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PM मोदी का फ्रांस दौरा, राफेल-एम और स्कॉर्पिन सबमरीन की डील पर लगेगी मुहर!

सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि पीएम मोदी के पेरिस दौरे से पहले इस डील को कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की मंजूरी मिल सकती है. इन डील्स के 31 मार्च से पहले फाइनल होने की उम्मीद जताई जा रही है.

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एयरक्राफ्ट कैरियर पर राफेल एम (PHOTO-Dassault Website)

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10-11 फरवरी, 2025 को फ्रांस के दौरे पर होंगे. इस दौरान वे एआई एक्शन समिट (Artificial Intelligence Action Summit) में हिस्सा लेंगे. कहा जा रहा है कि इस समिट के अलावा पीएम मोदी इंडियन नेवी के लिए राफेल-एम और स्कॉर्पियन क्लास पनडुब्बियों की डील पर फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से चर्चा कर सकते हैं.

भारतीय नेवी के लिए ये दोनों डील्स काफी अहम हैं. सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि पीएम मोदी के पेरिस दौरे से पहले इस डील को कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की मंजूरी मिल सकती है. इन डील्स के 31 मार्च से पहले फाइनल होने की उम्मीद जताई जा रही है.

French President Emmanuel Macron invited as chief guest of 2024 Republic  Day, says report - India Today
फ्रेंच प्रेसिडेंट इमैनुअल मैक्रों के साथ पीएम मोदी (PHOTO-India Today)
नेवी की जरूरत

भारतीय नौसेना को अत्याधुनिक हथियारों की ज़रूरत है. भारत के पास फिलहाल 2 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. अब कैरियर हैं तो इन पर उतरने वाले जहाज़ भी चाहिए. भारत के पास दो ऐसे विमान हैं जो एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर ऑपरेट करने की क्षमता रखते हैं. ये विमान हैं Mig-29K और Light Combat Aircraft. Mig-29K को भारत ने रूस से ख़रीदा था. वहीं Light Combat Aircraft को भारत ने खुद अपने देश में डेवलप किया है. हालांकि LCA अभी भी डेवलपिंग स्टेज में है. यानी इस विमान के अपग्रेडेशन पर लगातार काम चल रहा है. 

Mig-29K विमान पुराने हो रहे हैं और भारत की नेवल चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं. ऐसे में नेवी को जरूरत है ऐसे एयरक्राफ्ट की जो नेवल कैरियर पर ऑपरेट कर सकें. यहीं चर्चा छिड़ती है फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन के लड़ाकू विमान राफेल की. इंडियन एयरफोर्स में पहले से ही राफेल का इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में इंडियन नेवी ने इसके नेवल वर्जन में भी दिलचस्पी दिखाई है. इस रेस में अमेरिका का F/A-18 सुपर हॉर्नेट भी था, पर भारत ने राफेल को चुना.

बात करें सबमरीन की तो ये नेवल वॉरफेयर में हमेशा से तुरुप का इक्का साबित हुई हैं. द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर की यू-बोट्स ने मित्र देशों (Allied Powers) का लाखों टन सामान यू-बोट्स की बदौलत डुबा दिया था. भारत ने अभी कुछ ही समय पहले आईएनएस वागशीर (INS Vagsheer) सबमरीन को नेवी में कमीशन किया था. वागशीर कलवरी-क्लास की सबमरीन है जो फ्रांस के स्कॉर्पिन-क्लास पर आधारित है.

हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब महासागर में बढ़ रही चुनौतियों को देखते हुए भारत अपने बेड़े में और भी सबमरींस को शामिल करने की योजना पर काम कर रहा है. इसी क्रम में भारत की नज़र फ्रांस की तीन स्कॉर्पिन क्लास की सबमरीन पर है. पीएम मोदी के फ्रांस दौरे पर राफेल-एम के अलावा तीन स्कॉर्पिन या कलवरी क्लास सबमरीन की डील पर भी मुहर लग सकती है.

राफेल-मरीन (Rafale-M)

जैसा कि इसके नाम से ज़ाहिर है, ये विमान मरीन ऑपरेशंस में इस्तेमाल आता है. इसीलिए इसे राफेल-M कहा जाता है. इसे फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन ही बनाती है. इस विमान में Active Electronically Scanned Array (AESA) रडार लगा हैै. ये रडार एक साथ ज़मीन, समुद्र और हवा में मौजूद टारगेट्स का पता लगा सकता है. ये एक सिंगल सीटर विमान है जिसके विंगस्पैन 10.90 मीटर लंबे हैं. लम्बाई 15.30 मीटर और ऊंचाई 5.30 मीटर है. राफेल-M 24.5 टन का लोड लेकर टेक-ऑफ करता है. इसके अलावा 9.5 टन एक्स्ट्रा लोड उठाने की क्षमता भी इस विमान में है.

