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सोशल मीडिया पर आपको भड़का रहा 'Rage Bait' बना वर्ड ऑफ द ईयर, लेकिन ये है क्या बला

ऑक्सफोर्ड ने Rage Bait को 2025 का 'वर्ड ऑफ द ईयर' घोषित किया है. इस रेस में इसने Aura Farming और Biohack को पछाड़ दिया है. तीन दिन तक चले सर्वे के बाद ऑक्सफोर्ट ने ये घोषणा की है.

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Rage Bait को ऑक्सफोर्ड ने 2025 का वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया है (india today)

मेट्रो की भीड़ में अचानक से फोन की स्क्रीन चमकी. कोई मेसेज था. जवाब देकर ‘एक्स’ (पहले Twitter) की फीड स्क्रॉल करने लगे. तभी एक अजीब सी पोस्ट दिखी- ‘विराट कोहली को तो रिटायर हो जाना चाहिए. बस नाम का खिलाड़ी रह गया है.’ कोहली का फैन होने के नाते पोस्ट पढ़ते ही माथा गरम हो गया. उंगलियां खुद-ब-खुद कॉमेंट करने बढ़ गईं. ऐरा-गैरा कोई भी विराट कोहली के बारे में ऐसा कैसे कहकर चला जाएगा? अब विराट को ये पता हो न हो, लेकिन इस पोस्ट के कॉमेन्ट बॉक्स में आपने उनके लिए ऐसी लड़ाई लड़ी कि अजीत आगरकर देख लें तो अगले वर्ल्ड कप तक विराट को टीम से कोई बाहर नहीं कर सकता.

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खैर, आज का मुद्दा विराट कोहली नहीं, वो पोस्ट और उसकी फितरत है जिसमें ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया था कि किसी का भी दिमाग खराब हो जाए और वो पोस्ट पर लड़ने के लिए आ जाए. सोशल मीडिया पर ऐसी तमाम पोस्ट दिखती हैं जिन पर हम बिना चाहे कॉमेंट करने चले जाते हैं. क्योंकि ये आपको बहस के लिए ललकारती हैं. ऊपर तो हमने एक उदाहरण दिया है. पोस्ट करने वाले यूजर सांप्रदायिकता से लेकर जेंडर और जाति पर भी एक्स्ट्रीम पोस्ट करते हैं. ये कोई खबर नहीं होतीं. न ही ओपिनियन. न ही कोई साधारण पोस्ट. यह एक Carefully Crafted ट्रिक होती है. यानी शब्दों का ऐसा जाल, जो आपको खींचकर ‘डिजिटल युद्धभूमि’ में ले जाना चाहता है. जो आपको उत्तेजित करता है कि आप पोस्ट पर इंगेजमेंट बढ़ाने का टूल बनने को मजबूर हो जाएं. 

ऐसी पोस्ट्स का एक ही उद्देश्य होता है, आपको आक्रोशित करना. गुस्सा दिलाना. इंटरनेट पर आपके लिए बिछाए गए इसी ट्रैप को इंटरनेट की भाषा में कहा जाता है- Rage-bait. 

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इसी Rage Bait शब्द को इस साल ऑक्सफोर्ड ने ‘वर्ड ऑफ द ईयर’ घोषित किया है.

‘Rage Bait’ का मतलब क्या है?

Rage Bait दो शब्दों से मिलकर बना है. रेज का मतलब होता है आक्रोश. बेट का मतलब ‘चारा’ कह सकते हैं. आसान भाषा में ‘चारा फेंककर किसी को क्रोध के जाल में फांसना’ इसका सही मतलब हो सकता है. Rage bait ऐसा शब्द है जिसकी जड़ें भले आधुनिक डिजिटल संस्कृति में हैं, लेकिन इसका भाव बहुत पुराना है. यह मनुष्य की उस आदिम प्रवृत्ति (Nature) से उपजा है, जो हमें क्रोध और आक्रोश की प्रतिक्रिया की ओर खींचकर ले जाता है. ये ऐसा चारा है, जिसे देखते ही हमारे भीतर हलचल मच जाती है. बेचैनी की लहरें उठने लगती हैं और मन तुरंत प्रतिक्रिया देने को मचल जाता है.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस (OUP) के अनुसार, Rage bait सोशल मीडिया पर वह कॉन्टेंट होता है जिसे जानबूझकर ऐसे बनाया जाता है कि लोग गुस्सा हों या भड़क जाएं. ताकि पोस्ट पर इंगेजमेंटमेंट, ट्रैफिक या क्लिक बढ़े. ऐसी पोस्ट खासतौर पर इस तरह से लिखी जाती हैं कि आपको चिढ़ हो जाए. कोई बहुत ही गलत ओपिनियन. भड़काऊ या भ्रामक हेडलाइन. या फिर कोई जानबूझकर अपमानजनक बात. जो किसी की जाति, धर्म या उसके शरीर से जुड़ी हो सकती है. Rage Bait पोस्ट्स एक ही पैटर्न को फॉलो करती हैं. 

