
पहले नरेंद्र मोदी इजरायल गए. अब इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत आए हैं. बेंजामिन की जिंदगी में एक सैनिक ऑपरेशन बहुत मायने रखता है. इस ऑपरेशन में उनका बड़ा भाई योनातन मारा गया था.
और वो फोन आया, जिसे बेन पूरी जिंदगी याद रखने वाला था किसी ने आकर बेन को बताया- तुम्हारे लिए फोन आया है. बेन जल्दी-जल्दी पांव बढ़ाकर फोन तक पहुंचा. रिसीवर उठाया. कुछ पल बीते और बस. सन्नाटा. अभी-अभी बेन की अपने छोटे भाई से बात हुई थी. उसने बताया कि उनका बड़ा भाई योनातन अब इस दुनिया में नहीं है. योनातन, जिसे परिवार प्यार से योनी पुकारता था. दोनों छोटे भाई उसके जैसा बनना चाहते थे. 30 साल का योनातन. लंबा-चौड़ा. खूब स्मार्ट. योनातन इजरायली सेना के सबसे खास कमांडो यूनिट्स में से एक का मुखिया था. यूनिट का नाम था- सेयेरेट मटकल. इस यूनिट को एक खतरनाक मिशन पर भेजा गया था. उनके ऊपर 100 इजरायली नागरिकों की जान बचाने और उन्हें सही-सलामत घर लौटाकर लाने की जिम्मेदारी थी. इन सबको युगांडा में बंधक बनाकर रखा गया था. वहां एक एंटेबे जगह है, वहीं. इजरायल के बारे में मशहूर था कि उसके हर नागरिक की जिंदगी उसके लिए बहुत कीमती है. बस बोलने के लिए नहीं, बल्कि सच में. दुश्मन उसके एक भी इंसान का खून बहा दे, तो इजरायल पागल हो जाता था. बदला लेता था. मारने वाले को ऐसी चोट देता कि लगता भविष्य के लिए सबक सिखा रहा है.
इजरायल का ये ऑपरेशन आज भी सारे देशों के लिए मिसाल है योनी इस ऑपरेशन का लीडर था. उसने अपना फर्ज निभाया. ऑपरेशन कामयाब रहा. 100 के 100 इजरायली नागरिकों को आजाद करा लिया गया. विदेशी जमीन पर किया गया ये ऑपरेशन इतना कामयाब रहा. ये किसी भी देश की सेना के लिए मिसाल थी. मगर एक चीज बुरी हुई उस दिन. योनातन खुद को नहीं बचा पाया. बेन निते का बड़ा भाई, उसका हीरो, बेमौत मारा गया था.

जो जवान बीच में खड़ा दिख रहा है, वो ही है कमांडर योनातन नेतन्याहू. इनके ऊपर कई फिल्में बनीं. किताबें लिखी गईं.
कल का बेन निते, आज का बेंजामिन नेतन्याहू ये बेन निते आगे चलकर इजरायल का प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू बनने वाला था. वो एक फोन कॉल बेन को पूरी जिंदगी याद रहने वाला था. फोन रखने के बाद बेन ने अपने आसपास देखा. कहीं से बैंड की आवाज आ रही थी. कोई डांस कर रहा था. जिस ओर देखो, उधर ही कोई मेला सा दिखता. मगर बेन के लिए सब खत्म हो गया था. उसने गाड़ी उठाई. सात घंटे लगातार कार चलाकर न्यू यॉर्क पहुंचा. वहां कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में उसके पिता इतिहास पढ़ाते थे. बेन जानता था कि योनातन की खबर मिलने पर वो टूट जाएंगे. इसीलिए वो खुद उनके पास आया था. उन्हें ये खबर देने और संभालने. बहुत साल बाद, करीब 40 साल बाद, इजरायल का PM बनने के बाद, इस दिन को याद करते हुए बेन (बेंजामिन नेतन्याहू) ने एक इंटरव्यू में कहा:
मैंने वो राह पकड़ी, जो मेरे मां-बाप के घर की ओर जाती थी. मैं धीरे-धीरे उस पर बढ़ रहा था. उस घर के सामने की ओर एक बड़ी सी खिड़की थी. मैंने अपने पिता को देखा. वो इधर से उधर, उधर से इधर तेजी से चहलकदमी कर रहे थे. तभी एकाएक उन्होंने अपना सिर घुमाया और मुझे देखा. वो मुझे यूं अचानक वहां देखकर हैरान रह गए थे. फिर मानो वो अपने आप ही कुछ समझ गए और जोर से आवाज दी. मैं तेजी से भागकर अंदर पहुंचा. मुझे अपने माता-पिता को उनके बड़े बेटे की मौत के बारे में बताना था. योनी की मौत से भी ज्यादा मुश्किल था ये काम.