2023 की शुरुआत में ये जानकारी प्रेस में लीक हुई, कि नौसेना ने सरकार से राफेल M पर मुहर लगाने को कहा. इसके पीछे एक कारण ये बताया गया कि वायुसेना पहले से राफेल फाइटर उड़ा ही रही है. तो हमें ट्रेनिंग, मेंटेनेंस और रिपेयर आदि में अपने अनुभव का फायदा मिलेगा. ये एक बड़ी वजह है कि भारत, अमेरिका की जगह फ्रांस से नेवल फाइटर ले सकता है. 

स्कॉर्पिन-क्लास सबमरीन

स्कॉर्पिन का मतलब स्कॉर्पियन माने बिच्छू नहीं है. स्कॉर्पिन एक ज़हरीली मछली होती है, जो समंदर में पाई जाती है. इसपर जहरीले कांटे होते हैं. तो समंदर में सब इससे बचकर रहते हैं. इसीलिए फ्रांस के नेवल ग्रुप ने अपनी अटैक सबमरीन (डीज़ल-इलेक्ट्रिक) का नाम इस मछली के नाम पर रखा. स्कॉर्पिन-क्लास सबमरीन एक नई और आधुनिक किस्म की सबमरीन है जिनका इस्तेमाल तटीय इलाकों के साथ गहरे पानी में मिशंस को अंजाम देने के लिए किया जाता है. ये अटैक यानी हमलावर सबमरीन होती हैं जिनका उद्देश्य किसी खतरे की सूरत में हमला कर दुश्मन के जहाजों को तबाह करना है. इस क्लास की सबमरीन को फ्रांस के नेवल ग्रुप और स्पेन की नवांतिया ने मिलकर तैयार किया है.

भारत ने इस क्लास की सबमरीन INS वागशीर को अपने 'प्रोजेक्ट-75' के अंतर्गत फ्रांस से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत बनाया है. इन सबमरींस को कलवरी-क्लास सबमरीन नाम दिया गया है. इस सबमरीन की सबसे बड़ी खासियत है इसका एक फीचर जिसे ‘स्टेल्थ’ कहा जाता है. ये तकनीक इन सबमरींस को रडार से बचने में मदद करती है. 

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भारतीय नौसेना की स्कॉर्पिन या कलवरी क्लास की सबमरीन (PHOTO-X/Indian Navy)

स्कॉर्पिन एक डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन है. पारंपरिक डीजल पनडुब्बियों को अपने जनरेटर चलाने के लिए 2 से 3 दिन में पानी की सतह पर आना पड़ता है, क्योंकि जनरेटर में ईंधन को जलाने के लिए ऑक्सीजन चाहिए. इन्हीं जेनरेटर्स से पनडुब्बी की बैट्री चार्ज होती है, जिनके सहारे पनडुब्बी पानी के अन्दर चलती है. डीजल-इलेक्ट्रिक के अलाव एक और किस्म की सबमरीन होती है जिसे एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) कहते हैं. 

ये पनडुब्बियां भी बैट्री से ही चलती हैं और इनमें भी डीजल जनरेटर लगा होता है. लेकिन वो पानी के अंदर 15 दिन से भी ज्यादा समय तक रह सकती हैं, क्योंकि वो ऐसे सिस्टम से भी ऊर्जा पैदा कर सकती हैं, जो ‘एयर इंडिपेंडेंट’ है, माने उसके लिए हवा नहीं चाहिए होती. AIP पनडुब्बी की बैट्री चार्ज करने के लिए वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ती. न ही इससे कोई धुआं निकलता है जिसे वायुमंडल में छोड़ना पड़े.

इसमें जासूसी और निगरानी के लिए कई सारे रडार और सेंसर लगे हैं जो दुश्मन की नजर में आए बिना उसकी जानकारी बेस तक पहुंचाते हैं. इसमें 21 इंच के 6 तॉरपीडो ट्यूब लगे हैं. साथ ही इसमें फ्रांस में बने Exocet एंटी-शिप मिसाइल पूरी दुनिया में अपनी काबिलियत साबित कर चुके हैं. इसके अलावा कलवरी क्लास में लगी MICA मिसाइल्स भी काफी भरोसेमंद मानी जाती हैं. 

कलवरी क्लास का डिसप्लेसमेंट 1775 टन है और लंबाई 67.5 मीटर है. समुद्र में डिसप्लेसमेंट का मतलब है जब जहाज़ पानी में रहता है, वो जितने पानी को उसकी जगह से डिसप्लेस, माने हटाता है; इसी को मैरीटाइम या नेवी की भाषा में डिस्प्लेसमेंट कहते हैं. इसमें जहाज का वजन भी शामिल होता है.

(यह भी पढ़ें: इंडियन नेवी ने भारतीय 'तेजस' की जगह फ्रांस के राफेल को क्यों चुना?

भारत लगातार अपनी नेवी को अपग्रेड करने में जुटा है. भारत ने रूस से 5 फ्रिगेट्स की डील पर साइन किया है जिसमें से एक INS Tushil को नेवी में कमीशन किया जा चुका है. इनमें से दो और फ्रिगेट्स का निर्माण रूस के यंतर शिपयार्ड में ही किया जाएगा. जबकि बाकी के दो फ्रिगेट्स को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत भारत में बनाया जाएगा.

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