारी कहानी का किरदार बना दिया जाए, उसके इलाज पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है. साथ ही ज़रूरी है स्वास्थ्य सेवाओं को इतना सुलभ बना दिया जाए कि फिर किसी को ऐसा अमानवीय कदम ना उठाना पड़े.
बहराइच के इन्हीं जंगलों में जब 'दी लल्लनटॉप' की टीम गई थी: https://www.youtube.com/watch?v=5Dv1hj4OE7k बहराइच, वो इलाका जहां के मंत्री भी मंत्री जैसे नहीं लगते: https://www.youtube.com/watch?v=tLYo-DfVat4
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