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समांथा प्रभु ने नेबुलाइजेशन की फोटो पर क्या लिखा जो डॉक्टर जेल में डालने की बात करने लगे?

समांथा के सोशल मीडिया पोस्ट के मुताबिक़, ये प्रक्रिया 'चमत्कार' है. इससे उनका सांस से जुड़ा इनफ़ेक्शन ख़त्म हो गया. लेकिन विवाद तब हुआ जब उन्होंने दुनिया को सलाह दे दी कि आम वायरल इनफ़ेक्शन के दौरान भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

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समांथा अभी छुट्टी पर हैं, मगर भयानक ट्रोल हो रही हैं. (फ़ोटो - सोशल)

ऐक्ट्रेस समांथा रूथ प्रभु अपने एक इंस्टाग्राम पोस्ट की वजह से चर्चा में हैं. उन्होंने हाइड्रोजन परॉक्साइड नेबुलाइज़ेशन की वकालत की है. मगर सोशल मीडिया पर डॉ. साइरिएक ऐबी फिलिप्स उर्फ़ ‘द लिवर डॉक’ (The Liver Doc) समेत कई डॉक्टर्स ने समांथा की आलोचना की है. डॉक्टरों ने कहा है कि वो ग़लत सूचना फैला रही हैं. ऐसी चीज़ को बढ़ावा दे रही हैं, जो नुक़सानदेह हो सकती है.

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बवाल हुआ क्या है?

एक मॉलिक्यूल है, हाइड्रोजन परॉक्साइड. एक तरह का क्लीनिंग एजेंट. इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इसमें ऑक्सीजन का एक अतिरिक्त अणु होता है. ये एक्स्ट्रा ऑक्सीजन जर्म्स से लड़ने में कारगर माना जाता है. क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिज़ीज़ (COPD) जैसी कंडीशन्स में बलगम साफ़ कर देता है. लेकिन इसमें सब गुड-गुड नहीं है. कई विशेषज्ञ इसके ख़तरे को लेकर चेताते हैं.

नेबुलाइज़र मशीन के ज़रिये हाइड्रोजन परॉक्साइड को अंदर खींचने के प्रोसेस को कहते हैं, ‘हाइड्रोजन परॉक्साइड नेबुलाइज़ेशन’. बेसिकली नेबुलाइज़र एक ऐसा उपकरण है, जो तरल दवा को गैस में बदल देता है. ताकि मरीज़ सांस के माध्यम से उसे अंदर ले सके. ये तरीक़ा हाल में बहुत चर्चा में है. अब पिक्चर में आती हैं ऐक्ट्रेस समांथा रुथ प्रभु, जिन्होंने अभी पिक्चरों से ब्रेक ले रखा है. कुछ समय पहले वो अपनी दोस्त के साथ तमिलनाडु में थीं, फिर बाली चली गईं. फ़िलहाल ऑस्ट्रिया में छुट्टियां मना रही हैं.

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गुरुवार, 4 जुलाई को उन्होंने एक तस्वीर पोस्ट की. इसमें वो नेबुलाइज़र के ज़रिये हाइड्रोजन परॉक्साइड और डिस्टिल्ड वॉटर अंदर खींच रही हैं. दरअसल, कुछ साल पहले समांथा को मायोसिटिस नाम की एक ऑटोइम्यून कंडीशन का पता चला था. इसमें मसल्स कमज़ोर हो जाते हैं, थक जाते हैं और दुखते हैं. समांथा के सोशल मीडिया पोस्ट के मुताबिक़, ये प्रक्रिया 'चमत्कार' है. इससे उनका सांस से जुड़ा इनफ़ेक्शन ख़त्म हो गया. लेकिन विवाद तब हुआ जब उन्होंने दुनिया को सलाह दे दी कि आम वायरल इनफ़ेक्शन के दौरान भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

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समांथा की स्टोरी, जिसपर बवाल है.

