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पेगासस की खुफियागिरी से निपटने में भारत के कानून कितने फिट हैं?

टेलीग्राफ एक्ट और आईटी एक्ट बनाम हैकिंग.

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जब देश भर में पेगासस स्पाईवेयर के जरिए मोबाइल और इंटरनेट पर जासूसी की खबरे आई हैं ऐसे में टेलीग्राफ एक्ट और आईटी एक्ट इस बारे में क्या कहते हैं.
साल 2019. अक्टूबर का महीना. अमेरिकी टेक कंपनी वॉट्सऐप ने इजरायल की कंपनी एनएसओ पर अपने सॉफ्टवेयर पेगासस (Pegasus) के जरिए कई नंबरों की जासूसी करने के आरोप लगाए. इनमें से कई नंबर भारत के भी थे. मामले ने नवंबर 2019 में शुरू हुए भारतीय संसद के शीतकालीन सत्र में जोर पकड़ा. कुछ सांसदों ने तत्कालीन इंफॉर्मेशन एंड टेक्नॉलजी मिनिस्टर रवि शंकर प्रसाद को राज्यसभा में इस पर जवाब देने के लिए घेरा. ये सांसद बार-बार पूछ रहे थे कि क्या भारत ने कभी इस तरह के सॉफ्टवेयर को खरीदा है? क्या गैरकानूनी तरीके से फोन टैप किए गए? वगैरा-वगैरा.
ऐसे सवालों की बौछार पर रविशंकर प्रसाद ने जवाब दिया-
“जहां तक मेरी जानकारी है, ऐसा कुछ भी अनाधिकृत तरीके से नहीं किया गया.”
मंत्री के बयान को इस तरह लिया गया कि जो भी सर्विलांस की गई उसे अधिकृत तरीके से ही किया गया. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या हमारा कानून सरकार को फोन और मोबाइल की जासूसी करने की इज़ाज़त देता है. अगर हां, तो ये किस कानून में लिखा है. क्या पेगासस के जरिए जो कथित जासूसी की गई है उस पर भारतीय कानून कुछ कर सकता है? आइए जानते हैं एक नजर भारत के टेलीग्राफ और आईटी एक्ट पर. तकनीक बदली, कानून बदले मोबाइल फोन आने के बरसों पहले टेलीफोन आ गए थे. लाजमी है पहले उनके लिए नियम-कायदे बने. ये सुनिश्चित करने के लिए कोई प्राइवेट बातचीत सुन न ले और निजता का अधिकार भंग न हो. लेकिन देश विरोधी ताकतों और दुश्मन देशों से बचाव के लिए कुछ मामलों में इसके लिए इज़ाजत का प्रावधान भी किया गया. भारत में ये सब टेलीग्राफ एक्ट 1885 (Telegraph Act 1885) के तहत होता है. जैसे-जैसे तकनीक बढ़ी फोन की जगह मोबाइल ने ली. इसके साथ ही इंटरनेट भी बातचीत और संपर्क के लिए इस्तेमाल होने लगा. इसे लेकर आईटी एक्ट 2000 (IT Act 2000) बनाया गया. तो इस हिसाब से भारत में फोन, मोबाइल या इंटरनेट के जरिए जासूसी के मामले इंफॉर्मेशन एंड टेक्नॉलजी एक्ट और टेलीग्राफ एक्ट के तहत आते हैं. इन कानूनों में वक्त-वक्त पर जरूरत के हिसाब से बदलाव किए गए.
Hackers
पेगासस मैलवेयर से कथित रूप से कई देशों के महत्वपूर्ण लोगों की जासूसी करने के मामले ने तूल पकड़ा हुआ है. (सांकेतिक फोटो)
क्या कहता है टेलीग्राफ एक्ट? भारतीय कानून के अनुसार, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को भारतीय टेलीग्राफिक अधिनियम 1885 की धारा 5 (2) के तहत टेलीफोन को इंटरसेप्ट करने का भी अधिकार दिया गया है. फोन टैपिंग की इजाजत 60 दिनों के लिए दी जाती है जिसे विशेष परिस्थितियों में 180 दिन तक के लिए बढ़ाया जा सकता है.
