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4 फ़ाइटर जेट्स के साथ पुतिन अचानक कहां पहुंचे?

अचानक सऊदी अरब क्यों पहुंचे पुतिन?

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अचानक सऊदी अरब क्यों पहुंचे पुतिन?

‘द फ़ॉल्ट इन ऑवर स्टार्स’ लिखने वाले जॉन ग्रीन कहते हैं,

“It's hard to believe in coincidence, but it's even harder to believe in anything else.”

यानी, संयोगों पर भरोसा करना मुश्किल है. लेकिन किसी और चीज़ पर भरोसा करना उससे भी ज़्यादा मुश्किल होता है.

इंटरनैशनल रिलेशंस की दुनिया भी ऐसे ही संयोगों से भरी है. ऐसा ही एक वाकया 06 दिसंबर 2023 को घटा. मॉस्को से उड़ा एक ख़ास विमान जैसे ही यूएई की सीमा में दाखिल हुआ, एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर ने मेसेज भेजा, आपका बहुत-बहुत स्वागत है, मिस्टर प्रेसिडेंट. ये मेसेज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए था. जैसे ही प्लेन लैंड हुआ, पूरी दुनिया में ख़बर फ़्लैश हुई. ब्रेकिंग की सूरत में.

Putin makes a rare trip to Middle-East
यानी, पुतिन का मध्य-पूर्व एशिया का औचक दौरा.

रूस-यूक्रेन युद्ध फ़रवरी 2022 में शुरू हुआ था. तब से पुतिन ने सिर्फ़ 04 विदेशी दौरे किए. इस लिस्ट में अब मिडिल-ईस्ट भी शामिल हो गया है. इस दौरे में उन्होंने यूएई के राष्ट्रपति शेख़ मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाहयान और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) से मुलाक़ात की. फिर मॉस्को वापस लौट गए. वहां ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मिले. पुतिन का दौरा यूक्रेन और गाज़ा में चल रही जंग के बीच हुआ. यूक्रेन की जंग में तो रूस ख़ुद एक पार्टी है. जबकि गाज़ा के पड़ोस में पुतिन ख़ुद पहुंचे थे.

जिस समय पुतिन मिडिल-ईस्ट के चक्कर लगा रहे थे, उसी दौरान इज़रायल और यूक्रेन को बड़ा झटका लगा. अमेरिका की संसद ने दोनों देशों को पैसा देने वाला बिल रोक दिया. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की अमेरिकी सांसदों से वर्चुअल मीटिंग करने वाले थे. नाराज़ होकर उन्होंने मीटिंग रद्द कर दी.

तो आइए जानते हैं,
- पुतिन अचानक से मिडिल-ईस्ट के दौरे पर क्यों पहुंचे?
- इस दौरे का यूक्रेन और गाज़ा की जंग पर क्या असर पड़ेगा?
- और, क्या पुतिन को राष्ट्रपति चुनाव में कोई फ़ायदा मिल सकता है?

पुतिन के बाद चलेंगे इटली. जहां जियोर्जिया मेलोनी की सरकार ने चीन को बड़ा सदमा दिया है. पूरा मामला विस्तार से बताएंगे.
पहले परिचय की रवायत पूरी कर लेते हैं.
नमस्ते, मेरा नाम निखिल है. और, आप देखना शुरू कर चुके हैं लल्लनटॉप का इंटरनैशनल प्रसंगों से जुड़ा रोज़ाना का कार्यक्रम - दुनियादारी.
जहां आज बात होगी, पुतिन के औचक दौरे की.

06 दिसंबर को आबूधाबी में पुतिन का स्दिवागत हुआ. यूएई के फ़ाइटर जेट्स आसमान में रूस का झंडा बना रहे थे. नीचे तोपों से सलामी दी जा रही थी. रेड कार्पेट से लेकर गार्ड ऑफ़ ऑनर तक, स्वागत और सम्मान टॉप क्लास का था. ये पूरी व्यवस्था व्लादिमीर पुतिन के लिए थी. जो लगभग डेढ़ बरस बाद मिडिल-ईस्ट एशिया की ज़मीन पर उतर रहे थे. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से उनकी फ़ॉरेन ट्रिप चीन और सेंट्रल एशिया के देशों तक सीमित रही है. बीच में बस एक दफ़ा ईरान आए थे. जुलाई 2022 में.

