“मैं उम्मीद करता हूं, मेरी मौत, मेरी ज़िदगी से ज्यादा पैसे कमाए.”ये 1981 की बात है. गॉथम की. एक ऐसा शहर जो फेल हो चुका है. कचरे वालों की हड़ताल चल रही है. पूरे शहर में कूड़े के ढेर लगे हैं. बेरोज़गारी बढ़ी हुई है. अपराध बढ़ रहे हैं. शहर दो वर्गों में बंटा है, अमीर और गरीब. मुफ्त दवा व इलाज जैसी सरकारी सेवाएं बंद की जा रही हैं. इस चरम माहौल में एक सिंपल सा युवक आर्थर रहता है. मां पेनी के साथ. मां ने बचपन से सिखाया है कि लोगों को हंसाओ. उन्हें अच्छा महसूस करवाओ. इसीलिए वो स्टैंड अप कॉमेडियन बनना चाहता है. ताकि लोगों को हंसा सके और कभी न मिल सका सम्मान पा सके. फिलहाल वो क्लाउन बनकर पैसा कमाता है. एक दुकान के बाहर उसका बैनर लेकर खड़ा होता है. प्रचार करने के लिए नाचता है, ध्यान बंटाता है. लेकिन लोग उसके प्रति बुरे हैं. जैसे - एक बार कुछ लड़के उसका बैनर छीनकर भाग जाते हैं. वो बेतहाशा पीछे दौड़ता है. फिर लड़के उसे एक गली में घेर लेते हैं और ज़मीन पर पटक कर मारते हैं.- आर्थर की जोक डायरी में लिखा एक विचार. जो बरसों से उसे मिलती चली आ रही निराशाओं और बद्तमीज़ियों के बाद जन्म लेता है. डायरी में एक जगह वो ये भी लिखता है – “मानसिक बीमारी होने की सबसे खराब बात ये है कि लोग आपसे ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे आपको है ही नहीं.”

उसे एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी भी है. जब भी नर्वस होता है, या किसी और इमोशन में, वो तीखी हंसी हंसने लगता है. कंट्रोल नहीं कर सकता. लेकिन लोग उल्टा मतलब निकालते हैं.
आर्थर चाइल्डहुड ट्रॉमा का भी शिकार रहा है. कभी कोई फादर फिगर नहीं रहा. मां हमेशा बीमार ही रही है. उसने हमेशा कोई हीरो, फादर फिगर, रक्षक, दोस्त ढूंढ़ने की कोशिश की है. कभी मिला नहीं. जिनसे उम्मीद बांधी, उन्होंने निराश ही किया है. पहले गॉथम के मशहूर टॉक शो होस्ट मर्री फ्रैंकलिन में उसने अपना हीरो ढूंढा. लेकिन मर्री ने निराश किया. उसने आर्थर की एक बुरी स्टैंड अप कॉमेडी वाला वीडियो अपने शो पर चलाया और उसका मज़ाक उड़ाया. आर्थर टूट गया. एक साथी क्लाउन ने भी उसे धोखा दिया. मां ने उससे कई सच छिपाए. शहर के धनी उद्योगपति टॉमस वेन ने उससे बुरा व्यवहार किया.
हर एक ऐसे वाकये के साथ, अच्छाई से उसका विश्वास उठता जाता है. कुछ और घटनाएं होती हैं और वो बुरे रास्ते पर निकल पड़ता है. वो रास्ता होता है जोकर बनने का. हिंसा का. वो शहर के निम्नतर हालातों में रह रहे व्यवस्था से नाराज़ लोगों का प्रतिनिधि बनता है. अमीरों का दुश्मन.
जोकर का किरदार सबसे पहली बार 1940 में सामने आया था. डीसी की कॉमिक बुक 'बैटमैन' के पहले अंक पर. वो बच्चों की कॉमिक्स थी जिसमें इस विदूषक को सुपरविलेन बनाकर पेश किया गया. जो सिर्फ बुरा होता है. उसका अस्तित्व एक पागल, अपराधी की तरह रहा जो भले लोगों को मारता है और बैटमैन नाम का हीरो उससे लड़ने के लिए आता है.
