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क्या चुनाव आयोग के अधिकारी किसी दबाव में होते हैं ?

राहुल गांधी ने चुनाव में मैच फिक्सिंग की बात की बात की थी. ममता बनर्जी की पार्टी TMC ने इलेक्शन कमीशन से NIA के खिलाफ गुहार लगाई है. उनका कहना है केंद्रीय जांच एजेंसियों का चुनाव के समय दुरूपयोग किया जा रहा है.

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चुनाव आयोग (फोटो-इंडिया टुडे)

गर्मी की आहट शुरू हो गई है. और साथ ही देश में राजनैतिक टेम्परेचर बढ़ता जा रहा है. विपक्ष के निशाने पर सिर्फ बीजेपी नहीं बल्कि कई और संस्थान भी हैं. कुछ बयानों पर गौर कीजिये.
राहुल गांधी ने  चुनाव में मैच फिक्सिंग की बात की बात की थी.  ममता बनर्जी की पार्टी TMC ने इलेक्शन कमीशन से NIA के खिलाफ गुहार लगाई है. उनका कहना है केंद्रीय जांच एजेंसियों का चुनाव के समय दुरूपयोग किया जा रहा है. ओड़िशा के मुख्यमंत्री  नवीन पटनायक.इनकी पार्टी BJD के एक राज्यसभा सांसद हैं, सस्मित पात्रा.इन्होनें मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को एक खत लिखा है. उनका कहना है कि 

"ओड़िशा के बीजेपी के लोकसभा उमीदवार, चुनाव ड्यूटी कर रहे अधिकारीयों को फ़ोन करके धमका रहे हैं. फ़ोन पर अधिकारियों को बता रहे हैं कि राज्य में हुए ट्रांसफर उनके द्वारा इलेक्शन कमिशन को की गयीं फर्जी शिकायतों की वजह से हुए है. अगर बाकि अधिकारी बीजेपी का साथ नहीं देंगे तो उनका भी ट्रांसफर करवा दिया जायेगा”

इन आरोपों में कितनी राजनीति है और कितना सच ये समय के साथ ही पता चलेगा.लेकिन इस पूरे प्रसंग से कुछ सवाल जरूर उठते हैं. 
-राज्य के सरकारी अधिकारियों का चुनाव में क्या रोल होता है? 
-क्या अधिकारियों के पास इतनी ताकत होती है कि चुनाव प्रभावित हो सकता है?  
-अगर ऐसा है? तो चुनाव आयोग इनकी निष्पक्षता को कैसे सुनिश्चित करता है? 
-क्या सच में फर्जी शियाक़तों के दम पर इन अधिकारियों का ट्रांसफर करवाया जा सकता है?

 चुनाव आयोग को अधिकारियों की ज़रूरत क्यों?

इसको समझिये एक कम्पैरिटिव अनालिसिस से. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, देश में करीब 97 करोड़ रजिस्टर्ड वोटर्स हैं. और इलेक्शन कमीशन.वहां कितने कर्मचारी हैं? इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया 3 लोगों की एक कमिटी है. 
जिसमें 1 चीफ इलेक्शन कमिश्नर और 2 इलेक्शन कमिश्नर होते हैं.

इसके अलावा इनको एसिस्ट करने के लिए कुछ डिप्टी कमिश्नर, डायरेक्टर जनरल और अन्य सचिव भी होते हैं. मौजूदा समय में इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया के सचिवालय में 100 के करीब लोग काम करते हैं. अब ये पॉसिबल नहीं है कि ये 100 लोग अकेले देश का चुनाव, राज्यों के चुनाव को संभाल सके. इसके लिए हज़ारों लाखों लोगों की ज़रूरत होती है. क्योंकि चुनाव एक टेम्पररी प्रोसेस है. इस वजह से इतनी बड़ी संख्या में लोगों को हाइयर करने का कोई मतलब नहीं बनता. इस वजह से चुनाव के समय, चुनाव आयोग अधिकारियों और कर्मचारियों को कुछ समय के लिए सरकार से हायर करता है. उसके लिए कुछ मानदेह भी देता है. और चुनाव खत्म होने के बाद उन्हें वापस राज्य सरकार को सौंप देता है. अब जानिए की इन अधिकारियों की ज़िम्मेवारी क्या होती है. 
 

अधिकारियों पर कौन-कौन सी जिम्मेवारियां? 