टाइमलाइन जान लीजिए.

- रूस-यूक्रेन युद्ध 24 फ़रवरी 2022 को शुरू हुआ. उसके बाद पहली बार पुतिन जून 2022 में रूस से बाहर गए. 28 जून को ताजिकिस्तान. 29 जून को तुर्कमेनिस्तान.
- अगली ट्रिप ईरान की लगी. 19 जुलाई को तेहरान पहुंचे. ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामेनई और तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन से मिले. अर्दोआन से मीटिंग में ब्लैक सी ग्रेन डील पर बात हुई. इसके बाद ही समझौता फ़ाइनल हुआ. 
अब पुतिन की फ़ॉरेन ट्रिप्स पर लौटते हैं.
- तेहरान के बाद 15 और 16 सितंबर को उज़्बेकिस्तान के समरकंद गए. वहां शंघाई कॉपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (SCO) की बैठक में हिस्सा लिया. इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाक़ात की थी. मीटिंग में पीएम मोदी ने पुतिन को कहा था, ये युद्ध का समय नहीं है.
- 13 से 15 अक्टूबर - कज़ाख़िस्तान.
- 22 और 23 नवंबर - आर्मीनिया.
- 09 दिसंबर - किर्गिस्तान.
- 19 दिसंबर - बेलारूस.

अब 2023 में आते हैं.
- मार्च 2023 में इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने पुतिन के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट जारी किया. तब से पुतिन ने विदेशी दौरा लगभग बंद कर दिया था. जुलाई में साउथ अफ़्रीका में ब्रिक्स समिट थी. वहां नहीं गए. सितंबर में भारत में G20 लीडर्स समिट हुई. उसमें भी नहीं आए.
- 2023 में पहला विदेशी दौरा किर्गिस्तान का किया. 12 से 14 अक्टूबर के बीच.
- 17 और 18 अक्टूबर - चीन.
- 09 और 10 नवंबर - कज़ाख़िस्तान.
- 23 और 24 नवंबर - बेलारूस.

फिर 06 दिसंबर को पुतिन ने एक साथ यूएई और सऊदी अरब का दौरा किया. जुलाई 2022 की ईरान विजिट के अलावा मिडिल-ईस्ट की तरफ़ उनका जाना नहीं हुआ था. तो, अब अचानक क्यों? इसकी वजह आगे विस्तार से बताएंगे. पहले रूस और मिडिल-ईस्ट के संबंधों का इतिहास जान लेते हैं.
किन-किन देशों को मिडिल-ईस्ट का हिस्सा माना जाता है?
- ईजिप्ट, इज़रायल, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान, सऊदी अरब, यमन, इराक़, ईरान, क़तर, कुवैत, बहरीन, यूएई, ओमान, तुर्किए, साइप्रस. फ़िलिस्तीन को देश का दर्ज़ा नहीं मिला है. मगर इसकी लोकेशन यहीं पर है.

इस रीजन के साथ रूस के संबंध सदियों पुराने हैं. मौजूदा मिडिल-ईस्ट के अधिकतर हिस्सों पर ऑटोमन साम्राज्य का नियंत्रण था. उनकी रूसी साम्राज्य के साथ वर्चस्व को लेकर लंबी लड़ाईयां चलीं. पहला विश्वयुद्ध खत्म होने से एक बरस पहले रूसी साम्राज्य का पतन हो गया. 1918 में ऑटोमन साम्राज्य भी डूब गया. उसके कब्ज़े वाले देश अलग हुए. कुछ जगहों पर पश्चिमी देशों का कंट्रोल रहा. जैसे, सीरिया, फ़िलिस्तीन, लेबनान. कई देशों में स्थानीय लोगों का शासन आया. रूसी साम्राज्य में क्या हुआ? वहां लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक क्रांति हुई. बाद में उन्होंने सोवियत संघ की स्थापना की. अब रूस वाला निज़ाम सोवियत संघ के पास था.