युगांडा के राष्ट्रपति इदी अमीन के पास एक खास मर्सीडीज लिमोजीन थी. काले रंग की. बहुत कोशिश करके इजरायली सेना ने ठीक वैसी ही कार का इंतजाम किया. उस कार का रंग अलग था. सो उसे काले रंग से पेंट करके बिल्कुल इदी अमीन की गाड़ी का लुक दे दिया गया.
ऑपरेशन थंडरबोल्ट: दुनिया का सबसे खतरनाक मिलिट्री ऑपरेशन योनातन नेतन्याहू शहीद हो गया था. और जिस घटना ने उसकी जान ली, वो खून जमा देने जैसी घटना है. इजरायल की मिलिट्री के बारे में जो अलौकिक टाइप किस्से-कहानियां मशहूर हैं, उनमें से एक मील का पत्थर है ये वाली घटना. दुनिया में इस तरह के जितने ऑपरेशन हुए हैं, उनमें एक मिसाल. सबसे खतरनाक. सबसे हिम्मती. सबसे जांबाज. इतना रोमांचक कि दिमाग घूम जाए. और इस एक घटना का इजरायल के मौजूदा प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ बड़ा करीबी रिश्ता है. नेतन्याहू की जुबानी, वो आज जो भी हैं, उसके पीछे इस एक घटना का सबसे बड़ा हाथ है. समझें तो PM बेंजामिन नेतन्याहू की कहानी इसी दिन शुरू हुई थी.
तारीख: 27 जून साल: 1976 दिन: रविवार
ये कहानी शुरू किसी आम दिन जैसी ही शुरू हुई. इजरायल की राजधानी तेल अवीव में है बेन गूरियन इंटरनैशनल एयरपोर्ट. इजरायल के पहले प्रधानमंत्री बेन गूरियन के नाम पर इसका नाम रखा गया है. यहां से एक विमान रवाना हुआ. पैरिस के लिए. एयर फ्रांस का विमान था. प्लेन के अंदर कुल 247 यात्री थे. क्रू के 12 लोग और जोड़ लीजिए इस गिनती में. यानी कुल 259 लोग थे विमान के अंदर. जैसा कि तय था, विमान एथेंस में उतरा. कुछ देर बाद जब वापस उड़ान भरने का वक्त आया, तो गड़बड़ हो गई. कॉकपिट के अंदर बैठे प्लेन के कैप्टन मिशेल बाकोस को लगा कि कुछ चीखें सुनाई दी हैं. उन्हें लगा कि प्लेन में कोई गड़बड़ हुई है. उन्होंने मुख्य इंजिनियर को भेजा. जैसे ही चीफ इंजिनियर ने कॉकपिट का दरवाजा खोला, सामने था विलफ्रेड बोस. एक हाथ में रिवॉल्वर और दूसरे हाथ में हथगोला. विलफ्रेड के साथ एक लड़की भी थी.

ये हाइजैक करने वाले एक शख्स विलफ्रेड की तस्वीर है. ये जर्मनी का रहने वाला था. वहां के एक आतंकवादी संगठन का सदस्य था.
