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व्लादिमीर पुतिन का रूस इतना ताकतवर कैसे बन गया कि पूरी दुनिया से टकराने को तैयार है?

क्यों अमेरिका और यूरोपीय देश भी व्लादिमीर पुतिन से खौफ खाते हैं? जानिए

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रुसी सेना और पुतिन (फोटो सोर्स- Reuters और Getty)
रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) संकट अब निर्णायक स्थितियों तक आ गया है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir putin) ने सोमवार, 21 फरवरी 2022 को पूर्वी यूक्रेन के लुगंस्क और डोनेत्स्क इलाकों को अलग देश के तौर मान्यता दे दी है. और इस निर्णय के साथ ही दोनों देश सीधे युद्ध की दहलीज पर कदम रख चुके हैं. अमेरिका की तरफ़ से रूस के साथ-साथ लुगंस्क और डोनेत्स्क पर प्रतिबंधों की बात कही गई है. रूस पर ब्रिटेन, कनाडा और जापान ने भी आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है. इसके अलावा यूनाइटेड नेशंस ने भी सख्त शब्दों में रूस की मजम्मत की है.
रूसी आर्मी के करीब 1,50,000 जवान यूक्रेन की सीमा पर तैनात हैं, व्लादिमीर पुतिन (Vladimir putin) कहते हैं कि फैसला लेना जरूरी था क्योंकि यूक्रेन की आर्मी नाटो के कहे पर चलती है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की (Volodymyr Zelenskyy) ने कहा है, 'हम डरे नहीं हैं, शांति और कूटनीति से रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे, लेकिन किसी को कुछ देंगे नहीं.'
बहरहाल, इन सब घटनाक्रमों के बीच आज एक सवाल ये भी उठ रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पास ऐसा क्या है, जो वो किसी से भी नहीं डर रहे. उनके पास ऐसा कौन सा ब्रह्मास्त्र है, क्या कूटनीति है? जिसके चलते आज वे पूरे यूरोप और अमेरिका से टकराने को तैयार हैं. आज इसी सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे. व्लादिमीर पुतिन की शुरुआत किसी के व्यक्तित्व के बानगी उसके बचपन से समझी जा सकती है. पुतिन की पैदाइश और परवरिश लेनिनग्राद यानी अब के सेंट पीट्सबर्ग की है. पुतिन उस माहौल में पले-बढ़े जहां लड़कों में मारपीट होना आम बात थी. इसीलिए पुतिन ने शुरुआती वक़्त में जूडो सीखा. अक्टूबर 2015 में पुतिन ने कहा था, 'लेनिनग्राद की स्ट्रीट फाइट से मैंने ये सीख लिया था कि अगर लड़ाई तय है तो खुद पहला पंच मारो.'
व्लादिमीर पुतिन (Vladimir putin) के पुरखे स्टालिन के रसोइए हुआ करते थे. और पुतिन का रुझान जासूसी में था. पुतिन क़ानून की पढ़ाई के बाद सुरक्षा एजेंसी केजीबी (KGB) के लिए काम करने लगे. काम जासूसी का था. इसके बाद साल 1997 में पुतिन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार में बतौर प्रधानमंत्री शामिल हुए और बोरिस के इस्तीफ़े के बाद 1999 में कार्यकारी राष्ट्रपति बन गए. साल 2000 में पुतिन ने पहला राष्ट्रपति चुनाव लड़ा और आसान जीत दर्ज की. इसके बाद से रूस की राजनीति में वो होने लगा जो पुतिन चाहते थे. 2004 में पुतिन दोबारा और 2012 में तीसरी बार रूस के राष्ट्रपति बने. और इसके बाद साल 2018 में व्लादिमीर पुतिन ने चौथी बार रूस के राष्ट्रपति पद की शपथ ली. पुतिन का ये कार्यकाल 2024 तक चलेगा. रूस की सियासत में जोसेफ़ स्टालिन के बाद सबसे लंबे वक़्त तक राष्ट्रपति बनने वाले रूसी नेता पुतिन ही हैं.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (फाइल फोटो - Aajtak)
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (फाइल फोटो - Aajtak)


