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पेशवाओं ने रचा इतिहास, वहीं अब नमाज और गोमूत्र पर सियासत, शनिवार वाडा का इतिहास और विवाद दोनों दिलचस्प

Shaniwar Wada controversy explained: शनिवार वाडा किला सिर्फ पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि मराठा साम्राज्य की आत्मा का प्रतीक है. यहां की दीवारों ने सत्ता, प्रेम, षड्यंत्र, युद्ध और बलिदान- सब कुछ देखा है.

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शनिवार वाडा का इतिहास बड़ा दिलचस्प है (फोटो- महाराष्ट्र टूरिज्म)

बाद महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई है. लेकिन इस विवाद के बीच यह जानना ज़रूरी है कि शनिवार वाडा आखिर है क्या, और भारतीय इतिहास में इसकी क्या जगह है.

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निर्माण और नाम की कहानी

शनिवार वाडा का निर्माण मराठा साम्राज्य के महान पेशवा बाजीराव प्रथम ने वर्ष 1730 में करवाना शुरू किया था. इसका निर्माण कार्य लगभग दो वर्षों (1730–1732) में पूरा हुआ. उस समय इस भव्य किले की लागत करीब ₹16,000 बताई जाती है, जो अठारहवीं सदी में एक बड़ी रकम थी.
इसका नाम “शनिवार वाडा” इसलिए रखा गया क्योंकि इसका शिलान्यास शनिवार के दिन किया गया था. बाद में यह मराठा शासन के दौरान पेशवाओं की राजधानी और सत्ता का केंद्र बन गया.

वास्तुकला और संरचना

शनिवार वाडा की वास्तुकला मराठा और मुगल शैलियों का संगम है. इसका मुख्य द्वार "दिल्ली दरवाज़ा" नाम से जाना जाता है, जो इतना विशाल था कि हाथियों की सवारी आसानी से गुजर सके. किले में कभी सात मंज़िला इमारतें, बाग-बगीचे, फव्वारे, झूला चौक और नानासाहेब पेशवा का दरबार हॉल हुआ करते थे.

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यह परिसर लगभग 13 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ था, हालांकि 1828 की आग के बाद अब केवल इसके पत्थर के हिस्से और दीवारें शेष हैं.

मराठा सत्ता का केंद्र

शनिवार वाडा न सिर्फ एक आवासीय किला था, बल्कि यह मराठा साम्राज्य का राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र भी था.
बाजीराव प्रथम (1720–1740) के दौर में यहीं से दिल्ली तक मराठों का विस्तार हुआ.

बालाजी बाजीराव (1740–1761) के शासन में यहीं से सेना को पानीपत के तीसरे युद्ध के लिए भेजा गया. जो मराठा इतिहास का सबसे दुखद अध्याय साबित हुआ. बाद में माधवराव प्रथम ने इसी वाडे से मराठा सत्ता को पुनर्जीवित किया.

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शनिवार वाडा का सबसे काला अध्याय

शनिवार वाडा का सबसे भयावह और प्रसिद्ध प्रसंग है, पेशवा नारायणराव की हत्या (1773). उनके चाचा रघुनाथराव और चाची आनंदीबाई के षड्यंत्र में, किले के अंदर ही नारायणराव की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.

कहा जाता है कि उनकी चीख “काका माला वाचवा” (काका, मुझे बचाओ) आज भी इस किले की दीवारों में गूंजती है. यह घटना शनिवार वाडा को मराठा इतिहास का रक्तरंजित प्रतीक बना गई.

युद्धों की गवाही और पतन

शनिवार वाडा ने मराठा साम्राज्य के उत्थान और पतन दोनों देखे. यहां से कई बड़े सैन्य अभियान चले — दिल्ली, बुंदेलखंड, मालवा और दक्षिण भारत तक मराठा सेनाएं यहीं से रवाना होती थीं.

लेकिन 1818 में तीसरे ब्रिटिश-मराठा युद्ध के बाद पेशवा बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों से हार माननी पड़ी, और उन्होंने शनिवार वाडा अंग्रेजों को सौंप दिया.

यही वह वक्त था जब मराठा साम्राज्य की राजनीतिक यात्रा का अंत हो गया.

1828 की विनाशकारी आग

पेशवाओं के पतन के एक दशक बाद, 1828 में शनिवार वाडा में भयानक आग लग गई. आग इतनी भीषण थी कि पांच दिनों तक जलती रही और लकड़ी से बनी लगभग पूरी संरचना राख हो गई.

आज केवल पत्थर की दीवारें, बुर्ज और कुछ दरवाजे ही इतिहास की गवाही देते हैं. फिर भी, ये खंडहर आज भी मराठा वैभव और भारतीय स्थापत्य की झलक दिखाते हैं.

आज का शनिवार वाडा

आज शनिवार वाडा को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने एक संरक्षित स्मारक के रूप में रखा है. यह पुणे के सबसे लोकप्रिय ऐतिहासिक स्थलों में से एक है. यहां हर शाम लाइट एंड साउंड शो आयोजित होता है, जिसमें मराठा इतिहास को जीवंत रूप में दिखाया जाता है. फिल्म “बाजीराव मस्तानी” ने भी इस स्थल को नई पीढ़ी के बीच प्रसिद्ध कर दिया.

वर्तमान विवाद और राजनीति

हाल ही में शनिवार वाडा किले में कुछ मुस्लिम महिलाओं ने नमाज अदा की, जिसके बाद बीजेपी सांसद ने किले को गोमूत्र से धुलवाने का आदेश दिया. इस बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति में बवंडर खड़ा कर दिया.

ये भी पढ़ें- पुणे शनिवार वाडा विवाद: BJP सांसद ने नमाज स्थल का गोबर-गौमूत्र से शुद्धिकरण कराया, महायुति गठबंधन में तनाव

विपक्षी दलों ने इसे इतिहास और धर्म के नाम पर राजनीति करने का प्रयास बताया, जबकि समर्थक इसे “धार्मिक अपमान की प्रतिक्रिया” मान रहे हैं.
इस विवाद ने शनिवार वाडा को फिर एक बार राजनीतिक बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है.

इतिहास की गूंज और आज की संवेदनाएं

शनिवार वाडा किला सिर्फ पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि मराठा साम्राज्य की आत्मा का प्रतीक है. यहां की दीवारों ने सत्ता, प्रेम, षड्यंत्र, युद्ध और बलिदान- सब कुछ देखा है. आज जब यह ऐतिहासिक धरोहर फिर से राजनीति की आंच में झुलस रही है, तब सवाल उठता है. क्या हम अपने इतिहास को सम्मान देने के बजाय उसे फिर से विभाजित करने की कोशिश तो नहीं कर रहे?

वीडियो: बाजीराव पेशवा के बनाए शनिवार वाडा पहुंचा लल्लनटॉप

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