'बंधकों को रिहा करेंगे, बदले में 53 कैदियों को रिहा करो' दोनों जर्मनी के एक आतंकवादी संगठन- रिवॉल्यूशनरी सेल्स (RZ) के सदस्य थे. RZ ने पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन (फिलिस्तीन में सक्रिय एक हथियारबंद संगठन) के दो सदस्यों के साथ मिलकर ये खतरनाक योजना बनाई. चारों लोग इस एयर फ्रांस के विमान में बैठ गए. एथेंस से ही प्लेन में सवार हुए. फिर जब चीफ इंजिनियर ने कॉकपिट का दरवाजा खोला, तो विलफ्रेड धड़धड़ाता हुआ कॉकपिट के अंदर घुस गया. उसने को-पायलट को हटाया और माइक्रोफोन अपने कब्जे में कर लिया. उसने ऐलान कर दिया कि अब वो सब बंधक हैं. पूरे प्लेन को हाइजैक कर लिया गया है. यात्रियों को रिहा करने के एवज में उसने 53 कैदियों को रिहा करने की शर्त रखी. ये सारे कैदी पांच अलग-अलग देशों की जेलों में बंद थे.

ऑपरेशन थंडरबोल्ट में भाग लेने वाले कुछ इजरायली कमांडरों की तस्वीर.
युगांडा के कुख्यात राष्ट्रपति के साथ मिलकर रची साजिश हाइजैकर्स ने पायलट से विमान उड़ाने को कहा. जब विमान की लैंडिंग हुई और खिड़कियां खुलीं, तो सामने नजर आया इदी अमीन. अपनी जानी-पहचानी मिलिट्री की यूनिफॉर्म पहने. इदी युगांडा का कुख्यात राष्ट्रपति था. उसके ऊपर 80,000 से तीन लाख लोगों की हत्या का इल्जाम था. कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन कहते हैं कि इदी अमीन ने पांच लाख से ज्यादा लोगों को मारा. अपने इसी वहशीपन के कारण इदी को दुनिया में लोग जानते थे. खैर. इदी को देखकर प्लेन में बैठे यात्रियों को महसूस हुआ कि वो युगांडा पहुंच गए हैं. पहले लगा कि चारों अपहरणकर्ताओं ने जल्दबाजी में एंताबे को चुना है. विमान की लैंडिंग के लिए. लेकिन सच्चाई ये थी कि ये सारी साजिश इदी अमीन के साथ मिलकर बनाई गई थी. वो साथ दे रहा था अपहरणकर्ताओं का.
कई लोगों ने पहले कभी एंताबे का नाम भी नहीं सुना था इजरायल को ये मालूम हो चुका था कि प्लेन हाइजैक हो गया है. लेकिन ज्यादा कुछ नहीं पता था उसे. सेना के खुफिया विभाग में इस तरह की आपातकालीन स्थितियों को देखने का जिम्मा एहुद बराक के जिम्मे थे. आगे चलकर एहुद इजरायल के प्रधानमंत्री भी बने. काफी अनुभवी थे एहुद. इस तरह की इमर्जेंसी वाली स्थितियों ने निपट चुके थे. मगर ये वाला मामला अलग था. इसमें बहुत जोखिम था. सबसे बड़ा जोखिम तो इसलिए था कि प्लेन युगांडा के अंदर था. सेना के टॉप कमांडरों की मीटिंग बैठी. कॉन्फ्रेंस रूम में जो मेज थी, उसके ऊपर एक बड़ा सा ग्लोब रखा हुआ था. एक जनरल ने ग्लोब घुमाते हुए अपने साथी से पूछा:
क्या तुम पक्की तरह जानते हो कि एंताबे कहां है?

ये बेंजामिन नेतन्याहू और उनके भाई योनातन के बचपन की तस्वीर है. योनातन भाइयों में सबसे बड़े थे. बेंजामिन को दुनिया में किसी के जैसा बनना था, तो वो योनातन ही थे.
