पिता चाहते थे बेटा इंजीनियर बने, बेटा चाहता था बाप जैसा बने
राम जेठमलानी का जन्म 14 सितंबर, 1923 को सिंध प्रांत के शिकारपुर में हुआ था. जो अब पाकिस्तान में है. जेठमलानी का जब जन्म हुआ, उस समय उनकी मां मात्र 14 साल की थीं. उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, "मैं और मेरी मां एक साथ बढ़े." शुरुआती पढ़ाई बॉर्डिंग स्कूल में हुई. जेठमलानी के पिता चाहते थे कि बेटा इंजीनियर बने लेकिन जेठमलानी लॉयर बनना चाहते थे. क्योंकि दादा और पिता दोनों वकील थे. बाद में उनकी पत्नी रत्ना, बेटी और बेटे ने भी खानदानी पेशे को चुना.
18 साल की उम्र में बने वकील, पहले केस की फीस ली एक रुपये
जेठमलानी ने 17 साल की उम्र में वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली थी. उस समय वकील बनने की उम्र 21 साल थी लेकिन जेठमलानी के लिए विशेष सुविधा दी गई. मात्र 18 साल की उम्र में वकील बन गए. उन्होंने पहला केस एक मकान मालिक का लड़ा था. फीस ली थी मात्र एक रुपए.
भारत-पाकिस्तान बंट रहा था और जेठमलानी दूसरी शादी कर रहे थे
जेठमलानी ने टाइम्स ऑफ इंटरव्यू को दिए इंटरव्यू में बताया था कि स्कूल में उन्हें प्यार हुआ था. लड़की का नाम डॉली था, लेकिन शादी नहीं कर पाए. शादी हुई दुर्गा से. 18 की उम्र में. दुर्गा से मिलने अपने दादा के साथ गए थे, लेकिन दुर्गा ने नज़र तक नहीं मिलाई. लेकिन 14 अगस्त, 1947 को जब भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बन रहे थे, जेठमलानी ने दूसरी शादी कर ली. रत्ना नाम था उनकी दूसरी पत्नी का. उस वक्त बहुविवाह प्रथा चल रही थी, लिहाजा जेठमलानी को कोई परेशानी नहीं हुई.
खाली हाथ भारत आए, साथ में थी लॉ की डिग्री
1948 में जेठमलानी भारत चले आए. मुंबई पहुंचे. रिफ्यूजी कैंप में रात बिताई. अगले दिन से लॉ की प्रैक्टिस शुरू कर दी. 6 साल तक प्रैक्टिस की. फिर बॉम्बे यूनिवर्सिटी में दाखिला दिया. फिर से सारी परीक्षाएं पास की और अपना वकील का चेंबर बना लिया. पहला चेंबर 60 रुपए में मिला था. वकालत के साथ सियासत में भी हाथ आजमाना शुरू किया. महाराष्ट्र में तब बाल ठाकरे बड़े किंगमेकर की तरह उभर रहे थे. शिवसेना बन गई थी. और राम जेठमलानी लड़ गए 1971 का लोकसभा चुनाव. निर्दलीय. बिना किसी पार्टी के. लेकिन शिवसेना और जनसंघ दोनों ने सपोर्ट किया. सपोर्ट काम नहीं आया और हार गए.

जेठमलानी के पास वकालत का 70 साल से ज्यादा का अनुभव था. 2017 में उन्होंने वकालत से संन्यास ले लिया था.
इमरजेंसी का विरोध किया, वॉरंट जारी हुआ तो भाग गए कनाडा
लेकिन एक चुनाव जीते. बार असोसिएशन के चेयरमैन का. वकालत में बड़ी पोस्ट होती है. और फिर इमरजेंसी लग गई. जेठमलानी ने इंदिरा गांधी की आलोचना की. गिरफ्तारी का वॉरंट जारी हो गया. और वो कनाडा चले गए. करीब 10 महीने तक रहे. इमरजेंसी खत्म हुई तो लौटे. 1977 का चुनाव लड़ा. बॉम्बे नॉर्थ ईस्ट सीट से. जीत गए. 1980 में भी जीत दर्ज की. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 में जब आम चुनाव हुए तब जेठमलानी ऐक्टर और पॉलिटिशियन सुनील दत्त से हार गए. 1988 में जेठमलानी राज्यसभा पहुंच गए. और जब वहां पहुंचे तो राजीव गांधी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी.
बोफोर्स मुद्दे पर राजीव गांधी से पूछे 400 सवाल
1987 में जेठमलानी ने बोफोर्स का मुद्दा उठाया. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से 400 सवाल पूछे. बोफोर्स तोपों में दलाली का मसला गर्म था. राम जेठमलानी उस वक़्त स्वीडन के दौरे पर गए थे. लौटने के फ़ौरन बाद राजीव गांधी पर रिश्वत का इल्ज़ाम लगा दिया. चुनौती दी कि राजीव उनके खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा करके देख लें. कहा,
“प्रधानमंत्री और उनके दोस्तों ने कम से कम 50 करोड़ की रिश्वत ली है. मैं संबंधित लोगों को क्रॉस-एग्जामिन करना पसंद करूंगा.”यूं सीधे टारगेट किए जाने से राजीव गांधी तिलमिला गए. उन्होंने जवाब में ऐसा कुछ कहा, जिसने राजनीति में भाषाई मर्यादा के पतन को ही रेखांकित किया. उन्होंने कहा,
“मैं हर भौंकते हुए कुत्ते का जवाब नहीं दे सकता”.बात यहीं पर ख़त्म नहीं हुई. राम जेठमलानी ने पलटवार किया. बोले-
“मुझे कुत्ता कहे जाने पर कोई अपमान महसूस नहीं होता. कुत्ते कम से कम झूठ तो नहीं बोलते और भौंकते भी तभी हैं, जब चोर को देख लेते हैं. मुझे लोकतंत्र का प्रहरी कुत्ता होने पर गर्व है.”इस जवाब के बाद राजीव गांधी ने चुप्पी साध ली.

वाजपेयी ने मंत्री बनाया फिर बाहर का रास्ता दिखाया
1996 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बने. पहली सरकार में कानून मंत्रालय मिला. दूसरी बार शहरी विकास मंत्रालय और रोजगार देखने को दिया गया. बाद में कानून मंत्री भी बने और फिर बात बिगड़ गई. उस वक्त के सॉलिसिटर जनरल सोली सोराबजी से जेठमलानी की नहीं बनी. बनती तो वाजपेयी से भी नहीं थी, वो कैबिनेट में लाल कृष्ण आडवाणी की बदौलत थे. लेकिन जब सॉलिसिटर जनरल से अनबन हुई, तो वाजपेयी ने इस्तीफा मांग लिया. इससे जेठमलानी इतने नाराज हुए कि 2004 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के खिलाफ लखनऊ से चुनाव लड़ गए और हार गए.
फिर बने बीजेपी से अच्छे रिश्ते

एक कार्यक्रम में पीएम मोदी के साथ राम जेठ मलानी
जब नितिन गडकरी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, तब जेठमलानी राज्यसभा पहुंच गए. सब ठीक चलने लगा. लेकिन जब नितिन गडकरी के दोबारा बीजेपी अध्यक्ष बनने की बारी आई, पूर्ति घोटाला सामने आ गया. नितिन गडकरी पर आरोप लगे और जेठमलानी ने गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. नतीजा पार्टी से बाहर कर दिए गए. ये नवंबर, 2012 की बात है और इसके कुछ ही दिन बाद जनवरी, 2013 में जेठमलानी ने बयान दिया-
'मुझे लगता है कि नरेंद्र भाई प्रधानमंत्री पद के लिए पूरी तरह से योग्य हैं और 100 फीसदी सेक्यूलर हैं.'और इस बयान के कुछ ही महीने के बाद पार्टी के नए अध्यक्ष बने राजनाथ सिंह ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया. 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बने, तो जेठमलानी का मोदी से मोहभंग हो गया. 2015 में बिहार में जब विधानसभा के चुनाव थे, नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होकर आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे. जेठमलानी ने पटना में पत्रकारों से कहा,
'अगर मैं वोट दे सकता तो नीतीश कुमार को देता. क्योंकि मैं चाहता हूं कि मोदी हार का स्वाद चखें. मैं इन फर्जी लोगों को सत्ता से बाहर देखना चाहता हूं.'प्रधानमंत्री और बीजेपी के खिलाफ इस बयानबाजी का जेठमलावनी को फायदा भी मिला. आरजेडी के मुखिया लालू यादव ने उन्हें फिर से राज्यसभा भेज दिया.
हमेशा लहर के खिलाफ तैरते नजर आए जेठमलानी
जेठमलानी के पास वकालत में 70 साल से ज्यादा का अनुभव था. जब कानून और वकालत की बात होगी, राम जेठमलानी, उनकी बेबाकी और उनसे जुड़े विवाद लोगों को हमेशा याद आएंगे. इसकी वजह ये है कि जब भी देश का कोई बड़ा और विवादित मुकदमा रहा, जेठमलानी उसमें हाथ डालने से नहीं हिचके. जब इंदिरा गांधी के हत्यारों का केस लड़ने को कोई वकील तैयार नहीं हुआ, जेठमलानी तैयार रहे. राजीव के हत्यारों का भी केस लड़ा. संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु का भी केस लड़ा. आसाराम से लेकर अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान और स्टॉक मार्केट स्कैम वाले हर्षद मेहता की तरफ से पैरवी की.

राम जेठमलानी ने कई विवादित केस लड़े.
इसके अलावा हवाला केस में फंसे लालकृष्ण अडवाणी को बचाया. सोहराबुद्दीन केस में अमित शाह की तरफ से पैरवी की. जेसिका लाल हत्याकांड में मनु शर्मा के वकील बने, चारा घोटाले में लालू यादव के वकील बने, खनन घोटाले में बीएस येदियुरप्पा के वकील बने, टूजी स्कैम में कमिनोझी के वकील बने और मानहानि मामले में केजरीवाल के वकील बने. और ऐसे वकील बने कि केजरीवाल को 9 करोड़ रुपये का बिल भेज दिया. जब बिल नहीं भरा तो केजरीवाल को गरीब बता दिया और फिर बाद में केजरीवाल ने इस मामले में अरुण जेटली से माफी मांग ली, जिन्होंने मानहानि का केस किया था.
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