साल 2000 से अब तक शासन संभालने वाले पुतिन की लोकप्रियता का ग्राफ रूस में लगातार बढ़ा है. पहले चुनाव में उन्हें 53 फीसदी वोट मिले थे. और 2018 में 77 फीसदी वोट. हालांकि, पश्चिमी देश कहते हैं कि पुतिन चुनाव में धांधली करते हैं. आरोप सही है या नहीं, हम नहीं जानते. लेकिन इतना तय है कि इस दौरान कभी भी पुतिन के खिलाफ़ कोई बड़ा प्रदर्शन या जमीनी विरोध नहीं देखा गया. रूसी मीडिया पुतिन को दयालु दिखाती है, कुत्तों से प्यार करने वाला शख्स बताती है. रूस में पुतिनवाद का दौर ऐसा है कि उनके नाम से कई प्रोडक्ट्स बाजार में बिकते हैं. लेकिन ऐसा क्या है जिसने पुतिन को पुतिन बनाया? पुतिन के शुरुआती दो कार्यकालों से रूस में उनकी लोकप्रियता के ऊंचे स्तर की बात समझ आती है. रूस की तस्वीर बदली साल 2000 में जब पहली दफा पुतिन रूस के राष्ट्रपति बने. तब सोवियत संघ का पतन हो चुका था. ये रूस की बदहाली का दौर था. आर्थिक स्तर गिरा हुआ था, भ्रष्टाचार का माहौल था. ऐसे में पुतिन की एंट्री से उम्मीद जगी और पुतिन एक हद तक उस पर खरे भी उतरे. साल 2000 से लेकर 2008 तक रूस की जीडीपी में खासी तेजी आई. गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का नंबर पहले से करीब आधा हो गया. जानकार कहते हैं पुतिन के आने के बाद रूस में अमीरी-गरीबी के बीच की खाई भी पटी. आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2000 में रूस का प्रति व्यक्ति ग्रॉस नेशनल प्रोडक्शन 49,800 रूबल था, जो साल 2013 में बढ़कर 4,61,300 रूबल हो गया. शुरूआती आठ सालों के अपने कार्यकाल में पुतिन ने बुनियादी स्तर पर काफ़ी बदलाव किए, पेंशन बढ़ाई गईं, एजुकेशन, सोशल वेलफेयर, सोशल सिक्योरिटी जैसे मुद्दों पर काम हुआ. क़ानून व्यवस्था सुधारने के लिए कई क़ानून बने. और साल 2013 में इन्हीं सब सुधारों के चलते पहली बार रूस में जन्मदर बढ़कर मृत्युदर से ज्यादा हो पाई. आक्रामक विदेश नीति से रूस के अंदर और बाहर बनाया वर्चस्व  पुतिन के बारे में लोग कहते हैं कि उनका ग्राफ बढ़ने के पीछे सिर्फ सामाजिक और प्रशासनिक बदलाव ही अकेली वजह नहीं हैं. उनकी लोकप्रियता की दूसरी वजह उनकी आक्रामक विदेश नीति भी है. उनका वह मकसद भी है जिसके तहत वे दुनिया के नक़्शे पर एक बार फिर रूस का वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं. पुतिन ने साल 2014 में जिस तरह पश्चिमी देशों की परवाह किये बिना यूक्रेन के क्रीमिया को रूस में शामिल किया, उसके बाद से रूस में उनकी लोकप्रियता और परवान चढ़ी.
थोड़ी बात क्रीमिया की कर लें, जोसेफ स्टालिन (Joseph Stalin) की मौत के बाद सोवियत संघ की कमान संभाल रहे थे निकिता ख्रुश्चेव (Nikita Khrushchev). निकिता ने साल 1954 में बतौर तोहफ़ा क्रीमिया यूक्रेन को सौंप दिया था. उस वक़्त रूस और यूक्रेन दोनों सोवियत संघ का हिस्सा थे, इसलिए इस फैसले पर जनता और रूस के नेताओं को कोई आपत्ति भी नहीं हुई. लेकिन साल 1991 में यूक्रेन की सोवियत संघ से आजादी के बाद क्रीमिया की ज्यादातर आवाम रूस में विलय की मांग करने लगी. इसकी वजह क्रीमिया में 60 फ़ीसदी से ज्यादा लोगों का रूसी मूल का होना था. शुरुआत में क्रीमिया के लोगों की रूस में विलय की मांग को पुतिन ने ख़ास तवज्जोह नहीं दी.
लेकिन, जब यूक्रेन का झुकाव नाटो और यूरोपियन यूनियन की तरफ़ होने लगा तो रूस ने क्रीमिया में सैन्य दखल देना शुरू कर दिया. इसके बाद बड़ी आसानी से क्रीमिया पर रूस का कब्जा हो गया. विदेश मामलों के जानकार बताते हैं कि इस घटनाक्रम के चलते सोवियत विघटन से आहत रूसी जनता को लगने लगा कि रूस का खोया गौरव लौटाने वाले नेता पुतिन ही हैं. रूस की जनता के लिए अंतरराष्ट्रीय मामले और युद्धों में जीत का बड़ा महत्त्व है. कहा जाता है कि इसीलिए जब रूस के हाथ कोई बड़ी सफलता मिलती है, तब पुतिन की पॉपुलैरिटी का ग्राफ भी तेजी से बढ़ता है. रूस की सर्वे एजेंसी ‘लेवीदा’ के मुताबिक़ साल 2008 में जॉर्जिया वॉर में मिली जीत, 2014 में क्रीमिया का विलय और 2016 में सीरिया में अमेरिका को मिली पटखनी ने पुतिन को रूस के सियासी अर्श पर सबसे ऊंचा दर्जा दिलाया. रूसी सर्वेक्षणों के मुताबिक ऐसे मौकों पर रूस की लगभग 90 फ़ीसदी जनता पुतिन के समर्थन में खड़ी थी. हालांकि, यह भी कहा जाता है कि ऐसी घटनाओं को रूसी मीडिया खूब बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है और पुतिन की तारीफ में खूब कसीदे पढ़ता है.
युद्धक टैंक पर सवार एक रूसी सैनिक (Photo- Reuters)
युद्धक टैंक पर सवार एक रूसी सैनिक (Photo- Reuters)