इजरायल ने कहा: बंधकों को छोड़ दोगे, तो नोबेल प्राइज दिलवा देंगे ऐसी हालत थी लोगों की. विमान को हाइजैक करके जहां ले जाया गया था, वो इजरायल के लिए एकदम अजनबी थी. देर रात तक मीटिंग चलती रही. कुछ समय पहले तक इजरायल की कई अफ्रीकी देशों से दोस्ती थी. युगांडा से भी थी. इदी अमीन को इजरालय ने ही मिलिट्री ट्रेनिंग दी थी. अब उन अधिकारियों को बुलाया गया, जिन्होंने इदी को प्रशिक्षित किया था. पूछा गया कि इदी की कमजोरी क्या है. किसी ने बताया कि वो नोबेल शांति प्राइज पाना चाहता है. इजरायल ने युगांडा को संदेश भिजवाया. कि अगर हमारे लोगों को रिहा कर दो, तो नोबेल प्राइज तुम्हारा. ठीक इसी समय एकाएक इजरायली सेना को मानो खजाना मिल गया. एक इजरायली कंपनी में काम करने वाला इंजिनियर आगे आया. उसके पास था एक नक्शा. युगांडा के एंताबे एयरपोर्ट पर जिस इमारत के अंदर लोगों को बंधक बनाकर रखा गया था, उसका नक्शा. ये इंजिनियर उस एयरपोर्ट को बनाने वाली कंपनी में काम करता था. उसी समय से ये नक्शा उसके पास था. मेज की दराज में पड़ा हुआ. बेमतलब. उसे नहीं पता था कि बाद में ये ही नक्शा इजरायल के लिए इतना बड़ा वरदान बन जाएगा.

बंधक बनाए गए इजरायली नागरिकों के साथ बात करता हुआ ये शख्स इदी अमीन है. पहले मिलिट्री कमांडर था. फिर राष्ट्रपति बना. दुनिया में आज तक पैदा हुए सबसे क्रूर लोगों में एक था इदी अमीन. कहते हैं कि इसने पांच लाख से ज्यादा बेगुनाहों की जान ली.
तारीख: 2 जुलाई, 1976 दिन: शुक्रवार
पहले सोचा गया कि इजरायल की नौसेना के SEAL कमांडोज को पैराशूट से झील में उतारा जाए. वहां से वो रबड़ की बनी छोटी नावों में बैठकर युगांडा पहुंचें. मगर इजरायल की खुफिया एजेंसी ने कहा कि ये योजना काम नहीं करेगी. ऐसे ही कई योजनाएं बनीं. खारिज हुईं. सेना के सामने बड़ी चुनौती थी ये. इजरायल सरकार की नीति थी कि किसी भी हाल में आतंकवादियों के साथ बातचीत नहीं करेंगे. अगर सेना इस होस्टेज क्राइसिस से निपटने की कोई अच्छी योजना बनाने में नाकाम होती, तो सरकार को मजबूर होकर आतंकियों के साथ बात करनी पड़ती. इजरायल की टफ छवि के लिए ये बहुत खराब मिसाल होती. इसीलिए हर मिनट कीमती था. एक-एक पल किसी बोझ की तरह भारी लग रहा था. ऐसे ही बीता पहला दिन. फिर दूसरा दिन. फिर तीसरा दिन. फिर चौथा दिन. और फिर आया पांचवां दिन. अपहरणकर्ताओं ने प्लेन में बैठे यात्रियों का बंटवारा किया. इजरायली एक ओर, गैर-इजरायली दूसरी ओर. गैर-इजरायलियों को रिहा कर पैरिस भेज दिया गया. बचे रह गए इजरायली नागरिक. कुल 94 नागरिक और एक दर्जन क्रू मेंबर्स. ऐसे ही जैसे हिटलर की नाजी यहूदियों और गैर-यहूदियों को अलग करती और फिर यहूदियों को मार डालती. बंधक बनाए गए कई लोगों ने हिटलर का वो दौर भी देखा था. बहुत डरे हुए थे वो. अपहरणकर्ताओं ने रविवार तक का समय दिया था. कहा था, तब तक मांगें नहीं मांगी गईं तो एक-एक करके उन्हें मारना शुरू कर दिया जाएगा.

ऑपरेशन थंडरबोल्ट पर फिल्में बनीं. इसकी कहानी बेहद रोमांचक है. असली कहानी ऐसी लगती है मानो किसी ने फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी हो. कई जानकार इसे दुनिया के सबसे जांबाज, सबसे खतरनाक सैन्य ऑपरेशनों में पहले नंबर पर रखते हैं.
