यह बयान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव का है, जो उन्होंने 31 जुलाई को संसद भवन के बाहर दिया था. अगर यह बयान लालू, तेजस्वी या किसी कांग्रेस नेता की ओर से आया होता, तो इसे स्वाभाविक माना जाता, लेकिन बयान तो शरद यादव का था. उस शरद यादव का जो महागठबंधन के दौरान अलग-अलग पार्टियों के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें बीजेपी के विरोध में लामबंद कर रहे थे. यह उस शरद यादव का बयान था, जिसने जदयू बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. बयान उस शरद यादव का था, जो नीतीश से पहले जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. बयान उस शरद यादव का था, जो जून 2013 तक एनडीए के संयोजक थे. उस वक्त एनडीए से अलग होने के पीछे तर्क दिया गया था कि बीजेपी ने अपनी कमान उस नरेंद्र मोदी के हाथ में सौंप दी है, जिसकी वजह से देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को खतरा है."जो परिस्थिति है, वह अप्रिय है. देश की और बिहार की 11 करोड़ जनता के लिए यह ठीक नहीं है. बिहार में जो फैसला हुआ मैं उससे सहमत नहीं हूं. बिहार के 11 करोड़ लोगों ने यह जनादेश दिया था. जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है."

अब उसी शरद यादव को चुनाव आयोग ने अब तक का सबसे बड़ा झटका दे दिया है. आयोग ने 17 नवंबर 2017 को फैसला दिया है कि जदयू का जो चुनाव चिन्ह है, वो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली पार्टी के पास ही रहेगा. बिहार में राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन टूटने के बाद अपनी ही जदयू में अलग-थलग पड़े शरद यादव ने जदयू पर अपनी दावेदारी पेश की थी. 13 नवंबर को नीतीश कुमार ने चुनाव आयोग से मिलकर अपनी पार्टी के चुनाव निशान तीर पर जल्दी ही फैसला लेने को कहा था. इसके बाद ही 17 नवंबर को चुनाव आयोग ने फैसला दिया कि तीर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास ही रहेगा, क्योंकि नीतीश के पास ही विधायकों का समर्थन है.

महागठबंधन की कवायद 20 महीने में ही खत्म हो गई.
शरद यादव उस नेता का नाम है, जिसने अजेय मानी जाने वाली कांग्रेस की लोकसभा सीट पर जेल से चुनाव जीत लिया था. साल था 1974 और लोकसभा सीट थी जबलपुर. सेठ गोविंद दास जो कांग्रेस के पिछले पांच बार से सांसद थे, उनका अचानक निधन हो गया. उनकी मौत से सीट खाली हुई तो उपचुनाव होना था.कांग्रेस के उम्मीदवार थे सेठ गोविंद दास के बेटे रवि मोहन दास. उस वक्त जेपी का आंदोलन अपने चरम पर था और शरद मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्युरिटी ऐक्ट) के तहत जेल में थे. जेपी ने इस उपचुनाव के लिए शरद यादव का नाम तय कर दिया और वह हलधर किसान वाले चुनाव निशान के साथ जेल से ही चुनावी मैदान में उतर गए. नतीजा आया तो किसी को भरोसा नहीं हुआ. कांग्रेस सहानुभूति की लहर में भी अपनी परंपरागत सीट खो चुकी थी और उस सीट से नए सांसद थे शरद यादव. शरद यादव ने राजनैतिक करियर शुरू तो मध्यप्रदेश से किया, लेकिन उनका सफर उत्तर प्रदेश से होते हुए बिहार तक पहुंचा, जहां उन्होंने अपना एक अलग मुकाम खड़ा कर लिया.
जिस पार्टी को बनाया, उसे पाने के लिए लड़े और हार गए

