'मोदी गर्मजोशी से मुझसे मिले. पूछा कि राष्ट्र-निर्माण के सपने के साथ जुड़ना चाहते हो तो जुड़ सकते हो, लेकिन अगर टिकट पाने के लिए पार्टी में आना चाहते हो तो मैं उपयुक्त व्यक्ति नहीं हूं'.और इस तरह सैयद ज़फ़र इस्लाम नरेंद्र मोदी के कहने पर बीजेपी के हो गए. वही ज़फ़र इस्लाम, जो बीजेपी के प्रवक्ता हैं. टीवी पर बीजेपी का पक्ष रखते दिखते हैं. लेकिन उनकी सबसे ज्यादा चर्चा तब हुई, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि इसके पीछे ज़फ़र इस्लाम की कोशिशें हैं. ज़फ़र अब एक बार फिर खबरों में हैं. उन्हें बीजेपी के टिकट पर राज्यसभा भेजा गया है. उत्तर प्रदेश से बीजेपी के एकमात्र मुस्लिम सांसद. बीजेपी का उभरता मुस्लिम चेहरा. लेकिन बैंकर से नेता बने ज़फ़र इस्लाम की कहानी क्या इतनी सीधी है?

क्यों छोड़ी करोड़ों की नौकरी
कहने वाले कहते हैं कि बीजेपी में शामिल होने से पहले ज़फ़र इस्लाम ने कांग्रेस पार्टी के लिए काम किया. राहुल गांधी की बैकरूम टीम में. कहने वाले तो ये भी आरोप लगाते हैं कि वो पार्टी में पद चाहते थे, लेकिन नहीं मिला तो बीजेपी में चले गए. लेकिन ज़फ़र इस्लाम इस बात से इंकार करते हैं. उन्होंने दी लल्लनटॉप से बातचीत में कहा,2012 से राजनीति में आने की सोचने लगा था. हालांकि उस समय मैं अपने करियर के पीक पर था. राजनीति मेरा पैशन है. लोगों को लगना चाहिए कि जो मेरा पैशन है, जिसके लिए मैं इच्छुक हूं, उसके लिए मैं बलिदान दे सकता हूं. इसलिए जॉब से रिजाइन करने के बाद राजनीति की तरफ बढ़ा. जब मैंने जॉब छोड़ी, मैनेजिंग डायरेक्टर था. करोड़ों की सैलरी थी.वह आगे बताते हैं-
ये सच है कि मैं कई पॉलिटिकल पार्टी के रिप्रेजेंटेटिव्स से मिला था. कांग्रेस से भी मिला. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से मिला. लेकिन कभी कांग्रेस में शामिल नहीं हुआ. फॉर्म नहीं भरा. इच्छा भी जाहिर नहीं की. बैंक में रहते हुए दो महीने की छुट्टी लेकर कांग्रेस के वॉररूम में गया था. वहां इंटर्नशिप के लिए. मैं बस ये देखना चाहता था कि एक पॉलिटकल पार्टी का वॉररूम कैसे काम करता है. ये 2013 मई-जून की बात है. सितंबर 2013 में मैंने रिजाइन किया. उसके बाद बीजेपी में शामिल हुआ.
बीजेपी में जाने से परिवार खुश नहीं था
ज़फ़र इस्लाम का मानना है कि मुस्लिम समाज का जो क्रीम तबका है, जो पढ़े-लिखे लोग हैं, उनमें से बहुत से लोग कांग्रेस में जाते हैं. लेकिन भारतीय जनता पार्टी के साथ ठीक उल्टा होता है. बीजेपी में आने वाले मुस्लिमों को सिर्फ बज से मतलब होता है. एजुकेशनल बैकग्राउंड, प्रोफेशनल बैकग्राउंड से कोई मतलब नहीं होता. एक मुस्लिम होने के नाते उनकी इच्छा होती है कि बीजेपी में आएंगे तो कुछ ना कुछ मिल जाएगा. ज़फ़र इस्लाम का कहना है कि मेरा नजरिया बिल्कुल अलग था. मुझे इसलिए कुछ नहीं चाहिए था कि मैं मुस्लिम हूं.मेरे घर वाले चाहते थे कि मैं कांग्रेस में जाऊं. कांग्रेस उस समय सत्ता में थी. हालांकि करोड़ों रुपए की जॉब छोड़कर राजनीति में आने से वे नाराज थे. कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के मन में बीजेपी को लेकर एक डर पैदा कर दिया था. लेकिन मैंने घरवालों को समझाया.

ज़फ़र इस्लाम बताते हैं कि उनके एक अच्छे दोस्त थे अभिनेता नीरज बोरा, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. परेश रावल और उनमें दोस्ती थी. उनकी जान पहचान प्रधानमंत्री से थी. ऐसे में इस्लाम ने उनसे बीजेपी में जाने की इच्छा जताई. बीजेपी को लेटर लिखने के बाद सुषमा स्वराज ने ज़फ़र को पार्लियामेंट हाउस बुलाया. यहीं पहली मुलाकात हुई. फिर मोदी से मुलाकात हुई.
