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तेजस्वी को सीएम फेस बनाने के सवाल पर राहुल गांधी कन्नी क्यों काट रहे?

Tejashwi yadav ने खुलेआम अभी से Rahul Gandhi को INDI Alliance में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. लेकिन राहुल गांधी Tejashwi yadav को बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का चेहरा बनाने के सवाल को टाल गए. आखिर इसके पीछे कांग्रेस की रणनीति क्या है?

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राहुल गांधी और तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं. (इंडिया टुडे)

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav). इन दिनों बिहार की पॉलिटिक्स में SIR के साथ ये दो कीवर्ड सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. दोनों वोट चोरी का आरोप लगाते हुए BJP और चुनाव आयोग पर हमला कर रहे हैं. तेजस्वी यादव ने तो अभी से राहुल गांधी को पीएम बनाने की मुनादी कर दी है. लेकिन 24 अगस्त को वोटर अधिकार यात्रा के दौरान अररिया में राहुल गांधी तेजस्वी को सीएम फेस बनाने के सवाल पर कन्नी काट गए.

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राहुल गांधी ने तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करने के सवाल पर गठबंधन में समन्वय की बात की, म्यूचुअल रिस्पेक्ट की बात की, एक दूसरे का सहयोग करने की बात की और बीजेपी से लड़ाई लड़ने की बात की. लेकिन मूल सवाल को बड़ी चतुराई से स्किप कर दिया. इस दौरान मंच पर तेजस्वी यादव, दीपांकर भट्टाचार्य और मुकेश सहनी भी मौजूद थे.

बिहार में महागठबंधन में राजद सबसे बड़ी पार्टी है. और तेजस्वी यादव खुद को सीएम पद का उम्मीदवार बता चुके हैं. यही नहीं उनके पिता लालू यादव भी राज्य के लोगों से उनको मुख्यमंत्री बनाने की अपील कर चुके हैं. लेकिन कांग्रेस महागठबंधन में शामिल होने के बावजूद तेजस्वी यादव को उम्मीदवार घोषित करने से बच रही है.

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‘बी टीम’ के टैग से छुटकारा की कोशिश

राहुल गांधी से पहले बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने भी तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम फेस घोषित किए जाने के सवाल पर असहमति जताई थी. साथ ही उन्होंने किसी भी पार्टी का बी टीम होने से भी इनकार किया था. राहुल गांधी भी इसी एजेंडे के साथ आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं. वो बिहार चुनाव में विपक्ष का नैरेटिव सेट करते दिख रहे हैं. तेजस्वी यादव के शिक्षा, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने पूरे महागठबंधन को SIR के मुद्दे पर लामबंद किया. और नरेंद्र मोदी सरकार को वोट चोर बताते हुए वोट के अधिकार को मुद्दा बनाया. वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन बताते हैं,

 राहुल गांधी ने कृष्णा अल्लावरु और कन्हैया कुमार को आगे करके ये अभियान शुरू किया था कि कांग्रेस राजद की बी टीम नहीं है. उन्होंने इस फार्मूले को आगे बढ़ाते हुए तेजस्वी यादव को वोटर अधिकार यात्रा में अपने पीछे लिया. इससे मैसेज गया कि राहुल गांधी इस आंदोलन को लीड कर रहे हैं.

ईबीसी दलित और अगड़ी जातियों के वोटर्स को मैसेज 

तेजस्वी यादव का नाम आगे नहीं करने के पीछे कांग्रस की एक और रणनीति है. तेजस्वी यादव के साथ उनके पिता लालू यादव के शासनकाल का जंगलराज का टैग भी चस्पा है. उनको आगे करने पर बीजेपी इसको मुद्दा बना सकती है. जिसके चलते अगड़ी जातियों, ईबीसी, गैर-यादव ओबीसी और दलित जातियों के वोट महागठबंधन से बिदक सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को उम्मीद है कि राजेश राम के तौर पर एक दलित प्रदेश अध्यक्ष बनाने और राहुल गांधी के ओबीसी और दलितों से जुड़े मुद्दों पर मुखर रहने के चलते उनके साथ एक नया वोट बैंक जुड़ेगा.

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इंडिया टुडे से जुड़े पुष्यमित्र बताते हैं कि सीएम फेस के लिए तेजस्वी यादव का नाम आगे नहीं करने को लेकर राजद और कांग्रेस में कोई मनमुटाव नहीं है. ये सब आपसी सहमति से हो रहा है. तेजस्वी को इस पर कोई आपत्ति नहीं है. तेजस्वी यादव का नाम आगे करने से कई जाति समूह असहज महसूस करने लगते हैं, जिनको कांग्रेस राहुल गांधी के जरिए अपने साथ जोड़ना चाहती है.

RJD पर दबाव बनाने की रणनीति 

राहुल गांधी और कांग्रेस की इस रणनीति को कुछ राजनीतिक विश्लेषक दबाव की राजनीति से जोड़कर भी देख रहे हैं. उनका मानना है कि कांग्रेस को राजद से उम्मीद के मुताबिक सीट नहीं मिलती दिख रही है. इसलिए पार्टी तेजस्वी को गठबंधन का चेहरा बनाने से बच रही है. महागठबंधन के घटक दलों के समन्वय समिति की पांच दौर की बैठक हो चुकी है. लेकिन सीट बंटवारे को लेकर कुछ भी ठोस निकल कर सामने नहीं आया है. इंडिया टुडे की सीनियर रिपोर्टर मौसमी सिंह ने बताया कि कांग्रेस 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. इसके लिए पार्टी ने सीटों की पहचान करने और उम्मीदवारों के स्क्रीनिंग की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है.

वहीं कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के हवाले से रमाकांत चंदन ने बताया कि कांग्रेस अपनी डिमांड घटाकर 50 सीट पर लड़ने को तैयार हो गई है. लेकिन साथ ही उनकी एक शर्त भी है कि ये 50 सीटें पार्टी खुद तय करेंगी. वहीं लालू यादव कांग्रेस को 30 से 35 सीट से ज्यादा देने के मूड में नहीं हैं.

कांग्रेस पिछली बार 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. जिसमें से पार्टी मात्र 19 सीटें जीत पाई थी. उनका स्ट्राइक रेट महागठबंधन में सबसे खराब रहा था. पार्टी की ओर से दावा किया गया कि पिछली बार उनको कई ऐसी सीटें दी गई थीं, जिस पर महागठबंधन की स्थिति बेहद कमजोर थी.

हालांकि इसके मुकाबले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा था. पार्टी ने 9 सीट पर लड़कर तीन सीट जीतने में सफल रही. वहीं पार्टी पप्पू यादव की सीट भी अपने खाते में मानकर ही चल रही है.

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CPI(ML) और मुकेश सहनी ने बढ़ाई मुश्किलें

लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में सबसे बेहतर स्ट्राइक रेट CPI(ML) का रहा था. उन्होंने तीन सीट लड़कर 2 पर जीत हासिल की. वहीं विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने 19 सीट लड़कर 12 पर जीत दर्ज की थी. CPI(ML) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने बताया कि पिछली बार उनकी पार्टी सिर्फ 12 जिलों में चुनाव लड़ी थी. इस बार वो ज्यादा से ज्यादा जिलों में चुनाव लड़ना चाहते हैं. उनकी ओर से 40 सीटों पर दावा किया जा रहा है. 

वहीं विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी भी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ने का दावा ठोंक रहे हैं. उन्होंने तो उपमुख्यमंत्री पद की भी मांग रख दी है. इसके चलते महागठबंधन में सीट बंटवारे की पेंच फंसती नजर आ रही है. इन सियासी उलझनों को देखते हुए कांग्रेस काफी संभाल कर अपने दांव चल रही है. और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने से बच रही है.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: 'वोट चोरी' पर चुनाव आयोग के खिलाफ राहुल गांधी का फाइनल प्लान क्या है?

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