जानकार कहते हैं कि 2018 के चुनाव में पुतिन को उनकी वैश्विक स्तर पर एक ताकतवर नेता की छवि ने ज्यादा फायदा पहुंचाया. एक मार्च 2018 को रूस के चुनावी दिनों के दौरान पुतिन का दिया एक भाषण बड़ा चर्चित है. पुतिन ने दो घंटे तक यह भाषण दिया, जिसमें एक घंटा अमेरिका और यूरोपीय देशों को डराने में खर्च किया. इस दौरान पुतिन ने रूस की न्यूक्लियर पॉवर का भी ज़िक्र किया. उन्होंने बताया कि रूस ने ऐसी न्यूक्लियर मिसाइल्स बना ली हैं, जिनको अमेरिका का एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम तक नहीं रोक सकता. पुतिन ने कहा,

‘वो सब लोग, जो पिछले 15 सालों से हथियारों की होड़ की आग भड़काते रहे हैं, जो रूस पर एकतरफ़ा बढ़त चाहते हैं, और अवैध प्रतिबंध लगाकर हमारा विकास रोकना चाहते हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूं कि आप रूस को रोकने में नाकामयाब रहे हैं. हमारी बात न कोई सुनना चाहता था, न हमें गंभीरता से लेना चाहता था, इसलिए अब ध्यान से सुन लें, बात ऐसे बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम की है, जो हमने अमेरिका के एंटी-बैलिस्टिक के जवाब में तैयार किया है.’