उसके बाद से ये पॉपुलर कल्चर का मशहूर पात्र बन गया. टीवी, फिल्मों और वीडियो गेम्स में इसे दर्जनों बार देखा जा चुका है. फ़िल्मों में दो-तीन मौकों पर ये यादगार रहा. जैसे, टिम बर्टन की 1989 में आई फिल्म ‘बैटमैन’ में. उसमें जाने-माने एक्टर जैक निकोलसन ने जोकर का रोल किया था. ये कैरेक्टर विकृत और आपराधिक बुद्धि का था. फिर 2008 में क्रिस्टोफर नोलन की ‘द डार्क नाइट’ में हीथ लेजर ने ये रोल किया. हीथ का चित्रण अब तक का सबसे बेस्ट जोकर पोर्ट्रेयल माना गया है. एक कारण ये भी रहा कि फिल्म की रिलीज से कुछ महीने पहले उनकी मौत हो गई. दवाओं के ओवरडोज़ के कारण. उन्हें मरणोपरांत बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का ऑस्कर भी दिया गया.
2016 में आई ‘सुसाइड स्क्वॉड’ में जैरेड लेटो का जोकर का छोटा कैरेक्टर भी वीभत्स बनाया गया.

हीथ लेजर, जैरेड लेटो और जैक निकोलसन जोकर के किरदारों में.
2019 में खत्म हुई 100 एपिसोड की टीवी सीरीज़ ‘गॉथम’ में भी जोकर का पात्र है. हालांकि ये कहानी गॉथम, उसके दूसरे पात्रों, बेहद अजीब क्रिमिनल्स और फैंटेसी से ज्यादा भरी है. दर्शकों से ज्यादा ये एस्पायरिंग एक्टर्स के काम की विषय वस्तु है. बेजां नाटकीय अभिनय करना सीखने के लिहाज से.
ट्रीटमेंट के मामले में पिछले सब कैरेक्टर्स के मुकाबले वाकीन का जोकर (2019) सबसे अलग है. जहां बाकी सब जोकर बुनियादी रूप से बुरे ही बताए गए हैं. और उन्हें दिखाने का मकसद सिर्फ एंटरटेनमेंट पैदा करना रहा है. वहीं इस फिल्म में जोकर के बनने की जर्नी बताई गई है. कि कैसे आर्थर नाम का एक सामान्य इंसान है जिसे मेंटल ट्रॉमा रहा है और वो ऐसी दुनिया में है जिसमें कोई संवेदना नहीं है. आर्थर एक से अधिक मौकों पर अपनी मनस्थिति बताता है. एक जगह वो कहता है – “हर कोई एक-दूसरे पर चीखता चिल्लाता रहता है. कोई भी अब सभ्य नहीं रहा. कोई भी ये नहीं सोचता कि सामने वाला इंसान होना क्या होता है.” वो जानता है कि उसकी मेंटल कंडीशन बिगड़ रही. बताता है कि उसे नेगेटिव के सिवा दूसरे कोई विचार नहीं आते. वो चाहता है उसका इलाज हो जाए. अपनी सोशल वर्कर से कहता है कि क्या आप डॉक्टर को मेरी दवाई बढ़ाने के लिए बोल सकती हो. तो सोशल वर्कर कहती हैं - “तुम पहले ही सात अलग अलग दवाएं ले रहे हो. इनका कुछ तो असर हो रहा होगा.” इस पर आर्थर का जवाब होता है – “मैं बस इतना बुरा नहीं महसूस करना चाहता हूं.”
फिल्म में एक सीन आता है जब एक खाली सबवे ट्रेन में कुछ पुरुष असुरक्षा का माहौल पैदा कर रहे होते हैं और दूर क्लाउन के कपड़ों में बैठा आर्थर घबरा जाता है. न्यूरोलॉजिकल बीमारी की वजह से वो हंसने लगता है. इस पर वो पुरुष उसे डराते हैं, मारते हैं. तब आर्थर के पास किसी द्वारा दी हुई एक गन होती है और वो फट पड़ता है. सबको गोली मार देता है. एक बच निकलता है तो उसके पीछे जाकर उसे मारता है. फिर होश आता है कि उसने ये क्या कर दिया. कांपने लगता है. भाग जाता है. न सिर्फ ये सीन ताकतवर है. बल्कि यही वो बिंदु होता है जहां से आर्थर बदलना शुरू होता है. उसके पास गन न होती तो शायद वो मार-पिटाई खाकर घर चला जाता और दवाओं तले अपनी फ्रस्ट्रेशन दबा लेता.

