बुलेट... डॉट डॉट डॉट, क्योंकि ये शब्द ही अपने आप में बहुत कुछ है. इमोशन की दुकान है. आर्मी से लेकर एडवेंचर लवर्स की शान है. पॉवरफुल बाइक लेनी है तो सिर्फ एक नाम सामने आता है. देश में जलवा ऐसा कि Harley-Davidson जैसे बड़े नाम भी पानी भरते नजर आते हैं. एक तरफ मॉडर्न लुक मिलता है तो दूसरी तरफ देशी अल्हड़पन भी नजर आता है. एकदम देशज फीलिंग आती है. मेड इन इंडिया टाइप. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि बुलेट की पैरेंट कंपनी रॉयल इनफील्ड (Royal Enfield) इंडियन नहीं है, तो शायद आप चौंक जाएं. चलिए तो फिर किक मारते हैं, मगर आगे की तरफ नहीं बल्कि पीछे, मतलब इतिहास की तरफ.
बुलेट पर रौला काटने वाले बाइक की ये कहानी जान तुरंत राइड पर निकल पड़ेंगे!
बुलेट की पैरेंट कंपनी रॉयल इनफील्ड इंडियन नहीं है. भले कंपनी इंडियन नहीं लेकिन इसको आज की रफ्तार दिलाने में एक इंडियन कंपनी और उसके CEO की किक जरूर है. चलिए तो फिर किक मारते हैं मगर आगे की तरफ नहीं बल्कि पीछे, मतलब इतिहास की तरफ.

आप सही पढ़े. दरअसल, बॉब और एल्बर्ट नाम के दो दोस्तों ने 1893 को Middlesex के Royal Small Arms Factory Of Enfield में सप्लाई का कॉन्ट्रैक्ट मिला था. इस बड़े कॉन्ट्रैक्ट मिलने की खुशी में एक नई कंपनी बनाई और उसका नाम रखा Enfield Manufacturing Company. इस कंपनी के अंदर उन्होंने उसी साल एक साइकिल बनाई. साइकिल इसलिए क्योंकि दो साल पहले यानी 1891 में उन्होंने एक स्पोक कंपनी खरीदी थी. साइकिल के नाम को रॉयल टच देने के लिए नाम रखा गया Royal Enfields और क्योंकि आर्म्स सप्लाई का भी बिजनेस था, तो टैग लाइन लगाई ‘Made Like A Gun.'

इसके बाद के सफर को पांचवें गियर में डालते हैं और सीधे आ जाते हैं साल 1949 में. इतने सालों में कंपनी ने खूब तरक्की की और साइकिल के साथ बाइक के कई मॉडल बाजार में उतारे जैसे Model Z 'Cycar' और 500cc Bullet. मगर हमारे लिए साल 1949 वो साल था जब बुलेट ने भारत में कदम रखा. देश आजाद हुए अभी दो साल हुए थे और हमें अच्छे दो पहिया वाहनों की कमी खलती थी. ऐसे में K. R. Sundaram Iyer ने मद्रास मोटर्स (आज का चेन्नई) की स्थापना की और इन British Motorcycles को इम्पोर्ट किया.
साल 1952 का जिक्र भी जरूरी है क्योंकि इसी साल Madras Motors को इंडियन आर्मी से 350cc की 500 बुलेट का ऑर्डर मिला. ये ऑर्डर साल 1953 में सप्लाई हुआ और फिर बुलेट ने रफ्तार पकड़ ली. 1955 में ब्रिटिश कंपनी ने मद्रास मोटर्स के साथ मिलकर 'Enfield India' कंपनी बनाई और मद्रास के नजदीक Tiruvottiyur में इनका प्रोडक्शन स्टार्ट किया. हालांकि, पूरी किट इंग्लैंड से आती थी और भारत में इसको असेम्बल किया जाता था.
अगले 12 सालों यानी 1967 तक बुलेट इंडिया में और दुनिया जहान में तेज रफ्तार से दौड़ी. Continental GT café racer और 736cc Interceptor जैसे मॉडल लॉन्च हुए. मगर ब्रिटेन में बुलेट को ब्रेक लग गए. इसी साल कंपनी की Redditch फैक्ट्री बंद हो गई. लेकिन इसके उलट इंडियन कंपनी ने 350cc बुलेट का एक्सपोर्ट भी किया. हालांकि, स्थिति ठीक नहीं थी. इसकी एक वजह बाजार में कई और कंपनियों का आना भी रहा.

ठीक-ठाक काम करते हुए कंपनी ने साल 1993 में इंडियन फैक्ट्री ने बुलेट का एकमात्र डीजल मॉडल भी बाजार में उतारा जो सुपर फ्लॉप रहा. ब्रिटेन का बिजनेस तो बंद हो चुका था और इंडियन कंपनी भी खत्म होने को थी. तभी एंट्री मारी Eicher ग्रुप ने. आयशर ग्रुप ने तकरीबन बंद हो चुकी 'Enfield India' को खरीदा और इसका नाम रखा Royal Enfield Motors Limited. इसके साथ कंपनी ने जयपुर में भी एक फैक्ट्री खोली.
जो आपको लग रहा होगा कि इसके बाद सब बदल गया होगा तो जनाब ऐसा बिल्कुल नहीं है. आयशर ग्रुप का अनुभव इस कंपनी के साथ बहुत खराब रहा. ये वही समय था जब भारतीय बाजार में दूसरी कई बाइक कंपनियों ने दस्तक दे दी थी. बुलेट को टॉप गियर में चलाना तो दूर हाथ से धक्के देना भी मुश्किल था. ग्रुप ने सिर्फ कुछ ही सालों में इस बिजनेस को बेचने का मन बना लिया. मगर तभी साल 2000 में कंपनी को जॉइन किया Siddhartha Lal ने. सिद्धार्थ आयशर ग्रुप के मालिक विक्रम लाल के बेटे हैं. आज भले वो ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, लेकिन तब वो CEO हुआ करते थे.

आज जो बुलेट और उसका रौला भारत से लेकर दुनिया भर में आप और हम देख रहे हैं, उसके पीछे सिद्धार्थ की कड़ी मेहनत है. इसके आगे अभी नहीं क्योंकि सिद्धार्थ ने जो किया वो एक अलग स्टोरी में बताएंगे. तब तक आप अपनी बुलेट या दोस्त की बुलेट पर भौकाल टाइट रखिए.
स्पीड कंट्रोल रखना और हेलमेट पहने बिना नहीं चलाना.
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