1.दिल्ली का सबक: संसद से सीमा तक 13 दिसंबर, 2001. संसद पर आतंकी हमला हुआ. उस दिन एक सफेद एम्बैसडर कार में आए पांच आतंकियों ने 45 मिनट में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से छलनी कर दिया. इस हमले में संसद भवन के गार्ड और दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग शहीद हुए थे. लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी भारत की हिम्मत तोड़ना चाहते थे. मगर हमारे सुरक्षाकर्मियों ने जान की बाजी लगाकर उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया. कोई 18 साल पहले हुए इस आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया. ठीक वैसे ही जैसे 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद देश गुस्से में है.

संसद पर हमले के बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का फैसला लिया. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
क्या हुआ था उस दिन? संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था. सुबह करीब 11 बजकर 28 मिनट पर विपक्ष ने संसद में हंगामा कर दिया. इस पर दोनों सदनों की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित कर दी गई. सदन स्थगित होने पर तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकल कर अपने-अपने सरकारी निवास के लिए रवाना हो गए. लेकिन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी अपने कई साथी मंत्रियों और करीब 200 सांसदों के साथ अब भी लोकसभा में ही मौजूद थे. हमेशा की तरह लोकसभा परिसर के अंदर मीडिया का भी पूरा जमावड़ा था. तब तक बहुत से सांसद और मंत्री भी सदन के अंदर से बाहर निकल आए थे. कुछ लोग गुनगुनी धूप का मजा ले रहे थे.
संसद भवन के गेट नंबर 11 पर उपराष्ट्रपति कृष्णकांत शर्मा के सुरक्षाकर्मी उनके सदन से बाहर आने का इंतजार कर रहे थे. ठीक उसी वक्त एक सफेद एम्बैसडर कार तेजी से उप राष्ट्रपति के काफिले की तरफ बढ़ती है. संसद भवन के अंदर आने वाली गाड़ियों की तय रफ्तार से इसकी रफ्तार कहीं ज्यादा तेज थी. कोई कुछ समझ पाता कि कार सीधे उपराष्ट्रपति की कार से जा टकराती है. कोई कुछ समझ पाता तभी एम्बैसडर के चारों दरवाजे एक साथ खुलते हैं. गाड़ी में बैठे पांच फिदायीन पलक झपकते ही बाहर निकलते हैं और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर देते हैं. पांचों एके-47 से लैस थे.
पहली बार आतंक लोकतंत्र की दहलीज पार कर चुका था. पूरा संसद भवन गोलियों की त़ड़तड़ाहट और ग्रेनेड के धमाकों से गूंज उठा. गोलीबारी से महज कुछ दूरी पर मौजूद गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भी तब तक हमले की खबर मिल चुकी थी. लिहाजा लालकृष्ण आडवाणी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज समेत तमाम वरिष्ठ मंत्रियों को फौरन सदन के अंदर ही महफूज जगहों पर ले जाया गया. सदन के अंदर जाने वाले तमाम दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं. वहां सुरक्षाकर्मी अपनी-अपनी पोजीशन ले लेते हैं. इसी बीच एक आतंकी को सुरक्षाबलों की गोली लग जाती है. गोली लगते ही उस आतंकी ने खुद को रिमोट से उड़ा लिया. उसने अपने शरीर पर बम बांध रखा था. संसद पर हमले की खबर पर एनएसजी कमांडो और सेना के साथ दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम भी संसद भवन पहुंच गई. कुछ ही देर में बाकी के चारों आतंकी भी ढेर कर दिए गए.

तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बॉर्डर पर सेना तैनात करके पाकिस्तान की हालत पतली कर दी. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
सरकार ने कैसे निपटा इस हमले से? संसद पर हुए इस हमले के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को सख्त चेतावनी दी. उन्होंने हमले के एक हफ्ते बाद संसद में कहा कि जो भी कार्रवाई होगी वो राष्ट्रीय हित को ध्यान में रख कर ही की जाएगी. आतंकवाद से निपटने के लिए जो भी कदम ज़रूरी होंगे उठाए जाएंगे. गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान से कहा कि वो आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा पर कार्रवाई करे. ठीक उसी वक्त भारतीय थल सेनाध्यक्ष जनरल एस. पद्मनाभन ने भी ऐलान किया कि पाकिस्तान की सीमा पर सेना इकठ्ठा की जा रही है. हमले के जवाब में भारत उचित कदम उठाएगा.
और यही हुआ भी. 20 दिसंबर, 2001 से पाकिस्तानी बॉर्डर पर सेना की चहलकदमी बढ़ गई. भारत ने कश्मीर और पंजाब के बॉर्डर पर सेना का मोर्चा लगाना शुरू कर दिया. और धीरे-धीरे ये तादाद हजारों में पहुंच गई. साल 1971 की लड़ाई के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मोर्चे पर सेना लगाई गई. लगा कि पाकिस्तान से युद्ध छिड़ने वाला है. पाकिस्तान समेत दुनिया भर में कोहराम मच गया. दुनिया भर के देश इस मामले में भारत पर दबाव बनाने लगे. मतलब ये कि भारत युद्ध टाले. सबसे ज्यादा दबाव अमेरिका की तरफ से आया. असल में अमेरिका में उसी साल 9/11 का हमला हुआ था. अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान समेत कई संगठनों से लड़ाई लड़ रहा था. इसके लिए उसे पाकिस्तान का सहयोग चाहिए था. मगर भारत युद्ध पर अटल था.
नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान पर चारों तरफ से जबरदस्त दबाव पड़ा. वो ये कि पाकिस्तान आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करे. भारत ने जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मौलाना मसूद अजहर, हमले के मास्टरमाइंड शाह नवाज खान उर्फ गाजी बाबा और उसके सहयोगी तारिक अहमद पर कार्रवाई के लिए पाकिस्तान से कहा. पाकिस्तान ने सबूत मांगे. उधर, बॉर्डर पर तैनात सेना युद्ध के लिए बेचैन थी. मगर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कूटनीतिक तरीके से पाकिस्तान को पछाड़ने का फैसला लिया. भारत ने दुनिया के सामने एक ऐसी नजीर रखी कि बिना युद्ध के भी अपनी बात मनवाई जा सकती है.
2.उड़ी का सबक: हाउज द जोश कश्मीर के बारामुला जिले में एक तहसील है उड़ी. झेलम के किनारे बसा हुआ कस्बा. सीमा रेखा से महज दस किलोमीटर दूर. यहां पर भारतीय सेना का ब्रिग्रेड हेडक्वार्टर है. रणनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण जगह. साल 2016. सितंबर की 18 तारीख. सुबह साढ़े पांच बजे चार हथियारबंद आतंकी गार्ड्स को चमका देकर ब्रिग्रेड हेडक्वाटर्स में घुस गए. एडमिनिस्ट्रेटिव बेस कैंप पर हमला बोल दिया.

आतंकियों ने उड़ी में हमला करके भारत के सामने चुनौती पेश की, इसका भारतीय सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब दिया. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
अंदर मौजूद सैनिक सुबह की पेट्रोलिंग के लिए अपनी गाड़ियों में डीजल और रिजर्व फ्यूल ले रहे थे. 17 हाथगोले फेंके गए. एडमिनिस्ट्रेटिव बेस कैंप के टेंट में आग लग गई. अंदर मौजूद सैनिकों के पास हथियार नहीं थे. डीजल की वजह से लगभग 150 मीटर के दायरे में आग लग गई. अंदर मौजूद 17 सैनिक इस आग में झुलस गए. 13 की मौके पर शहीद हो गए. बाकी 4 सैनिकों ने हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया. आतंकियों ने एडमिनिस्ट्रेटिव बेस कैंप के सामने बने दो खाली बैरक में दूसरी मंजिल पर पोजिशन ले ली. लगभग छह घंटे चली आमने-सामने की लड़ाई में चारों आतंकियों को मार गिराया गया.
क्या हुआ हमले के बाद? नवम्बर 2016 में पाकिस्तान में सार्क देशों का जुटान होना था. भारत ने सार्क सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया. भारत के दबाव के चलते भूटान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने भी सार्क सम्मलेन में शामिल होने से मना कर दिया. आखिरकार पाकिस्तान को सार्क सम्मेलन टालना पड़ा. लेकिन यह थी डिप्लोमेटिक प्रेशर बनाने की बात. जिसमें भारत काफी हद तक सफल भी रहा.

भारत के सैनिकों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकी कैंपों को ध्वस्त कर दिया. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
उड़ी हमले के ठीक 11 दिन बाद माने 29 सितंबर के रोज चौथी और नौवीं पैराशूट बटालियन के जवानों ने दो अलग-अलग समय, अगल-अलग जगहों से पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश किया. चौथी बटालियन के पैराट्रूपर्स ने कुपवाड़ा के नोगांव और नौवीं बटालियन के पैराट्रूपर्स ने पुंछ से सीमा रेखा पार की. इस अभियान में 70 से 80 पैराट्रूपर्स शामिल थे.पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 2 से 3 किलोमीटर अंदर घुसकर इन सैनिकों ने लश्कर-ए-तैयबा और पाक सेना के ठिकानों पर हमला बोल दिया. इस ऑपरेशन में हमारे जवानों ने 38 से 50 आतंकवादियों को मार गिराया था.
वीडियोः पुलवामा में आतंकी आदिल अहमद डार की वजह से शहीद हुए सीआरपीएफ के 42 जवान