"हम पहला धक्का नहीं मारे, हम पहला मुक्का नहीं जड़े" - आर्थर. (फोटोः वॉर्नर ब्रदर्स पिक्चर्स)
ऐसा लगता है कि ये सीन न्यू यॉर्क में 1984 में हुई कुख्यात सबवे ट्रेन गोलीबारी से प्रेरित है. इनकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि फिल्म के डायरेक्टर टॉड न्यू यॉर्क में ही पले बढ़े हैं और ये घटना उन्हें पता है. उस असल घटना में गेट्ज़ नाम के वाइट आदमी ने चार अश्वेत लड़कों को गोली मार दी थी. उसका दावा था कि वे उसे लूटने आ रहे थे. हालांकि गोलीबारी में जिंदा बचे एक अश्वेत लड़के का कहना था कि गेट्ज़ का ये सिर्फ अनुमान था और वो सनक गया, सबको मारना शुरू कर दिया. वाइट अमेरिका ने गेट्ज़ को हीरो बना दिया. ट्रायल में उसे सब आरोपों से बरी कर दिया गया. सिर्फ हथियार रखने के लिए आठ महीने की जेल हुई.
जोकर मूवी लोगों की राय को बांटने वाली फिल्म है. एक्सट्रीम में. जहां आर्टहाउस फेस्टिवल्स में उसे अवॉर्ड पर अवॉर्ड मिले. सिस्टम के फेल होने और उन परिस्थितियों को गंभीरता से दिखाने के लिए तारीफ की गई जिनसे अपराधी जन्म लेते हैं. वहीं कुछ आलोचकों ने जोकर को इतना रियलिस्टिक चित्रण देने को गलत बताया. आशंकाएं जताई गई कि कहीं फिल्म देखकर आर्थर जैसे एकाकी लोग ऐसी ही हिंसाओं पर उतारू न हो जाएं. क्योंकि अमेरिका में समाज के पतन से विमुख होकर, या संभवतः पॉपुलर कल्चर से उत्प्रेरित होकर कई मास शूटिंग्स हुई हैं.
जैसे - 2012 में डायरेक्टर क्रिस नोलन की ‘द डार्क नाइट राइज़ेज़’ की रिलीज के वक्त. फिल्म की आधी रात की एक स्क्रीनिंग के दौरान अमेरिका के ऑरोरा, कॉलोराडो में थियेटर में शूटिंग हुई. शूटर ने 12 लोगों को मार दिया, 70 को घायल कर दिया. हालांकि इसके कोई साक्ष्य नहीं कि हत्यारे ने जोकर या दूसरे फिल्मी पात्र से प्रेरित होकर ऐसा किया था. शायद अवचेतन में कोई असर रहा हो. इस गोलीबारी में मारे गए लोगों के परिवार वालों ने 2019 में ‘जोकर’ की रिलीज से पहले इसके प्रोड्यूसर्स को ख़त लिखकर आशंकाएं जताईं. उन्होंने कहा कि देश में गन कल्चर कम करने की उनकी लड़ाई में साथ दें और सिनेमा जैसे ताकतवर माध्यम का जिम्मेदारी से इस्तेमाल करें.

ऑरोरा की घटना पर दो कार्टून्स. पैने पोलिटिकल कार्टूनिस्ट कार्लोस लटूफ और नेट बीलर की पेंसिल से.
जवाब में प्रोड्यूसर स्टूडियो वॉर्नर ब्रदर्स ने कहा कि उनकी कंपनी का लंबा इतिहास रहा है उन्होंने हिंसा के पीड़ितों के लिए हमेशा पैसे डोनेट किए हैं. ऑरोरा पीड़ितों के लिए भी किए थे. गैर-कानूनी किलिंग्स को रोकने के खिलाफ भी उन्होंने काम किया है. फ़िल्म ‘जोकर’ के संदर्भ में स्टूडियो ने जवाब दिया – “वॉर्नर ब्रदर्स का ये भी मानना है कि जटिल मुद्दों को लेकर मुश्किल बातचीत शुरू हो और लोग उत्तेजित हों, ये करना भी स्टोरीटेलिंग का एक काम होता है. आश्वस्त रहिए, न तो जोकर का काल्पनिक पात्र और न ही ये फिल्म किसी भी असल जिंदगी की हिंसा को कोई समर्थन है. इस फिल्म, इसके मेकर्स या इस स्टूडियो का इरादा बिलकुल नहीं है कि इस कैरेक्टर को हीरो माना जाए.”
‘जोकर’ को डायरेक्ट किया है टॉड फिलिप्स ने. इससे पहले टॉड ने सिर्फ हंसाने वाली फिल्में ही बनाई हैं. करियर की शुरुआत डॉक्यूमेंट्रीज़ बनाने से हुई थी. फिर फीचर बनाने लगे. ‘जोकर’ को छोड़ दें तो उनके डायरेक्शन वाली सब फिल्में कॉमेडी ही रही है. इनमें सबसे चर्चित है – ‘द हैंगओवर’. 2009 में आई ये फिल्म तीन दोस्तों की कहानी थी जो चौथे दोस्त की शादी से पहले, बैचलर पार्टी में इतना नशा करते हैं कि सुबह तक दूल्हा उन्होंने गुम कर दिया होता है, एक का दांत टूटा होता है, बाथरूम में शेर बैठा होता है और पालने में बच्चा रो रहा होता है. अब उन्हें दूल्हे को ढूंढना है और ये पता लगाना है कि रात को हुआ क्या था. इस कॉमेडी फिल्म को दुनिया भर में दर्शकों ने ख़ूब देखा है. बाद में द हैंगओवर 2 और 3 भी टॉड ने डायरेक्ट कीं. 2016 में उन्होंने युद्ध और उसके कारोबार पर टिप्पणी करती डार्क कॉमेडी 'वॉर डॉग्स' बनाई. एक्टर साशा बैरों कोहेन की बहुत ही बदमाश फिल्म ‘बोराट’ की कहानी लिखने वालों में एक टॉड भी रहे हैं.
फिल्म में जोकर का रोल किया है वाकीन फीनिक्स ने. जिन पाठकों ने उनकी ‘द मास्टर’ (2012) जैसी जबरदस्त अभिनय वाली फिल्म नहीं सुनी है, उन्होंने रसेल क्रो की शेरों से लड़ाई वाली 'ग्लैडिएटर' जरूर देखी होगी. वाकीन उसमें विलेन राजा के रोल में थे. ‘हर’ (2013) और सिंगर जॉनी कैश की लाइफ पर बनी ‘वॉक द लाइन’ (2005) भी उनकी उल्लेखनीय फिल्में हैं.

डायरेक्टर पॉल थॉमस एंडरसन की 'द मास्टर' (2012) और रिडली स्कॉट की 'ग्लेडियेटर' (2000) में वाकीन. उत्कृष्ट अभिनय.
वाकीन बच्चे थे तब से एक्टिंग कर रहे हैं. पहले भाई-बहनों के साथ छोटे-छोटे इवेंट में परफॉर्म करते थे. 8 के हुए तो टीवी सीरीज में एक्टिंग की. 11-12 की उम्र में फिल्म की. हमेशा लाइमलाइट में रहे. 19 के हुए तो भाई रिवर की ड्रग ओवरडोज़ से मौत हो गई. वो भी एक्टर थे. मीडिया ने बहुत तमाशा बनाया. तब से वाकीन मीडिया से थोड़ा असहज हो गए. वे मौजूदा पीढ़ी के एक्टर्स में एक मजबूत नाम हैं. उन्हें हमेशा कम आंका गया है. वे चार बार ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हो चुके हैं. इसमें तीन बार बेस्ट एक्टर कैटेगरी में. तीसरी बार में वे ‘जोकर’ के साथ बेस्ट एक्टर का ऑस्कर जीत ही गए.
वाकीन ने 2005 में आई डॉक्यूमेंट्री ‘अर्थलिंग्स’ का नरेशन दिया था. जो अलग-अलग इस्तेमाल के लिए इंसान द्वारा पशुओं के साथ की जाने वाली हिंसा का अकेला सबसे विस्तृत और क्रूर दस्तावेज़ है. इतना, कि उस क्रूरता को पूरा देख पाना हर किसी के लिए संभव नहीं.
2020 के ऑस्कर में 'जोकर': सबसे ज़्यादा 11 नॉमिनेशन मिले. दो जीते.
बेस्ट पिक्चर - टॉड फिलिप्स, ब्रैडली कूपर, एमा टिलिंजर कॉस्कॉफ एक्टर - वाकीन फीनिक्स डायरेक्टर - टॉड फिलिप्स राइटिंग (एडेप्टेड स्क्रीनप्ले) - टॉड फिलिप्स. स्कॉट सिल्वर फिल्म एडिटिंग - जेफ ग्रॉथ सिनेमैटोग्राफी - लॉरेंस शेर कॉस्ट्यूम डिजाइन - मार्क ब्रिजेज़ मेकअप एंड हेयरस्टायलिंग - निकी लेडरमैन, के जॉर्जियो म्यूज़िक (ओरिजिनल स्कोर) - हिल्डुर गुदनादोतिर साउंड एडिटिंग - एलन रॉबर्ट मर्री साउंड मिक्सिंग - टॉम ओज़ानिच, डीन ज़ुपान्चिच, टॉड मेटलैंड
2020 की ऑस्कर सीरीज़ की अन्य फ़िल्मों के बारे में पढ़ें: Parasite – 2020 के ऑस्कर में सबको तहस नहस करने वाली छोटी सी फ़िल्म
1917 – इस ऑस्कर की सबसे तगड़ी फ़िल्म जिसे देखते हुए मुंह खुला का खुला रह जाता है
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