खाने-पीने की चीजें बनाने वाली कंपनी नेस्ले (Nestle) चर्चा में है. वजह है एक रिपोर्ट. जिसमें कहा जा रहा है कि कंपनी दोहरे पैमानों पर अपने सेरेलैक (Nestle Cerelac) जैसे प्रोडक्ट बेच रही है, जो छोटे बच्चों को खिलाए जाते हैं. स्विट्जरलैंड, जैसे विकसित यूरोपीय देशों में कंपनी के प्रोडक्ट में शुगर नहीं मिलाई जा रही. वहीं भारत (India), बांग्लादेश (Bangladesh) और थाईलैंड (Thailand) जैसे विकासशील देशों में ऊपर से चीनी मिलाई जा रही है, ऐसा रिपोर्ट में कहा गया है. ये भी आरोप लगाए गए हैं कि यह बच्चों की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है. समझते हैं क्या है यह रिपोर्ट और क्या चीनी बच्चों के लिए खतरनाक है?
Nestle बच्चों के सेरेलैक में मिला रही चीनी, पता है कितनी खतरनाक है ये?
स्विट्जरलैंड, जैसे विकसित यूरोपीय देशों में कंपनी के प्रोडक्ट में शुगर नहीं मिलाई जा रही. वहीं भारत (India), बांग्लादेश (Bangladesh) और थाईलैंड (Thailand) जैसे विकासशील देशों में ऊपर से चीनी मिलाई जा रही है, ऐसा रिपोर्ट में कहा गया है.

ये रिपोर्ट जारी की गई है पब्लिक आई नाम की एक संस्था द्वारा, जो स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख से ताल्लुक रखती है. इस संस्था ने इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क (IBFAN) के साथ मिलकर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुछ देशों से नेस्ले के बच्चों के प्रोडक्ट्स के सैंपल लिए. और उनको जांच के लिए बेल्जियम भेजा. जांच में 150 सबसे ज्यादा बिकने वाले प्रोडक्ट्स को परखा गया, जिनमें सेरेलैक और निडो जैसे प्रोडक्ट भी शामिल थे.
जांच में पाया गया कि इन प्रोडक्ट्स में मिलाई गई चीनी की मात्रा एशियाई और अफ्रीकी देशों में यूरोपीय देशों में की बजाय ज्यादा है. या कहें स्विट्जरलैंड और जर्मनी जैसे देशों में बेचे जा रहे प्रोडक्ट्स में, चीनी मिलाई ही नहीं जा रही है. रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि एक ही सेरेलैक प्रोडक्ट में चीनी की मात्रा में काफी अंतर है. एक ही प्रोडक्ट में थाईलैंड में 6 ग्राम, भारत में 2.2 ग्राम और जर्मनी में शून्य ग्राम चीनी मिली है.

रिपोर्ट में पाया गया कि गैर-यूरोपीय देशों में लगभग सभी प्रोडक्ट्स में हर खुराक में 4 ग्राम चीनी मिली है. जो 6 महीने से ज्यादा उम्र के बच्चों के लिए थे. सबसे ज्यादा फिलीपींस के प्रोडक्ट्स में 7.3 ग्राम चीनी पाई गई. वहीं भारत में लिए गए प्रोडक्ट्स के लिए ये मात्रा औसतन करीब 3 ग्राम पाई गई.
इस बीच FSSAI ने इस रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया है और जांच करने की बात कही है.
एक सवाल ये कि जांचने के लिए चीनी क्यों चुनी गई? इस बारे में पब्लिक आई संस्था के न्यूट्रिशन एक्सपर्ट लैरेंट गैब्रेल्ल ने TIME को बताया. उन्होंने कहा,
चीनी की जांच इसलिए की गई क्योंकि जब भी पोषण और सेहत की बात आती है, तो चीनी अव्वल दुश्मन है. आगे बताया कि कम उम्र में ही बच्चों को चीनी देना समस्या की बात है. मोटापे (Obesity) की बढ़ती समस्या के लिए ये एक बड़ा कारण है.
इस सबके बीच नेस्ले इंडिया के स्पोक्सपर्सन ने कहा,
हम अपने प्रोडक्ट्स में न्यूट्रिशनल क्वालिटी का ख्याल रखते हैं. नेस्ले इंडिया ने सेरेलैक जैसे प्रोडक्ट्स में पिछले 5 साल में 30% तक चीनी कम की है.
लेकिन सवाल ये है कि क्या चीनी सच में इतनी खतरनाक है कि अमेरिका की TIME मैगजीन से लेकर हमारे देश के कई बड़े न्यूज मीडिया ने इस बारे में खबर लिखी है?
ये समझने के लिए हमने बात की बच्चों की डॉक्टक प्राची पटवाल से और चीनी का मामला जाना.
छोटे बच्चों में चीनी से क्या नुकसान हैं?छोटे बच्चों को कब तक चीनी नहीं देनी चाहिए और इसके क्या नुकसान हैं? डॉक्टर प्राची ने बताया कि 6 महीने से कम उम्रे के बच्चों को तो चीनी बिल्कुल भी नहीं देनी चाहिए. चाहे वो किसी खाने की चीज में मिली हो या फिर बच्चों को खिलाए जाने वाले प्रोडक्ट्स में. क्योंकि छोटे बच्चों के पेट में ये चीनी पूरी तरह से पचाने की छमता नहीं होती है. उनके लिए मां का दूध ही सबसे सही है.
यही नहीं, बच्चे के पहले दो साल तक किसी भी तरह की चीनी को कम ही देना चाहिए. चाहे वो बोतलबंद जूस या फिर बेबी फूड प्रोडक्ट्स जैसे सेरेलैक वगैरह हों. उन्होंने बताया कि बाहर से मिलाई जाने वाली चीनी की वजह से बच्चों में कुछ बदलाव आते हैं, जिन्हें मेटाबॉलिक सिंड्रोम कहते हैं.
इसकी वजह से जब बच्चे बड़े होते हैं तो उनमें मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियां हो सकती हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, साल 2022 में दुनिया की 16% आबादी मोटापे (Obesity) का शिकार थी. जो तमाम जानलेवा बीमारियों का कारण है. इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड शुगर और मोटापा वगैरह दुनिया में होने वाली मौतों की सबसे बड़ी वजहों में से एक हैं.

डॉक्टर प्राची ने बताया कि बाहर की चीजों की बजाय बच्चों को खजूर दिए जा सकते हैं. साथ ही फल और ड्राई फ्रूट्स भी बच्चों के लिए फायदेमंद होते हैं.
इसके अलावा डिब्बा बंद प्रोडक्ट्स की जगह बच्चों को घर में बनी ताजी चीजें दी जानी चाहिए. जैसे खाने में अनाज और ड्राई फ्रूट्स को भूनकर पीसकर उसे बच्चों को दिया जा सकता है. दो साल तक के बच्चों को चीनी से दूर ही रखना चाहिए. चाहे वो चम्मच से दी जाए, चाहे डिब्बा बंद खाने के प्रोडक्ट्स में.