बात बेशक हथियारों की होड़ की है. अमेरिका ने नाटो की सेनाओं को यूरोप में रूस की पश्चिमी सीमा तक बढ़ा दिया है. जबकि साल 1990 में जब जर्मनी का एकीकरण हुआ, तब अमेरिका ने वादा किया था कि वह पूर्वी यूरोप के इलाके में नाटो का विस्तार नहीं करेगा. लेकिन वादा-खिलाफी हुई. अमेरिका ने नाटो की सेना ही नहीं, बल्कि रूसी सीमा पर ऐसे बैलेस्टिक रॉकेट तैनात किए, जिनका मकसद कहने के लिए ईरान और नॉर्थ कोरिया के मिसाइल्स की टक्कर लेना है, लेकिन असलियत ये है कि रूस इन मिसाइल्स से घिरा हुआ है. एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया ये तीनों देश 1990 तक सोवियत संघ के ही अपने गणराज्य थे. अब नहीं हैं. यहीं नाटो सेनाओं और उनकी मिसाइल्स की तैनाती है. रूस की ठीक सीमा पर तैनात ये मिसाइल्स रूसी हमले को तत्काल विफल भी कर सकते हैं और हमला करें तो खासा नुकसान पहुंचा सकते हैं. अमेरिका भी घबराता है! वापस 2018 के व्लादिमीर पुतिन के दिए उस भाषण पर चलते हैं. एक मार्च को मॉस्को में प्रेजिडेंट पुतिन ने पांच से भी ज्यादा अपने नए मिसाइल सिस्टम्स का बखान किया. कहा कि ये मिसाइल सिस्टम अमेरिकी डिफेंस को पेनीट्रेट कर सकती हैं.
अब तक जितने भी एटॉमिक मिसाइल्स हैं, वो किसी न किसी फ्यूल इंजिन से ड्राइव होते हैं, खुद की न्यूक्लियर एनर्जी से नहीं. जबकि पुतिन ने दावा किया कि उनके नए मिसाइल सिस्टम में ऐसे न्यूक्लियर रिएक्टर लगे हैं जो उन्हें न्यूक्लियर एनर्जी से चलाते भी हैं. ऐसे ही एक मिसाइल सिस्टम का नाम पुतिन ने बताया- सर्मात-38. जो 11,000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है, वजन 200 टन और कई न्यूक्लियर बम एक साथ कैरी कर सकता है. डिफेंस एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ये रूसी मिसाइल 40 मेगाटन तक एक्स्प्लोसिव एनर्जी वाले न्यूक्लियर बम ले जा सकता है, जिसकी ताकत हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए अमरीकी बमों से 2000 गुनी तक है. रूसियों का मानना है कि अमेरिका में ‘प्रॉम्प्ट ग्लोबल स्ट्राइक’ नाम का जो डिफेंस सिस्टम बन रहा है, वो भी ‘सर्मात-38’ का बाल बांका नहीं कर सकेगा.
चुनावी भाषण के दौरान पुतिन ने इसके अलावा भी 'अवांतगार्द’ और 'किंशाल' नाम के कई ऐसे नए हथियारों का ब्योरा दिया, जिनकी ताकत अभूतपूर्व है, हालांकि पश्चिमी देश इन हथियारों के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं. कहते हैं जैसी रूस की आर्थिक हालत इस वक़्त है, ऐसे हथियार बनाने का खर्च उठाना उसके बस का नहीं है. इनका ये भी कहना है कि ऐसे हथियारों का कई बार परीक्षण करना पड़ता है, और उनसे होने वाले रेडिएशन को छिपाना मुमकिन नहीं है.
हालांकि, व्लादिमीर पुतिन इन बातों का जवाब देते हुए कहते हैं,
'रूस के दुश्मन इस भूल में न रहें कि ये सब बातें कोई ब्लफ़ हैं, झांसा हैं, हमारी बातों को गंभीरता से लिया जाए. हम पहले हमला नहीं करेंगे, लेकिन हमले की स्थिति में न्यूक्लियर हमलों से करारा जवाब देंगें.'
रूस में विपक्ष पूरी तरह खत्म पुतिन पर रूस में अपने विरोधियों को किनारे करने के आरोप भी लगते हैं. कहा जाता है कि पुतिन ने अपने कार्यकाल में विपक्ष को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है. 2018 के चुनाव में विपक्षी नेता एलेक्सेई नवलनी ने तत्कालीन रूसी प्रधानमंत्री और व्लादिमीर पुतिन के करीबी दिमित्री मेदिवेदेव की अकूत संपत्ति का खुलासा किया था, इसके चलते नवलनी रूसी युवाओं में खासे पसंद भी किए जा रहे थे. लेकिन एक पुराने मामले में दोषी ठहरा दिए गए और प्रेजिडेंट पद के लिए उनकी उम्मीदवारी पर बैन लगा दिया गया.
Alexei Navalny
एलेक्सेई नवलनी को रूसी सरकार ने पैरोल नियमों का उल्लंघन करने के मामले में जेल में डाल दिया (फोटो: आजतक)