मोसाद को खबर मिली: इदी अमीन युगांडा से बाहर जा रहा है इधर ये हो रहा था और उधर तेल अवीव में इजरायली सेना ने योजना बना ली थी. पता चला कि इदी अमीन वीकेंड पर युगांडा से बाहर जा रहा है. मॉरीशस. तय हुआ कि जो होना है, इसी वक्त होना है. इदी अमीन के पास एक मर्सीडीज लिमोजीन थी. बिल्कुल उसके जैसी दिखने वाली एक कार का इंतजाम किया गया. कार मिल गई, लेकिन उसका रंग अलग था. जल्दी-जल्दी उस पर काले रंग से पेंट किया गया. ताकि वो देखने में बिल्कुल इदी अमीन की गाड़ी लगे. प्लान हुआ कि विमानों में चार गाड़ियां लादकर किसी तरह युगांडा पहुंचा जाएगा. वैसी ही गाड़ियां, जैसी इदी अमीन के कारवां में इस्तेमाल होती हैं. कहीं एकांत में विमानों की लैंडिग होगी. विमान के अंदर बंद गाड़ियां बाहर लाई जाएंगी. फिर युगांडा की सेना के यूनिफॉर्म पहने इजरायली कमांडोज उसमें बैठेंगे. ऐसे नाटक करेंगे मानो एदी अमीन का कारवां मॉरीशस से वापस लौटा है. इस ऑपरेशन पर कौन-कौन जाएगा, ये नाम तय हो गए. टीम का नेतृत्व करने का जिम्मा मिला योनी नेतन्याहू को.

ये उसी वक्त का अखबार है. इजरायल ने पूरा ऑपरेशन विदेशी जमीन पर किया. किसी भी देश से मदद नहीं ली. खुद पूरी प्लानिंग बनाई. खुद उसे अंजाम दिया. और बंधक छुड़ाकर भी लाया. इस कामयाबी का उसकी रफ ऐंड टफ छवि बनाने में बहुत बड़ा हाथ रहा.
तारीख: 3 जुलाई, 1976 दिन: शनिवार
योनी नेतन्याहू के नेतृत्व में 200 से ज्यादा इजरायली सैनिक मिशन पर रवाना हुए. ये बहुत मुश्किल मिशन था. युगांडा के पड़ोसी देश इजरायल के बोइंग विमानों को अपने रडार पर देख सकते थे. पूरी प्लानिंग चौपट हो सकती थी. इसीलिए इजरायली सैनिकों ने विमान को बहुत नीचे से उड़ाया. मतलब, जमीन से बस 30 मीटर ऊपर. बहुत दिक्कत हुई इस तरह विमान उड़ाने में. अंदर बैठे लोगों को उल्टी भी हो रही थी. ये उड़ान करीब आठ घंटे की थी. रात के अंधेरे में अंताबे नजर आया. जहां विमान को उतरना था, वो जगह भी अंधेरे में थी. पहले विमान उतरा और बाहर आई मर्सीडीज. गाड़ी सीधे उस इमारत की ओर बढ़ी, जिसमें बंधकों को रखा गया था. सब कुछ वैसे ही हो रहा था, जैसी योजना थी. लेकिन तभी कुछ गड़बड़ हुई.
