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हरियाणा के उस नेता की कहानी, जो मर्दों को बच्चे पैदा करने लायक नहीं छोड़ता था

हरियाणा की सियासत में विवादित रहे इस नेता का आज जन्मदिन है.

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फोटो - thelallantop
हरियाणा में कई ऐसे नेता हुए हैं, जो किसी न किसी वजह से मशहूर रहे.
ऐसा ही एक ऐसा नेता था, जो पुरुषों के लिंग के पीछे पड़ा था. उसे एक ऑर्डर मिला था और वो हर कीमत पर उसे पूरा करने पर आमादा था. उस नेता का नाम था बंसीलाल. वो उस दौर के नेता थे, जब पूरे देश में कांग्रेस सिस्टम लगा हुआ था. केंद्र से लेकर तमाम राज्यों में कांग्रेस की ही सरकारें थीं.
बंसीलाल का जन्म 26 अगस्त 1927 को भिवानी में हुआ था. जालंधर से उन्होंने लॉ की पढ़ाई की. फिर वकालत करने लगे. भिवानी में ही बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए. फिर हिसार में राजनीति से जुड़े. जिला कांग्रेस के प्रेसिडेंट बने. और तुरंत ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमिटी में आ गए. 1960 में राज्यसभा पहुंचे.
1966 में हरियाणा पंजाब से अलग होकर एक राज्य बन गया. बीडी शर्मा मुख्यमंत्री बने. ये मंत्रिमंडल पंजाब के नेताओं को लेकर ही बनाया गया था. फिर मार्च 1967 में हरियाणा में पहली बार चुनाव हुए. 1857 की क्रांति के नायकों में से एक राव तुलाराम के वंशज राव बिरेंदर सिंह पटौदी विधानसभा से चुनकर आए. ये द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान टेरिटोरियल आर्मी में नॉमिनेट हुए थे, सेंट स्टीफेंस से पढ़े थे. 1952 में निर्दलीय लड़े थे, पर हार गए थे. उसके बाद कांग्रेस में आ गए. फिर कद बढ़ा. पंजाब में प्रताप सिंह कैरों की सरकार में मंत्री बने थे.
1967 में जीतते ही राव बिरेंदर सिंह ने अपनी अलग पार्टी बना ली. नाम रखा विशाल हरियाणा पार्टी. सरकार बन गई. कांग्रेस के कई विधायक इनके साथ आ गए. उस वक्त एंटी-डिफेक्शन लॉ नहीं था. लेकिन तब तक इंदिरा गांधी केंद्र में सत्ता में आ चुकी थीं. वहां गलती की गुंजाइश नहीं थी. सरकार गिरा दी गई और राष्ट्रपति शासन लग गया हरियाणा में. 1968 में फिर चुनाव हुए और अबकी कांग्रेस जीती. बंसीलाल मुख्यमंत्री बने. राव बिरेंदर सिंह की पार्टी दूसरे नंबर पर रही. बाद में राव ने भी कांग्रेस जॉइन कर ली.
b d sharma and rao birender singh बीडी शर्मा और राव बिरेंदर सिंह