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अतिवादी विचार यानी Extreme opinion,
पर्सनल अटैक,
उकसाने वाली भाषा,
धर्म, जेंडर, क्रिकेट, पॉलिटिक्स को लेकर पोलराइजिंग कॉन्टेंट. 

ऐसी पोस्ट देखकर गुस्सा आता है न? 

वही तो इनका मकसद है. ऐसा पोस्ट करने वालों में 90 प्रतिशत को मालूम होता है कि उन्होंने जो लिखा है वो सच नहीं है. लेकिन उन्हें बस अपनी पोस्ट पर views या engagement चाहिए होता है. क्योंकि इससे उन्हें पैसे मिलते हैं. 

आप भी कई बार इस दुश्चक्र में फंसे होंगे और बाद में सोचा होगा कि इस पोस्ट पर आपने रिएक्ट ही क्यों किया? लेकिन अगर आपने कर दिया तो आप Rage Bait के फेर में पड़ चुके होते हैं.

क्लिकबेट का 'चचेरा भाई'

ऐसा पहले भी होता था. डिजिटल मीडिया वेबसाइट्स की खबरों की हेडलाइन्स आपने देखी होंगी, जहां ‘जिज्ञासा जगाने वाली हेडिंग्स’ लगाई जाती थीं. ताकि लोग एक बार आर्टिकल पर आ जाएं. या यूट्यूब के थमनेल्स, जहां पूरा मकसद है कि लोग एक बार वीडियो देख लें और एक व्यू काउंट हो जाए. इसे ‘क्लिकबेट’ कहा जाता था. इसी के 'चचेरे भाई' Rage Bait की धार ज्यादा तीखी है. यह जिज्ञासा नहीं जगाता बल्कि क्रोध को 'खाना-पानी' देने का काम करता है. 

बीबीसी की एक रिपोर्ट में, मार्केटिंग पॉडकास्टर एंड्रिया जोन्स बताती हैं,

अगर हमें किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई सुंदर बिल्ली दिखती है तो हम कहते हैं, 'अरे, ये बहुत प्यारी है' और आगे बढ़ जाते हैं. लेकिन अगर हम किसी को कुछ अश्लील काम करते हुए देखते हैं तो हम कॉमेंट में लिख देते हैं कि ‘ये तो बहुत बुरा है’. ऐसी टिप्पणी को एल्गोरिदम हाई क्वालिटी वाले इंगेजमेंटमेंट के रूप में देखता है.

जितना ज्यादा इंगेजमेंटमेंट होता है, यूजर की उतनी कमाई होती है और इसलिए ही कई क्रिएटर ज्यादा व्यूज पाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. भले ही वह निगेटिव हो या लोगों में गुस्सा भड़काने वाला हो.

वर्ड ऑफ द ईयर

साल 2025 के मूड को अगर कोई मुहावरा ठीक-ठीक परिभाषित करता है तो वो Rage Bait ही है. ऑक्सफोर्ड प्रेस का कहना है कि पिछले एक साल में इस शब्द का प्रयोग तीन गुना बढ़ गया है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस (OUP) ने तीन दिन तक दुनिया भर में एक सर्वे कराया था, जिसमें 30 हजार से ज्यादा लोगों ने वोट दिया. सबसे ज्यादा लोगों ने Rage bait पर मुहर लगाई, जिसके बाद इसे आधिकारिक तौर पर ‘ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द ईयर 2025’ घोषित किया गया. इसके दो और कंपटिटर शब्द 'ऑरा फार्मिंग' और 'बायोहैक' थे, जो वर्ड ऑफ द ईयर की लड़ाई में रहे. लेकिन Rage Bait ने दोनों को हरा दिया.

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Rage Bait को वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया गया है (Instagram)
पहली बार कब यूज हुआ?

सुनने में Rage bait जेन-जी की भाषा का कोई स्लैंग वर्ड लग सकता है. लेकिन इसकी कहानी बहुत पुरानी है. पहली बार ये मुहावरा साल 2002 में यूजनेट (Usnet) पर दिखाई दिया था. तब सड़क पर ड्राइवरों के जानबूझकर एक दूसरे को उकसाने वाले कारनामों के लिए Rage Bait का यूज किया गया था. लेकिन समय के साथ, ये शब्द इंटरनेट कल्चर में शामिल हो गया. 

पिछले साल यानी 2024 में Brain Rot को वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया गया था. OUP के अध्यक्ष कैस्पर ग्रैथवोहल का कहना है कि Brain Rot ने सोशल मीडिया स्क्रॉलिंग से होने वाली हमारी मानसिक थकान को दिखाया था. वहीं Rage Bait कॉन्टेंट का वो नेचर है जो उस थकान को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है.

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