मिडिल-ईस्ट के साथ उनका कमोबेश बराबरी का संबंध दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शुरू होता है. कोल्ड वॉर में ये इलाका अमेरिका और सोवियत संघ की प्रभुत्व की लड़ाई का न्यूट्रल ग्राउंड था. जहां पर अमेरिका की तकरार होती, वहां सोवियत संघ दोस्ती निभाने पहुंच जाता. और, जहां पर सोवियत संघ पिछड़ता, वहां अमेरिका यारी जताने की कोशिश करता था. कुछ उदाहरणों से समझते हैं,

- 1956 में पश्चिमी देशों ने ईजिप्ट को असवान बांध के लिए लोन देने से मना कर दिया. तब ईजिप्ट की मदद सोवियत संघ ने की. इसके बाद ही तत्कालीन राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासेर ने स्वेज़ नहर को नेशनलाइज़ करने का फ़ैसला किया था.
- दूसरा बड़ा उदाहरण 1973 के अरब-इज़रायल वॉर का है. तब यौम किपुर त्यौहार के दिन सीरिया और ईजिप्ट ने एक साथ इज़रायल पर हमला किया था. सीरिया और ईजिप्ट को सोवियत संघ से हथियार मिले थे. जबकि इज़रायल की मदद अमेरिका ने की थी.
- तीसरा उदाहरण ईरान का है. फ़रवरी 1979 में अयातुल्लाह ख़ोमैनी के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति हुई. शाह रेज़ा पहलवी को कुर्सी से उतार दिया गया. ख़ोमैनी के समर्थकों ने अमेरिकी दूतावास को बंधक बना लिया. अमेरिका से सारे संबंध तोड़ लिए. तब सोवियत संघ, ईरान के साथ खड़ा रहा. सबसे पहले मान्यता देने वालों में से था. ईरान-इराक़ वॉर के दौरान उसने नॉर्थ कोरिया के ज़रिए हथियारों की सप्लाई भी की. उस युद्ध में अमेरिका ने इराक़ की मदद की थी.

ये सब तो चला सोवियत संघ तक. फिर 1991 में विघटन हुआ. संघ से टूटकर अलग-अलग आज़ाद देश बने. मेन पावर आई रशियन फ़ेडरेशन यानी रूस के पास. 1990 का दशक रूस को पिछली असफलताओं से उबरने में बीता. 2000 के बरस में सत्ता व्लादिमीर पुतिन के पास आई. तब से वो रूस के सर्वोच्च नेता बने हुए हैं. 2008 से 2012 के बीच वो राष्ट्रपति नहीं थे. प्रधानमंत्री थे. फिर भी आदेश उनका ही चलता था.
पुतिन ने मिडिल-ईस्ट को लेकर रूस की नीति अपने हिसाब से तय की. जिन लीडर्स को पश्चिमी देशों ने दरकिनार किया, पुतिन उनके संपर्क में रहे. बैकडोर से सपोर्ट भी किया. पूरी तरह खुलकर सामने आने का पहला मामला 2015 में दिखा. जब रूस ने सीरिया में अपनी सेना उतारी. राष्ट्रपति बशर अल-असद के सपोर्ट में. उस वक़्त असद की हालत पतली हो चुकी थी. रूस के सपोर्ट ने उनको बचा लिया. असद अभी भी राष्ट्रपति हैं. और, उनका कद लगातार लंबा हो रहा है.