एक गड़बड़ और सब बिगड़ गया एकाएक युगांडा के कुछ सैनिक नजर आए. उन्होंने अपनी रायफल दिखाई. असल में इदी अमीन को ये ही तरीका भाता था. उसके सैनिक बंदूक दिखाकर उसके प्रति सम्मान जताते थे. उस सैनिक को लगा कि मर्सीडीज के अंदर इदी है. सो उसने बंदूक दिखाकर सम्मान दिखाया. योनी के साथ थे कमांडर मुकी बेतजेर. ऑपरेशन के डेप्युटी इन-चार्ज. वो पहले चार महीने युगांडा में काम कर चुके थे. उन्हें ये बात पता थी. इसीलिए वो सामान्य बने रहे. मगर योनी को लगा कि वो सैनिक हमला करने जा रहे हैं. उन्होंने और उनके साथ वाले कमांडर ने अपने साइलेंसर लगे रिवॉल्वर से गोली चला दी. वो सैनिक जमीन पर गिर पड़ा. मगर फिर एकाएक वो उठ खड़ा हुआ. ये देखकर एक दूसरे इजरायली सैनिक ने फिर उसके ऊपर गोली चलाई. गलती से वो साइलेंसर वाली पिस्तौल इस्तेमाल करना भूल गया. आवाज हुई- धांय. और पास खड़े युगांडा के एक सैनिक ने ये सब देख लिया. गोलीबारी शुरू हो गई. मर्सीडीज रोकनी पड़ी. वहां नहीं, जहां की प्लानिंग थी. वहां गाड़ी रोककर सारे इजरायली सैनिक उस इमारत की ओर दौड़े. मूल प्लानिंग के हिसाब से कमांडरों को अलग-अलग टीमों में बांटा गया था. सबके जिम्मे अलग-अलग काम थे. लेकिन अब इस इमर्जेंसी में सब मिल गए.

एयर फ्रांस के इसी तरह दिखने वाले एक विमान को बंधकर बनाया गया था. बाद में गैर-इजरायलियों को पैरिस भेज दिया गया.
सब लौट गए, बस चार नहीं लौटे इस तारीख से करीब दो साल पहले इजरायल ने इसी तरह का एक ऑपरेशन किया था. इजरायल के ही मालोट शहर की बात है. वहां फिलिस्तीनी अपहरणकर्ताओं ने कुछ इजरायली नागरिकों को बंधक बना लिया था. ये मिशन नाकामयाब रहा. 25 इजरायली मारे गए. इनमें से 22 बच्चे थे. योनी नेतन्याहू और मुकी बेतजेर को बार-बार उसी ऑपरेशन की याद सता रही थी. वो नहीं चाहते थे कि इस ऑपरेशन का अंजाम भी उस ऑपरेशन जैसा हो. ऐसा हुआ भी नहीं. इससे पहले कि अपहरणकर्ता बंधकों पर गोली चला पाते, इजरायली सैनिकों ने स्थिति पर काबू पा लिया. बाहर गोलीबारी सुनकर इमारत के अंदर बंधक बने इजरायली नागरिकों को लगा कि उनका आखिरी वक्त आ गया है. अब उन्हें मार डाला जाएगा. फिर जब उन्होंने इजरायली सैनिकों को देखा, तो उनकी जान में जान आई. इजरायली सैनिकों ने जल्दी-जल्दी सारे बंधकों को विमान में बैठाया. और विमान उड़ गया. गिनती हुई. कुल 102 बंधक और क्रू सदस्य. चार लोग नहीं लौट पाए थे.

विमान के अंदर चार हरक्यूलिस गाड़ियां ले जाई गईं. ये गाड़ियां वैसी ही थीं, जैसी इदी अमीन के कारवां में इस्तेमाल की जाती थीं.
और शहीद योनातन नेतन्याहू इजरायल का हीरो बन गया जो नहीं लौटे, उनमें एक नाम योनातन नेतन्याहू का भी था. जब पहले विमान की लैंडिंग हुई, उसके कुछ ही देर बाद योनी की मौत हो चुकी थी. जिस इमारत में बंधकों को रखा गया था, उसके पास ही मेडिकल टीम ने उनका इलाज करने की कोशिश भी की थी. मेडिकल यूनिट के कमांडर डॉक्टर इपराहिम स्नेह ने योनी को संभाला. मगर बचा नहीं सके. अंताबे में लैंडिग के ठीक 25 मिनट बाद योनातन नेतन्याहू ने वहीं कमांडर इपराहिम की बांहों में दम तोड़ दिया. जब विमान लौटकर इजरायल पहुंचा, तो विमान के आगे स्ट्रेचर पर योनी की लाश रखी थी. कमांडर इपराहिम आगे चलकर इजरायल के कैबिनेट मंत्री बने. और योनातन? वो इंसान इजरायल के सबसे बड़े नायकों की लिस्ट में शुमार हो गया.