एलेक्सेई नवलनी के बारे में आपको बता दें कि अगस्‍त 2019 में साइबेरिया से मास्‍को लौटते हुए नावालनी को विमान में चाय में मिलाकर खतरनाक जहर दिया गया. इसको पीते ही उनकी तबियत खराब होने लगी और वो अचानक बेहोश हो गए. इसके बाद उन्‍हें वहीं के एक स्‍थानीय अस्‍पताल में भर्ती कराया गया. 17 जनवरी 2021 को जर्मनी से इलाज कराकर मास्को लौटे एलेक्सेई नवलनी को रूसी सरकार ने पैरोल नियमों का उल्लंघन करने के मामले में जेल में डाल दिया. वे तब से जेल में ही हैं.
इससे पहले साल 2015 में पुतिन के कट्टर विरोधी और रूस के पूर्व उपप्रधानमंत्री बोरिस नेमत्सोव की भी मॉस्को में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बोरिस का मानना था कि क्रीमिया का विलय पुतिन का एकतरफा फैसला था, जो पुतिन ने निजी स्वार्थ में लिया. वो इसे लेकर कुछ खुलासा करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही उनकी हत्या कर दी गई. इसके अलावा रूसी मीडिया पर भी पुतिन की तगड़ी पकड़ बताई जाती है, कहा जाता है कि रूस में वही न्यूज़ दिखाई जाती हैं, जो पुतिन के फैसलों का समर्थन करती हैं और उनके फेवर में प्रोपेगैंडा चलाती हैं.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ पीएम दमित्री मेदवेदेव (फाइल फोटो-PTI)
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ पीएम दमित्री मेदवेदेव (फाइल फोटो-PTI)


कुल-मिलाकर व्लादिमीर पुतिन रूस की राजनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति दोनों ही स्तरों पर एक सफल खिलाड़ी के बतौर उभरे हैं. पुतिन को तानाशाह बता देने वाले आलोचक पुतिन की तुलना उत्तरी कोरियाई तानाशाह किम जोंग-उन करते हैं, लेकिन सच ये है कि पुतिन ने अपना देश रूस थाम रखा है, और पश्चिमी देशों की नाक में दम कर रखा है. अगर यूक्रेन मामले पर अमेरिका और रूस का टकराव होता है तो इसका फर्क पूरी दुनिया पर पड़ेगा, क्योंकि यह तीसरे विश्व-युद्ध की वजह भी बन सकता है.

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