ज़फ़र के शब्दों में,
ये 2013 की बात है. उस समय पीएम मोदी ने कहा कि अगर आप टिकट चाह रहे हैं. इलेक्शन लड़ना चाहते हैं तो मैं सही व्यक्ति नहीं हूं. जो लोग टिकट के लिए आते हैं, मैं उनसे मिलता नहीं हूं. साफ शब्दों में कही गई पीएम की बात को मैंने अच्छा माना. उन्होंने कहा कि हम ऐसे लोगों को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जो राष्ट्र-निर्माण में अपना योगदान दे सकें. मैंने कहा कि मैं बैंक छोड़कर आया हूं, मुझे कोई ऐसा काम मिले जो मैं कर पाऊं. उन्होंने कहा था कि आपको काम करने का जरूर मौका मिलेगा. इसके बाद मैंने पार्टी जॉइन की.इस्लाम का कहना है कि बीजेपी में आने के बाद उन्हें कभी ये महसूस नहीं होने दिया गया कि वो माइनॉरिटी कम्युनिटी से हैं. उनकी क्षमता के हिसाब से बराबर मौके मिले. बीजेपी की इंटरनल मीटिंग्स में बैठाया गया, जहां वह कंट्रीब्यूट कर सकते थे. मौके दिए. एक साल के अंदर राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया. उनका दावा है कि वो अकेले ऐसे प्रवक्ता हैं, जिसे इकोनमी और पॉलिटिक्स दोनों मसलों पर जिम्मेदारी मिली है.
ज़फ़र के प्रवक्ता बनने की कहानी
अपने प्रवक्ता बनने के बारे में ज़फ़र बताते हैं कि अमित शाह ने जब कहा था कि मैं आपको प्रवक्ता बना रहा हूं तो मैं नर्वस हो गया. अपने बैंकिंग करियर में मैंने बहुत कम मीडिया का सामना किया था. वहां सेट पैटर्न में जवाब देना होता था, लेकिन किसी पार्टी के लिए टीवी पर डिबेट करना मुश्किल होता है. इसलिए मुझे लगा कि मैं राइट पर्सन नहीं हूं. मैंने बताया कि मैं प्रवक्ता बनने के लिए सही व्यक्ति नहीं हूं. फिर अमित शाह ने कहा था- कोई मां के पेट से सीखकर नहीं आता जफर भाई. उन्होंने पार्टी के कई बड़े नेताओं का नाम लिया. कहा कि आप मीडिया में उनका पहला इंटरव्यू देखिए और आज का इंटरव्यू देखिए.उसमें जमीन आसमान का फर्क होगा. आप दो-चार बार गलती जरूर करेंगे, लेकिन आप सीख जाएंगे. उस कॉन्फिडेंस के बाद मैं पहली बार टीवी पर गया. मेरे सामने संजय झा थे. मैं बहुत नर्वस था. संजय झा के सामने मैं परफॉर्म नहीं कर पाया. लेकिन एक महीने के अंदर कॉन्फिडेंस आ गया.
सिंधिया को बीजेपी में लाने में कितना योगदान?
ज़फ़र इस्लाम का जिक्र हो और सिंधिया की बात ना हो तो अधूरा सा लगता है. 10 मार्च 2020. होली वाले दिन सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. मीडिया में खबरें चलीं कि सिंधिया को अमित शाह से मिलवाने और पीएम मोदी तक पहुंचाने वाले नेता कोई और नहीं, बीजेपी प्रवक्ता ज़फ़र इस्लाम हैं. जब उन्हें राज्यसभा का टिकट मिला तो एक बार फिर कहा गया कि ये सिंधिया को बीजेपी में लाने का ईनाम है.सिंधिया जी हमारे परिचित हैं, लेकिन ये कहना कि उन्हें बीजेपी में मैं लेकर आया, सही नहीं है. मोदी से प्रेरित होकर उन्होंने अपना मन बनाया. सिंधिया अमित शाह से भी प्रभावित थे. उनके काम करने के तरीके से प्रभावित थे. हां एक कार्यकर्ता के तौर पर मैंने अपना रोल अदा किया. लेकिन कितना किया. इस बारे में बात करना सही नहीं होगा.ज़फ़र इस्लाम का जन्म झारखंड के हजारीबाग में हुआ. दादा उत्तर प्रदेश के बलिया से थे. सिविल सर्जन थे. लेकिन बलिया छोड़कर हजारीबाग में बस गए. नाना बिहार पुलिस में दारोगा थे.
इस्लाम स्कूल-कॉलेज में क्रिकेट में बहुत एक्टिव थे. वो बताते हैं कि क्रिकेट की वजह से ही लोग उन्हें जानते थे. 12वीं तक की पढ़ाई हजारीबाग से की. हायर एजुकेशन के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आ गए. फिर आईआईएम अहमदाबाद से पढ़ाई की. इसके बाद बैंक जॉब में करने लगे इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर.
यूपी से बीजेपी के एकमात्र मुस्लिम सांसद
ज़फ़र इस्लाम मानते हैं कि बीजेपी ऐसी पार्टी है, जो डिजर्विंग को मौका देती है. कौन क्या है, ये मायने नहीं रखता. यह पूछने पर आप यूपी बीजेपी से एकमात्र मुस्लिम सांसद हैं, कैसा लगता है ये सोचकर. उनका कहना था कि वो मुस्लिम होने के नाते नहीं पहचाने जाना चाहते. लेकिन मुस्लिम समाज के लिए भी कुछ करना चाहते हैं.राजनीति में आए ज़फ़र इस्लाम को सिर्फ छह साल हुए हैं. एक नेता के तौर पर राज्यसभा सांसद के रूप में उनकी शुरुआत हुई है. उन्हें बीजेपी के उभरते मुस्लिम चेहरे के तौर पर देखा जाने लगा है.
जफर इस्लाम, जिन्होंने कांग्रेस के ज्योतिरादित्य को बीजेपी में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई