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क्लासरूम में ताले लगने के बाद ऑनलाइन एजुकेशन से देश के टीचरों ने क्या सीखा?

'गुरुशाला' से जुड़े शिक्षकों के ग्रुप से 'लल्लनटॉप' गपशप.

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दुनिया अचानक आई इस महामारी से जूझने के नए तरीके खोज चुकी है शायद.(फ़ाइल फोटो)

लॉकडाउन के दौरान ही लोगों को ये जानने-समझने का मौका मिला कि किसी मुश्किल हालात में हमारा देश ऑनलाइन एजुकेशन या ई-लर्निंग के लिए कितना तैयार हो पाया है. कहीं फोन का अभाव, कहीं डेटा के लिए पैसे का अभाव. कहीं कनेक्टिविटी की दिक्कत. लेकिन जब 'घंटी' बजी, तो इन तमाम परेशानियों के बावजूद स्टूडेंट ई-लर्निंग के लिए तैयार होते नजर आए. शिक्षक भी फोन से पढ़ाने के रोचक तरीके ईजाद करते रहे. ऐसे हालात में 'दी लल्लनटॉप' ने शिक्षकों के एक ग्रुप से बातचीत की और इस बारे में उनके अनुभव जाने.

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'गुरुशाला' से जुड़े हैं शिक्षक

हमने जिन शिक्षकों से बात की, वे सभी 'गुरुशाला'
नाम की वेबसाइट से जुड़े हुए हैं. दरअसल, ये एक कम्युनिटी है, जिसके जरिए डिजिटल एजुकेशन प्रोग्राम चलाए जाते हैं. स्टूडेंट इस पर उपलब्ध तमाम तरह के स्टडी मेटीरियल का इस्तेमाल विषय पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने में करते हैं. साथ ही इस 'गुरुशाला' में टीचरों को भी पढ़ाने के नए-नए गुर सिखाए जाते हैं, जिससे कि बच्चे ई-लर्निंग से भी अपना पाठ ठीक से समझ सकें.


ऑनलाइन एजुकेशन में हर किसी की मदद को तैयार है 'गुरुशाला' (फोटो क्रेडिट: gurushala.co)
ऑनलाइन एजुकेशन में हर किसी की मदद को तैयार है 'गुरुशाला' (फोटो क्रेडिट: gurushala.co)

ग्रुप वीडियो कॉल के जरिए लंबी बातचीत का जो सार निकला, विचार-मंथन से जो 'मक्खन' निकला, उसे हम सवाल-जवाब के रूप में पेश कर रहे हैं.

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कई बच्चों के पास मोबाइल फोन की सुविधा नहीं है. कहीं मोबाइल है, तो डेटा नहीं. इस वजह से वो ऑनलाइन एजुकेशन से वंचित रह गए. इस पर क्या कहेंगे?

कई जगह इस तरह की दिक्कतें देखी गई हैं. लॉकडाउन में कम बच्चे ही ई-लर्निंग से जुड़ सके. लॉकडाउन अचानक हुआ. ऐसे हालात के लिए कोई भी पहले से तैयार नहीं था. इसके बावजूद हमने अपनी ओर से पूरी कोशिश की. अब तो बच्चे भी समझदार हो गए हैं. वे हमें सीधा कॉल करके ही अपने सवाल पूछ ले रहे हैं. 

क्या ऑनलाइन एजुकेशन या टेक्नोलॉजी की वजह से गांव और शहरों के बच्चों के बीच एक बड़ा गैप पैदा हो गया है?

हमें इसके दोनों पहलुओं को देखना होगा. एक हद तक ये बात सही है कि जो बच्चे ई-लर्निंग के तमाम तरीके आसानी से अपना रहे हैं, वे इससे वंचित रहने वाले बच्चों से आगे निकल रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन के दौरान गांव या दूर-दराज वाले इलाकों के बच्चे भी फोन से पढ़ने के तरीके सीखते नजर आए. वे भी तकनीक से परिचित हो रहे हैं, ये अच्छी बात निकलकर सामने आई है.

हम टीवी पर कुछ ऐप के विज्ञापन देखते हैं. बताया जाता है कि इससे बच्चे वीडियो के जरिए तेजी से अपने लेसन सीखते-समझ लेते हैं. क्या 'गुरुशाला' के पास भी उस जैसा कंटेंट है?

जी हां. 'गुरुशाला' पर भी कई विषयों पर बच्चों के लिए वीडियो उपलब्ध हैं. ये वीडियो बच्चों के लिए काफी मददगार साबित होते हैं. सबसे बड़ी बात ये कि इस तरह के कंटेंट एकदम फ्री हैं. यहां शिक्षकों का भी स्किल डेवलपमेंट होता है. इस बेवसाइट पर एक सेक्शन है 'स्टाफ रूम'. इससे देशभर के टीचर जुड़ते हैं और अपने विचार साझा करते हैं. कोई भी हमारी वेबसाइट से जुड़कर इनका इस्तेमाल कर सकता है.  गुरुशाला तो एक परिवार जैसा है, जहां हर कोई एक-दूसरे की मदद करने को तैयार रहता है.

लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई का काफी नुकसान हुआ. ऐसे में हर क्लास का सिलेबस छोटा करने का आइडिया कैसा है?

मेरा मानना है कि आज छोटे बच्चों पर भी ढेर सारे विषय लाद दिए गए हैं. हम उन्हें 10 विषय थोड़ा-थोड़ा पढ़ाने की बजाए अगर पांच विषय ही कायदे से पढ़ा दें, तो ये बड़ी बात होगी. जब तक स्कूल बंद हैं, हमें कुछ खास विषयों पर ही ज्यादा फोकस करना चाहिए.

सिलेबस कवर करने के और कौन-से तरीके हो सकते हैं?

बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाएं या क्लासरूम में जाकर, हमें उन्हें चीजों को एकसाथ जोड़कर रोचक तरीके से पढ़ाना होगा. मान लें, एक टॉपिक है पहिया. इस एक चीज से कई विषय जुड़ सकते हैं. पहिए का आविष्कार इतिहास और सामाजिक विज्ञान से जुड़ता है. अगर हम इसके रेडियस और डायमीटर में जाएंगे, तो ये मैथ्य से जुड़ जाएगा. इसके घूमने की गति और वेग में जाएंगे, तो ये फिजिक्स से जुड़ जाएगा. इसकी लकड़ियों के प्रकार में जाएंगे, उनके वन की बात करेंगे, तो ये भूगोल से जुड़ जाएगा. इस तरह पढ़ाएंगे, तो बच्चे ज्यादा रुचि लेंगे. कई विषय एकसाथ कवर होंगे.

ऐसा ही एक और टॉपिक हो सकता है कोरोना. बच्चों को इस पर हिंदी में निबंध लिखने को दे सकते हैं. अंग्रेजी में ये बता सकते हैं कि ये शब्द आखिर बना कैसे. इससे बचना कैसे है, ये सामाजिक विज्ञान की तरह बता सकते हैं. साथ ही इस बीमारी के बारे में मोटी-मोटी जानकारी तो विज्ञान में दे ही सकते हैं.


हमारा देश ऑनलाइन एजुकेशन या ई-लर्निंग के लिए कितना तैयार हो पाया है? (सांकेतिक तस्वीर/फोटो क्रेडिट: दी लल्लनटॉप)
हमारा देश ऑनलाइन एजुकेशन या ई-लर्निंग के लिए कितना तैयार हो पाया है? (सांकेतिक तस्वीर/फोटो क्रेडिट: दी लल्लनटॉप)

ऑनलाइन एग्जाम के बारे में क्या राय है? इसकी क्या तैयारी है?

हम ऑब्जेक्टिव टाइप सवाल से बच्चों का टेस्ट ले रहे हैं. ज्यादातर बच्चे टेस्ट में अच्छा कर रहे हैं. कुछ बच्चों को हम फिर से वही सवाल हल करने दे रहे हैं, जिससे वे सुधार कर सकें. बच्चे भले ही कहीं से पढ़कर सवाल हल कर रहे हैं, लेकिन इस बात की खुशी रहती है कि बच्चा कम से कम उस सवाल का सही जवाब सीख तो गया. आखिरकार, हमारा मकसद भी तो उन्हें सिखाना ही है.

कुल मिलाकर बात करें, तो ऑनलाइन वाली पढ़ाई का हासिल क्या रहा?

उम्मीद से बेहतर. पहले तो शिक्षकों को भी ये भरोसा नहीं था कि वे बच्चों को ऑनलाइन पढ़ा सकते हैं. लेकिन आज हम कायदे से पढ़ा रहे हैं. बच्चे भी तकनीक से वाकिफ हो रहे हैं. वीडियो कॉल पर पहले से कहीं ज्यादा सज-संवरकर आते हैं. जो क्लासरूम में गुमसुम रहते थे, वो भी हमसे सवाल पूछ रहे हैं. बच्चे पहले से ज्यादा स्मार्ट हो गए हैं, कॉन्फिडेंट नजर आते हैं. आप यही हमारा कुल हासिल मान सकते हैं.

इस पूरी बातचीत का निष्कर्ष ये मान सकते हैं कि देश-दुनिया के सामने जो संकट आया, वो अचानक आया. लॉकडाउन जैसे हालात के लिए कोई तैयार नहीं था. इसके बावजूद, इस बच्चों की पढ़ाई-लिखाई चलती रही. तकनीकी और बुनियादी ढांचे में जो कमियां है, वो सबके सामने आ चुकी हैं. इन नई चुनौतियों को पहचान कर, उनसे पार पाने की कोशिशें जारी हैं.
'गुरुशाला' से जुड़े जिन टीचरों ने हमसे बात की, वे हैं : कल्पना राजौरिया (यूपी), मितेश शर्मा (दिल्ली), निशा निक्कम (महाराष्ट्र), गोरधन राम (राजस्थान), अंजुम नाहिद  (यूपी).



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