बंसीलाल 1968 से लेकर 1975 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे. नए राज्य हरियाणा में इंडस्ट्रियल और एग्रीकल्चरल विकास का श्रेय बंसीलाल को जाता है. हरियाणा के विद्युतीकरण की शुरुआत बंसीलाल ने ही की थी. पर तब तक केंद्र में स्थिति बदल गई. इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में इमरजेंसी लगा दी. बंसीलाल इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र माने जाते थे. जब मंत्री इंदिरा पर संदेह जताने लगे तो उन्होंने अपने सारे नजदीकियों को अपने पास बुला लिया. शुरुआत में बंसीलाल को बिना किसी विभाग का मंत्री बनाया गया. फिर उनको रक्षामंत्री का कार्यभार दे दिया गया.
पर बंसीलाल का काम अब शुरू हुआ. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी उस वक्त परदे के पीछे से मंत्रिमंडल चलाते थे. सारे फैसले वही लेते थे. बंसीलाल संजय के दोस्त थे.
विनोद मेहता ने 'द संजय स्टोरी' में लिखा है:
संजय गांधी का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. कई स्कूल घूमते हुए वो दून स्कूल पहुंचे. वहीं पर उनको कमलनाथ जैसा दोस्त मिला, जो दो साल लगातार फेल हुआ था. संजय की बचपन से ही मशीनों में रुचि थी. नेहरू कहते थे कि उनका नाती इंजीनियर बनेगा. संजय इंजीनियर तो नहीं बने, पर वो रॉल्स रॉयस में मैकेनिक का काम सीखने जरूर गए. वो भी छोड़कर आ गए. लेकिन कार बनाने का सपना नहीं छोड़ा. 1968 में ही संजय ने प्रस्ताव दिया था कि उनकी कंपनी केवल 6 हजार रुपये में ऐसी कार बनाएगी, जो 53 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी. उस बात पर जॉर्ज फर्नांडीज और मधु लिमये ने सरकार को खूब घेरा था. अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे करप्शन अनलिमिटेड कहा था. पर संजय ने अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाते रहे. रुके नहीं. क्योंकि हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल ने डंडे के जोर पर गुड़गांव के पास संजय की कंपनी मारुति को सैकड़ों एकड़ जमीन मुहैया करा दी.
फिर संजय गांधी 5 सूत्री काम लेकर आए. एडल्ट एजुकेशन, दहेज का खात्मा, पेड़ लगाना, परिवार नियोजन और जाति प्रथा उन्मूलन. सुनने में तो ये बड़े उद्देश्य लगते थे. पर काम करने का तरीका बर्बर था. इसमें सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना थी परिवार नियोजन. इसके लिए नसबंदी का सहारा लिया गया. बंसीलाल ने अपने दोस्त को समझाने के बजाय जी-जान से इस प्रोजेक्ट में हाथ बंटाया. गांव के गांव में पुलिस घुस जाती और मर्दों को पकड़कर उनकी नसबंदी करा दी जाती. बंसीलाल पर तो पुलिस को बाकायदा टारगेट देने के इल्जाम लगे थे. सच जो भी हो, बंसीलाल पर इसका इल्जाम तो लग ही गया.
कुलदीप नैयर के मुताबिक, संजय ने उनको बताया था कि वो 35 साल इमरजेंसी रखना चाहते थे, पर मां ने चुनाव करवा दिए.

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अब आए हरियाणा के 3 लाल: बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल


devilal, bhajanlal and bansilal देवीलाल, भजनलाल और बंसीलाल

1977 में चुनाव हुए और बंसीलाल बुरी तरह हारे. विजेता चंद्रवती को 68 प्रतिशत और बंसीलाल को 29 प्रतिशत वोट मिले. पर दो साल में जनता पार्टी का हिसाब ही बदल गया. इंदिरा गांधी ने वापसी कर ली. कांग्रेस से नफरत खत्म हो गई थी. 1980 में बंसीलाल 41 प्रतिशत वोट के साथ जीत गए. चंद्रवती तीसरे नंबर पर रहीं. इसके बाद बंसीलाल केंद्र में आ गए. इस दौरान दूरदर्शन के लिए 8 रिले केंद्र बने, जिसमें से एक भिवानी में लगा. 1984 में बंसीलाल राजीव गांधी की सरकार में रेलमंत्री बने. भिवानी रेलवे स्टेशन को आधुनिक बनवा दिया.
फिर 1986-87 में उनको हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया. उसी साल वहां विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस बुरी तरह हारी. तोशम विधानसभा से बंसीलाल नजदीकी मुकाबले में एक नये लड़के धरमवीर से हार गए, जहां से वो जीत कर पहली बार मुख्यमंत्री बने थे. 90 सीटों में से भाजपा-लोकदल के गठबंधन को 73 सीटें मिली थीं, जिसमें लोकदल की 58 थीं. कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं. जब देवीलाल ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ-ग्रहण किया तो उनके बाद सबसे ज्यादा तालियां धरमवीर के नाम पर ही बजी थीं. तोशम विधानसभा से ही एक साल पहले हुए उपचुनाव में बंसीलाल 92 प्रतिशत वोट से जीतकर मुख्यमंत्री बने थे.
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लोकदल के देवीलाल ने रावी-व्यास नदियों और फजिल्का-अबोहर के मामले पर कांग्रेस को किनारे कर दिया था. ये झगड़ा इंदिरा गांधी के वक्त से चल रहा है और अभी तक नहीं सुलझा है. पर जिस मामले पर देवीलाल ने ट्रिपल सेंचुरी मारी, वो चंडीगढ़ से थे. राजीव गांधी पंजाब के हरचरण सिंह लोंगोवाल से समझौता कर पंजाब एकॉर्ड का फॉर्मूला लेकर आए थे. जिसके मुताबिक चंडीगढ़ पंजाब को दे दिया जाना था.
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उधर कांग्रेसी नेताओं भजनलाल और बंसीलाल में आपसी खटपट हो गई थी. पर सामने कहते कि हम एक हैं. देवीलाल ने कह दिया कि किसानों के कर्जे वो माफ करा देंगे. तो ये दोनों लोग कहते कि देवीलाल के पास अधिकार ही नहीं हैं. देवीलाल ने कहा कि कानून बना दूंगा. और देवीलाल ने यहीं बाजी मार ली. कांग्रेस के नेता प्रचार करने कमांडो के साथ जाते. देवीलाल किसी गांव में पहुंच जाते. पानी मांगते, खाट पर बैठ जाते. और कहते, 'मैं देवीलाल हूं.' थके होते तो वहीं खाट पर सो भी जाते, झपकी मार लेते.
73 साल के बूढ़े देवीलाल बीमार चल रहे थे. उनका गरजना लोगों को भा गया. उन्होंने अपने पुराने राजनीतिक दुश्मन भजनलाल और बंसीलाल से बदला ले लिया था.
चौधरी देवीलाल और भजनलाल का किस्सा इससे पुराना है. 1977 में कांग्रेस की हार के बाद हरियाणा में जनता पार्टी की तरफ से देवीलाल मुख्यमंत्री बने थे. भजनलाल इसी सरकार में मंत्री थे. 1979 में भजनलाल ने देवीलाल की सरकार गिरा दी. और अगले साल 40 विधायकों के साथ इंदिरा गांधी की कांग्रेस में आ गए. इंडिया टुडे के मुताबिक विधायकों को अपने कब्जे में करने की कोशिश में भजनलाल के लोग कमांडो की तरह जाते थे. वहीं देवीलाल ने अपने विधायकों को रोकने के लिए सबमशीनगन और राइफल का इंतजाम किया था. हजार एकड़ में फैले उनके किलेनुमा फॉर्महाउस में ये लोग रखे गए थे.
इसी में एक और कहानी है. देवीलाल के एक विधायक राव निहाल सिंह 'छुट्टी' लेकर अपनी बेटी की शादी में अपने गांव गए. पीछे-पीछे बिन बुलाए देवीलाल भी चले गए. वहां पर भजनलाल पहले से मौजूद थे. भजनलाल को ये सब काम बखूबी आता था. इंडिया टुडे के मुताबिक, वो हॉर्स-ट्रेडिंग यानी विधायकों को मैनेज करने में उस्ताद थे. बचपन से ही मंडी में काम करते थे, सर पर गट्ठर रखकर ओढ़नी-चुन्नी भी बेची थीं. तरीके उनके पास सारे थे.
राजनीति का असली खेल हुआ 1982 में. हरियाणा में चुनाव हुए. 90 में से 35 सीटें कांग्रेस को मिलीं. लोकदल को 31 मिली थीं. 6 लोकदल की सहयोगी भाजपा को मिली थीं. कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन दोनों ने ही सरकार बनाने की दावेदारी रख दी. गठबंधन के नेता देवीलाल राज्यपाल के पास गए और अपनी दावेदारी पेश कर दी. पर उनके लौटने के तुरंत बाद ही राज्यपाल तपासे ने कांग्रेस के भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. जब चौधरी देवीलाल को इस बात का पता चला तो वो विधायकों को लेकर राजभवन पहुंचे. अपने समर्थक विधायकों की परेड भी करवाई. पर राज्यपाल नहीं माने.
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तापसे 73 साल के थे. बीमार रहते थे, चिल्ला के बात नहीं कर सकते थे. इसी हंगामे के बीच उनका हाथ अपने आप ठुड्डी खुजाने के लिए उठा. ऐसे आरोप लगे कि देवीलाल ने उनका हाथ झटक दिया. और उनकी ठुड्डी पकड़कर बोले: तुम इंदिरा गांधी के चमचे हो. तुमको क्या लगता है कि ये करके तुम निकल जाओगे? ये सब इसलिए हुआ था कि जनता ने भजनलाल के 1979 के कारनामे को नहीं भुलाया था. पार्टी तोड़कर जाने वाले कई विधायक हारे थे. इसके बावजूद भजनलाल मुख्यमंत्री बन गए थे.
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उस वक्त के गवर्नर तापसे