एहुद बराक ने बाद में एक इंटरव्यू में बताया:
मैंने कमांडर योनातन नेतन्याहू का शव देखा. चेहरा एकदम सफेद पड़ गया था. वो एक हैंडसम जवान आदमी था. मैंने अपना हाथ उसके माथे पर रखा. वहां अब भी हल्की गर्मी थी. उसे मरे हुए बस एक घंटा गुजरा था. उसका चेहरा ऐसे था, मानो सुकून में डूबा हो. एकदम शांत. ऐसा लगता ही नहीं था कि इतना सारा दर्द झेलने के बाद उसने आंखें बंद की हों.

अपने भाई की कब्र के पास बैठे बेंजामिन नेतन्याहू. इजरायल के प्रधानमंत्री का कहना है कि ऑपरेशन थंडरबोल्ट और उसमें हुई उनके भाई की मौत ने उनकी जिंदगी बदल दी.
योनातन की याद में मिशन का नाम बदला- ऑपरेशन योनातन बंधकों को छुड़ाने के इस मिशन का नाम था- ऑपरेशन थंडरबोल्ट. योनातन की याद में इसका नाम बदलकर 'ऑपरेशन योनातन' कर दिया गया. नेतन्याहू परिवार ने अपने बच्चे की याद में एक संस्थान भी बनवाया. ब्रिटेन के पत्रकार मैक्स हेस्टिंग्स ने योनातन की आत्मकथा भी लिखी. अंताबे के उस ऑपरेशन में मरकर कमांडर योनातन हमेशा-हमेशा के लिए इजरायल के हीरो बन गए. बेंजामिन नेतन्याहू कई मौकों पर कह चुके हैं. कि भाई की मौत ने उन्हें बदल दिया. उनकी जिंदगी को बदल दिया. वो कहते हैं:
उस हादसे ने मेरी जिंदगी बदल ली. मैं आज जहां पहुंचा है, वो सफर उस हादसे की वजह से ही शुरू हुआ.

बंधकों के छूटकर आने के बाद जश्न मनाते इजरायली नागरिक. हालांकि कमांडर योनातन नेतन्याहू की शहादत के कारण इतनी बड़ी कामयाबी मिलने पर भी इजरायल में शोक का माहौल था.
अपने भाई की शहादत को भुनाते हैं नेतन्याहू? हालांकि लोग ये भी कहते हैं कि बेंजामिन अपने परिवार के इस इतिहास को भुनाते हैं. कि वो अपने भाई की शहादत का फायदा उठाते हैं. कि वो अपने भाई के साथ हुए हादसे को अपने लिए इस्तेमाल करते आए हैं. पता नहीं, ये इल्जाम कितने सही हैं. वैसे जब आप सार्वजनिक जीवन में होते हैं, तो लोग आपके ऊपर क्रूर से क्रूर इल्जाम लगा जाते हैं. बेंजामिन नेतन्याहू यकीनन बहुत क्रूर नेता माने जाते हैं. उसे लेकर कोई शक नहीं है. मगर ये बात उनके भाई से जुड़ी है. उसकी मौत की यादों से जुड़ी है. ऐसे मामलों में भावना को तरजीह देनी चाहिए. भरोसा रखना चाहिए कि बेंजामिन नेतन्याहू अपने उस शहीद भाई के बारे में जो कहते हैं, सच कहते हैं. और वो कहते हैं:
मेरे भाई की मौत मेरे लिए ऐसी थी, माने किसी ने मेरे हाथ-पैर काट दिए हों. ऐसा लगा कि मैं अब हमेशा-हमेशा के लिए अधूरा हो गया हूं. अब कभी मुकम्मल नहीं हो सकूंगा. मैं जब अमेरिका गया, तो बस 13 साल का एक बच्चा था. भाई की मौत के बाद जब वापस लौटा, तो एक परिपक्व इंसान जैसा महसूस करने लगा.
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