शरद यादव ने जार्ज फर्नांडिज के साथ मिलकर जदयू की स्थापना की थी.
1971 में बतौर छात्रसंघ अध्यक्ष अपने राजनैतिक जीवन का आगाज करने वाले शरद ने लोकसभा, राज्यसभा और केंद्र में मंत्रालय संभाला है. 1991 से 1996 तक शरद जनता दल से जुड़े रहे. इस दौरान 1995 में उन्हें जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया. लगभग दो साल तक शरद लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में भी रहे. 1998 में शरद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता वाली बीजेपी से हाथ मिला लिया और केंद्र में शामिल हो गए. जनता दल, लोकशक्ति पार्टी और समता पार्टी को मिलाकर अक्टूबर 2003 में जनता दल (युनाइटेड) का गठन हुआ और यह भी एनडीए का ही हिस्सा बना रहा. यह गठबंधन 17 साल तक चलता रहा और जब बीजेपी के चेहरे के तौर पर नरेंद्र मोदी सामने आए तो जदयू ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया. बतौर पार्टी अध्यक्ष दो कार्यकाल पूरा करने के बाद यादव पार्टी संविधान के तहत तीसरी बार अध्यक्ष नहीं बन सकते थे, इसलिए 2016 में नीतीश कुमार को पार्टी अध्यक्ष चुन लिया गया. उस वक्त नीतीश कुमार ने कहा था कि शरद यादव पार्टी के मार्गदर्शक बने रहेंगे. यह कुछ वैसा ही हो रहा है, जैसा बीजेपी में आडवाणी के साथ हुआ था. आडवाणी ने भी बीजेपी को बनाने में अहम भूमिका निभाई थी और उसे फर्श से अर्श तक पहुंचाया था. अब वह भी पार्टी में मार्गदर्शक की भूमिका में हैं. उस भूमिका में जिसके बारे में किसी को पता भी नहीं है कि इस भूमिका के मायने क्या हैं.
जेपी और लोहिया के साथ आंदोलनों में लिया हिस्सा
शरद यादव ने जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया से राजनीति की शिक्षा ली थी. नीतीश और लालू के साथ ही मुलायम भी उनकी इस कक्षा के सहपाठी रहे हैं. छात्र आंदोलन से जुड़े शरद की कई आंदोलनों में हिस्सेदारी रही और उन्होंने मीसा के तहत 1969-70, 1972 और 1975 में जेल जाना पड़ा था.मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाने में भूमिका

1990 में मंडल कमीशन को लागू करवाने में शरद यादव की भी अहम भूमिका थी.
अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिलाने के लिए वीपी सिंह ने 1990 में जिस मंडल कमीशन को लागू करवाया था, उसके पीछे शरद यादव का भी बड़ा हाथ था. तमाम विरोधों के बाद भी शरद यादव ने मंडल कमीशन के पक्ष में लगातार आवाज बुलंद की.
...तो जदयू में पड़ जाएगी फूट
नीतीश कुमार के बाद जदयू के सबसे कद्दावर नेता माने जाने वाले शरद यादव अब पार्टी के साथ नहीं हैं. बिहार से लेकर गुजरात तक के कई जदयू नेता शरद यादव गुट के रहे हैं. अब जब शरद यादव चुनाव आयोग से भी तीर का चुनाव निशान हासिल नहीं कर पाए, तो गुजरात में होने वाले चुनाव में उन्हें खासी परेशानी होगी. वहीं जदयू के राज्यसभा सांसद अली अनवर भी गठबंधन के टूटने से नाराज थे और इसे राष्ट्रीय आपदा करार दिया था. शरद यादव के इस रुख को देखते हुए रविवार को तमिलनाडु से राज्यसभा के सांसद और सीपीआई के नेता डी राजा ने शरद से दिल्ली में मुलाकात भी की थी. डी राजा से पहले सीताराम येचुरी भी शरद से मुलाकात कर चुके हैं. इसके अलावा खुद लालू यादव शरद यादव को ट्वीट कर अपने साथ आने के लिए कह चुके हैं.अपने ट्वीट में लालू ने लिखा है.
बीजेपी पर हमला बोल चुके हैं शरद
महागठबंधन के टूटने के बाद भी शरद यादव ने केंद्र सरकार के खिलाफ ट्विटर पर हमला बोला था. उन्होंने कहा था कि सत्ताधारी दल ने काले धन को वापस लाने का वादा किया जो पूरा नहीं हुआ. पनामा पेपर्स में सामने आए भारतीयों के खिलाफ भी सरकार ने कार्रवाई नहीं की है.
अब जब तीर शरद यादव के हाथ से निकल चुका है, तो स्वाभाविक तौर पर वो जदयू नेता भी उनके साथ आने से कतराएंगे, जो नीतीश से थोड़ा-बहुत नाराज थे. फिलहाल तो शरद यादव के हाथ में ही कुछ भी नहीं बचा है, ऐसे में वो किसी और नेता को किसी चीज का भरोसा नहीं दिला सकते हैं.
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