इसी तरह पश्चिमी देशों ने जब ईरान पर प्रतिबंध लगाए, रूस ने उसका साथ दिया. अब ईरान उन्हें मिलिटरी ड्रोन्स की सप्लाई कर रहा है. हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि ईरान से क़रीबी के लिए वो किसी को नाराज़ कर रहा है. रूस ने इज़रायल के साथ भी दोस्ती बनाकर रखी है. हाल की इज़रायल-हमास जंग के लिए पुतिन ने अमेरिका को ज़िम्मेदार ठहराया. इज़रायल की कड़ी आलोचना से बचे हैं.
इससे पुतिन को 02 बड़े फ़ायदे हैं,
- पहला, न्यूट्रल छवि.
पुतिन ये दिखा सकते हैं कि हमारी बात सब सुनते हैं. इज़रायल भी और ईरान भी. गाज़ा में चल रही जंग में पश्चिमी देशों ने तो अपना पक्ष चुन लिया है. वे इज़रायल के साथ खड़े हैं. युद्धविराम पर ज़ोर देने से बच रहे हैं. इसलिए, मिडिल-ईस्ट के देश उनकी बात नहीं मानेंगे. मगर पुतिन के साथ ऐसी बाध्यता नहीं है.

- दूसरा, किंगमेकर बनने का मौका.
अगर पुतिन अपनी छवि के आधार पर कोई समझौता करा पाए तो वो किंगमेकर बनकर उभर सकते हैं. ये उन्हें रूस की इंटरनल पॉलिटिक्स में अजेय बना सकता है. इसके अलावा, वो ये भी साबित कर सकते हैं कि यूक्रेन में युद्ध ना रुकने की असली वजह पश्चिमी देश हैं.

अब हालिया ट्रिप पर लौटते हैं.
पुतिन यूएई और सऊदी अरब का दौरा पूरा कर वापस लौट चुके हैं. यूएई में उन्होंने इतिहास याद दिलाया. बोले, सबसे पहले हमने आपके देश को मान्यता दी थी. इस इलाके में हम आपके सबसे बड़े व्यापारिक सहयोगी हैं.

सऊदी अरब में उन्होंने कच्चे तेल की कीमतों पर चर्चा की. दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर भी बात हुई.

ये तो हुई सरकारी बातें. इस ट्रिप की अहमियत क्या है? 04 पॉइंट्स में समझते हैं,
- नंबर एक.
सऊदी अरब और यूएई, दोनों जगहों पर अमेरिका के सैन्य अड्डे हैं. दोनों अमेरिका से भरपूर हथियार खरीदते हैं. उनके अच्छे संबंध हैं. इसके बावजूद दोनों देश रूस को भी सपोर्ट करते हैं. यूएई, रूस को कंप्यूटर चिप्स और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स की सप्लाई कर रहा है. अमेरिका की नाराज़गी के बावजूद.
जानकार कहते हैं, इससे दोनों पक्षों को फ़ायदा है.
सऊदी अरब और यूएई ख़ुद को सबका दोस्त बता सकते हैं. वे सबके लिए दरवाज़े खुले रखते हैं. इस तरह उनके पास कभी विकल्पों की कमी नहीं होती.
जबकि रूस के लिए ये मिडिल-ईस्ट में अपनी प्रासंगिकता साबित करने का मौका होता है.

- नंबर दो.
यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए. उन्होंने यूएई पर भी ऐसा करने का दबाव बनाया. मगर वे नहीं माने. तब से रूस और यूएई के बीच में व्यापार बढ़ा है. 06 दिसंबर को पुतिन के साथ बिजनेस और टेक की फ़ील्ड के कई दिग्गज लोग भी आए थे. माना जा रहा है कि ये पार्टनरशिप और बढ़ेगी.

- नंबर तीन.
सऊदी अरब में पुतिन का फ़ोकस कच्चे तेल पर रहा. दोनों देश कच्चे तेल के सबसे बड़े उत्पादकों में गिने जाते हैं. उन्होंने आपस में समझौता करके प्रोडक्शन घटा दिया था. जिसके चलते तेल के दाम अचानक से बढ़ गए थे. इसका सीधा फ़ायदा रूस को भी हुआ था.

- नंबर चार.
सऊदी अरब और यूएई ने अमेरिका और यूक्रेन से क़ैदियों की अदला-बदली में रूस की मदद की है. अभी भी कइयों की अदला-बदली रुकी हुई है. कहा जा रहा है कि पुतिन की ट्रिप में इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई है. हालांकि, इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी है.