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बाली की पत्नी से जुड़ा ये वाला प्रसंग आपको तुलसीदास के 'मानस' में नहीं मिलेगा

बाली को बाण लगने के बाद हनुमान ने तारा से क्या कहा?

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फोटो: यूट्यूब स्क्रीनशॉट
रामानंद सागर का 'रामायण' सीरियल एक बार फिर दर्शकों को अपनी ओर खींच रहा है. रामकथा के कुछ प्रसंग तो ऐसे हैं, जो सीरियल में या तो बेहद संक्षेप में दिखाए गए या एकदम अनछुए ही रह गए. कुछ बातें ऐसी हैं, जो वाल्मीकि 'रामायण' में तो हैं, लेकिन गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरितमानस' में नहीं. ऐसा ही एक प्रसंग है- बाली वध के बाद उसकी पत्नी तारा और हनुमान के बीच संवाद.

जब राम ने बाली का वध कर डाला

प्रसंग इस तरह है. सीता की खोज के लिए राम ने किष्किंधा जाकर सुग्रीव से मित्रता की. राम ने अपने बाण से बाली का वध किया और उसे परमगति दी. प्राण त्यागने से पहले बाली राम से वाद-विवाद, तर्क-वितर्क करता है. पूछता है कि आखिर मर्यादापुरुषोत्तम राम ने किस वजह से उसे बाण मारा? दोनों के बीच नीति-अनीति पर लंबी बात होती है. ये बात तो हर रामायण में है. लेकिन इसी से जुड़ा एक प्रसंग है, जिसकी चर्चा गोस्वामी तुलसीदास ने नहीं की है. वाल्मीकि 'रामायण' में इस पर विस्तार से कहा गया है. वो है, बाली की पत्नी तारा को हनुमान की सांत्वना. सांत्वना क्या, उपदेश ही समझ लीजिए.

पहले 'मर्यादापुरुषोत्तम' की बात

जब बाली को बाण लगने का समाचार उसकी पत्नी तारा को मिला, तो वह रोती-बिलखती उसी जगह पर पहुंच गई. राम उसे समझाते हैं. उस प्रसिद्ध चौपाई का ये वाला अंश तो आपने जरूर सुना होगा. तुलसीदास लिखते हैं-
छिति जल पावक गगन समीरा पंच रचित अति अधम सरीरा
राम तारा से कहते हैं-
पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- इन पांच तत्वों से यह अधम शरीर रचा गया है. वह शरीर (बाली का) तो तुम्हारे सामने ही सोया है. लेकिन जो जीव है, वह नित्य है. फिर तुम किसके लिए रो रही हो?
ऐसा सुनकर तारा को ज्ञान हो गया और उसने राम से परमभक्ति का वर मांग लिया. अब बात हनुमान की.

हनुमान ने तारा को क्या उपदेश दिया

Tara And Hanuman
फोटो: यूट्यूब स्क्रीनशॉट

वाल्मीकि 'रामायण' के अनुसार, हनुमान जी ने तारा को संक्षेप में जीवन का दर्शन समझाते हुए कहा-
गुणदोषकृतं जन्तुः स्वकर्म फलहेतुकम् । अव्यग्रस्तदवाप्नोति सर्वं प्रेत्य शुभाशुभम् ॥
शोच्या शोचसि कं शोच्यं दीनं दीनानुकम्पसे । कश्च कस्यानुशोच्योऽस्ति देहेऽस्मिन् बुद्बुदोपमे ॥
जानास्यनितयामेवं भूतानामागतिं गतिम् । तस्माच्छुभं हि कर्तव्यं पण्डिते नेह लौकिकम् ॥
श्लोक का भावार्थ इस तरह है. हनुमान ने रोती-बिलखती तारा से कहा-
हे देवि! जीव के जो अपने कर्म हैं, वे ही सुख और दुख रूपी फल दिलाने वाले हैं. परलोक में जाकर हर जीव शांत भाव से अपने शुभ-अशुभ कर्मों का फल भोगता है.
तुम स्वयं शोचनीया हो, फिर दूसरा किसे शोचनीय समझकर शोक कर रही हो? तुम दीन होकर किस दीन पर दया करती हो? पानी के बुलबुले के समान इस शरीर में रहकर कौन जीव किस जीव के लिए शोचनीय है?
हे देवि! तुम विदुषी हो. तुम तो जानती ही हो कि प्राणियों के जन्म और मृत्यु का कोई निश्चित समय नहीं है. इसलिए सदा शुभ कर्म ही करना चाहिए. अधिक रोने-धोने जैसा जो व्यावहारिक काम है, वह नहीं करना चाहिए.

अंगद के भविष्य को लेकर भी बात

हनुमान ने तारा को उसके पुत्र अंगद का भविष्य संवारने पर ध्यान देने को भी कहा-
तुम्हारे पुत्र अंगद जीवित हैं. अब तुम्हें इनकी ओर देखना चाहिए. साथ ही भविष्य में अंगद के लिए जो उन्नति के काम हों, उस पर विचार करना चाहिए.
बाद में सुग्रीव किष्किंधा के राजा हुए. बाली के पुत्र अंगद युवराज बने. हनुमान ने लंका जाकर सीता की खोज की. बाद की पूरी कहानी तो आपको मालूम ही है.


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