इंडियन नेवी ने भारतीय 'तेजस' की जगह फ्रांस के राफेल को क्यों चुना?
आसान भाषा में कहें तो हवा में कलाबाजी या मैनुवर करने की क्षमता भी अच्छी है. यही वजह थी कि सिर्फ Tejas ही नहीं Rafale-Marine अपने प्रतिद्वंदी Boeing के F/A-18 सुपर हॉर्नेट के मुकाबले इंडियन नेवी को ज्यादा पसंद आया.
अमेरिका के एक पूर्व नेवल ऑफिसर Alfred Thayer Mahan की एक फेमस लाइन है- "Whoever rules the waves rules the World." माने जो लहरों पे राज करता है, वही दुनिया पर भी राज करेगा. हमारी धरती का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी है. इस लिहाज़ से मिलिट्री पावर की बात करें तो नौसेना सबसे अहम हो जाती है. ब्रिटेन के विशाल साम्राज्य के पीछे भी उसकी नेवल पावर का ही हाथ माना जाता है. 'रॉयल नेवी' के विशाल बेड़े की बदौलत ही ब्रिटेन ने एक समय दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर राज किया. कितने ही किस्से हैं जब नौसेना ने लड़ाईयों का रुख बदला है. फ़्रांस का Normandy इस बात का गवाह है. खैर ये तो हुई नेवल पावर की अहमियत. अब थोड़ा भारत में आते हैं. साल 1615. 18 सितंबर को गुजरात के सूरत तट पर एक जहाज़ ने लंगर डाला. इस जहाज़ में थे ब्रिटेन के राजा के दूत 'सर थॉमस रो' जो मुग़ल बादशाह जहांगीर के दरबार में आए थे. ये वो मुलाकात थी जिसने भारत का भविष्य बदल दिया था.
आज के समय में जब भारत एक संप्रभु देश है, तब उसकी नौसेना को भी आधुनिक हथियारों से लेकर विमानवाहक पोत(Aircraft Carrier) जैसे बड़े हथियारों की ज़रूरत है. कहते हैं कि विमानवाहक पोत किसी भी नेवल वॉरफेयर में सफलता की कुंजी होते हैं. भारत के पास फिलहाल 2 एयरक्राफ्ट कैरियर है. अब कैरियर हैं तो इन पर उतरने वाले जहाज़ भी चाहिए. भारत के पास 2 ऐसे विमान हैं जो एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर ऑपरेट करने की क्षमता रखते हैं. ये विमान हैं Mig-29K और Light Combat Aircraft. Mig-29K को भारत ने रूस से ख़रीदा था. वहीं Light Combat Aircraft को भारत ने खुद अपने देश में डेवलप किया है. हालांकि इसपर अभी भी काम चल रहा है. ये जहाज़ अभी भी डेवलपिंग स्टेज में है. अब चूंकि Mig-29K विमान पुराने हो रहे हैं और भारत की नेवल चुनौतियां बढ़ रही हैं ; ऐसे में इंडियन नेवी को ज़रूरत है ऐसे एयरक्राफ्ट की जो एयरक्राफ्ट कैरियर पर ऑपरेट कर सकें. और यहीं आती है बात चॉइस की. 24 सितंबर 2024 को 'द यूरेशियन टाइम्स' में एक रिपोर्ट छपी. इसमें कहा गया कि इंडियन नेवी ने 2018 में Light Combat Aircraft के नेवल वर्जन Twin Engine Deck Based Fighter में दिलचस्पी दिखाई थी. पर बाद में नेवी ने फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन के राफेल मरीन में दिलचस्पी जाहिर की. राफेल का एक दूसरा वर्जन इंडियन एयरफोर्स पहले से ही इस्तेमाल कर रही है. अब सवाल ये है कि इंडियन मेड Light Combat Aircraft और फ्रांस के बने राफेल; दोने विमानों में क्या खासियत है? बारी-बारी से समझते हैं.
राफेल-मरीन (Rafale-M)भारतीय वायुसेना भी राफेल का इस्तेमाल करती है. पर जैसा कि इसके नाम से ज़ाहिर है, राफेल मरीन यानी मरीन ऑपरेशंस में इस्तेमाल आना वाले राफेल. इसे राफेल-M भी कहा जाता है. इसे भी फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन ही बनाती है. इस विमान में Active Electronically Scanned Array (AESA) रडार लगा हैै. ये रडार एक साथ ज़मीन, समुद्र और हवा में मौजूद टारगेट्स का पता लगा सकता है. ये एक सिंगल सीटर जहाज़ है जिसके विंगस्पैन 10.90 मीटर लंबे हैं. लम्बाई 15.30 मीटर और ऊंचाई 5.30 मीटर है. राफेल-M 24.5 टन का लोड लेकर टेक-ऑफ करता है. इसके अलावा 9.5 टन एक्स्ट्रा लोड उठाने की क्षमता भी इस जहाज़ में है.