उनके इस पोस्ट पर लिवर, पैनक्रियास, गॉल ब्लैडर के एक्सपर्ट (हेपेटोलॉजिस्ट) ​​डॉ. साइरिएक ऐबी फिलिप्स ने ‘स्वतः संज्ञान’ ले लिया. उन्होंने तो समांथा को 'स्वास्थ्य और विज्ञान के मामले में अनपढ़' क़रार दिया और ग़लत जानकारी फैलाने के लिए जेल भेजने की बात कह दी. लिखा,

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“एक तर्कसंगत और वैज्ञानिक तौर पर प्रगतिशील समाज में इन (समांथा) पर सार्वजनिक स्वास्थ्य को ख़तरे में डालने का आरोप लगाया जाता, जुर्माना लगाया जाता या जेल भी हो सकती थी. उन्हें अपनी टीम में बेहतर सलाह देने वाले लोग चाहिए. क्या भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय या कोई भी स्वास्थ्य नियामक संस्था सार्वजनिक स्वास्थ्य को ख़तरे में डालने वाले इन सोशल मीडिया 'इन्फ्लूएंज़ा' पर कोई ऐक्शन लेगी? या ऐसे ही मौन धरकर लोगों को मरने देंगे?”

समांथा ने इसका जवाब दिया. तीन पन्नों का जवाब. लिखा कि लोगों की मदद करने के इरादे से उन्होंने अपना अनुभव शेयर किया था. बताया कि मायोसिटिस पकड़े जाने के बाद उन्होंने अलग-अलग तरह की दवाएं लीं. कई पारंपरिक इलाज भी, जो महंगे थे. मगर कोई काम न आया. इसके बाद शोध कर के और डॉक्टर के सुझावों के साथ वैकल्पिक इलाज लेने शुरू किए, जिनमें हाइड्रोजन परॉक्साइड नेबुलाइजे़शन भी एक था. समांथा का दावा है कि जिस डॉक्टर ने उन्हें ये सलाह दी उन्हें 25 साल का अनुभव है और उनके लिए ये कारगर साबित हुआ है.

हालांकि, तमाम दावों के साथ समांथा ने एक वादा भी किया कि वो वैकल्पिक इलाज का प्रचार करते समय ज़्यादा सावधानी बरतेंगी.

सत्य क्या है?

यूं तो लगता है कि ये दावे बनाम दावे की लड़ाई है. लेकिन लिवर डॉक इस फ़ील्ड के एक्सपर्ट हैं. उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर ही समांथा को घेरा है. ऐसे में सेकेंड ओपीनियन के लिए दी लल्लनटॉप ने बात की गुरुग्राम के सीके बिरला अस्पताल के क्रिटिकल केयर और पल्मोनोलॉजी के प्रमुख डॉ. कुलदीप कुमार ग्रोवर से. उन्होंने हमें बताया,

"सांस संबंधित कुछ बीमारियों में डॉक्टर इसकी सलाह देते हैं. मगर ये बहुत कारगर नहीं है. साथ ही इसमें रिस्क रहता है. गले और नाक में तेज़ जलन हो सकती है. कुछ मरीज़ों को उल्टी भी हो जाती है.

...ऐसा कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि हाइड्रोजन परॉक्साइड नेबुलाइज़ेशन को सांस संबंधित इनफेक्शन से निपटने के लिए इस्तेमाल किया जाए."

अन्य डॉक्टर्स भी चेताते हैं कि हाइड्रोजन परॉक्साइड और डिस्टिल्ड वॉटर नेबुलाइज़ेशन, दोनों के साथ ही जोख़िम है. वो कहते हैं कि हाइड्रोजन परॉक्साइड को सांस के साथ खींचना अच्छी प्रैक्टिस नहीं है. फेफड़ों में जलन के अलावा इससे सांस संबंधी समस्याएं बदतर हो सकती हैं. रही बात डिस्टिल्ड वॉटर की, तो वो हाइड्रोजन परॉक्साइड की तुलना में सुरक्षित है. मगर अनुचित इस्तेमाल जोख़िम पैदा कर सकता है. नेबुलाइज़ेशन के लिए डॉक्टर्स नमक वाले पानी (सलाइन) की सलाह देते हैं, क्योंकि यह फेफड़ों के लिए सुरक्षित है.

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