इसी मामले की कई अखबारों ने कई तरह से रिपोर्टिंग की है. कई के मुताबिक, चौधरी देवीलाल ने इसी हंगामे में राज्यपाल को थप्पड़ मार दिया था. हालांकि इस बारे में पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.
1967 में हरियाणा के हसनपुर विधानसभा से निर्दलीय विधायक गयालाल ने 1967 में तीन बार दल बदलकर रिकॉर्ड बना दिया था. आयाराम-गयाराम का जुमला वहीं से प्रसिद्ध हुआ था.
1996 में बंसीलाल कांग्रेस से अलग हो गए. अपनी हरियाणा विकास पार्टी बना ली. और जीत गए. क्योंकि शराब के खिलाफ कैंपेन किया था. इसका बड़ा प्रभाव पड़ा था. बंसीलाल मुख्यमंत्री बन गए. पर इसकी कीमत चुकानी पड़ी. शराबबंदी जैसी होती है, वैसी ही हुई. बुरी तरह फेल. 2000 में चुनाव हुए. इनकी पार्टी को मात्र 2 सीटें मिलीं. बाद में आई चौटाला सरकार ने जस्टिस जेसी वर्मा कमीशन बनाया जिसने बंसीलाल को 1996 से 1998 के बीच 19 महीने की शराबबंदी में शराब स्मगलिंग की स्थिति पैदा करने का जिम्मेवार ठहरा दिया.
राजनीति चलती रही. 2004 में उनकी पार्टी कांग्रेस में शामिल हो गई. फिर बंसीलाल ने चुनाव नहीं लड़ा. 28 मार्च 2006 को उनका निधन हो गया.
हरियाणा में इन तीनों लालों की फैमिली पॉलिटिक्स भी चलती है:
देवी लाल का परिवार: इनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इंडियन नेशनल लोक दल के प्रेसिडेंट हैं. इनके बेटे अजय और अभय भी राजनीति में हैं.
भजन लाल का परिवार: इनके बेटे कुलदीप बिश्नोई विधायक हैं. 2011 में उपचुनाव जीतकर सा थे. भजनलाल की बहू रेणुका बिश्नोई विधायक थीं. इनके दूसरे बेटे चंद्रमोहन उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं.
बंसीलाल का परिवार: इनके बेटे सुरेंदर सिंह सांसद थे. इनकी पत्नी किरण चौधरी और बेटी श्रुति चौधरी विधायक और सांसद हुआ करती थीं. इनके बेटे रनबीर सिंह भी विधायक रह चुके हैं.
इन तीनों परिवारों की अगली जेनरेशन भी धीरे-धीरे राजनीति में कदम रख रही है.

 ये आर्टिकल ऋषभ ने लिखा है.

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