अब सवाल ये उठता है कि ऐसी क्या परिस्थितियां हैं जिनमें किसी का फोन टैप कराया जा सकता है. भारत के टेलीग्राफिक एक्ट की धारा 5 (2) में इनका साफ वर्णन है. ये परिस्थितियां हैं-
# किसी पब्लिक इमरजेंसी के मौके पर. # आम जनता की सुरक्षा के लिए. # देश की अखंडता और संप्रभुता बनाए रखने के लिए. # विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक व्यवस्था या इनमें से किसी भी संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए.
इस कानून में ये भी बताया गया है कि कौन इस तरह से फोन टेप करने की इज़ाजत देता है. इंडियन टेलीग्राफ रूल्स के नियम 419 A में उन अधिाकारियों के बारे में बताया गया है जो अधिकृत तरीके से फोन टैप करवा सकते हैं. इस तरह की टैपिंग की इज़ाजत प्रदेश में होम डिपार्टमेंट का इंचार्ज सेक्रेटरी और केंद्र सरकार में होम सेक्रेटरी देता है. इसका अप्रूवल राज्य में चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बनी कमेटी और केंद्र में कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी देती है.
2007 में टेलीग्राफ एक्ट में कुछ बदलाव भी किए गए हैं. इनके मुताबिक, अगर कोई इलाका ऐसा है जहां की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण फोन टैपिंग की इजाज़त नहीं ली जा सकती, तो वहां पुलिस का सीनियर अधिकारी इसका फैसला ले सकता है. लेकिन वो अधिकारी आईजी रैंक से बड़ा होना चाहिए और उसे ऐसी परमिशन के 3 दिन के भीतर उसका अप्रूवल लेने होगा.
अगर किसी को लगता है कि बिना माकूल अप्रूवल के उसका फोन टैप किया गया है तो वो कानून की मदद ले सकता है. पीड़ित भारतीय टेलीग्राफिक अधिनियम की धारा 26 (b) के तहत कोर्ट की शरण भी ले सकता है. आरोप साबित होने पर दोषी को 3 साल की तक सजा हो सकती है.
जहां तक बात पेगासस की है तो सरकार ने इस पूरे खुलासे में अपने किसी भी रोल से इंकार किया है. ऐसे में ये किसी भी भारतीय कानून के दायरे में नहीं आता. इंडिया टुडे से बात करते हुए सीनियर वकील सौरभ किरपाल ने बताया कि भारतीय कानून तेजी से बढ़ती तकनीक के मुकाबले काफी पीछे हैं. ये जांच का विषय है कि इस पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किसने किया. वो कहते हैं.
"ऐसा तीन तरह से ही मुमकिन है. पहला कि सरकार ने इस तरह के सर्विलांस की इज़ाजत दी हो, दूसरा कि सरकार के किसी अधिकारी ने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया हो या फिर प्राइवेट तरीके से हैकिंग करवाई गई हो. तीनों ही मामले में निजता के उल्लंघन का मामला बनता है."
टेलिफोेन सयाना होकर मोबाइल बन गया. मगर आइडिया वो ही है. कि किसी से बात करने के लिए सशरीर उसके पास मौजूद होना जरूरी नहीं. दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी कोने में बात की जा सकती है.
टेलीफोेन के जमाने में टेलीग्राफ एक्ट के नियम-कायदे ज्यादा काम के थे. इंटरनेट और मोबाइल फोन के जमाने में ये कानून उतना काम का नहीं रहा.
