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औरंगजेब का पर्सनल डॉक्टर, जो एक नंबर का घुमक्कड़ था!

इस बंदे की मुगलों के दौर में इतनी चलती थी कि बेरोकटोक भीतर तक घुसा चला जाता था.

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पारुल
पारुल

इश्क में 7 मुकाम होते हैं. ऐसा पिच्चर कहती है. लेकिन घुमक्कड़ों की जो सीरीज होती है नक्शेबाज, इसमें मुकाम जैसी कोई चीज नहीं होती. मंजिल फिक्स करके चले वो क्या खाक घुमक्कड़ है! नक्शेबाज सीरीज की आज 8वीं किस्त आप पढ़ेंगे. ये बंदा फ्रांस्वा बर्नीयर नाम से जाना जाता है. जिसने मुगलों के दौर में डॉक्टरी की थी. आज हम आपको इनके बारे में बताएंगे. इसे लिखा है पारुल ने. पढ़ने जा रहे हैं आप सब. थैंक्यू. 


 
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फ्रांस्वा बर्नियर ये फ्रेंच डॉक्टर थे. 17वीं सेंचुरी में घूमने निकले थे. इंडिया आए थे. पहले तो ये शाहजहां के बेटे दाराशिकोह के पर्सनल डॉक्टर थे. फिर उनके बाद औरंगज़ेब के दरबार में शामिल हो गए.

ड्राइविंग फोर्स

जब बर्नियर पढ़ाई करने पेरिस गए थे तो कई तरह के लोगों से उनका मिलना-जुलना हुआ. लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा घुमक्कड़ लोगों का साथ पसंद आता था. फिर जब उन्हें मौका मिला, तो वो भी निकल पड़े घूमने.

फैमिली बैकग्राउंड/इनकम लेवल

बर्नियर के पापा किसान थे. ये काफी छोटे थे तभी इनके मम्मी-पापा चल बसे. फिर चाचा ने इनकी देखभाल की. मिडिल क्लास परिवार के ही रहे होंगे बर्नियर भी. 15 साल के थे, तब इन्हें पढ़ने के लिए पेरिस भेज दिया गया. वहीं पर इनकी जान-पहचान फिलॉसफर और घुमक्कड़ लोगों से हो गई. 36 साल की उम्र में बर्नियर फ्रांस से निकल गए.

ट्रेवल रूट/जगहें

बर्नियर पहले फिलिस्तीन, इजिप्ट और अरब घूमते रहे. फिर भारत पहुंच गए. भारत में सबसे पहले सूरत गए. फिर मुग़ल दरबार में पहुंच गए. वहां काफी वक़्त तक दाराशिकोह के डॉक्टर थे. बर्नियर शाही परिवार के करीबी थे. इलाज करने मुग़ल हरम तक जाने की इजाजत थी. औरंगज़ेब के कश्मीर जाने पर बर्नियर को भी कश्मीर घूमने का मौका मिल गया. बाद में वो बंगाल भी घूमने निकल गए थे. जहां अपने ही जैसे दूसरे घुमक्कड़ों से मिले. साथ ही कुछ फिलॉसफर और स्कॉलर लोगों से भी मिले.
घर लौटने से पहले बर्नियर एक बार फिर सूरत गए. वहां इन्होंने भारत की इकॉनमी के बारे में एक किताब भी लिख डाली. भारत से पेरिस वापस जाने के बाद बर्नियर लंदन भी गए थे. और वहां से पेरिस लौटते वक़्त नीदरलैंड से होते हुए गए थे. अक्सर घूमते वक़्त उनका मकसद दूसरे स्कॉलर लोगों से मिलना होता था.

मुश्किलें

ऐसी कोई बड़ी मुश्किलें इनके सामने नहीं आई होंगी, ऐसा कह सकते हैं. दूर-दराज घूमने और रहने पर जो मुश्किलें हो सकती हैं, वो तो होंगी ही. लेकिन अब तक ट्रैवलर लोगों की जिंदगी पहले से आसान हो चुकी थी.

आउटपुट

बर्नियर स्कॉलर थे. घूमने निकलने से पहले ही काफी कुछ लिख चुके थे. कुछ ट्रांसलेशन भी किए थे इन्होंने. लेकिन अपनी भारत यात्रा के बारे में बर्नियर ने एक ट्रेवल अकाउंट भी लिखा था. जो 'ट्रेवल्स इन द मुग़ल एम्पायर' नाम से छपा था. इसके ट्रांसलेशन काफी सारी भाषाओं में हुए थे.
इस अकाउंट में बर्नियर ने मुग़ल भारत में दरबार, शहरों और कस्बों, सब के बारे में बताया है. इसमें मुग़ल कारखानों के बारे में डिटेल में लिखा गया है. इन कारखानों में सिल्क, मखमल, मलमल और सोने की कढ़ाई वाले कीमती कपड़े बनते थे. इसी किताब में बर्नियर ने दानिशमंद खान के बारे में भी लिखा है. ये भारत में इनके मेंटर कहे जा सकते हैं.
बर्नियर ने इस किताब में लोगों को उनकी नस्ल की आधार पर अलग-अलग भी बताया. इस वक़्त सोसाइटी के बारे में पढ़ने वाले पहले स्कॉलर ने ऐसा किया था. इन्होंने रंग-रूप से अमेरिका, एशिया और यूरोप के लोगों को अलग-अलग कैटेगरी में रखा था.


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