चुनाव सही तरह सम्पन्न करने के लिए चुनाव आयोग, चुनाव का एक खाका बनाता है. इसी खाके के हिसाब से अधिकारियों की नियुक्ति होती है. ये नियुक्ति भी ऐसे ही नहीं हो जाती.  एक hierarchy बनाई जाती है. मतलब किसके ऊपर कौन, और कौन किसके आदेश पर काम करेगा, ये इसी हायरार्की से तय होता है. इस hierarchy में सबसे पहले हर राज्य और UT में सीनियर आईएएस अधिकारी को प्रदेश के चुनाव प्रबंधन का भार दिया जाता है. इन्हें चीफ़ इलेक्टोरल ऑफिसर कहा जाता है. ये अधिकारी प्रदेश की पूरी चुनावी प्रक्रिया को मॉनिटर करता है. इलेक्शन कमीशन के निर्देशानुसार चुनावी  प्रक्रिया को राज्य में पूरा करवाता है. चुनाव आयोग इस व्यक्ति को राज्य सरकार से परामर्श करने के बाद नियुक्त करती है.

स्टेट लेवल के अधिकारी को नियुक्त करने के बाद चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी को जिले के लेवल पर बांटा जाता है.  इसके लिए एक डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर की नियुक्ति की जाती है. ये अधिकारी चीफ़ इलेक्टोरल ऑफिसर को रिपोर्ट करता है. जैसे, चीफ़ इलेक्टोरल ऑफिसर की ज़िम्मेदारी पुरे प्रदेश के लिए होती है वैसे ही डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर उस ज़िम्मेदारी को जिले के लेवल पर संभालता है. ज्यादातर मामलों में ये जिम्मेदारी जिले के डीएम यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की होती है. 
 

डिस्ट्रिक्ट लेवल के बाद नंबर आता है संसदीय क्षेत्र का. हर संसदीय क्षेत्र के एक रिटर्निंग ऑफिसर को अप्वाइंट किया जाता है. इसकी क्या जिम्मेदारी है? इनकी भी जिम्मेदारी वही है जो डिस्ट्रिक्ट लेवल के अफसर की होती है. लोकसभा क्षेत्र में सही से चुनाव करवाना  रिटर्निंग ऑफिसर की जिम्मेदारी होती है.  इनके बाद सबसे नीचे आख़िरी लेवल पर होते हैं प्रिसाइडिंग ऑफिसर. ये ऑफिसर डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर द्वारा अलग अलग पोलिंग स्टेशन पर नियुक्त किये जाते हैं. इसके साथ दो तीन सहायक भी होते हैं. इन्हे पोलिंग ऑफिसर कहा जाता है. ये सब अधिकारी मिलकर इलेक्शन कमीशन की रीढ़ की हड्डी होते हैं. इनके बिना लोकतंत्र का ये महापर्व पूरा नहीं हो सकता. इसी कारण इन अधिकारीयों का निष्पक्ष होना बहुत जरूरी है. इन अधिकारियों की किसी भी तरह की मनमानी पर रोक लगाने के लिया चुनाव आयोग को कुछ शक्तियां दी गई हैं.
 

चुनाव आयोग का अधिकारियों अधिकारियों पर कंट्रोल

चुनाव आयोग के पास जो भी शक्तियां हैं वो तीन जगहों से मिलती हैं. 
-संविधान का आर्टिकल 324
-रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ पीपल्स एक्ट 1951
-रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ पीपल्स एक्ट 1950

संविधान का आर्टिकल 324. ये चुनाव आयोग को देश में होने वाले चुनावों की पूरी देख रेख और चुनावों का कण्ट्रोल प्रदान  करता है. हम दर्शकों की जानकारी के लिए बता दें इसमें निकाय चुनाव शामिल नहीं हैं क्योंकि उन्हें प्रादेशिक चुनाव आयोग मैनेज करते हैं. इसके अलावा, रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट 1951 का सेक्शन 28(A) और रिप्रजेंटेशन ऑफ़ पीपल्स एक्ट 1950 का सेक्शन 13CC से चुनाव आयोग को अधिकारियों के ऊपर एक बंदिश लगाने का मौका मिलता है. कैसे? 
हमे अभी जितने भी अधिकारियों की बात की है, वो सभी चुनाव के आचार संहिता लगने से लेकर नई सरकार बनने तक इलेक्शन कमीशन के अंदर रहकर काम करते हैं.माने इस समय की अवधि में इन सभी अधिकारियों को इलेक्शन कमीशन द्वारा बताये अनुशाशन में रहना होता है. इन्ही सेक्शंस के तहत चुनाव आयोग किसी भी अधिकारी का ट्रांसफर भी कर सकता है.