आईटी एक्ट में हैकिंग पर क्या कहा गया है? 19 नवंबर 2019 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि देश में 10 एजेंसियां ऐसी हैं जो फोन टैप कर सकती हैं. हालांकि ऐसा करने के लिए इन एजेंसियों को केंद्रीय गृह सचिव की मंज़ूरी लेनी होती है. तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने इनफॉर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट, 2000 का जिक्र करते हुए बताया था कि इस अधिनियम की धारा 69 केंद्र या राज्य सरकार को ये अधिकार देती है कि देश की संप्रभुता या अखंडता के हित में वो किसी कंप्यूटर के जरिए जनरेट, ट्रांसमिट या रिसीव होने वाले डेटा, या उसमें पहले से स्टोर डेटा पर नज़र रख सकती है, उसे हटवा सकती है या डीकोड करवा सकती है.
भारत के आईटी एक्ट में उन सभी परिस्थितियों में एक्शन लेने का अधिकार दिया गया है जिनका वर्णन हम पहले ही टेलीग्राफ एक्ट वाले सेक्शन में कर चुके हैं.
भारत में जब इंटरनेट और मोबाइल से जुड़े कानून बनाने की बात आई तो कानून बनाने के मामले में सरकार ने अपने टेलीग्राफ कानून से ही प्रेरणा ली. उसमें 60 दिनों से लेकर 180 दिन के सर्विलांस की बात कही गई है. यही बात आईटी एक्ट में भी कही गई है. मतलब सक्षम अधिकारी की इज़ाजत लेकर तकरीबन 2 महीने से 6 महीने तक सर्विलांस की जा सकती है.
अब बात आती है सक्षम अधिकारियों की. आईटी एक्ट की धारा 69 का दूसरा खंड इस बात को साफ करता है कि कौन सर्विलांस के आदेश दे सकता है. नियमानुसार इस तरह का आदेश इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी दे सकता है. धारा 69 में इंटरसेप्शन के लिए कुछ मूल नियम भी रखे गए हैं. ये हैं-
# जो अधिकारी इंटरसेप्शन करेगा उसे हर 15 दिन में मिलने वाला डाटा डिपार्टमेंट में सरेंडर करना होगा. # मोबाइल और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर इस बात का ध्यान रखेंगे कि जब इंटरसेप्शन किया जा रहा है तब इसकी जानकारी लीक न हो. # हर 2 महीने पर एक रिव्यू कमेटी इस बात पर फैसला लेगी कि जो अधिकृत इंटरसेप्शन हो रहा है उसकी शर्तों में बदलाव की जरूरत है कि नहीं. मतलब एक्शन को रोकना है या और बढ़ा देना है. # सिक्योरिटी एजेंसी को हर 6 महीने में ऐसे डाटा को मिटाना पड़ता है जिसकी अब केस में जरूरत नहीं है. # एजेंसी के जो अधिकारी डाटा जुटाने में लगे होते हैं वे इसे किसी दूसरे से शेयर नहीं कर सकते. न ही वे इसके बारे में किसी को बता सकते हैं.
जब हमने साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल से पेगासस और आईटी रूल्स को लेकर सवाल पूछे तो उन्होंने लल्लनटॉप को बताया,
"किसी भी तरह की हैकिंग होने पर साइबर सेल या पुलिस में केस दर्ज कराया जा सकता है. वो इसके लिए जिम्मेदार शख्स या संस्था पर केस कर सकते हैं. चाहे पेगासस बनाने वाली एनएसओ ही क्यों न हो. हालांकि इस तरह की हैकिंग पर किसी तरह की पेनाल्टी का प्रावधान नहीं है."
एक्सपर्ट्स के हिसाब से पेगासस के मामले में भारतीय कानून बहुत साफ-साफ कुछ कहते नजर नहीं आते. अगर ये साबित भी हो जाता है कि सरकार ऐसा करा रही थी तो निजता के अधिकार के तहत केस आने पर सुप्रीम कोर्ट फैसला ले सकता है, जिसने अपने एक फैसले में निजता को मौलिक अधिकारी माना है.

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