ये विमान 50 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई तक ऑपरेशंस कर सकता है. साथ ही इसका टर्न रेट, आसान भाषा में कहें तो हवा में कलाबाजी करने या मैनुवर करने की क्षमता भी अच्छी है. यही वजह थी कि राफेल-मरीन अपने प्रतिद्वंदी बोइंग के F/A-18 सुपर हॉर्नेट के मुकाबले इंडियन नेवी को ज्यादा पसंद आया. इसके रडार के बारे में एक बात है कि ये काफी अच्छे से काम करता है. टॉप स्पीड 1389 किलोमीटर प्रति घंटा है.
राफेल को लेकर एक ख़बर और है कि इसमें लगने वाले हथियार भारतीय नहीं होंगे. वजह बताई गई है बिजनेस स्टैण्डर्ड की एक रिपोर्ट में. इस रिपोर्ट के मुताबिक राफेल मरीन की लागत कम हुई. वजह थी इसमें किए जाने वाले बदलावों को अब ड्राप कर दिया गया है. क्योंकि भारतीय हथियारों जैसे अस्त्र और रूद्रम मिसाइल को लगाने के लिए विमान में कई बदलाव करने पड़ रहे थे जिससे विमान की लागत बढ़ जा रही थी.
राफेल मरीन में इंडियन नेवी की दिलचस्पी के पीछे इसकी कुछ और खासियतें हैं. मसलन वर्टिकल लैंडिंग और फोल्डेबल विंग्स. इन दोनों खूबियों को इस तरह से समझते है. अगर आप एयरफोर्स के जहाज़ों को देखें तो आमतौर पर उनके पास उड़ान भरने और लैंड करने के लिए बड़ा रनवे होता है. पर नेवी के जहाज़ों के पास ऐसी सहूलियत नहीं होती. उन्हें एयरक्राफ्ट कैरियर के छोटे रनवे पर टेक-ऑफ और लैंड करना होता है. इसी वजह से उनके पीछे एक हुक होता है जो लैंड करते ही जहाज़ को रोकने का काम करता है. राफेल के मरीन वर्जन में वर्टिकल लैंडिंग का फीचर मिलता है. माने ये विमान बिना लंबे रनवे के भी उड़ान भर लेते हैं. इसी फीचर की बदौलत ये एयरक्राफ्ट कैरियर के डेक पर लैंड करने की भी क्षमता रखते हैं.
अगला फीचर जिसने इंडियन नेवी को इम्प्रेस किया वो है फोल्डेबल विंग्स. जैसा की नाम से ज़ाहिर है, बात विमान के पंखों की हो रही है. राफेल मरीन के पंख फोल्ड हो सकते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है क़ी एयरबेस के हैंगर की तरह एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर जगह नहीं होती. लिहाजा, विंग्स फोल्ड करने से काफी जगह बचती है. दूसरा फायदा ये है कि फोल्ड होने की वजह से हवा में पायलट को मैनुवर करने में मदद मिलती है. क्योंकि हवा में विंग्स का एक इंच मुड़ना भी बहुत बड़ी चीज़ है. तीसरा फायदा जो जंग और जासूसी के दौरान काम आता है वो है रडार को चकमा देना. फोल्डेबल विंग्स की वजह से विमान के लिए रडार से बचना आसान हो जाता है.
लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA)6 फ़रवरी 2023. भारत के लोगों ने टीवी पर एक ऐतिहासिक नज़ारा देखा. भारत में बने लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट जिसे तेजस नाम दिया गया है उसने भारत में ही बने एयरक्राफ्ट कैरियर INS Vikrant पर सफल लैंडिंग की. ये वाकई भारत के लिए गर्व करने वाला क्षण था. नेवी ने कहा कि ये आत्मनिर्भर भारत बनने के क्रम में एक मील का पत्थर है. इससे पहले DRDO ने 2020 में तेजस - नेवल के 18 बार टेक-ऑफ और लैंडिंग टेस्ट्स करके दिखाए थे.
ये जहाज़ अभी भी डेवलपिंग स्टेज में है. इसमें भी Active Electronically Scanned Array (AESA) लगा हुआ है जो रडार के मामले में इस जहाज को नई क्षमता प्रदान करता है. बात करें इस जहाज़ के डाईमेंशन की तो इसकी लम्बाई 14.65 मीटर, विंगस्पैन 8.50 मीटर, ऊंचाई 4.87 मीटर है. तेजस 4000 किलोग्राम से अधिक का पेलोड ले जाने में सक्षम है. इसे भारत की DRDO ने बनाया है. 500 किलोमीटर की रेंज वाला ये विमान मैक 1.8 की स्पीड तक जाने में सक्षम है. अब चूंकि ये विमान अभी भी डेवलपिंग स्टेज में है, इसलिए इसमें और भी बेहतर फीचर्स आने वाले समय में देखने को मिल सकते हैं.
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